indiantopbligs.com

top hindi blogs

Sunday, April 14, 2019

दुनिया के टॉप 10 रहस्य


(यह लेख 14 अप्रैल 2019 को दैनिक ट्रिब्यून के लहरें में कवर स्टोरी के तौर पर ‘दुनिया के अनसुलझे रहस्य’ शीर्षक से छप चुका है)
रहस्य। रोमांच। खौफ। जानने की ललक। किस्सागोई। वैज्ञानिक तथ्य। किसी खास मसले पर इन सारी चीजों का घालमेल करें तो एक अजीब सा माहौल बनेगा। सन्नाटा सा। सुना-सुनाया सा। जाना-अनजाना सा। असल में मनुष्य ही एकमात्र प्राणि है जो अपनी हदों से बहुत आगे बढ़कर जानने की ललक रखता है। जानता है। जानने-समझने की इसी भूख में छिपा होता है रहस्य और रोमांच। इन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाते वक्त कभी मंजर खौफनाक भी आता है और कभी सफलता का ऐसा सतरंगी धनुष बनता है कि वह जानने के क्रम में और आगे बढ़ता है। जानने-समझने के इस विशाल समुंदर में हम बात करते हैं कुछ रहस्यों की। ऐसे रहस्य जिनकी चर्चा बहुत होती है, लेकिन वे अब तक रहस्य ही बने हैं। ऐसे किस्से लाखों होंगे, लेकिन यहां हम बात करते हैं दुनिया के टॉप 10 रहस्यों की।
1. बरमडूा ट्राइएंगल : इसे डेविल्स ट्रायंगल भी कहा जाता है। विशाल समुद्री इलाका। यह क्षेत्र उत्तरी अटलांटिक महासागर में है। अभी तक इस त्रिकोण यानी ट्राइएंगल की ठोस व्याख्या भी नहीं हुई है। माना जाता है कि यह क्षेत्र  बरमूडा, मियामी (फ्लोरिडा) और सैन जुआन (प्यूर्टो रीको) के बीच है। यहां हवाई जहाज, शिप के अलावा लोगों के गायब होने की जो बात की जाती है, वह बहुत ही रहस्यमयी है। वैसे यहां के बारे में चर्चित है कि 19 वीं सदी में पहली बार जहाज लापता हुआ था। दुर्घटना की खबर आई लेकिन जहाज का मलबा नहीं मिला। कहा जाता है कि अमेरिका की खोज करने वाले कोलंबस भी इस इलाके में भटक गये थे। बताया जाता है कि कोलंबस ने इस इलाके में ‘समुद्र से निकलने वाली सुनहरी रोशनी की एक चमकती हुई गेंद’ देखी जो लगातार बड़ी होती चली गयी। इसके सैकड़ों साल बाद विभिन्न पायलटों और नाविकों ने दावा किया कि समुद्र के इस इलाके में पहुंचते ही वे विशाल बादलों के गुबार में फंस गये। इसके बाद वे अचानक उस युग में चले गये जब फ्रांसीसी क्रांति हुई। बाद में कहा तो यहां तक गया कि यहां समुद्री राक्षस भी दिखे। कई जहाज अपनेआप यहां खिंचे चले आए और गुम हो गए।
वैज्ञानिक तथ्य : वैज्ञानिक डरावनी बातों से इनकार करते हुए कहते हैं कि यहां जलवायु में अचानक बड़ा परिवर्तन होता है। भारी मात्रा में मीथेन के कारण पानी और धुंध का घनत्व कम होता है। इसके चलते भारी गुबार बनता है। इसी वजह से कई बार यहां का सीन डरावना बन जाता है।

