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Friday, April 28, 2023

दुबई यात्रा : बातें-वातें और कल्पनाओं के पंख

 केवल तिवारी 


दुबई की एक शाम, भांजों के नाम।


यहां लोगों में ट्रैफिक सेंस गजब का। पैदल चलने वाला कोई व्यक्ति सड़क पार कर रहा हो तो बड़ी-बड़ी गाड़ियां भी रुक जाती हैं। शाम का नजारा एकदम अलग ही होता है। भारत और पाकिस्तान के लोग बहुतायत में हैं। भाषा और भोजन जैसी दिक्कत नहीं आती। और भी बहुत कुछ है, जानने, समझने और आनंद लेने के लिए। ये बातों मैं अपनी स्मरण शक्ति के आधार पर कर रहा हूं। दुबई के बारे में सबसे पहले भानजे सौरभ ने किया था। वह करीब चार सालों से वहां जॉब कर रहा है। उसके बाद दीदी-जीजाजी वहां गये। उन्होंने कई बातें बताईं। जीजाजी द्वारा कहे गए लूलू मॉल के बारे में बच्चे बहुत आनंद लेते हैं। उनको पहले यह नाम अजीब लगता था, लेकिन जब से इसी मॉल की एक शाखा लखनऊ में खुल गई है, तब से उन्हें विश्वास हो गया है कि हां यह बहुत प्रसिद्ध मॉल है। खैर आते हैं दुबई पर। यह ब्लॉग आज इसलिए कि पिछले दिनों दो भांजे गौरव और कुणाल भी दुबई से लौटे हैं। ये दोनों अपने बड़े भाई यानी सौरभ के निमंत्रण पर वहां गये। वहां जाकर भी मुझसे व्हाट्सएप के जरिये बातचीत होती रही। वीडियो कॉल जैसी भी आजकल सुविधाएं हो चुकी हैं। दोनों ने जो बातें की उससे अंदाजा लगा कि दुबई महंगा तो है, लेकिन अनुशासित है। अनुशासन बहुत जरूरी है। खासतौर पर ट्रैफिक सेंस तो बहुत जरूरी। हमारे देश के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो ज्यादातर जगह ट्रैफिक का बेड़ा गर्क है। कुछ इलाकों में तो इसी घटिया ट्रैफिक सेंस की वजह से जाम लगता है और एक्सीडेंट होते हैं। वैसे यात्रा वृतांत में दीदी ने बताया था कि वहां चोरियां भी नहीं होती। घर के बाहर भी अगर कोई डिलीवरी बॉय सामान रख जाये तो उसे कोई नहीं लेता। सख्त कानून का असर है शायद यह। भानजों ने बताया कि मौसम भी वहां सामान्य रहता है। 





सचमुच दुबई एक प्रकार से इमारतों की नगरी है। रेतीला इलाका है, लेकिन वहां लोगों ने मेहनत और इच्छाशक्ति के जरिये इतनी हरियाली कर दी है कि आज वह औरों के लिए मिसाल बन गयी है। यात्रा करती रहनी चाहिए और यात्रा वृतांत भी लिखते-सुनाते रहने चाहिए। आज दुबई की बस इतनी सी बात। विस्तार से फिर कभी। बस यहां पर एक मशूहर शेर याद आ रहा है 

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ। 

अपने सफर के साथ ऑन लाइन माध्यम से मुझे हमसफर बनाने के लिए भानजों, दीदी और जीजाजी का दिल से धन्यवाद

Tuesday, April 25, 2023

योगवासिष्ठ महारामायणम : जीवन दर्शन पर शोधपरक सामग्री

केवल तिवारी

आज एक किताब की संक्षिप्त चर्चा करूंगा। किताब का नाम है, ‘योगवासिष्ठ महारामायणम।’ लेखक हैं डॉ. कुलदीप धीमान। किताब से पहले लेखक पर बातचीत जरूरी। 

