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Wednesday, September 11, 2019

खबर से इतर कोटा यात्रा (Trip to Rawat Bhata Nuclear Plant, Kota, Rajasthan)

(Rawat Bhata Nuclear Plant, Kota Rajasthan)
यह खबर नहीं। यह यात्रा वृतांत नहीं। पर यह यादगार है। कोटा के सफर की यादें। बोलने में कोटा, लेकिन भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पड़ने वाले रावतभाटा का ट्रिप। कोटा से कोई 70 किलोमीटर दूर। एक हफ्ते का टूर। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (आई) के तहत नेशनल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन और परमाणु ऊर्जा विभाग के साझा कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। वहां जाकर वैज्ञानिकों से जो जानकारी मिली और जितना मैं समझ पाया, उन्हें तो अलग शेप में अखबार में जगह मिल गयी या पत्रकार बंधुओं के साथ साझा कर लिया, लेकिन यात्रा के दौरान खबरों इतर भी बहुत कुछ हुआ। अनेक नये लोग मिले, रावतभाटा का खूबसूरत नजारा देखा। खिलजी वंश के दौरान तोड़-फोड़ वाले मंदिर और मूर्तियों के अवशेष देखे। परमाणु ऊर्जा केंद्र देखा, हैवी वाटर प्लांट देखा, वैज्ञानिकों के विचार जाने, वैज्ञानिक के साथ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का ज्ञान रखने वाले जानकार से मिले। डीएई के बेहद को-ऑपरेटिव स्टाफ से मिलने का मौका मिला। बच्चों की दुनिया देखी, कड़ा जीवन देखा, कुछ सुनने-सुनने का भी वक्त मिला। नये मित्र मिले। साहित्यिक चर्चा हुई। कथा-कहानियों और फिल्मों पर भी बौद्धिक जुगाली हुई। विजय क्रांति जी, अशोक मलिक जी, रविशंकर जी, सिल्वेरी जी, डीीजीऔर एचडब्ल्यूबी के स्टाफ से कई मुद्दों पर चर्चा हुई। कुछ सुनने-सुनाने का दौर चला। सिलसिलेर करता हूं चर्चा-
पश्चिम एक्सप्रेस का एकाकी सफर और रेल मित्र
4 अगस्त को मुझे चंडीगढ़ से निकलना था। पहले एनयूजे अध्यक्ष अशोक मलिक जी से पूछा कि और कौन-कौन हैं? उन्होंने कुछ नाम बताये, लेकिन उनमें जानकार सिर्फ अवतार सिंह थे। पंजाबी ट्रिब्यून के वह हमारे साथी रहे हैं। लेकिन पता चला कि वह विजयवाड़ा से वहां सीधे पहुंचेंगे। खैर मैंने पश्चिम एक्सप्रेस में रिजर्वेशन कराया और 11:30 पर ट्रेन में बैठ गया। कुछ देर सन्नाटा रहा। थोड़ी देर में ओडिशा के रहने वाले एक व्यक्ति से बातचीत होने लगी। वह अपनी दो बेटियों के साथ मुंबई जा रहे थे। काफी देर तक अच्छी बातें होती रहीं, लेकिन पता नहीं क्यों वह अचानक बोल पड़े कि लोगों को सुविधाएं मिल गयी हैं न इसलिए बिगड़ गये हैं। उन्होंने बड़ी हिकारत से कहा कि स्लीपर में चलने वाले भी अब एसी क्लास में चलने लगे हैं। मैं उनसे इस मुद्दे पर कतई सहमत नहीं था। मैंने कहा, हर किसी को आगे बढ़ने और तरक्की करने का अधिकार है। खैर इसी बीच टीटी महोदय से भी दोस्ती हो गयी। उनके किस्सों में कब सफर कट गया पता नहीं चला। रात करीब 11 बजे मैं कोटा पहुंचा। वहां डीएई के विनय मीणा पहुंचे हुए थे। वह एक गाड़ी में ड्राइवर के साथ मौजूद थे। हल्की बारिश के दौरान घनघोर जंगलों से होकर गुजरना बेहद रोमांचक रहा। रात करीब डेढ़ बजे हम लोग रावतभाटा पहुंचे।