2. डेंडेरा लाइट : डेन्डेरा लाइट रहस्य के बजाय विवादास्पद कहानी के रूप में ज्यादा प्रचलित है। कहा जाता है कि मिस्र के एक मंदिर की दीवारों में देवी हाथोर में एक आकृति दिखती है। जबसे इस आकृति की खोज हुई तब से यह सभी के लिए रहस्यमयी बनी हुई है। पहली नज़र में इसमें ऐसा लगता है कि सांप रूपी धागे जैसी किसी चीज से कोई दीपक या लैंपनुमा वस्तु बंधी है। साथ ही दिखता है कि एक पुजारी ने इस लैंप को पकड़ा है। मंदिर के अंदर का कॉरिडोर बहुत ही जटिल बना हुआ है। अंदर सूरज की रोशनी नहीं पहुंच सकती। लेकिन दीपक की लौ की कतार की स्थिति बहुत ही रहस्यमयी लगती है। मिस्र के इस रहस्य के बारे में कहा जाता है कि उस समय रोशनी के तथ्यों के बारे में खोज आज से कहीं अधिक थी।
वैज्ञानिक तथ्य : अध्ययन और शोध बताते हैं कि वहां की दीवारों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। अंदर प्रकाश पहुंचाने के लिए प्रतिकृति या प्रतिबंब थ्योरी का इस्तेमाल किया गया होगा।

3. शैतान की बाइबिल
ईसाइयों के पवित्र ग्रंथ बाइबिल के बारे में हम-आप सब जानते हैं। लेकिन एक बाइबिल ऐसी भी है जिसको लेकर रहस्य बना हुआ है। यह है कोडेक्स गिगास या शैतान की बाइबिल। यह बाइबिल बहुत विशाल है। इसकी लंबाई से इसके आकार का पता लगाया जा सकता है। यह 92 सेमी (36 इंच) लंबी पुस्तक है। चर्म पत्र पर लिखी हुई। पहले पन्ने पर एक विशालकाय शैतानी चित्र है। बताया जाता है कि मध्य काल में एक भिक्षु ने अपनी एक प्रतिज्ञा तोड़ दी। उसके मठ ने उन्हें दीवार में चिनवाने की कठोर सजा सुना दी। इस पर भिक्षु ने सजा से मुक्ति चाहते हुए वादा किया कि वह एक रात में एक ऐसी विशाल पुस्तक लिखेंगे जिसमें दुनिया का सारा ज्ञान होगा। आधी रात होते-होते उसे अहसास हो गया कि वह इस काम को नहीं कर पाएगा। उसने खास तांत्रिक तरीके से शैतान को बुलाया। शैतान ने किताब पूरी कर दी और भिक्षु सजा से बच गया। किताब को लेकर एक और बड़ा रहस्य है। मई 1697 की एक रात स्टॉकहोम के शाही महल में भीषण आग लग गई और रॉयल लाइब्रेरी बुरी तरह से जल गई। इस किताब को आग से बचाने के लिए खिड़की से बाहर फेंका गया। उसी दौरान इसके कुछ पन्ने अलग हो गये। कहा जाता है कि वे पन्ने आज तक नहीं मिले। बेशक इसे शैतान की बाइबिल कहा जाता है, लेकिन इसमें चिकित्सा पद्धति, तपस्या आदि जैसे कई मसले भी दिये गये हैं। आज यह पुस्तक स्वीडन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में संरक्षित है।
वैज्ञानिक तथ्य : शोधकर्ताओं का कहना है कि उस समय की परिस्थितियां और सुविधाओं के हिसाब से ऐसी पुस्तक को लिखने में करीब 30 साल लगते। इसलिए एक रात वाली कहानी गले नहीं उतरती। हो सकता है इसे लिखकर पहले से रखी गयी हो। हालांकि इसमें राइटिंग एक ही व्यक्ति की है।