असल में 10 वर्ष पहले जब मैंने दैनिक ट्रिब्यून ज्वाइन किया तो कुलदीप साहब से अखबार के काम के सिलसिले में मुलाकात हुई। कई दिनों तक बात होती रही। फिर हम लोग ऑफिसियल काम से इतर भी बातचीत करने लगे। बातों बातों में पता चला कि डॉ. कुलदीप की अध्यययन और लेखन में भी गहरी रुचि है। उन्होंने अपनी एक पुस्तक ‘परम विद्रोही’ की चर्चा की और एक प्रति मुझे भी दी। यह किताब ओशो रजनीश और उनकी बातों पर आधारित है। इस किताब को पढ़ने के बाद भी मैंने अपनी प्रतिक्रिया अपने इसी ब्लॉग पर लिखी, जिसका लिंक इस लेख के अंत में डाल दूंगा। खैर अब आते हैं आलोच्य पुस्तक पर। असल में इस किताब को मैं तब भी पढ़ चुका हूं, जब यह आकार ले रही थी। लेकिन उस वक्त पढ़ने का मकसद कुछ प्रूफ संबंधी गलतियों को मार्क करना था। वह एक काम जैसा था। बाद में कुलदीप जी से मेरी बातचीत लगभग नहीं के बराबर ही हुई। कुछ समय पहले अचानक उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि किताब आ चुकी है। मेरी जिज्ञासा पुस्तक को देखने की थी। मैं उन दिनों चंडीगढ़ से बाहर गया हुआ था। तभी धीमान साहब ने बताया कि वह एक प्रति मेरे लिए ऑफिस में छोड़ गए हैं। कुछ दिन पुस्तक यूं ही रखी रही। बाद में मैंने इसे पढ़ना शुरू किया। समीक्षार्थ मिलीं हों या मैंने शौकिया खरीदी हों, करीब हजार पुस्तकें अब तक पढ़ चुका हूं। आदतन भूमिका और अन्य लेखकों की राय और लेखक के बारे में भी जरूर पढ़ता हूं। कई बार प्रकाशक की ओर से की गयी टिप्पणी भी। यही मैंने इस किताब के संदर्भ में भी किया। पढ़ते-पढ़ते देखा कि भूमिका में डॉ. कुलदीप जी ने मेरे नाम का भी जिक्र किया है। मैंने फोन पर धन्यवाद देने के साथ-साथ यह भी कहा कि मेरा तो ऐसा कोई योगदान ही नहीं था। फिर उनसे कुछ अन्य बातें हुईं। मैंने कहा कि पुस्तक पूरी पढ़ने के बाद अपनी राय दूंगा। कुलदीप जी बोले, आपने तो पढ़ ही रखी थी, मैंने कहा, लेकिन मजा अब आ रहा है। सचमुच दूसरी बार किताब पढ़ते-पढ़ते जीवन के कई पहलू समझ में आए। योगवासिष्ठ में भगवान राम के जरिये संवाद की बात हो या फिर ब्रह्म भाव, जीवन दर्शन की एक अलग मीमांसा इस किताब में नजर आती है। डॉ. धीमान द्वारा शोध के जरिये लिखी गयीं कुछ पंक्तियों पर गौर फरमाइये- राम संवेदनशील हैं। स्वयं उनके पास सब कुछ है, पर वे दूसरों के दुःखों के प्रति अन्धे नहीं हैं। उनके पास सब होते हुए भी वैराग्य हुआ है। यह उनकी परिपक्वता की निशानी है। इसीलिये भगवद्गीता तो युद्धक्षेत्र में कही गई, पर योगवासिष्ठ राजदरवार की शान के बीच कहा गया। युद्धक्षेत्र में वैराग्य उठना बड़ी बात है, पर राजदरबार के धन वैभव के बीच अगर किसी को वैराग्य उठे तो यह और भी बड़ी बात है। यह उसकी संवेदनशीलता का प्रमाण है। यह उत्तम वैराग्य है। 

