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Tuesday, August 22, 2017

जोशी जी की भावपूर्ण विदाई : सेवा से निवृत्ति है, रिश्तों से नहीं

अनुभवों को साझा करते हरीश जोशी (बाएं)। साथ में हैं संपादक राजकुमार सिंह (बीच में) एवं समाचार संपादक हरेश वशिष्ठ
अपनी पत्नी के साथ भावुक जोशीजी।
इस ब्लॉग को लिखने में थोड़ा विलंब हो गया। कारण कई होते हैं। यहां भी रहे। लेकिन आज लिख रहा हूं। पिछले दिनों दैनिक ट्रिब्यून के वरिष्ठ पत्रकार हरीश जोशी सेवानिवृत्त हुए। बेहद सादगी भरा उनका विदाई कार्यक्रम अंत में सबको भावुक कर गया। जोशी जी संपादक राजकुमार सिंह जी के साथ न्यूज रूम में आये। कुछ बातें हुईं। इस बीच खाने-खिलाने का भी दौर चला। दो बार मिठाई। एक बार समोसे आदि। मन था कि लोग कुछ बोलें। शायद सबके मन में। लेकिन एक तो शाम का वक्त जो डेस्क कर्मियों के लिए बड़े तनावपूर्ण होते हैं, ऐसे में माहौल भावुक। इस बीच, हमारे समाचार संपादक हरेश वशिष्ठ जी ने कुछ किस्से सुनाये। उन्हीं में से एक यह भी कि एक कोई उनके पुराने साथी रिटायरमेंट के समय पर गुरु मंत्र दे गये कि स्पॉट रिपोर्टिंग क्यों जरूरी होती है। उन्होंने इस संदर्भ में एक किस्सा भी सुनाया। जोशी जी कुछ बोले, कुछ बोलते-बोलते रह गये। कुछ बातें संपादक जी ने कहीं। उन्होंने एक वाक्य में भावुक बात कही, 'जोशी जी आप सेवा से निवृत्त हो रहे हैं, रिश्तों से नहीं।' रिश्ते वाकई ट्रिब्यून परिवार में बहुत अच्छे हैं। मुझे तो यहां आये अभी चार साल हुए हैं, लेकिन यहां लोगों का चार-चार दशकों से भी पुरानी दोस्ती है। स्वयं जोशी जी ने तीन दशकों तक ट्रिब्यून को अपनी सेवाएं दीं। जोशी के इस विदाई कार्यक्रम में भले मैं उस समय कुछ न बोल पाया, लेकिन मन में कुछ ऐसा भाव था-
पुरबा बता दे, कहां की हवा है। सागर से पूछो दरिया कहां है।
अंधेरे बहुत फैल जाएं तो समझो, उठो अब कि अपना सवेरा हुआ है।

वाकई यह मौका भी तो एक सवेरा ही होने जैसा है। कौन कहता है कि विदाई की घड़ी एक शाम जैसी होती है। बल्कि अब तो नयी जिम्मेदारियां, नए फलक पर आपको नये रूप से चलना है। हां, यह भी सत्य है कि दफ्तर के लिए आपके लिए एक शाम शुरू हो गयी है जैसे बशीर बद्र साहब ने लिखा है-
थके-थके पेडल के बीच चले सूरज, घर की तरफ लौटी दफ्तर की शाम।
जोशी जी! बेशक इस पूरी चर्चा, प्रकरण में मैं स्वयं सागर में एक कटोरा पानी जैसा हूं, लेकिन जितना वक्त भी आपके साथ गुजरा प्रेरणादायक रहा। इस पर मैं यही कह सकता हूं-
आपके आभार की लिपि में प्रकाशित
हर डगर के प्रश्न हैं मेरे लिए पठनीय
कौन सा पथ कठिन है...
मुझको बताओ
मैं चलूंगा।

असल में जोशी जी की विदाई का यह नजारा उस समय ज्यादा भावुक हो गया, जब हम सभी न्यूज रूम के साथी उन्हें छोड़ने गेट तक आये। वहां उनकी पत्नी, बेटी-बेटा इंतजार कर रहे थे। श्रीमती जोशी ने कहा, 'इन्हें फर्क पड़े न पड़े हमें तो बहुत पड़ने वाला है। ट्रिब्यून को लेकर एक बल मिलता था। एक गर्व का अहसास होता था कि जोशीजी ट्रिब्यून में सीनियर जर्नलिस्ट हैं।' उनके इस कथन पर सभी ने कहा अभी भी जोशी जी ट्रिब्यून से जुड़े रहेंगे। लेखन से। कुछ और काम से। लेकिन इस दौरान अब तक बहुत 'मजबूत' दिख रहे जोशी जी की आंखें छलक आयीं। उनका भावुक अंदाज मानो कह रहा हो-
मेरे गीत तुम्हारे पास सहरा पाने आएंगे, मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएंगे।
ये सच है कि पांवों ने बहुत कष्ट उठाये, पर पांव किसी तरह से राहों पे तो आये।
... फिरता हूं कई यादों को सीने से लगाये।

