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Thursday, April 26, 2018

ज्योति की शादी



18 अप्रैल तड़के तीन बजे मुरादाबाद पहुंच गया। सपरिवार। ज्योति की शादी में शामिल होना था। मेरी पत्नी भावना की दीदी की बड़ी बेटी है ज्योति। जब मेरी शादी हुई थी, तब बहुत छोटी थी। उनके घर कोटाबाग बहुत आना-जाना तो नहीं हो पाता था, लेकिन जितना हो पाया, उसमें कुछ समय ज्योति को समझने का अपनेआप ही मौका मिल गया। एक बार तब जब मेरा और सुरेश पांडे जी (ज्योति के पापा) का परिवार सीताबनी गये। सीताबनी रामनगर जिले में एक खूबसूरत जगह है। पर्यटकों की बहुत ज्यादा आवाजाही नहीं होती। शांत और सुरम्य स्थल है। वहां ज्योति का चुपचाप काम कर जाना, सबकी सुनना, हल्के से मुस्कुरा देना मुझे भा गया। मैंने अपनी पत्नी भावना यानी ज्योति की मौसी से कहा भी कि ज्योति को मैंने काम के बोझ में दबे होने पर उफ करते नहीं देखा। भाई-बहनों की केयर भी करती है, घर का काम भी करती है। भावना मुझसे सहमत थी। ज्योति की दादी अक्सर मुझसे कहती इसके लिए कोई लड़का देखो। पहलेपहल तो मैंने कहा, अभी बच्ची है। दादी बोली, ढूंढना शुरू करेंगे तो कुछ समय लग जाएगा। ज्योति की दादी की भी अलग कहानी है। यहां पर यही कहना चाहूंगा कि बेहद बेहतरीन महिला। अपनापन उनमें भरा हुआ है। पहली ऐसी सास देखी जो बहू की परेशानी पर आंसू भी बहा देती हैं। खैर इसी बीच कुछ माह पहले पता चला कि ज्योति की शादी तय हो गयी है। मुरादाबाद। लड़का कपिल गाजियाबाद में एक अच्छी कंपनी में है। उसकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। तमाम बातों के बीच यह भी मालूम हुआ कि शादी मुरादाबाद में ही होगी। पांडेजी वहीं आएंगे। कुछ रस्में कोटाबाग में भी होनी तय हुईं। प्राइवेट नौकरी, बच्चों के स्कूल और ऐसे ही अनेक कारणों के चलते हम लोग कोटाबाग नहीं जा पाये। मुरादाबाद पहुंचे तो समझ नहीं आया कि जाऊं कहां। बाकी लोग तो करीब 11 बजे आएंगे। करीब डेढ़ घंटे स्टेशन पर बैठकर गुजारने के बाद ज्योति के होने वाले ससुर (उस दिन के हिसाब से होने वाले ही कहेंगे) जोशी जी को फोन किया। वह बेहद भले इंसान लगे। बोले हम आपके लेने आ रहे हैं। उन्होंने अपने एक भतीजे के पास हमें टिका दिया। दस बजे के करीब हम लोग कन्या पक्ष वाले, कन्या पक्ष के साथ ही हो लिये। इस बीच लंच हुआ। लोगों से मिलना-जुलना हुआ। जाहिर है मेरे ससुराल के सभी लोगों से मिलना होना था, हुआ। इस बीच ज्योति के ससुराल वालों का महिला संगीत भी चल रहा था। अनेक लोग दूर-दूर और नजदीक-नजदीक के रिश्तेदार भी बनते महसूस हुए। इस बीच तमाम अनुभवों, बातों को देखते-सहेजते निदा फाजली साहब की कुछ पंक्तियां याद आईं, जो इस तरह हैं-


मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार।
दिल ने दिल से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार।
छोटा करके देखिये, जीवन का विस्तार।
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार।


