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Thursday, March 5, 2020

होली के पापड़ और त्योहार की रस्म अदायगी

पापड़ बनाती भावना।
मार्च (march) महीने का पहला सप्ताह चल रहा है। 4 दिन बाद होली (holi) है। होली। कैसी रहेगी, यही सवाल सबके जेहन में है। कोरोना (corona) का खौफ। लगातार होती बारिश और रस्म अदायगी तक सिमटते त्योहार। तीन दिन पहले भावना ने कहा कि आज थोड़ी धूप है, क्या पापड़ बना लें। आशंका थी कि कहीं मौसम फिर न बिगड़ जाए। मैंने कहा हां शगुन तो कर ही लो। असल में अब सब शगुन करने जैसा यानी रस्म अदायगी जैसा ही रह गया है। मुझे त्योहार के मौके पर लखनऊ बहुत याद आता है। वहां कितना कुछ होता है। महीने पहले से तैयारी। हालांकि अब वहां भी उतना उत्साह नहीं रहा। दो दिन पहले शीला दीदी से बात हुई, उसने याद किया कि जब सौरभ छोटा था तो भी वह तिमजिले मकान की छत पर जाकर घंटों पापड़, चिप्स और कचरी बनाती, कई बार नीचे आने तक सौरभ चोटिल दिखता। अब तो आने जाने वाले भी कम ही होते हैं। खैर त्योहार तो त्योहार (festival)  हैं। समय बदलता रहता है, यादें पुरानी हैं, नयी बन रही हैं। चार साल पहले होली पर लखनऊ (Lucknow) गया था। बहुत अच्छी यादें हैं। सबके स्वस्थ रहने की कामना करता हूं।