इसके बाद माहौल लगातार भावुक हुआ जा रहा था। सबने जोशी जी और उनके परिवार के लोगों को नमस्कार कहा। और साथ में यह भाव रखा जैसे कह रहे हों-
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब्द के फूल को चूम के।
यूं ही साथ-साथ चलते रहें, कभी खत्म अपना सफर न हो।

Saturday, August 5, 2017

तो क्या मुंशी प्रेमचंद प्रोफेशन लेखक थे



‘लिव इन रिलेशन’, ‘देशभक्ति’, ‘जिहाद’ और ‘फैमिली प्लानिंग’ पर भी लिखा
मुंशी प्रेमचंद के बारे में आपके मन में कैसी छवि है। वह गरीब थे। उनकी कहानियों के पात्र बेहद दीन-हीन होते थे। समाज का दबा-कुचला तबका उनकी कहानियों के केंद्र में होता है। वह कुछ खास विषयों को ही उठाते थे। यदि ऐसे ही विचार हैं तो शायद यह पूरा सच नहीं है। प्रेमचंद अपने दौर के सबसे महंगे लेखकों में से थे। उनके पास अच्छी-खासी रकम भी थी। यही नहीं उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी कलम चलायी। चाहे वह 'लिव इन रिलेशन' हो, देशभक्ति हो, सांप्रदायिकता हो या फिर कोई और मुद्दा। यह दावा मैं नहीं कर रहा हूं। दरअसल, मुंशी प्रेमचंद की जयंती के मौके पर हरियाणा साहित्य अकादमी के एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। कार्यक्रम के अध्यक्ष थे प्रेमचंद पर आधिकारिक शोधकर्ता माने जाने वाले कमल किशोर गोयनका। अन्य वक्ता भी थे। कई लोगों ने विचार रखे, लेकन गोयनका साहब ने जो जानकारी दी, वह मेरे लिए नयी थीं। पहले तो यह कि प्रेमचंद गरीब नहीं थे। दूसरा यह कि वह कोई ट्रेंडी लेखक नहीं थे। उन्होंने हर तरह की कहानियां लिखीं और इतनी लिखीं कि सबके बारे में कोई नहीं जानता। दस हजार 200 पेजों के साहित्य के बारे में तो उनके बेटों को भी मालूम नहीं था। गोयनका जी का शोध के आधार पर दावा था कि सैकड़ों कहानियों का तो जिक्र ही नहीं किया जाता। यहां तक की उनके बेटे अमृतराय ने भी कई बातें छिपायीं। उन्होंने ऐसा क्यों किया यह किसी को नहीं पता।
मैं जो सवाल उठा रहा हूं कि क्या प्रेमचंद प्रोफेशनल लेखक थे, उसे उठाने के पीछे इसी कार्यक्रम से मिली जानकारी है। पहले बात करते हैं उन्हें अब तक गरीब घोषित करने की कोशिशें के बारे में। गोयनका साहब ने बताया कि प्रेमचंद जी की पहली नौकरी लगी तो उन्हें 20 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था। इसका अंदाजा आजकल के लोग इस तरह से लगा सकते हैं कि तब सोना 10 रुपये प्रति तोला था। गोयनका जी के मुताबिक स्वयं एक जगह प्रेमचंद जी ने कहा, ‘मुझे इतनी तनख्वाह की उम्मीद नहीं थी।’ यही नहीं कई जगह इस बात का भी जिक्र है कि उन्हें एक कहानी का पारिश्रमिक 20 रुपये मिलता था। यह बात वर्ष 1920 की है। वर्ष 1921 में उन्होंने जब उन्होंने नौकरी छोड़ी तो उन्हें 100 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था। जब वह माधुरी के संपादक बने तो उनका वेतन 150 रुपये महीना था। उसके बाद वह फिल्म लाइन में गये तो उनका वेतन 800 रुपये प्रतिमाह हो गया। वर्ष 1929 में उन्होंने बेटी की शादी में 7000 (सात हजार रुपये) खर्च किए। गोयनका जी का दावा है कि उनके बेटे श्रीपत राय ने भी यह माना कि प्रेमचंद जी ने शादी में सात हजार रुपये खर्च किए थे। असल में किसी का अमीर या गरीब होना कोई गुण या दोष नहीं है। बात है सबके सामने सच आने की। सच को स्वीकार कर लेने में हर्ज क्या है? उन्होंने और भी कई बातें बतायीं जिनके जरिये यह कहा जा सकता है कि सच नहीं कहा गया। मसलन उनके बेटे अमृत राय द्वारा लिखी गयी किताब ‘कलम का सिपाही’ में लिखा गया है कि प्रेमचंद की मौत के समय कोई साहित्यकार वहां नहीं आया। इसके उलट गोयनका जी का दावा है कि अनेक जाने-माने साहित्यकारों ने उस समय का चित्रण अपनी चिट्ठियों और डायरी में लिखा है। जाहिर है कि वे सब वहां मौजूद थे। खैर...। इन सब बातों को बताने का मकसद यही है कि सच को सच ही रहना देना चाहिए, उसी तरह जिस तरह मुंशी प्रेमचंद जी जैसा शायद ही आज तक किसी ने लिखा हो।