4. चंगेज खान का मकबरा  : चंगेज खान के बारे में कहा जाता है कि वह दुनिया का बेहद शक्तिशाली सम्राट था। कहा यह भी जाता कि अगर उसका साम्राज्य आज भी चल रहा होता तो दुनिया के 16 फीसदी हिस्से पर उसका कब्जा होता। वैसे इतिहास में कई लेखकों ने चंगेज खान को हत्यारा और निर्दयी तानाशाह भी माना है। कई लोग उसे मंगोलिया के संस्थापक और धार्मिक नेता के तौर पर याद करते हैं। असल में चंगेज खान के बारे में रहस्य उसके मकबरे को लेकर है। बताया जाता है कि चंगेज खान की इच्छा थी कि उसकी कब्र अनजान जगह पर बने। साथ में मकबरे का पता किसी को न हो। माना जाता है कि कब्र के स्थान को छुपाने के लिए, अंतिम संस्कार में जाने वाले हर व्यक्ति को मार दिया गया था ताकि कोई गवाह न रहे। यह भी कहा गया कि चंगेज खान को दफनाने के बाद वहां हजारों घोड़ों को दौड़ाया गया ताकि वहां जमीन समतल हो सके। वर्ष 2004 में एक बात यह भी सामने आई कि मकबरे को उनके जन्मस्थान के पास खेंटी प्रांत में, ओन नदी के करीब कहीं बनाया गया होगा। हालांकि 1950 के दशक में, चीन ने चंगेज खान की याद में एक भव्य मकबरा बनवाया, लेकिन यह मूल मकबरे के स्थान पर नहीं है। कुछ लोग यह तक कहते हैं कि अगर चंगेज खान का मकबरा मिल गया तो तबाही आ जाएगी।
वैज्ञानिक तथ्य : जानकार कहते हैं कि जब चंगेज खान ने खुद ही अपनी कब्र का खुलासा नहीं करने की बात अपनी वसीयत में लिखी तो जाहिर है वहां कोई मकबरा बनाया ही नहीं गया होगा। उन्हें दफनाकर जमीन समतल कर दी गयी होगी और यह काम बहुत गोपनीय तरीके से हुआ होगा।

5. ईस्टर आईलैंड की विशालकाय मोआई मूर्तियां : वर्ष 1722 में एक डच खोजकर्ता ने ईस्टर द्वीप की खोज की। जिस जगह को वीरान समझा जाता था वहां दो से तीन हजार लोगों को देखकर वह हैरान हो गया। हैरानी इस बात की थी वह द्वीप ज्वालामुखी से बना था और वहां आबादी होने की किसी को उम्मीद नहीं थी। इससे भी हैरानी की बात थी कि मूल आबादी वाले इलाके से 17 किलोमीटर दूर 887 भीमकाय मूर्तियों का होना। हर मूर्ति 33 फुट से अधिक लंबी थी। एक-एक मूर्ति का वजन 87 टन से अधिक था। सवाल यह था कि पूरी दुनिया से कटे हुए इन लोगों ने इन मूर्तियों को तराशा कैसे और फिर इतनी दूर इसे ले कैसे आये। एक और खास बात थी कि ये मूर्तियां लगभग एक जैसी थीं। जैसे कि एक ही सांचे में इन्हें ढाला गया हो। सवाल यह था कि इन मूर्तियों को लाने या बनाने का कारण क्या रहा होगा? कहा यह भी जाता है कि द्वीप पर सालों पहले एलियंस ने यहां आकर इनका निर्माण किया था और वे इन्हें बीच में ही आधा छोड़कर चले गए थे।
वैज्ञानिक तथ्य : जानकार कहते हैं कि अपने पूर्वजों की याद में यहां रहने वाले रापा नुई जनजाति के लोगों ने इन मूर्तियों को बनाया। धीरे-धीरे मूर्तियां बनाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। इन्हें बनाने के चक्कर में जंगल उजड़ रहे थे। एक समय ऐसा आया कि वहां खाने के लाले पड़ गये और अंतत: वहां के लोग इसे छोड़कर चले गये।