कुछ रस्में-मसलन, धूलिअर्घ्य, जयमाल पूरी होने के बाद भोजन-पानी। उसके बाद होनी थी शादी की रस्म। मैंने अन्य लोगों से कहा, आप लोग जायें मैं यहां कमरे में हूं। फिर खुद ही सोचा कि क्या करना है, यहां भी। चल दिया। शादी की रस्म देखने। असल में कुछ रस्मों के दौरान में बेहद भावुक हो जाता हूं। जैसे शादी के दौरान जब कन्या को वर की तरफ बिठा दिया जाता है तो महिलाएं एक गीत गाती हैं-'वर नारायण बन्नी को अर्पण, अब यह बन्नी तुम्हारी है।' मुझे पता नहीं क्यों इस गीत को सुनते ही रोना सा आने लगता है। मुझे याद आया करीब 27 साल पूर्व का वह मंजर याद आया जब मेरी शीला दीदी की शादी लखनऊ में हो रही थी। मेरे रोने पर महिलाओं ने गीत को बंद कर दिया था। कुछ लोगों ने मुझे काम पर लगा दिया। मुझे ऐसे मौके पर फिर दो पंक्तियां याद आयीं-

आंगन–आंगन बेटियां, छांटी–बांटी जाएं
जैसे बालें गेहूं की, पके तो काटी जाएं।


वास्तव में ये रस्में होती बहुत ही भावुक हैं। पर धीरे-धीरे एक नया घर बसता है। दो परिवार एक होते हैं। समाज का विस्तार होता है। घर अच्छा मिल जाये तो अच्छा ही अच्छा। सुबह विदाई के वक्त भी मेरे आंखों में आंसू आ गये।


ज्योति पराई तो तुम तब लगोगी...जब...






ऐसे मौकों पर अनेक लोगों को कहते सुना जा सकता है, बेटी अब पराई हो गयी है। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा सुनना भी बुरा लगता है। मैं तो यहां के मामले में कहना चाहता हूं, ज्योति अपने घरवालों को पराई तो तुम तब लगोगी जब कोटाबाग जाने पर किसी भी कमरे में धड़ल्ले से जाने से झिझकोगी। पराई तब लगोगी जब मां से पूछोगी, मां एक कप चाय बना लूं। पराई तब लगोगी जब भाई-बहनों को डांटने में संकोच करोगी। पराई तब लगोगी जब कोई सामान उठाने की परमिशन लोगी। पराई तब लगोगी जब कोई कप-प्लेट टूटने पर अफसोस जाहिर करने लगोगी। पराई तब लगोगी जब अम्मा से नहीं झगड़ोगी। ज्योति जब भी कोटाबाग जाना। अपनी अम्मा से वैसे ही पेश आना। मम्मी-पापा को उसी अंदाज में बोलना जैसे बोलती आयी हो। तब तुम पराई नहीं लगोगी। अगर तुमने व्यवहार ऐसा किया कि नहीं, यह घर अब तुम्हारा नहीं, तो पराई लगोगी।


वह इंतजार और ट्रेन का सफर
ऊपर लिखी बातें शायद कुछ भावुक हो गयीं। थोड़ा सा माहौल को सामान्य बनाया जाये। आपको बताते हैं वापसी का अनुभव। हमारी ट्रेन यूं तो थी सुबह साढ़े ग्यारह बजे की। लेकिन धीरे-धीरे पता चल रहा था कि ट्रेन लेट पर लेट हो रही है। सबसे पहले तो बैंकट हॉल के मालिक से गुजारिश की कि हमें दस बजे तक रुकने की अनुमति दे दो। वह बंदा मान गया। हालांकि उनकी रजामंदी के बावजूद लोग आते रहे और कमरा खाली करने की ताकीद करते रहे। इस बीच, बच्चों के मामा भास्कर जोशी को भी कुछ घंटे साथ रहने के लिए मना लिया। एक तो मुझे लग रहा था कि बिल्कुल नहीं सोने के बाद वह कार ड्राइव कर फरीदाबाद जाएंगे तो सफर बहुत कठिन होगा, दूसरे कुछ समय हमें भी साथ मिल जाएगा। करीब 11 बजे वह अपने सफर पर निकले और हम चले स्टेशन की ओर। वहां पहुंचते-पहुंचते पता चला कि ट्रेन 6 घंटे लेट हो गयी है। फिर स्टेशन मास्टर से मिलकर एक रूम बुक कराया। बच्चों को लंच कराया। वहीं सो गये। होते-करते सवा सात बजे ट्रेन वहां से चली। सोचा कि ट्रेन में ही खाना खा लेंगे। पता चला कि ट्रेन में पेंट्री कार है ही नहीं। रुड़की स्टेशन पर ट्रेन रुकी। वहां भी कुछ नहीं मिला। थोड़ी देर में समोसे वाला आया। उसी पर सब टूट पड़े। देखते-देखते उसके सब समोसे बिक गये। मुझे भी चार मिल गये। सबने एक-एक खाया। फिर पानी पीकर सो गये। मुझे नींद नहीं आयी। सुबह तीन बजे चंडीगढ़ स्टेशन पर पहुंचे। वहां देखा अथाह भीड़। साढ़े तीन बजे करीब घर पहुंच गये। इन दिनों हम लोग किसी से फोन पर तो किसी को फोटो दिखाकर ज्योति की शादी की चर्चा कर रहे हैं। पांडे जी के परिवार और जोशी जी के परिवार को बहुत-बहुत बधाइयां।