विशेष बच्चों से भावुक मुलाकात
रावतभाटा में रहने के दौरान हैवी वाटर बोर्ड और डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनर्जी के लोग हमें कुछ स्कूलों में ले गये, जिनका निर्माण इन्हीं की ओर से कराया गया था और कुछ ऐसे केंद्र पर भी ले गये जहां विशेष बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दिया जाता है। सचमुच वहां पहुंचकर बेहद भावुक हुआ। पहले तो एक सरकारी स्कूल में गये। वहां बच्चों को सिखाया गया था कि योग मुद्रा में बैठे रहेंगे। मैंने यूं ही पूछा, ‘बच्चो इतनी भीड़ देखकर परेशान तो नहीं हुए, मालूम है हम लोग क्यों आए हैं (असल में हमल लोग करीब 25 पत्रकार, कुछ अधिकारी और अन्य लोग थे)’ एक बच्ची बोली, ‘चेक करने वाले।’ मैंने इस पर ज्यादा नहीं कुरेदा। फिर कुछ अध्यापकों से बात हुई। फिर हम लोग गए विशेष बच्चों के केंद्र में। यहां बच्चों ने इशारों में राष्ट्रगान पेश किया। डांस पेश किया। ऐसे बच्चों ने डांस किया जो सुन और बोल नहीं सकते। उनके अभिभावकों से बात हुई। ज्यादातर ने कहा कि जब से यहां बच्चे आए हैं उनमें बहुत सुधार है।
... और हमारी अग्रणी का मासूम सवाल
वापसी वाले दिन भानजे पंकज के यहां भी गया। वह दो माह पहले ही कोटा शिफ्ट हुआ है। शाम करीब पांच बजे पंकज के घर बारा रोड पर पहुंचा। वह ऑफिस से चल चुका था। घर में मनीषा और बेटी अग्रणी थी। अग्रणी पहली में पढ़ती है, घर में उसे तनी कहते हैं। बेहद प्यारी बच्ची। सबसे पहले हाथ पकड़कर बालकनी में ले गयी और वहां से अपने स्कूल को दिखाया। फिर थोड़ी देर में वह कागज के दो पंखे बनाकर ले आयी। थोड़ी देर में पंकज भी आ गया। इस दौरान मनीषा-पंकज और अग्रणी से बातें होती रहीं। बच्ची बार-बार अपनी कुछ बात बताती। वह चाहती थी कि मैं वहीं रुक जाऊं। ऐसी बच्ची जो मेहमानों के आने से खुश होती है। रात में पंकज, मनीषा और अग्रणी मुझे छोड़ने स्टेशन आये। स्टेशन पर बच्ची बोली, ‘आप कल फिर आना और हम फिर स्टेशन आएंगे।’ मैं बच्ची की बात पर मुस्कुरा दिया। घर आकर कई दिनों तक बच्ची की ही चर्चा होती रही।
कई वैज्ञानिकों से बातचीत और चार यार
इस सफर में कई वैज्ञानिकों से बातचीत हुई। एमएल परिहार साहब ने वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के बारे में बताया। वेंकटेश साहब ने कई बातें बताईं। उनके साथ रोज नाश्ते की टेबल पर भी बात होती। इस बीच, अजमेर से आए तरुण जैन, हरियाणा से आए जग्गा जी एवं पराशर जी से खासी दोस्ती हो गयी। साथ में रहे हमारे पंजाबी ट्रिब्यून के पुराने साथी अवतार जी। यादें तो इस सफर की बहुत सारी हैं। वहां के कई लोकल पत्रकारों से भी अच्छी बात होती रही। एक तो समय एक माह से ज्यादा हो गया, दूसरे अब कुछ बातें पुरानी ही लगने लगी हैं।
पत्रकार पिता और पुत्री

इस सफर में शिव सिंह चौहान और उनकी बेटी से भी मुलाकात हुई। चौहान साहब रोज अखबारों में कवरेज की फोटो व्हाट्सएप ग्रूप में डालते। आते वक्त दोनों की एक फोटो ली। बहुत अच्छा लगा। बेटी अभी करिअर के मुकाम पर हैं। चौहान साहब से व्हाट्सएप पर बातें होती रहती हैं।