6. चीन के पहले सम्राट की रहस्यमयी कब्र : चीन के पहले सम्राट चिन बेहद शक्तिशाली थे। चिन राजशाही वंश के इस सम्राट का पूरा नाम चिन शी हुआंग था। उनके ही नाम से चीन का नामकरण हुआ। उनके मकबरे के बारे में कई रहस्य हैं। सबसे बड़ा तो यही कि उसे अब तक कभी जानकारी जुटाने के नाम पर छेड़ा ही नहीं गया। कहा जाता है कि तकनीक के मामले में अव्वल रहने वाले चीन जैसा देश भी इस मकबरे में जा नहीं सका। कई जानकार कहते हैं कि इस मकबरे की खुदाई करने की बेहतरीन तकनीक नहीं आई है। मिस्र के कुछ रहस्यमयी मकबरों को हुए नुकसान का हवाला देते हुए इस मकबरे को लेकर और भी कई तरह की बातें की जाती हैं। यह मकबरा एक पहाड़ के अंदर गुफानुमा क्षेत्र में है। यह भी कहा जाता है कि मूल मकबरे के पास विषैले पारे की झील है। हालांकि मकबरे के आसपास की खुदाई में एक टेराकोटा सेना का पता चला। वहां खुदाई में पता चला कि 16 हजार टेराकोटा सैनिक हैं। हर कोई अलग-अलग। कई दशकों की खुदाई के बाद पुरातत्वविदों को कई अहम जानकारियां भी मिलीं। इस पहले चीनी सम्राट के बारे में कहा जाता है कि उनका निधन 39 वर्ष की आयु में हो गया। असल में उनकी प्रबल इच्छा बहुत अधिक जीने की थी। अमर बनने के लिए उन्होंने पारे की कई गोलियां ले लीं। इसी से उनका निधन हो गया।
वैज्ञानिक तथ्य : इस कब्र की खुदाई की कोशिश जनभावना को भी देखते हुए नहीं की गयी। लोगों का मानना है कि खुदाई से प्रलय आ जाएगा। वैसे आस्था के आगे कई चीजों को दबा भी दिया जाता है।

7. आखिर कहां चला गया वह पानी का जहाज : बात 1947 की है। जून का महीना था। मलक्का जलडमरूमध्य में व्यस्त मार्ग से यात्रा करने वाले कई जहाजों को पास के एक स्थान से एसओएस संदेश मिला। इस मैसेज में लिखा था, ‘कप्तान सहित सभी अधिकारी चार्ट रूम और पुल में पड़े हुए हैं। संभवतः पूरी तरह से मृत चालक दल।’ संदेश पढ़कर हर कोई भयभीत था। इसी दौरान अंतिम मैसेज आया, ‘मैं मर गया।‘ जिस जहाज पर यह सिग्नल आया वह एक डच फ्रीटर, एसएस औरंग मेडन के नाम से जाना जाता था। इससे वहां पहुंचने वाला पहला जहाज सिल्वर स्टार था। एसएस औरंग मेडन में मारे गए लोगों में से किसी के ऊपर कोई चोट या मारपीट का थोड़ा सा भी संकेत नहीं था। पूरे दल के अचानक निधन का कोई अन्य कारण भी नहीं था। सिल्वर स्टार के चालक दल ने इसके साथ जहाज को वापस भेजने का फैसला किया। लेकिन अचानक दुर्भाग्य से जहाज के तहखाने से धुआं निकलने लगा। सिल्वर स्टार चालक दल जान बचाने के लिए भागने लगे। उसी समय एसएस औरंग मेडन में विस्फोट हो गया और समुद्र में डूब गया। आज तक कोई इस रहस्य को समझ नहीं पाया। आखिर पहले संदेश किसने भेजे फिर वह जहाज डूबा कैसे।
वैज्ञानिक तथ्य : संदेश वाली बात तो रहस्यमयी है, लेकिन जानकार कहते हैं कि समुद्र में फिसलन से जहाज में फंसी प्राकृतिक गैसों के बादल घिर गये। इसी घेरे में जहाज आ गया और कोई रासायनिक गतिविधि होने से विस्फोट हो गया। 