वसिष्ठ कहते हैं कि कल्पना शक्ति या विरक्ति भाव ब्रह्म का स्वभाव ही है। संसार ब्रह्म से ऐसे उत्पन्न होता है जैसे पुष्प से गन्ध। यह मन में स्वप्न की तरह उत्पन्न होता है। सपने में हम कितना कुछ देखते हैं। सब जोन और सत्य लगता है। स्वप्रजगत् का हम क्या कारण बता सकते हैं कि कब बना, क्यों बना? कहना ही है तो इतना ही कहा जा सकता है कि स्वप्न का कारण है हमारी नींद (अज्ञान)। 

संसार के चार बीज 

वासिष्ठ के अनुसार संवेदनम्, भावनम्, वासना, और कल्पना चार बीज हैं जिनसे यह संसार बनता है। जो इन्द्रियों से भोगा जाता है उसे 'संवेदनम्' कहा है। भोग्य वस्तुएं जय नहीं होतीं तो उनके बारे में निरन्तर सोचते रहने को 'भावनम्' कहा है। बार-बार सोचने पर जब मन उनपर स्थिर हो जाता है उसे 'वासना' कहा है। 

कार्य-कारण का रहस्य 

कार्य-कारण सिद्धान्त की विचित्रता है कि आप जो भी ही बात को चरम तक ले जाये तो आप को अपना ही सिद्धान्त भारी पड़ जाता है। अधिकतर तो हम चरम तक जाने का साहस ही नहीं उठा पाते, जब लगने लगता है कि सिद्धान्त डगमगा रहा है, हम रुक जाते हैं। 

आदि शङ्कराचार्य के गुरु गोविन्दाचार्य के भी गुरु ने यह साहस जुटाया और सिद्ध किया कि कार्य कारण व्यावहारिक जीवन के लिये उपयोगी है, पर अगर इसे गहराई से देखा जाये तो यह अर्थ सिद्ध होता है। गौडपाद की बात यहां इसलिये की जा रही है कि की तरह वे भी मानते हैं कि जगत् का कोई कारण नहीं है, इसलिये यह ह संगत नहीं है कि जगत् को किसने बनाया। जगत् को किसी ने नहीं बनाया वह नित्य है, 'अज' अर्थात् अजन्मा (इटर्नल) है। इसीलिये इस मत को 'अजातिवाद' कहते हैं, जिसकी थोड़ी-बहुत चर्चा हम प्रस्तावना में कर चुके हैं। 

जिन्हें समाज अच्छे कर्म मानता है, उनके लिये वह हमें सम्मान देता है, और जिन्हें बुरे कर्म समझता है उनके लिये दण्ड देता है। ऐसा न हो हो अराजकता फैलती है। 

योग, संक्षिप्त चर्चा का कारण 

अब हम योग की चर्चा संक्षिप्त में करेंगे क्योंकि वसिष्ठजी इसे बहुत अधिक महत्त्व नहीं देते। उनके विचार में योगमार्ग ज्ञानमार्ग से अधिक कठिन है। यह वात विचित्र लगेगी क्योंकि साधारणतः तो ज्ञानमार्ग को कठिन माना जाता है क्योंकि उसमें तर्क, भाषा, सिद्धान्त आदि का सहारा लिया जाता है। 

'आत्मा-अनात्मा', 'कार्य-कारण', 'विषय-विषयी' आदि शब्द सुन कर बहुत से लोग घबरा जाते हैं। वे तो चाहते हैं कि उन्हें योग की कुछ मुद्राएं बता दी जायें, या कोई मन्त्र दे दिया जाये जिसे वे जपते रहें, पर ऐसी बात न करनी पड़े जिसमें अधिक सोचना पड़ता हो। सच तो यह है कि ध्यान -और मन्त्र मन को सोचने से रोकने के लिये ही विकसित किये गये हैं। 1 ज्ञानमार्ग के समर्थक मानते हैं कि योगमार्ग कठिन है क्योंकि उसमें कुछ करने पर बल दिया जाता है। स्वयं को जानने के लिये किस प्रकार के कर्म करने की आवश्यकता 