Wednesday, March 4, 2020

हरेश जी की सेवानिवृत्ति ... वही उमंग आज भी है

केवल तिवारी
दिनांक 31 जनवरी 2020, समय : दोपहर 2:30 बजे। स्थान : चंडीगढ़ प्रेस क्लब। दैनिक ट्रिब्यून (Tribune) के संपादक राजकुमार सिंह जी ने कहा, ‘आप बेहतरीन व्यक्ति हैं इसका एक बड़ा कारण आपके साथियों का भी बेहतरीन होना है।’ उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए वहां बैठे न्यूजरूम के सभी साथियों से कहा, ‘यकीन मानिए हरेश जी ने कभी व्यक्तिगत रूप से किसी की मुखालफत नहीं की। कोई गलती विशेष पर भी नहीं।’ फिर उन्होंने अन्य बातें भी कीं। उनसे पहले दैनिक ट्ब्यिून के संपादकीय विभाग के अनेक व्यक्ति अपनी-अपनी बातें रख चुके थे। मौका था समाचार संपादक हरेश वाशिष्ठ जी की सेवानिवृत्ति का।
प्रेस क्लब में ग्रुप फोटो।
मुझे दैनिक ट्ब्यिून में आए सात साल हो चुके हैं। बेहतरीन संयोग था कि वरिष्ठ साथी अरुण नैथानी जी के सौजन्य से घर भी हरेश जी के एकदम करीब मिल गया। संकोची स्वभाव का होने के कारण उनके साथ घनष्ठिता कुछ दिनों बाद बनी। यह भी सच है कि कई लोगों से अब तक नहीं बन पाई। हरेश जी के साथ काम करने के दौरान के अनेक लोगों ने किस्से सुनाए, लेकिन मेरे साथ किस्से कुछ ऐसे हैं कि मैंने उनसे सीखा बहुत कुछ। एक बड़ी बात तो उन्होंने सेवानिवृत्ति के दौरान ही अपने संबोधन में कही कि करीब 36 साल पहले जब उन्होंने ट्ब्यिून ज्वाइन करना था तो उससे एक रात पहले वह कैथल स्थित अपने घर की छत पर रात को टहल रहे थे और एक अलग तरह की उमंग थी। साथ ही इस 31 जनवरी से पहले भी वह चंडीगढ़ स्थिति अपने घर की छत पर टहल रहे थे तो उन्हें लेशमात्र भी दुख नहीं हो रहा था कि अब वह सेवानिवृत्त हो रहे हैं। यहां प्रसंगवश एक बात मुझे याद आ रही है कि ठीक एक साल पहले लखनऊ में मेरे भाई साहब भी सेवानिवृत्त हुए थे। वह भावुक थे। साथ ही खुश थे कि बेदाग निकल गए। क्योंकि जिस विभाग में वह थे वहां दाग लगना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। इस 31 जनवरी को भी लखनऊ में भाई साहब की सेवानिवृत्ति का सारा मंजर मेरे आंखों में चलचित्र की तरह चल रहा था। यहां कुछ ने अपने अनुभव बताए, कुछ ने कुछ भी नहीं कहा और कुछ ने कुछ-कुछ कह दिया। कहने-सुनने के इस मौके पर गीत-संगीत और शेर-ओ-शायरी का दौर भी चला।
मेरे कुछ यादगार पल
साल 2013 में चंडीगढ़ आए मुझे करीब 3 महीने हुए थे। एक दिन मै सुबह 11 बजे अपने घर (किराये पर जहां रहता हूं) पर ताला लगा रहा था। उन दिनों मेरे बच्चे गाजियाबाद में ही थे। मेरे साथ रह रहे नित्येंद्र कानपुर गए हुए थे। हरेश जी मेरे गेट के ठीक सामने बने सोसाइटी ऑफिस में एक मीटिंग में थे। उन्होंने मुझे निकलता देखा तो आवाज लगाकर रोका। फिर पूछा कहां ऑफिस चल दिए। मैंने कहा जी उससे पहले सेक्टर 31 जाकर एक मोबाइल सिम लेना है उसके बाद ऑफिस जाउंगा। हरेश जी ने कहा, थोड़ा रुकें आज लंच साथ करते हैं। मैं कुछ नहीं बोल पाया। न हां और न ही ना। मैं वापस लौटा, ताला खोला और कुछ मैले कपड़े निकालकर उन्हें धोने में जुट गया। करीब एक घंटे बाद हरेश जी आए और बुलाकर अपने घर ले गए। वहां भाभी जी और बच्चों कनु एवं जूजू से पहली औपचारिक मुलाकात हुई। बेहद आत्मीय लोग लगे। कनु मेरी भतीजी का नाम भी है जो इन दिनों एबीपी न्यूज में सीनियर प्रोड्यूसर है। इसके बाद अक्सर बातचीत होने लगी। इसके तीन-चार माह बाद स्कूल में छुट्टियों के दौरान बच्चों को मैं एक हफ्ते के लिए यहां ले आया। रूम मेट नित्येंद्र ने दूसरा घर किराये पर ले लिया था। एक हफ्ते बाद बच्चों को छोड़ने जाना था। मैंने हरेश जी से छुट्टी मांगी साथ ही पूछा कि क्या कोई ऑटो या टैक्सी वाला जानकार है, रात 11 बजे की ट्रेन है। हरेश जी ने कहा घर से कितने बजे निकलेंगे। मैंने कहा 10 बजे; वह बोले-हो जाएगा इंतजाम। मैं निश्चिंत। जिस दिन जाना था, मैने हरेश जी से एक घंटा पहले यानी 9 बजे ऑफिस से जाने की इजाजत मांगी। उन्होंने आज्ञा दे दी। लेकिन वह स्टेशन तक जाने की व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं बोले। मैं घर आया और बच्चों से कहा कि जल्दी तैयार होकर चलो। हरेश जी पहले तो कह रहे थे कि व्यवस्था हो जाएगी, लेकिन आज एक शब्द नहीं बोले। तैयार होने में 10 बज गए। जैसे ही हम लोग निकलने को हुए, हरेश जी का फोन आया, पूछा, तैयार हो गए। मैंने कहा जी सर बस बाहर को ही निकल रहे हैं। वे बोले आ जाइये मैं कार लेकर बाहर खड़ा हूं। मैं अवाक रह गया। कितनी जल्दी धारणा बनाने लगता हूं किसी के बारे में। उसके बाद बहुत संयम से सोचने-विचारने लगा हूं। यही नहीं न्यूज रूम में अलग-अलग नेचर के लोगों को हैंडल करते हरेश जी से बहुत कुछ सीखा। इसके बाद तो कई मौके आए जब हरेश जी से अपनापन मिला।
भाभी का बच्चों को गाइडेंस और कनू-जूजू के साथ मेरी हिंदी-विंदी
चूंकि घर अगल-बगल था। अक्सर मिलना हो जाता। इस दौरान भाभी जी बच्चों को गाइड करती। बड़े बेटे से उन्होंने प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा साइकिल चलाने को कहा और छोटे से कुछ खान-पान सुधारने को। उन्होंने आईटीबीपी के अपने किस्से भी कई बार सुनाए। मैंने सलाह भी दी कि वह अपने अनुभवों को एक किताब के रूप में लिखें। इस बीच कनु और जूजू तमाम परीक्षाओं के दौर से गुजरीं। हरेश जी और भाभी जी ने उन्हें थोड़ी हिंदी की प्रैक्टिस कराने की जिम्मेदारी मुझे दी। उनको तैयारी कराने के दौरान कई नयी चीजें मुझे भी सीखने को मिलीं। इस दौरान दोनों बच्चे मेरी सेहत के बारे में पूछते, जरूरी सलाह देते और सबसे बेहतरीन नित अलग-अलग तरह की चाय पिलाते। बच्चों की मेहनत है कि आज जूजू के नाम से ऊ की मात्रा हटा दी गयी है। यानी वह जज बन गयी है। कनु डॉक्टर साहिबा हो गयी हैं। ईश्वर उन्हें खूब तरक्की दे। बातोंबातों में पता चला कि हरेश जी के पिताजी का नाम दामोदर था। इत्तेफाक है कि मेरे पिताजी का नाम भी यही था।