8. सौ साल ईसापूर्व की वह चमत्कारी मशीन : माना जाता है कि मशीनों का निर्माण गैलीलियो के जमाने में किया गया। हालांकि तब तक उनका रूप इतना विकसित नहीं था। सही मायने में औद्योगिक क्रांति 1800 के दशक में आई। लेकिन कितना आश्चर्य होगा यह सुनकर कि ईसा पूर्व 100 साल पहले की मशीनें उस समय से भी अधिक विकसित थीं। असल में वर्ष 1900 में गोताखोरों के एक समूह को एक ग्रीक जहाज़ का मलवा मिला। इसमें कुछ मशीनों जैसी सामग्री भी मिली। कार्बन डेटिंग की मदद से देखा गया तो इन मशीनों को 100 साल ईसा पूर्व का माना गया। बाद में कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के नये रूप से इसे स्कैन किया गया और तब भी इन मशीनों के इतने पुराने होने का खुलासा हुआ। तब वैज्ञानिकों ने पाया कि इसमें तो गियर्स भी हैं। बता दें कि गियर्स के बारे में कहा जाता है कि इसकी खोज तो बहुत बाद में हुई। यही नहीं इस मशीन में खगोलीय घटनाक्रमों की जानकारी जुटाने जैसे उपकरण लगे हुए थे। यह बात भी आश्चर्यजनक थी क्योंकि खगोल विज्ञान का उन्नत रूप तो बाद में आया। बता दें कि गैलीलियो 16वीं और न्यूटन 17वीं सदी में आये। वास्तव में यह मशीन आश्चर्यजनक है।
वैज्ञानिक तथ्य : जानकार कहते हैं कि वैज्ञानिक खोजें प्राचीन काल में भी बहुत हुईं। संभव है कि 100 साल ईसा पूर्व भी ऐसी खोज हुई हो।

9. चरवाहा स्मारक शिलालेख : इंग्लैंड के स्टेफोर्डशायर में एक प्रसिद्ध स्मारक है। यहां की खूबसूरती कई शताब्दियों से लोगों को आकर्षित करती है। यहां पर एक शिलालेख है। इसे चरवाहा स्मारक शिलालेख कहा जाता है। लेकिन इस शिलालेख पर कोडनुमा लिखे कुछ शब्दों का आज तक रहस्य नहीं सुलझ पाया। असल में चरवाहा स्मारक में धातु की प्लेट पर अंकित शूरवीरों और योद्धाओं की कुछ तस्वीरें भी दिखाई गई हैं। लेकिन उस पर अंकित कोड को डीकोड नहीं किया जा सका है। इस पर कई शोध हो चुके हैं और कई चल रहे हैं, लेकिन सटीक बात अब तक सामने नहीं आयी है। अनेक शोधकर्ताओं ने इस कोड को क्रैक करने की कोशिश की है। ऐसा करने वालों में चार्ल्स डिकेंस और चार्ल्स डार्विन भी शामिल हैं। अब इसके पीछे का रहस्य क्या है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन चरवाहों के संबंध में इस शिलालेख की चर्चा होती दुनियाभर में है।
वैज्ञानिक तथ्य : ज्यादातर शोधकर्ता यह मान चुके हैं कि इसका कोई अर्थ नहीं है। यह सिर्फ कुछ अक्षरों का एक समूह है। हालांकि कुछ को पूरा विश्वास है कि कोड में कोई न कोई संदेश छिपा है। खैर सच्चाई जो भी हो, चर्चा तो इसकी दुनियाभर में है।

10. झील का वह राक्षस : 1930 के दशक तक स्कॉटलैंड के हाइलैंड्स में लोकनेस एक सामान्य झील थी। उसी दौरान वहां घूमने गए एक जोड़े ने दावा किया कि झील में एक विशालकाय राक्षस था। कहा गया कि उसकी बहुत लंबी गर्दन थी, पीठ पर कूबड़ निकले थे। कुछ लोगों ने कहा कि यह राक्षस डायनासोर की तरह दिखता था। इसकी आवाज भी डरावनी थी। इसके बाद वर्ष 1934 में इस कथित राक्षस की एक तस्वीर भी सामने आ गई। इसके बाद तो लोग हर जगह इसकी चर्चा करने लगे। एक सर्कस ने तो राक्षस के लिए 20000 डॉलर का इनाम भी रखा। धीरे-धीरे कहा जाने लगा कि झील में राक्षस तो है। फिर खुलासा हुआ कि 565 ईसा पूर्व में सेंट कोलंबा ने भी इसे देखा। उस वक्त कहा गया था कि कोई बड़ी चीज झील में तैरती हुई दिखी। वर्ष 1934 में नेस्सी की पहली तस्वीर आई। आज भी लोग दावा करते हैं कि वहां कोई राक्षस है।
वैज्ञानिक तथ्य : राक्षस जैसी कोई चीज नहीं। हो सकता है किसी चीज से कोई ऐसी आकृति बन गयी हो कि लोग ऐसा कहने लगे। इलाके को बदनाम करने या ज्यादा प्रसिद्धि दिलाने के लिए भी ऐसा कहा जा सकता है।

