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Thursday, December 31, 2020

21वां साल शुभ हो...

 केवल तिवारी

21वीं सदी का 21वां साल शुरू हो गया है। या यूं कहें कि यह सदी भी अब उस दौर में पहुंच गयी है जब उमंगें होती हैं, उत्साह होता है। जज्बा होता है। घबराहट कम होती है। पीछे ज्यादा देखते नहीं, आगे की चिंता कम रहती है। अगर आप प्रौढ़ या वृद्ध हैं तो याद कीजिए अपने जीवन का 21वां साल। मैं यह नहीं कहता तब सबकुछ मस्त रहा होगा। हो सकता है हम-आप में अनेक ऐसे होंगे जिनके लिए 21वां साल खराब ही रहा हो, लेकिन फिर भी वैसी परिस्थितियां आज आ जायें तो क्या आप-हम में इतनी हिम्मत है कि हम उतनी ही आसानी से जीवन पथ पर बढ़ चलें। खैर...

21वां साल असल में कई मायने में अनूठा होता है। कहा जाता है कि मनुष्य बनने से पहले 84 हजार योनियों में कोई भी जीव विचरण करके आता है। अगर यह सच है कि 84 हजार योनियां होती हैं तो इसका चौथाई भाग है 21, यानी 21वां साल कुल योनियों की संख्या का चौथाई भाग। या हमारे जीवन का एक चौथाई भाग। अगर सौ वर्षों के जीवन की गणना सोचें तो चार साल बाद मनुष्य का गृहस्थ आश्रम शुरू हो जाता है। यानी यहां भी चार का अंक। इसी तरह कुंडली में 12 ग्रह होते हैं। इस 12 की संख्या को उलट दें तो 21 बनता है।

हम तो अपनी युवावस्था से ही सुनते आ रहे हैं कि भारत 21वीं सदी के लिए तैयार हो रहा है। लो जी देखते ही देखते 21वीं सदी के 20 साल निकल भी गये। जो जिंदगी 20-20 क्रिकेट की मानिंद रफ्तार से भाग रही थी, उसी जिंदगी में 2020 में ब्रेक लग गया। यह ब्रेक था कुछ सोचने के लिए वक्त लेने का। कुदरत ने कुछ समझाया, दुनियादारी ने कुछ समझाया और कुछ समझ पाये कुछ नहीं। कुछ की उम्र भी ऐसी हो गयी कि उन्हें संभवत: सोचने की बहुत जरूरत भी नहीं। जो भी हो, समय तो अपनी रफ्तार से चलता ही है। सो चल रहा है। अब 21वां साल शुरू हो गया है। यह साल सबके लिए शुभ हो, यही कामना है और इसी कामना के साथ एक कविता आपके लिए पेश है-