वसिष्ठजी से राम पूछते हैं कि ज्ञानी समाज में कैसा व्यवहार करते हैं, उनके लक्षण क्या हैं? वसिष्ठ कहते हैं कि मोक्ष के बाद ज्ञानी का कैसा व्यवहार होगा इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। कुछ जीवन के कर्तव्य करते रहते हैं, कुछ समाज को त्याग देते हैं, और कुछ संसार के भोगों का आनन्द लेते हैं। ज्ञानी न तो कुछ करने का बहुत आग्रह करते हैं, न ही न करने का। जो सहजता हो जाये वही करते हैं। 

वसिष्ठ कहते हैं कि बोध ही वास्तविक त्याग है, कर्म का त्याग करना त्याग नहीं है। जो योगी कर्मफल में आसक्ति त्याग कर सब कर्म करता रहता है, वह कर्मफल के अच्छे या बुरे परिणाम से अछूता रहता है। उसीको जीवन्मुक्त कहते हैं। 


असल में ऊपर दी गयीं कुछ पंक्तियां तो वानगी भर हैं। हकीकत में यह किताब बहुत शोध के आधार पर बनाई गयी है और जीवन के सही दर्शन को दिखा रही है। इससे भी बड़ी बात है कि इसकी शैली प्रवाहमयी है। बहुत ही सरल और सहज अंदाज में इसमें जीवन के तमाम किंत-परंतु पर व्याख्या की गयी है। राम को समझने की कोशिश में यह किताब हमें विचारशीलता के शिखर पर ले जाती है। इस पुस्तक के बारे में विवरण नीचे दे रहा हूं। इसे मंगवाकर पढ़ा जा सकता है। कुलदीप जी आपका धन्यवाद और आपको साधुवाद। एक लिंक आपकी पुरानी पुस्तक ‘परम विद्रोही’ को लेकर मेरी टिप्पणी का। 

सादर 

https://ktkikanw-kanw.blogspot.com/2013/09/blog-post_7.html 

Thursday, April 20, 2023

जिंदगी को समझने का प्रयास, चले चलो

मोहम्मद अम्मार



क्या जिंदगी है। चलते चलते सांस उखड़ जाती है। चलते चलते सांस निकल जाती है। यह बना लूं, वो बना लूं, यह कर लूं वो कर लूं। घर में करोड़ों लगा दिए। खुद रहा नहीं। बच्चे बड़े हुए तो बने बनाए को बेचकर चले गए। मेरा मानना है कि हर इंसान बस इतना सोचकर जिंदगी जी ले कि बस कभी भी बुलावा आ सकता है मरना है। चिता पर लेटना है और कब्र में जाना है। तो 95 फीसद फसाद अपने आप समाप्त हो जाएं। हिंदू मुस्लिम, जात बिरादरी, मुकदमा बाजी, जमीन कब्जे। बस इंसान की जिंदगी इनके इर्द गिर्द घूम रही है। अंत में हासिल वसूल कुछ नहीं। खामखा की नफरतें और लड़ाइयां हैं। बड़े से बड़े सुरमा आज राख में उड़ गए या मिट्टी में तब्दील हो गए।

अंत में बस एक खबर आती है कि फलां इंसान नहीं रहा। ऐसे ऐसे यह हो गया और मौत हो गई। बस इंसान जीता ऐसे है जैसे इसे कभी मरना ही नहीं। और मर ऐसे जाता है जैसे कभी जिया ही नहीं। मोहब्बतें बांटते चलिए, नफरतें पहले ही बहुत हैं। सौ बातों की एक बात यह है कि हर दिन गुजरने के साथ आप अपनी मौत के करीब हो रहे हैं। हम सब अपने जिंदगी के सफर में ट्रेन में बैठे हैं। और अपनी मंजिल की तरफ बहुत तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं। जिन लोगों की मौत की खबर आ रही है। समझ लें  कि उनका स्टेशन आ गया। कुछ देर या दिनों बाद हमारा भी स्टेशन आ जायेगा, फिर किस बात की लड़ाइयां। सोचिए....