Wednesday, April 10, 2019

वृंदावन-मथुरा की वह यादगार यात्रा



वृंदावन में हम सब लोग। फोटो खींचने वाला बच्चा बाद में दिखेगा
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव। नमो भगवते वासुदेव। राधे-राधे। भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना में अक्सर गुनगुनाये जाने वाले इन वाक्यों/शब्दों के साथ ही साझा करता हूं उस यात्रा का वर्णन जिसका कार्यक्रम अचानक बना। ऐसे अचानक जैसे कि हम अक्सर कहते हैं कि बुलावा आया होगा। पहले प्रोग्राम बना सपरिवार चलना है। फिर हुआ अभी नहीं, दूसरी बार। फिर सारा कार्यक्रम अमृतसर का बना और आखिरकार पहुंचे वृंदावन और मथुरा। विस्तार से जिक्र करने के लिए आइये चलते हैं सिलसिलेवार ढंग से-
31 मार्च की सुबह सवा सात बजे का समय। भास्कर जोशी (मेरे ब्रदर इन लॉ) के मोबाइल की घंटी बजी। फोन था उनके पड़ोसी सीबी अग्रवाल साहब का। हेलो कहते ही पहला सवाल, ‘कहां पहुंचे।’ जवाब दिया गया, ‘बस वृंदावन की तरफ मुड़ चुके हैं।’ ‘आ जाओ, अभी हमने भी परिक्रमा शुरू नहीं की है।’ अग्रवाल साहब ने अगली बात कही और फोन काट दिया। मैं, मेरा बेटा कार्तिक, भास्कर की पत्नी प्रीति और उनका बेटा भव्य साथ थे। बच्चों को छोड़कर सभी बड़ों ने कहा, चलो अच्छा है साथ ही परिक्रमा और दर्शन हो जाएंगे। हम लोग मुश्किल से 10 मिनट में वृंदावन पहुंच गये। पास में ही एक हाउसिंग सोसाइटी के बाहर अग्रवाल साहब सपरिवार खड़े थे। उन्होंने पहले कार पार्क करवाई और हम सब चल पड़े। चलते-चलते ही नमस्कार हुई। मन में एक अनूठी उमंग थी। भास्कर लोग पहले भी आ चुके थे। अग्रवाल साहब तो थे ही यहीं के और महीने में एक या दो बार यहां आते रहते हैं। हम लोगों ने फैसला किया था कि पैदल ही परिक्रमा पूरी करेंगे। उस दिन एकादशी थी और शायद इसकी वजह से भी भीड़ अच्छी खासी थी। 47 साल की उम्र में यह पहला मौका था जब में वृंदावन, मथुरा आया था। भास्कर लोग फरीदाबाद रहते हैं। वहां तक अक्सर आता-जाता रहता हूं। उनसे वृंदावन और मथुरा जाने की बात भी होती रहती थी। इस बार भी बात की तो भास्कर ने कहा कि व्यस्तता तो है। मार्च का महीना है। आ जाना देख लेंगे। हां-ना करते-करते पहुंच ही गये और शानदार यात्रा रही। बेहद यादगार।
ये हैं भव्य जोशी। इन्होंने ही ऊपर वाली फोटो खींची।

वह स्थानीय बोली और मंदिर-मंदिर दर्शन
अग्रवाल साहब अपनी पत्नी और बेटी-बेटे के साथ थे और हम सब लोग। सबसे पहले मैंने खुशी जताई कि चलिए आज मैं भी आप लोगों के साथ दर्शन कर लूंगा। उनकी पत्नी बोली, सब ‘राधा की कृपा है।’ फिर कहा, धन्यवाद तो कुक्कू (मेरा बेटा कार्तिक) का है। असल में उससे ही मैंने वादा किया था कि परीक्षा के बाद कहीं चलेंगे। पहले शिमला का बना, फिर अमृतसर का। अमृतसर में होटल बुकिंग तक हो गयी। वाघा बॉर्डर के लिए दिल्ली से राजीव ने पास की भी व्यवस्था कर दी, लेकिन दर्शन तो बांके बिहारी और राधारानी के होने थे सो हुए। हम लोग जब परिक्रमा कर रहे थे अग्रवाल साहब किसी से पूछते, ‘कौन को लाला है’ यानी किसके बेटे हो। हर जगह उनके पहचान वाले मिले। काफी मदद मिली। वहां कोई वाहन चालक पास मांगता है तो वह भी ‘राधे-राधे’ कहता है।

