indiantopbligs.com

top hindi blogs

Saturday, January 31, 2009

जब माइक पकड़ने वाला बना इंटरव्यू लेने वाला

आज वसंत पंचमी के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में गया। एक म्यूजिक स्कूल था। वहां माइक से एक सज्जन उद्घोसना कर रहे थे। लोगों को जल्दी थी। इन्तजार भी था की उनके बच्चों का नम्बर आए और वो चलें घर को। हालाँकि बच्चों के कार्यक्रम देखने का मन भी था। मगर जिन सज्जन के हाथ में माइक था वो लगे थे अभिभावकों का इंटरव्यू लेने में कार्यक्रम शुरू होते ही वो सवाल पूछने में मशगूल हो गए भूल ही गए की लोग आपका ज्ञान समझन नहीं कार्यक्रम में आनंद उठाने ए हैं। खैर किसी तरह वो सरस्स्वती वंदना के लिए कुछ बच्चों को उठा पाए। बच्चों बहुत लाय्बद्छ होकर माँ सरस्वती की वंदना की। फ़िर बच्चों का कत्थक नृत्य का कार्याक्रम था। ये जनाब फ़िर शुरू हो गए। पहला सवाल था आप लोगों में से कितने लोग बिरजू महाराज को जानते हैं हाथ खड़े करें। कितने नहीं जानते हैं वो हाथ खड़ा करें। अब बताएं बिरजू महाराज कहाँ के रहने वाले हैं। कत्थक क्या होता है। एक महिला जिसकी बच्ची का शायद कार्यक्रिम था कुछ कुछ बताने लगी तो इन्हें फ़िर पता नहीं क्या हुआ बोले में व्यक्तिगत रूप से बिरजू महाराज को जनता हूँ। मेरे बगल में बैठे एक सज्जन को सवाल पूछने का यह अंदाज नागवार गुजर रहा था। वो मुझसे कुछ बोले। में बोला शांत रहिये कोई बात नही। थोडी देर में एक सांवला और दिखने में औसत बच्चे ने एक कार्यक्रिम किया उसके जानते ही माइक मैन बोले यह बच्चा बहुत खूबसूरत है। धन्यवाद इसके माँ बाप को आदि आदि। मेरे साथ बैठे सज्जन तो अब लगभग भड़क गाये मैंने फ़िर उन्हें शांत किया। माइक मैंन फ़िर बोले अभी जिस गीत पर बच्चों ने नृत्य किया उसके बोल बताइए। मेरे बगल में बैठे सज्जन बोले इनसे कोई यह पूछे कि यह माँ बाप का इंटरव्यू ले रहे हैं या बाच्चों का कार्यक्रम पेश कर रहे हैं। बगल वाले सज्जन बोले एक तमिल गाना था अगदम बदम आदि आदि। वोही गीत बाद में इस तरह आया जिया जले जान जले नैनूं टेल धुना। खैर अभी यह जारी है क्योंकि रात के १२ बज चुके हैं और घरजाने का वक्त हो चुका है यूँ ही चलती रहेगी जिन्दगी.

Friday, January 23, 2009

मीडिया का संक्रमण काल

हवा चाहे जहाँ से चली है लेकिन तूफ़ान ऐसा चल निकला है की थमने का नाम नहीं ले रहा है। अमर उजाला ने चंडीगढ़ समेट कुछ को हटाया तो बस चल निकला सिलसिला-ऐ-कटोती। मेट्रो नो का बंद होना फ़िर अखबारों के पेज कम होना आदि आदि ऐसी घटनाएँ हैं जिससे मीडियाकर्मी और उनके परिवार वाले व्यथित हैं। अब हिंदुस्तान से अनेक लोगों को निकला जा रहा है। कुछ मित्रों से बात करने पर विचार सामने आए कि जो गए उनका ऐसा ही हस्र होना था। कोई बड़बोलेपन में माहिर तो किसी के लिए अखबार में काम करना सेकेंडरी काम था। इससे पहले भी किसी का प्र्पेर्टी देअलिंग का धंधा चल रहा था तो कोई पी आर एजेन्सी चला रहा था। अब नौकरी जाने का सिलसिला शुरू हुआ तो मर्सिया पढ़ा जा रहा है। यही नहीं मंदी के बहने कंपनियों को भी कुछ लोगों को निपटाने का मौका मिल गया। जिसे चाहा पत्र थमाया और नमस्ते कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे हालत में इमानदार कौन रहे। क्या वो ठीक नहीं थे जिनका कुछ न कुछ धंधा चल रहा था। कम से कम तुंरत तो रोड इस्पेक्टर नहीं बने न। इस मसले पर कई पत्रकार बंधुओं ने यह भी कहा कि आख़िर मौके कि नजाकत को जो नहीं समझ पाये उनका क्या किया जाए। आज एक मित्र से बात हुई। उसने याद किए वो दिन जब हिन्दुस्तान में हम कुछ लोगों कि एंट्री हुई थी। एक पुराने सज्जन की टिपण्णी थी कि पता नहीं कहाँ से बंदर आ गए हैं फ़िर यह भी कि जितनी इनकी तनखा है उतना तो हमारे अखबार का बिल है आदि-आदि। खैर कुछ लोगों के लिए यह संक्रमण का दौर है। कहाँ कौन कितना ग़लत है अगर आप इस ब्लॉग को पढ़ें तो कृपया बताएं फ़िर चर्चा को लंबा खीचा जाए।