दो दिन पहले इस मैसेज पर दी थी बधाई



6 महीने पहले दैनिक जागरण हेड ऑफिस ज्वॉइन किया था। अप्रैल में पूरे उत्तर प्रदेश के टॉप 10 ऑथर की लिस्ट निकली है। मोहम्मद अम्मार खान का नाम ऊपर आया है। जरूरी नहीं हमेशा ऊपर रहे। कभी नीचे भी आएगा। लेकिन देखकर खुशी तो होती ही है। बारहवीं क्लास में था तो अंग्रेजी के सर कहते थे जिंदगी में मुंगफुली भी बेचो तो ऐसे बेचना की तुम्हारे ठेले की मुंगफूली सबसे अच्छी हो। इस कामयाबी में आप सभी की हिस्सेदारी ही। आप सभी के प्यार के लिए दिल से शुक्रिया। इसे पढ़ने के लिए भी शुक्रिया।😊*

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लेखक के बारे में : वरिष्ठ पत्रकार हैं। कुछ समय चंडीगढ़ में दैनिक ट्रिब्यून में भी अपनी सेवाएं दीं। फिलहाल दैनिक जागरण में हैं। केटी की कांव-कांव के प्रोपराइटर से दैनिक ट्रिब्यून में ही मुलाकात हुई। उस वक्त से यदा-कदा सोशल मीडिया मंचों या अन्य माध्यमों से मुलाकात या बातचीत हो जाती है। उन्होंने Whatsapp पर पहले अपनी एक उपलब्धि की जानकारी भेजी (फोटो साझा कर रहा हूं) फिर अगली सुबह उक्त मैसेज। अच्छा लगा तो उनकी परमिशन पर इसे हू ब हू यहां प्रकाशित कर रहा हूं। अम्मार आप खूब तरक्की करो। यही दुआ है। - केवल तिवारी

Thursday, April 13, 2023

सावधानी जरूरी, पर ऐसा भी होता है तो मान लेने में क्या हर्ज OTP my airtel और पांच हजार रुपये