कुछ भूलेंगे, कुछ याद रह जाएगा


वो वक्त गुजर गया, ये वक्त भी चला जाएगा।

कुछ चीजें भूल जाएंगे, कुछ याद रह जाएगा।

क्यों उलझें इक-दूजे से

न मैं रहूंगा, न तू रह पाएगा।

संपूर्ण न मैं हूं, न तुम हो

किसी का कुछ भी न रह पाएगा।

भगवान न मैं हूं, न तुम हो

यह बात इंसान कब समझ पाएगा

भ्रम ने पैदा कर दीं इंसानी दूरियां

समझ ही से भ्रम को उतार पाएगा।

हम दोष देते हैं, इक दूजे को

न मैं झुकता हूं, न तू आगे आएगा।

इस सदी के दो दशक देखो गए

यूं ही हमारा यह जीवन भी चला जाएगा।

आओ नयी इबारत लिखें

बाद में न मैं रहूंगा, न तू रह पाएगा।

Monday, December 7, 2020

मैं तो ऐसा/ऐसी ही हूं... बदलना होगा यह भाव

 केवल तिवारी

‘कोई भला माने या बुरा, मेरी तो यही आदत है।’ ‘अपने को फर्क नहीं पड़ता।’ इस तरह के डायलॉग अक्सर अनेक लोगों से आप लोगों ने सुना होगा। अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि असल में ऐसा कहने वाले एक तो अपनी आदत सुधारना चाहते हैं, लेकिन attitude change problem बीच में आ जाती है। ऐसे ही जो कहते हैं कि मुझे फर्क नहीं पड़ता, वाकई उन्हें फर्क पड़ता है। बस ऐसे लोग यह दिखाने के चक्कर में कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं परेशान रहते हैं। रिश्तों में खटास आती रहती है, स्वाभाविक प्रक्रिया है। क्योंकि मानव मशीन नहीं है। उसके अंदर गुस्सा, प्रेम, आदर, तिरष्कार, क्रोध आदि मनोभाव आते रहते हैं। जानकारों का कहना है कि अचानक आने वाले मनोभाव स्थायी नहीं रहने चाहिए। या यूं कहें कि स्थायी रखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इसका उदाहरण देते हुए पिछले दिनों एक सज्जन ने समझाया, ‘आप कभी उन बातों पर गौर कीजिए जिसकी शुरुआत में हम कहते हैं आज से कभी नहीं होगा या आज से उससे बातचीत बंद।’ असल में स्थायी घोषणा तो क्षणिक आवेग है। यानी हमेशा के लिए कोई चीज बंद करने या शुरू करने की बात कहना क्षणिक आवेग है। बाद में कुछ पल सोचना चाहिए। फिर मंथन करना चाहिए जब हमारा जीवन ही स्थायी नहीं है तो कोई चीज कैसे स्थायी हो सकती है। परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है। फिर बिना नव्यता के सुख कहां मिलता है। नवीनता लाने के लिए मनोभावों के संबंध में स्थायी घोषणा भी कैसे हो सकती है।

आखिर शुरू कैसे करें

हो सकता है आपका मन कर रहा हो कि अब नयी शुरुआत करनी चाहिए। रिश्तों में गर्माहट लाने की कोशिश होनी चाहिए। दूसरा पक्ष इससे अनजान है तो आप एकाध कोशिशें कर सकते हैं। यदि उन कोशिशों का कोई प्रतिफल नहीं मिला तो निराश होने की जरूरत नहीं। कुछ दिन हालात को वक्त के हवाले कर दीजिए। असल में वक्त हर घाव को भर देता है। रिश्तों को बनाये रखने के लिए दोनों ओर से संवाद आवश्यक है। संवादहीनता की स्थिति तो अच्छी बात नहीं। यूं तो सब जानते हैं कि जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है। यानी मृत्यु निश्चित है। जीवन अनिश्चित। कोरोना काल ने इस संबंध में हमें और सचेत कर दिया है। अपने हिस्से के काम को अच्छे से निर्वहन करना बेहद जरूरी है।

सोशल मीडिया के संदेश और हम

आप अगर दो-चार व्हाट्सएप ग्रूप, फेसबुक या ऐसे ही अन्य सोशल साइट्स पर कुछ लोगों के मैसेज पर गौर करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि ज्ञान का भंडार भी वहां है और नफरत भी। कुछ लोग नकारात्मक (negative) बातों को ज्यादा प्रसारित करते हैं और कुछ हमेशा अच्छी बातों को। इन बातों से ही हमें खुद के लिए कुछ चीजों को चुनना है। जो ज्ञान गंगा बहती है, अगर उसमें से कुछ बूंदें भी हम सहेज लें और उन पर अमल कर लें तो हम अपने हिस्से में तो अच्छे हो ही जाएंगे। इसलिए न तो नकारात्मक बातों को तवज्जो दें और न ही उन्हें प्रसारित करें।

बच्चों को अपनों के बारे में बतायें

शहरी जीवनशैली में जहां एकल परिवार प्रथा (single family system) चल रहा है वहां बच्चों को कई बार रिश्तों की जानकारी नहीं होती। कोरोना काल में लंबे समय से परिवार के लोगों से मिलना नहीं हो रहा होगा। ऐसे में जरूरी है बच्चों को परिवार की अहमियत बताना। अपनों से बात कराते रहना। हो सके तो बच्चों को पुरानी कोई ऐसी बात न बताएं जिससे नफरत की जरा सी भी बू आती हो। कुछ समय के लिए तो यह अच्छा लग सकता है कि आपके बच्चे उन नफरतभरी बातों से आपको और ज्यादा अपनापन देने लग जाएं, लेकिन ये सब दीर्घकालिक गलत संदेश देने वाली शुरुआत होती है। तो चलिए कुछ अच्छा सोचें। अच्छा बोलें। रिश्तों को नये सिरे से जोड़ें। कौन जाने कल हो न हो।