अब बात करें उनकी कुछ अनकही कहानियों की
गोयनका जी ने उक्त कार्यक्रम में प्रेमचंद जी की कुछ कहानियों का जिक्र किया।
आसूं : इस कहानी में एक व्यक्ति की अफगानिस्तान की प्रेमिका होती है। वह प्रेमी से कहती है कि दुनिया की अनमोल चीज मेरे लिए लेकर आओ। वह कई चीजें ले जाता है, लेकिन वह उन्हें अनमोल नहीं मानता। होते-करते वह जलिवाला बाग जाता है। वहां चारों ओर लाश पड़ी होती है। एक वीर जिसके हाथ कटे होते हैं, पूरे जोश से भारत माता की जै कहता है, उसके खून का एक बूंद टपकता है। वह व्यक्ति प्रेमिका के लिए वह बूंद ले जाता है। प्रेमिका का पूरा माजरा जानकर कहती है, हां यह है अनमोल चीज। खून का आखिरी कतरा भी जो देश के लिए कुर्बान कर दे वही महान है। ... इस कहानी के जरिये उन्होंने देशभक्ति का जोश भरा है।
कमल किशोर गोयनका
एक अन्य कहानी में एक व्यक्ति अमेरिका से भारत आता है। लंबे समय अमेरिका में रहने के बाद उसकी इच्छा होती है कि वह भारत में ही मरे। यहीं उसका अंतिम संस्कार हो। यहां आकर वह देखता है कहीं जुआ खेला जा रहा है, कहीं कुछ और निकृष्ट काम हो रहा है। वह कहता है यह तो मेरा देश नहीं। तभी वह गंगा किनारे जाता है। वहां एक गीत चल रहा होता है, प्रभुजी अवगुन चित न धरो। वह व्यक्ति गंगा में छलांग लगाते हुए कहता है, यही है मेरा देश।
जिहाद : यह कहानी आतंकवाद पर लिखी गयी है। इसमें 1924-25 के दौरान रावलपिंडी में हुए दंगों के जरिये आतंक के विस्तार पर चिंता व्यक्त की गयी है।
कैदी : इसमें एक व्यक्ति उस महिला से शादी करता है जो पहले से प्रेगनेंट होती है। उस व्यक्ति पर समाज ताने मारता है। कहानी के अंत में वह व्यक्ति कहता है, ‘अगर मैंने कोई खेत खरीदा हो जिसमें पहले से फसल बोई हो तो क्या वह खेत मेरा न हुआ।’ इसमें कहानी के जरिये समाज की रूढ़िवादिता के खिलाफ चोट की गयी है।
परिवार नियोजन पर प्रेमचंद जी की एक कहानी है। इसमें एक व्यक्ति कहलवाता है कि उसके यहां किसी की मौत हो गयी। लोगों के समझ में नहीं आता कि ऐसा कैसे हो गया। उसके यहां तो कोई बुजुर्ग भी नहीं है। सब उसके घर जाते हैं। वह कहता है मेरे घर में तीसरा बच्चा पैदा हुआ है। मैं पहले से ही जन्मे दो बच्चों की परवरिश नहीं कर पा रहा हूं तो इसे कैसे पालूं। इसका होना किसी के मरने जैसा ही हुआ। वह एक सांकेतिक पुतला बनाता है। उसे गंगा किनारे ले जाता है। मुर्दे की तरह उसका संस्कार करता है। कहानी का अंत प्रेमचंद इस तरह से करते हैं- वह व्यक्ति हाथ में गंगाजल लेकर सौगंध खाता है कि ‘अब ऐसी गलती नहीं करेगा।’
एक अन्य कहानी जो ‘लिव इन रिलेशन पर’ है। इसमें एक प्रोफेसर और एक डॉक्टर में प्यार हो जाता है। दोनों बिना शादी के साथ रहने लगते हैं। बाद में प्रोफेसर एक अन्य युवती के साथ विदेश भाग जाता है और डॉक्टर के पैसे भी ले जाता है। महिला प्रेगनेंट होती है। उसका बच्चा हो जाता है। एक दिन वह अपने घर की बालकनी में खड़ी होती है। परेशान होती है। तभी नीचे देखती है कि एक अंग्रेज जोड़ा बग्घी में अपने बच्चे को ले जा रहे हैं। कहानी यहीं खत्म हो जाती है। इस कहानी में प्रेमचंद ने पारिवारिक मूल्यों को बनाये रखने का संदेश दिया है। परिवार है तो सब है।
ऐसी ही कई कहानियों का जिक्र गोयनका जी ने किया। कार्यक्रम में अनेक अन्य लोग भी थे। प्रेमचंद जी के बारे में कई नयी बातें पता चलीं। हरियाणा साहित्य अकादमी और गोयनका जी का धन्यवाद। बस सवाल यही है कि प्रेमचंद जी को अच्छा मेहनताना मिलता था। हर विषय पर उन्होंने लिखा। तो क्या वे प्रोफेशनल लेखक थे।