केवल तिवारी

किस्सा बेहद रोचक है। रोचक किस्से से पहले बता दूं कि ये जो मोबाइल कंपनियां होती हैं, इनके छोटे-छोटे अक्षरों में लिखी शर्तें सब इनके मुताबिक होती हैं। आप में से अनेक लोगों को याद होगा कि ये लोग एक समय ये लोग सिम देते वक्त कहते थे 'life time free' यानी कॉल हमेशा आएंगी। बाद में पता चला कि अगर आपने रीचार्ज नहीं कराया तो आपके पास एसएमएस तक नहीं आएगा। एक बार तो ये कंपनियां मिस कॉल देने पर चार्ज लगाने वाले थे, वह तो भला हो कि कुछ कंपनियां आने से कंपटीशन बढ़ा। हालांकि फिर दो-एक कंपनियों ने मोनोपली की ओर कदम बढ़ाए हैं ताकि कंपनियां कम होंगी तो ग्राहक को आराम से लूटा जा सकेगा। कंपनियों में कंपटीशन होगा तो फायदा ग्राहक का होगा। खैर यह तो है मेरी इस बात की पृष्ठभूमि। मुद्दे पर आता हूं। दो माह पहले मेरा ड्राइविंग लाइसेंस की समयावधि खत्म हो रही थी। इसे दिल्ली से बनवाया था। मैंने मित्र सुरेंद्र पंडित को यह बात बताई। पंडित ने कहा कि मैं कहीं बाहर हूं, अमित से बात कर लो। अमित भी पत्रकार हैं और कई बार मददगार साबित होते हैं। मैंने फोन किया तो उन्होंने डिटेल मांगा, डाक्यूमेंट मांगे। मैंने व्हाट्सएप कर दिया। फिर अमित ने पूछा कि ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी में मेरा जो मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड है, उस पर ओटीपी OTP आएगा। मुझे ध्यान आया कि तब तो मेरे पास दिल्ली वाला नंबर था 9810 वाला (पूरा नंबर किसी की निजता का ध्यान रखते हुए नहीं दे रहा हूं) मैंने कहा वह नंबर तो रीचार्ज नहीं है और सिम भी कुछ दिन पहले निकाल रखा है। उन्होंने कहा नहीं उसे रीचार्ज कर लो। मैंने पत्नी की मदद से सिम तो ढूंढ़ लिया, लेकिन सही है या नहीं इसका पता कैसे लगे। मैंने online recharge करने के लिए नंबर डाला तो पता लगा कि इसका बिल तो पहले से भुगतान किया गया है। अगला बिलिंग साइकल अभी अगले महीने है। मुझे कुछ सूझा नहीं। फिर मैंने अपने मोबाइल पर उस नंबर को my airtel के नाम से सेव कर लिया। नंबर सेव करते ही व्हाट्सएप देखा तो उसमें  DP किसी बच्चे की लगी थी। मैंने उस नंबर पर कॉल किया तो किसी बिमल नाम के व्यक्ति ने उठाया। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और जल्दीबाजी में मैंने ओटीपी वाली बात भी बताई। जाहिर है आजकल फ्रॉड भी खूब चलता है। कोई व्यक्ति कैसे बता देगा कि ओटीपी आया है। फिर मैंने उन्हें तसल्ली दी और पूछा भी कि हो सकता है इस नंबर पर मेरे नाम से कॉल आते होंगे। उन्होंने बताया कि हां एयरटेल ने मुझे यह नंबर दिया है और आपके नाम से कई कॉल आते हैं। आखिरकार वह ओटीपी बताने के लिए राजी हो गये। यह दीगर है कि इसकी जरूरत नहीं पड़ी और लाइसेंस बन गया। इसी बीच, एक शाम मेरे फोन पर घंटी बजी। मैं उस दिन अमृतसर में था। देखा तो मेरे उसी पुराने नंबर से कॉल आ रही है। मैंने बातची की तो उन्होंने पूछा, 'क्या आपका बैंक ऑफ बड़ौदा में अकाउंट है', 'हां', 'सर मेरे पांच हजार आपके अकाउंट में आ गए हैं।' मैंने बताया कि वह अकाउंट बहुत पुराना है। मैं चंडीगढ़ लौटकर खाता चेक कर लूंगा, आए होंगे तो लौटा दूंगा। उन्होंने प्लीज कहकर फोन रख दिया। इसके बाद उन्होंने मेरे बैंक की डिटेल भी भेज दी कि कहां अकाउंट है, वगैरह-वगैरह। असल में मेरे पास पैसे आने का कोई एसएमएस नहीं आया था। अगले दिन उनका फिर फोन आया। मैंने कहा बस मुझे एक घंटे का समय दीजिए। देखिए कम से कम ओटीपी के बहाने आपसे बात हुई थी जो इस वक्त काम आ गयी, वरना आप परेशानी में पड़ जाते। वह बोले मुझे बच्चे की फीस जमा करानी है। मैं तुरंत बैंक गया, बैंक मेरी कालोनी के बाहर ही है। पता लगा कि पांच हजार रुपये आए हैं। मैंने उस व्यक्ति से कोई दूसरा नंबर मांगा जिस पर पैसे ट्रांसफर किए जा सकते हों। पहले दस रुपये भेजकर ताकीद की फिर शेष राशि उन्हें लौटा दी।
इस कहानी में मैंने कोई महान कार्य नहीं किया। या विस्तार से यह बताने का यह भी ध्येय नहीं कि मैं अपना गुणगान कर रहा हूं। असल में कई बार इस तरह के मसले सामने आएं तो हमें माधुर्य से बात कर लेनी चाहिए। वैसे फ्रॉड भी खूब होते हैं, चलिए यह किस्सा था मजेदार। इसलिए शेयर कर दिया।