जुगाड़ का देखा नया नजारा




यूपी जुगाड़ व्यवस्था के लिए जाना जाता है। हर तरह का जुगाड़। मुझे यहां अलग किस्म का जुगाड़ दिखा। एक बेकार सा हो चुके स्कूटर के जरिये मिक्सी चलाने का जुगाड़। शादी-व्याह में ज्यादा मात्रा में कई चीजें पीसनी होती हैं, जैसे-चावल (डोसे के लिए), धनिया, मिर्च और अदरक (चटनी के लिए) वगैरह-वगैरह। मैंने देखा, बैंकट हॉल के एक कोने में स्कूटर के पिछले पहिये पर तीन लोहे की पत्ती वेल्ड करायी थीं। उसे पहिये की गरारी से फंसाकर आगे मिक्सी पर जोड़ा था। स्कूटर का एक्सीलेटर घुमाते जाइये और मिक्सी की स्पीड बढ़ती जाएगी। मैंने इसकी कुछ फोटो भी खींच ली, जो यहां पेस्ट कर रहा हूं।







ट्रिब्यून स्कूल के कार्यक्रम में सैनिकों की बात


गगनचुंबी, बर्फीली पहाड़ियों पर सैनिक को मिलता है एक खूबसूरत संदेश। हाथ से लिखा हुआ, हाथ से ही चित्रकारी। यह संदेश पढ़कर उनमें नया जोश भर जाता है। संदेश के साथ ही मिलती है मिठाई। उसके बाद तो संदेश के जवाब में शुरू होती है खत लिखने की कवायद। उस जांबाज सैनिक को तो पता भी नहीं कि खत आया कहां से? बस वह पूरे जोश और जुनून में लिखता है, 'इस संदेश और मिठाई ने हमें एक नया जज्बा दिया है। हम हैं प्रहरी, आप आराम से रहिये।' ऐसे अनेक भावुक खतों और किस्सों को सुनने का पिछले दिनों मौका मिला। कार्यक्रम था चंडीगढ़ के सेक्टर 29 स्थित ट्रिब्यून मॉडल स्कूल के प्रांगण में। किस्से सुनाने वाली थीं डॉ रंजना मलिक। सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वीपी मलिक की पत्नी और आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष। स्कूल की प्रिंसिपल वंदना सक्सेना को धन्यवाद देना चाहता हूं कि स्कूली कार्यक्रमों में वह नित नवीनता लाने की कोशिश करती हैं। पिछले पांच सालों से इस स्कूल से जुड़ा हुआ हूं। एक अभिभावक की भूमिका में। एक रिपोर्टर की भूमिका में और कभी-कभी कुछ कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले एक व्यक्ति की भूमिका में। लंबे समय से अपने अनुभवों को ब्लॉग पर साझा करना चाहता था, लेकिन हर बार वही व्यस्तता और कभी यह विचार कि इन्हें फिर सहेजा जाएगा। इस बार लगा कि नहीं बात निकली है तो कह देनी चाहिए, इंतजार तो फिर दूर तलक हो जाएगा। आर्मी बैकग्राउंड की रंजना ने ट्रिब्यून के बच्चों की तमाम मसलों पर तारीफ करते हुए बात सेना के मसलों से ही शुरू की और कहा कि अगर अभी यह पूछें कि दो परमवीर चक्र विजेताओं के नाम बताये जाएं तो शायद कुछ न बता पायें। सैनिकों को असली हीरो उन्होंने बताया। उनकी बात से कुछ पंक्तियां याद आयीं-
हमको कब बाधायें रोक सकी है, हम आज़ादी के परवानों को
तूफ़ान भी नहीं रोक सका, हम लड़ कर जीने वालों को