Tuesday, January 20, 2009

जारी है दोस्तों जिंदगी की जंग

रात के १२ बज रहे हैं अब चलते हैं फ़िर बात होगी ये जंग जारी रहेगी

हिन्दुस्तानी हलचल

आज शाम यानी २० जनुअरी की शाम हिंदुस्तान अखबार से लोगों को दनादन निकाले जाने की खबरें आने लगीं। बहुत दुःख हुआ। किसी की भी नौकरी जाना तो वाकई बहुत ख़राब है। फ़िर इस तरीके से तो वाकई। लेकिन इसकी भी पड़ताल की जानी चाहिए कि ऐसी नोबत क्यों आयी और किन लोगों को हटाया गया। यानि किस आगे ग्रुप के लोगों को। असल जहाँ तक मेरा इस ख़बर से सरोकार है वो यह कि करीब ९ साल पहले जब में हिंदुस्तान आया था तो कुछ दिनों तक दोयेम दर्जे कीनागरिकता जैसी हालत थी। कुछ लोगों को बात करने में भी जोर पड़ता था। खैर जैसा भी था अपने व्यवहार से या माहोल को अंगीकार किया और इन लोगों के साथ ८ साल गुजरे। चूंकि जब दीवारों से भी प्यार हो जाता है तो वो तो इंसान और संवेदनशी कहे जाने वाले इंसान थे। आज की घटना ने विचलित किया। शुक्र है की में इस मौके का गवाह नहीं बना। अब वहां आलम यह है की हर कोई आशंकित है। अब क्या होगा। पता नहीं। अपने एक साथी से बात हुई तो बोला क्या यह कदम ख़राब है। क्या ऐसा जरूरी नहीं था। फ़िर एक अन्य दोस्त ने भी ऐसे ही सवालात किए। कितना भी कुछ हो अपने को तुर्रम खान कहने वाले कुछ लोगों के साथ जो हुआ उस पर में अपने एक और मित्र की बात से इत्तेफाक रखता हूँ। वो यह की उसे करीब ४ साल पहले हिंदुस्तान से निकाल दिया गया था। उसे निकलवाने में एक महिला की खास भूमिका रही। मैंने उससे कहा देखो उसे सांत्वना दे दो, मेरा लिहाज व्यंगात्मक था। उसने एक लाइन में कहा नहीं यार नौकरी जाना ठीक नहीं में भी उससे इत्तेफाक रखते हुए सबके भले की कामना करता हूँ।

Saturday, January 17, 2009

इस दुनिया में

इस दुनिया में कितने किस्म के लोग नहीं मिले या मिलते जा रहे हैं। क्यों हर चेहरा संदिग्ध सा लगता है। कुछ लोग आपके साथ बैठते हैं चीजें शेयर करते हैं फ़िर इस वादे के हम लोगों के बीच कोई शोले फ़िल्म का हरिराम नाई न बने। पर ये क्या दूसरे ही दिन उन्ही लोगों में से कोई सबकुछ उगल चुका होता है बदहजमी के कारण या साजिश के चलते
जब मैंने करीब १० साल पहले दैनिक जागरण ज्वाइन किया था तो कुछ दिनों बाद ही हर चेहरे पर कुटिलता सी दिखती थी हिंदुस्तान गया तो बहुत समय तक वहां doyam दर्जे की नागरिकता के हालत में रहना पड़ा किसी तरह सामान्य रहा मुझे एक स्तर तक पसंद किया gayaa धीरे धीरे लोगों ने recognise किया। एक बार vo समय भी आया yes केवल बढ़िया कम करने wala और कराने wala है। कुछ समय बाद फ़िर एक अजीब stithi आयी ujhse एक बहुत senior व्यक्ति ने एक बात कही लेकिन बात कही बहुत imandaari से। vo ये की केवल तुम अच्छे व्यक्ति हो, काम अच्छा करते हो per एक कमी है की तुम आगे बढ़ने के सारे gur नहीं jante हो। एक दो लोगों का example दिया गया। फ़िर उन्होंने ही joda की हाँ तुम में उस सब के gats भी नहीं हैं। अब नाई dunia में हूँ कभी कुछ कभी कुछ लगता है। यहाँ बात पूरी करने से एक बात और कहना chata हूँ की मेरे साथ हमेशा यह हुआ की मुझे कुछ manane में कुछ लोग बहुत देरी करते हैं। चार jankaron के साथ एक ajnabi होगा to शायद voh अन्य लोगों की apeksha मुझसे उतनी बात न करे लेकिन इतना तय है की में पाँच ६ line बोल दूँगा to फ़िर vo मुझसे ही बात करेगा। कई बार यह भी होता है की आप होते कुछ हैं और आपको बताया कुछ और जाता है। कुछ कुछ ऐसा ही mahsoos कर रहा हूँ, एक और feeling हो रही है की मुझे jatate हुए ignore feel karaya ja रहा है। लेकिन utna ranj नहीं क्योंकि में काम के प्रति imandaar हूँ। prasangsah याद आ गया की एक बार kahin हिंदुस्तान के crime reporter और एक varishth adhikaari बैठे थे। में भी था। aadatan में काफ़ी देर तक chup baitha रहा जब bola to agali बार से जब भी vo akele बैठे to मुझे याद किया गया, कभी कभी to बुलाने तक की jid हुई। खैर चल चला चल अकेला चल चला चल.