Wednesday, April 5, 2023

धवल की नयी किताबें और ईजा की याद

 केवल तिवारी 

स्कूली सफर, किताबों की दुनिया, सपनों का 

धवल संसार 

भावना का उमड़-घुमड़, थोड़ी चपलता, ढेर सारा प्यार। 

क्लास बदली, डगर बढ़े, सपनों का ऊंचा हुआ आकाश 

कुछ यादें आईं, कुछ बातें बनाईं जीवन पथ का सारांश।   

नयी किताबों में मशगूल धवल

नयी किताबों संग कक्षा आठ में धवल

अपनी मम्मी के साथ जिल्द चढ़ाने में व्यस्त


हर साल मार्च के अंत में बच्चों की नयी किताबें आती हैं। नोट बुक्स खरीदे जाते हैं। इस बार भी मार्च आया। इस बार ऐसा मार्च धवल का ही रहा। कार्तिक तो हॉस्टल में है और पिछले दो सालों से उसकी पढ़ाई की डगर अलग है, कॉपी किताबों का वह खुद ही खेवनहार है (@IIT ROPAR)। खैर पहले धवल का रिजल्ट आया फिर किताबें। हर बार की तरह इस बार भी मुझे ईजा की याद आई। यूं तो मेरे जीवन में भी ऐसे अवसर कम से कम 12 बार तो आए ही होंगे। यानी पहली से 12वीं कक्षा तक, लेकिन मुझे याद आता है चौथी क्लास का ही वह मंजर जब ईजा करीब 10 किलोमीटर पहाड़ी चढ़ाई पार कर किसी के घर गयीं। उनसे सेकेंड हैंड किताबें देने की अनुनय विनय की। यह भी कहा कि आधी कीमत दे देंगे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। ईजा को खाली हाथ देखकर मैं उदास हो गया। हमारी मां बहुत गंभीर थी। भावनाओं का उमड़-घुमड़ उसके मन में खूब था, लेकिन बाहर से सख्त लगती थी। शायद हालात ने ऐसा बना दिया होगा। रोते हुए मैंने उसे बहुत कम देखा। कभी-कभी देखा भी तो चुपचाप सिसकते हुए। खैर मेरी हालत देखकर उसने ढांढस बंधाया और अगले दिन फिर उसी व्यक्ति के घर गयी। इस बार वह व्यक्ति पसीज गए और उन्होंने किताबें दे दी। मुझे शौक था कि जैसे ही किताब आएगी मैं वह कविता पढूंगा जिसके शब्द थे, ‘उठो लाल अब आंखें खोलो, पानी लाई हूं मुंह धो लो।’ बच्चों को यह किस्सा कई बार सुना चुका हूं, लेकिन मेरे मन में इस किस्से की याद है। 

किस्से अपने-अपने 

जब मैं यह बात बच्चों को बताता हूं तो पत्नी भावना भी कहती है कि उनके लिए कंट्रोल से थोक में कॉपियां आती थीं। वे लोग भी जिल्द चढ़ाने में एक उत्सव जैसे माहौल को जीते थे। धवल ने इस बार भी कुछ सवाल अपनी मां से पूछे। एक दिन बातों बातों में बच्चों ने पूछ ही लिया कि बचपन की बातें बताओ, इसकी चर्चा अगले किसी ब्लॉग में फिलहाल कुछ शेर ओ शायरी के जरिये इन्हीं भावनाओं की बातें पेश हैं- 

मां के संबंध में :  

आप के बा'द हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है  

 

सब की यादों को लेकर-  

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं, सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी। 

इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में, वीरानी होती है तो हैरानी होती है।