रसखान और मीरा की भी रचनाएं आईं
परिक्रमा के दौरान कई बार ऐसा दौर आया जब हम कभी रसखान को तो कभी सूरदास को याद करते। एक जगह हमें कुछ गायें दिखीं। मैंने बेटे से कहा रसखान ने लिखा है, ‘जो पशु हों तो कहा वश मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मझारन।’ मेरे साथ सुरबद्ध होकर अग्रवाल साहब बोले, ‘मानुष हों तो वही रसखान, बसों ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।’ ऐसे ही बीच-बीच में पाहन हों तो वही गिरि को। फिर एक जगह सुदामा-कृष्ण को लेकर वह रचना भी याद आई जिसमें कहा गया है, ‘शीश पगा न झगा तन पे प्रभु जाने को आही बसे केहि ग्रामा...’ कुछ ही देर में मीरा का वह पद आया, ‘बसों मेरे नैनन में नंदलाल।’

अग्रवाल साहब की निष्काम मदद
इस सबके बीच अग्रवाल साहब और उनके परिवार की निष्काम मदद ने मुझे बेहद प्रभावित किया। भास्कर तो उनके पड़ोसी हैं, लेकिन मेरे साथ भी उनका अपनत्व। सचमुच मैं तो ऐसा नहीं हो सकता। वह अपने घर भी ले गये। खाना भी खिलाया। परिक्रमा के दौरान भी खर्च किया। हम लोगों को कोई खर्च नहीं करने दिया। शाम तक हम थक चुके थे, वे भी थके थे। इसके बावजूद वे हमें इस्कान मंदिर, मथुरा जन्मभूमि आदि स्थानों पर ले गये। पर उन्होंने मेरा एक धन्यवाद तक लेने से इनकार कर दिया। उनके दोनों बच्चों के व्यवहार में भी उनके संस्कार झलकते हैं। हरे कृष्ण।
भास्कर की सेल्फी में समाये सब लोग।

लालकिले और नेशनल साइंस सेंटर की भी एक यात्रा
दो दशक तक दिल्ली रहने के बावजूद मैं कभी ऐतिहासिक लालकिले के अंदर नहीं गया। इस बार बेटे ने जिद की तो उसे और भव्य को लेकर चला गया। सचमुच वहां का विहंगम नजारा देखने लायक था। हाल ही में बना नेताजी सुभाष मेमोरियल भी लाजवाब था। इस दौरान मासूम भव्य के कई सवालों और उसके बाद की प्रतिक्रियाओं से बहुत प्रसन्न हुआ। पहले वह बच्चा सवाल करता, जब उसे पूरी कहानी समझायी जाती तो उसका मासूम सा सवाल फिर आता, ‘मैं समझा नहीं।’ इस दौरान वह बेहद थक गया। मुझे भी उस पर दया आयी। पहले दिन करीब 15 किलोमीटर पैदल चला आज फिर यही हाल। उसे बाहर लाया। मेट्रो पकड़कर पहले प्रगति मैदान तक गये फिर दूसरी तरफ के गेट तक ऑटो से। वहां नेशनल साइंस सेंटर में दोनों बच्चों ने जो एंजॉय किया, वह लाजवाब था। वहां दो छोटी-छोटी मूवी देखी। उस दौरान बच्चे ने अंतरिक्ष के संबंध में कई जानकारियां भी साझा की। सुबह 10 बजे के निकले हम लोग रात साढ़े आठ बजे घर पहुंचे। पूरी यात्रा अच्छी रही। अगले दिन मैं और बेटा कार्तिक चंडीगढ़ आ गये। इस यात्रा के सभी साथियो को बहुत-बहुत साधुवाद। 
लालकिले मैं और भव्य (ऊपर) और बेटे कार्तिक के साथ।