बात जारी रखते हैं। सैनिकों को मिठाई और खत भेजने वाली अपनी बात को शुरू करने से पहले उन्होंने बताया कि प्रिंसिपल वंदना सक्सेना ने कहा था कि वह अपने अनुभवों को साझा करें। उन्होंने कहा कि आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष रहते हुए उनके मन में यह खयाल आया। सैनिकों से जुड़े तमाम महिलाओं ने उनके काम में हाथ बंटाया। फिर अलग-अलग माध्यमों से खत आये। एक खत तो दिल्ली के गोल मार्केट स्थित मिठाई की दुकान पर ही पहुंच गया। बाद में जब कई सैनिकों ने जानना चाहा कि खत आ कहां से रहे हैं तो उन्होंने संस्था (आवा) के लेटरहैड पर एक चिट्ठी अपने हाथों से लिखी। इसके बाद भी हुआ रोचक वाकया। एक सैनिक ने खत लिखा, ‘आपकी भेजी हुई चिट्ठी हमारे यहां नोटिस बोर्ड पर लगा दी गयी है। इसलिए आप अलग से एक चिट्ठी लिखिये ताकि इसे हम अपने पास रख सकें।’ मैडम डॉक्टर मलिक ने ऐसे ही कई रोचक किस्से सुनाये और ताकीद की कि सैनिकों के बारे में भी बच्चे जानें और समझें।
दो और पंक्तियां यहां पर पेश करने का मन हो रहा है-
हां मैं इस देश का वासी हूं, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा
जीने का दम रखता हूं, तो इस के लिए मरकर भी दिखलाऊंगा।
इन पंक्तियों के साथ ही राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की भी दो पंक्तियां पेश हैं-
जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
कार्यक्रम के बीच में हमेशा की तरह संगीतमय पस्तुति भी हुई। बच्चे पुरस्कृत हुए। अलग-अलग मसलों पर बच्चों और टीचर्स ने अपनी बातों को रखा। कार्यक्रम के अंत में मैं डॉ मलिक से बात कर ही रहा था कि एक महिला आयीं और उन्होंने कहा, 'मैं एक सैनिक की मां आपको सैल्यूट करती हूं।' डॉ मलिक ने भी तुरंत जवाब दिया, 'मैं एक सैनिक की मां भी हूं। मेरा बेटा कश्मीर में ब्रिगेडियर है।' मैं भी कहां चुप रहने वाला था, मैंने भी कहा, 'मैं दोनों को सैल्यूट करता हूं।' तभी अन्य टीचर्स एवं प्रिंसिपल अन्य मेहमानों के साथ वहां आ गये। थोड़ी देर मुस्कुराहटों के आदान-प्रदान के साथ मैं वहां से रुखसत हुआ। 
स्कूल प्रिंसिपल वंदना सक्सेना को इसलिए भी साधुवाद कि कई मौकों पर उन्होंने अलग-अलग विशेष बुलाये। उनसे रू-ब-रू करवाया। अनेक अवसरों पर स्कूल में और स्कूल के बाहर भी स्कूल की चेयरपर्सन चांद नेहरू को भी सुनने का मौका मिला। कभी उनकी सीपी वाली कहानी और कभी लाड़वंत और दंडवंत जैसे पैरेंटिक टिप्स को सुनता रहता हूं। इन सबके बीच अनुपमा चोपड़ा मैडम की गहमागहमी और संबंधित तैयारियों का भी जिक्र होता है। ट्रिब्यून स्कूल में अपने बच्चों के एडमिशन से पहले से भी आता रहा हूं। बाहर-बाहर। देखता था। सुनता था। कुछ लोगों से जिक्र करता था। अलग-अलग राय मिलीं। फिलहाल मेरे दोनों बच्चे यहां पढ़ते हैं। विस्तार से अन्य कार्यक्रमों की चर्चा जारी रहेगी।

