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Thursday, March 28, 2019

‘मजबूत’ कमजोरी वाली ताई


विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक की कहानी ताई : यह लेख दैनिक ट्रिब्यून के क्लासिक किरदार कॉलम में छप चुका है


मन में भावनाओं का ज्वार-भाटा उमड़ता-घुमड़ता है। अपनी संतान की ललक है। दूसरों के बच्चों को भी प्यार करने को दिल चाहता है, लेकिन उमड़ते वात्सल्य पर नियंत्रण की भी ‘कला’ है। वह मजबूत है। वह कमजोर है। वह दुलारती है। वह दुत्कारती है। वह ताई है। रिश्ते की। उम्र में अभी युवा है। जाने-माने कथाकार विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक की कहानी की ताई। यह ताई जिसका नाम कहानी में रामेश्वरी है, मुझे इसीलिए भाती है कि वह आदर्श नहीं है। बिल्कुल सफेद-हीरो या बिल्कुल ग्रे-विलन की तरह नहीं। मिला-जुला रूप है। इंसान ऐसे ही तो होते हैं। ऐसे ही मनोभाव तो आते हैं। वह देवर के बच्चों के मरने की तक कल्पना कर डालती है, लेकिन असल में उस बच्चे के चोटिल होते ही खुद बीमार पड़ जाती है। ताऊ यानी इनके पति आदर्श व्यक्ति हैं। भाई के बच्चों को अपना ही समझते हैं। मान चुके हैं कि अब उनके बच्चे नहीं होंगे। लेकिन ताई हैं कि उम्मीद का दिया जलाये हुए हैं। ताई के इसी मिक्स किरदार को लेकर लेखक ने उनके बारे में लिखा है, ‘यद्यपि रामेश्वरी को माता बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था, तथापि उनका हृदय एक माता का हृदय बनने की पूरी योग्यता रखता था। उनके हृदय में वे गुण विद्यमान थे, जो एक माता के हृदय में होते हैं, परंतु उसका विकास नहीं हुआ था। उसका हृदय उस भूमि की तरह था, जिसमें बीज तो पड़ा है, पर उसको सींचकर और इस प्रकार बीज को प्रस्फुटित करके भूमि के ऊपर लानेवाला कोई नहीं। इसीलिए उसका हृदय उन बच्चों की और खिंचता तो था, परंतु जब उसे ध्यान आता था कि ये बच्चे मेरे नहीं, दूसरे के है, तब उसके हृदय में उनके प्रति द्वेष उत्पन्न होता था, घृणा पैदा होती थी। विशेषकर उस समय उनके द्वेष की मात्रा और बढ़ जाती थी, जब वह यह देखती थी कि उनके पतिदेव उन बच्चों पर प्राण देते हैं, जो उनके नहीं हैं।’
ताई शीर्षक वाली इस कहानी की शुरुआत बच्चे की उस जिद से होती है जब वह अपने ताऊ से रेलगाड़ी (खिलौना) लाने की जिद करता है। ताऊ पूछते हैं कि उसमें ताई को बिठाएगा कि नहीं? बच्चा पहले मना करता है फिर जब ताऊ आश्वासन देते हैं कि ताई प्यार करेगी तो वह मान जाता है। हालांकि ऐसा होता नहीं है। ताई यानी रामेश्वरी तो पति से भी चिढ़ने लगी है। उसे लगता है कि देवर के बच्चों के प्रति यह स्नेह ठीक नहीं। उसे तंत्र-मंत्र पर विश्वास है। पति का मानना है कि नाम रोशन करने के लिए संतान जरूरी नहीं। अपनी औलाद का सुख चाहते दोनों हैं, लेकिन ताऊ यानी बाबू साहब मान चुके हैं कि उनकी संतान नहीं होगी। कहानी ऐसे ही बढ़ती है। कभी ताई उन बच्चों (देवर का बेटा और बेटी) के चेहरों को देखती है तो उसका मन करता है कि उन्हें खूब पुचकारे, लेकिन पलभर बाद ही वह अपने दिल को कठोर कर लेती है।

ऐसे किसी मौके पर अगर बाबू साहब पूछते, ‘तुम्हारा हृदय न जाने किस धातु का बना है?' तो रामेश्वरी का जवाब होता, ‘पराये धन से भी कहीं घर भरता है?' ताई ताने मारती, ‘आदमी संतान के लिए न जाने क्या-क्या करते हैं-पूजा-पाठ करते हैं, व्रत रखते हैं, पर तुम्हें इन बातों से क्या काम? रात-दिन भाई-भतीजों में मगन रहते हो।' बाबू साहब इन सबको ढकोसला करार देते हैं।
खैर कहानी ऐसे ही ताई की तुनकमिजाजी और एक दूसरे को कोसते हुए आगे बढ़ती है। बीच-बीच में बच्चे आ जाते हैं। कभी कुछ मांगने की जिद करते और कभी ताई की डांट सुनकर चले जाते। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब एक दिन दोनों बच्चे खेलते-खेलते ताई की गोद में बैठ जाते हैं और बहुत देर तक वहीं धमाचौकड़ी मचाते हैं। ताई को यह सब अच्छा लगता है। तभी वहां बाबू साहब आ जाते हैं बच्चों का खिलौना लेकर। बाबू साहब यह दृश्य देखकर खुश होते हैं, लेकिन उनके तर्क और उनकी खुशी और उनका लाया हुआ खिलौना ताई को आग बबूला कर देता है। नौबत दोनों पति-पत्नी में झगड़े तक पहुंच जाती है। बात आई-गई हो गयी। ताई जब-जब इन बच्चों को देखती उसे अपनी संतान की ललक होने लगती। एक दिन ऐसे ही विचारों में मग्न वह छत पर टहल रही थीं। बच्चा आ जाता है। आसमान में पतंगों को उड़ता देख उसका मन ललचाता है। बच्चा तो बच्चा है। ताई से लिपटकर कहता है, ‘ताई मुझे पतंग मंगवा दो ना।’ पहले ताई डपट देती है। थोड़ी देर बाद बच्चा फिर ताई की टांगों के इर्द-गिर्द लिपटते हुए कहता है, ‘मंगवा दो ना ताई पतंग।’ ... इस बार ताई का वात्सल्य उमड़ पड़ा। शायद वह यही बच्चे को पुचकार कहने ही वाली थी कि मंगवा देंगे। लेकिन बच्चा तो चंचल है। उससे इंतजार कहां होना है। वह तुरंत कह उठता है, ‘नहीं मंगवाओगी तो ताऊ से पिटवा दूंगा।’ बस फिर क्या था, ताई के मन में बच्चों के प्रति हद से अधिक नफरत हो गयी। उसने बच्चे को झिटका और फिर वह उनके मरने तक की कामना कर बैठी। लेकिन बच्चा तो बच्चा है। फिर खेलने में मगन हो गया। तभी एक पतंग कटकर आती है और उसे लूटने के चक्कर में छज्जे से गिर जाता है। इस दौरान उसकी कातर पुकार सुनकर ताई उसे बचाने के लिए दौड़ती तो है, लेकिन बच्चा गिर ही जाता है। इस दृश्य को देख ताई जोर से चीखती है और बीमार हो जाती है। बच्चा कुछ दिन बाद जब ठीक होकर ताई के सामने जाता है तो ताई का पूरा वात्सल्य उमड़ पड़ता है। कहानी में लेखक ने ताई के तमाम मनोभावों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है। वाकई ताई का किरदार इसमें बेहद रोचक है।