(नोट : अवार्ड सेरेमनी की जो खबर मैंने लिखी उसे हू-ब-हू नीचे दे रहा हूं। यहां कुछ फोटो भी साझा कर रहा हूं। उनमें से कुछ ट्रिब्यून स्कूल के फेसबुक पेज से लिये गये हैं)




संगीत, योग और पुरस्कार वितरण के साथ ट्रिब्यून मॉडल स्कूल का इनवेस्टिचर एवं अवार्ड समारोह संपन्न
चंडीगढ़, 12 अप्रैल (ट्रिन्यू)
लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम मिलाकर चल। मंजिल तेरे पग चूमेंगे, आज नहीं तो कल। इस प्रेरणादायक गीत के साथ बृहस्पतिवार को ट्रिब्यून मॉडल स्कूल का इनवेस्टिचर एवं अवार्ड समारोह शुरू हुआ। सेक्टर 29 स्थित स्कूल प्रांगण में आयोजित समारोह में मधुर संगीत, उत्साह, अनुशासन का अनूठा संगम दिखा। इस मौके पर 2018-19 के लिए स्कूल काउंसिल का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। पिछले सत्र में विभिन्न क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया गया। प्रिंसिपल वंदना सक्सेना ने कहा कि बच्चों का उत्तरोत्तर विकास टीचर्स की कड़ी मेहनत, अभिभावकों के सहयोग से संभव हो पा रहा है। अपने संक्षिप्त संबोधन में वंदना ने कहा, 'हमारे आसपास क्या हो रहा है? इसके प्रति जागरूक रहें। हमेशा सीखते रहना ही हमारी ताकत है।' कार्यक्रम की मुख्य अतिथि आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष डॉ रंजना मलिक ने बच्चों का उत्साहवर्धन किया और अपने अनुभवों को साझा किया। पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक की पत्नी रंजना ने कहा, 'बच्चों पर सबसे अधिक असर घर के वातावरण का पड़ता है।' ट्रिब्यून के बच्चों की अनुशासनशीलता की तारीफ करते हुए उन्होंने समय पालन पर बल दिया। डॉ मलिक ने अपने सैन्य बैकग्राउंड का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने तमाम महिलाओं की सहायता से कारगिल युद्ध के समय जवानों के लिए मिठाई के डिब्बे और हाथ से लिखे प्रेरणा संदेश भेजे और उसके बाद सैनिकों के भावुक और जोशीले खत भेजे। सैनिकों को वास्तविक हीरो बताते हुए रंजना ने कहा कि हमें उनको भी याद रखना चाहिए। कार्यक्रम में संगीत टीचर अतुल दुबे के नेतृत्व में रबीन्द्रनाथ टैगोर के शांति गीत पर बेहतरीन गीत-नृत्य पेश किया गया। इस दौरान बच्चों ने योग की भी बेहतरीन प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में वर्ष 2018 के लिए अशोक एवं स्नेह शर्मा मेमोरियल ट्रॉफी गुलिस्तान को दी गयी। हरीश चंद्र सक्सेना मेमोरियल बेस्ट ऑल राउंड ट्रॉफी पूजा एवं शिवांश को मिली। इससे पहले हेड बॉय कार्तिक, हेड गर्ल तान्या, स्पोर्ट्स कैप्टन प्रेरणा के अलावा गुलिस्तान, आर्यन आदि ने स्कूल की विभिन्न गतिविधियों की रिपोर्ट पेश की।