आज हरेश जी बेशक ऑफिस के काम से निवृत्त हो गए हैं, लेकिन अभी काफी काम बचा है। संपादक राजकुमार सिंह जी के ही कथन से बात को पूरा करता हूं कि सेवा से निवृत्त हुए हैं, संबंधों से नहीं। अभी कई अनुभव और मिलेंगे और ब्लॉग लेखन का यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।
ऑफिस से विदा हुए तो क्या, हम सबको तो साथ ही आप पाओगे
है शुभकामना हमारी, जीवन में हर कदम आप खुशियां ही पाओगे।
विदाई के तुरंत बाद की खुशी। अखबार में छपी खबर के जरिए-


बारिश पर हावी रिटायरमेंट का जश्न

केवल तिवारी
29 फरवरी की वह शाम थी। यादगार शाम। और ज्यादा यादगार होती, लेकिन बारिश का खलल पड़ गया। बारिश भी ऐसी कि थमने का नाम न ले। कुछ देर रुके, फिर शुरू हो जाये। बारिश के बावजूद उत्साह में कमी नहीं थी। वसुंधरा के सेक्टर 4 बी स्थित शिवगंगा अपार्टमेंट के गेट पर कुछ महिलाएं खड़ी थीं, पुरुषों की चहलकदमी जारी थी, बच्चों का उत्साह नये रंग में था। इन सबके बीच ढोल बजे रहे थे। पैर थिरकने को बेताब थे। तभी पता चला कि शर्मा जी पहुंचने वाले हैं। शर्मा जी यानी हरीशचंद्र शर्मा। जीना नंबर 10 के ‘लोकल गार्जन।’ 
शर्मा जी और भाभी जी का स्वागत करते लोग।
भाभी जी और बेटा नितिन गए थे शर्मा जी को लिवाने। असल में एलआईसी में शानदार नौकरी करने के बाद शनिवार, 29 फरवरी 2020 को शर्मा जी रिटायर हो गये। वाकई यह दौर एक नये तरह का होता है। आप नौकरी संबंधी रुटीन काम से निवृत्त होते हैं और सामाजिक दायित्वों में जुट जाते हैं। यह अच्छी बात है कि शर्मा जी ने दोनों बेटियों रुचि और सोनाली का विवाह कर दिया है, बेटे नितिन की शादी की तैयारी कर रहे हैं। दोनों बेटियां अपने-अपने परिवार में खुश हैं। उस दिन दोनों बच्चियों से मुलाकात हुई। धीरज जी ने दामादजी से परिचय कराया, बहुत अच्छा लगा। बेटे नितिन का उत्साह भी देखते ही बनता था। मुझे याद आया ठीक एक साल पहले लखनऊ में अपने भाई साहब के रिटायरमेंट का। वह तारीख 31 दिसंबर की थी। खैर उस शाम शर्मा जी जब गेट पर पहुंचे तो हम सभी ने उनका वार्म वेलकम किया। बारिश को लेकर कुछ बातें हुईं। शर्मा जी ने मजाक किया, ‘तिवारी जी चंडीगढ़ से बारिश साथ लेकर आए हैं।’ वाकई पहली रात चंडीगढ़ में खूब बारिश हुई थी। मैं रात को ही चलने वाला था, लेकिन भारी बारिश को देखते हुए मैंने कार्यक्रम टाल दिया। मैं अगले दिन यानी 29 फरवरी की ही सुबह 8 बजे चंडीगढ़ से चला। शाम 5 बजे के करीब शर्मा जी के घर पहुंच गया।
कृष्णाजी की भागदौड़ और सलाह मशिवरा
इस पूरे प्रकरण में कृष्णा जी की भागदौड़ देखने लायक और सीखने लायक थी। वह पैंट को समेटे, चप्पल में इधर से उधर भाग रहे थे। कभी खाने की टेबल गली में शिफ्ट कराने में तो कभी डीजे के साउंड बॉक्स को धीरज जी की बालकनी में रखने में। बीच-बीच में वह हम लोगों से भी सलाह-मशविरा कर लेते। इसी दौरान शर्मा जी के आने की सूचना मिली। फोटोग्राफर का इंतजार किया जाने लगा। 10 मिनट इंतजार के बाद कृष्णा जी ने कहा कि अब इंतजार नहीं चलिये। उनका यह फैसला सही रहा, क्योंकि थोड़ी देर में ही फिर भारी बारिश हो गयी।
बच्चा पार्टी का दिया खूबसूरत गिफ्ट।
बच्चों ने दिया सबसे प्यारा गिफ्ट
चंडीगढ़ लौटने के बाद शर्मा जी का फोन आया, ‘ठीक से पहुंच गये।’ फिर उन्होंने शिकायत की कि जाते वक्त मिले क्यों नहीं, बच्चों के लिए मिठाई भेजनी थी। मैंने माफी मांगते हुए कहा, ‘आशीर्वाद बनाए रखिए।’ बातों-बातों में शर्मा जी ने कहा कि उन्हें बच्चों का गिफ्ट बहुत अच्छा लगा। फिर उसकी फोटो उन्होंने भेजी। वाकई बच्चों की मासूम भावनाएं होती ही बहुत अच्छी हैं। बच्चों ने खूबसूरत फोटो लगाकर अपने दिल की बातों को इसमें लिख छोड़ा है। शर्मा जी को नये जीवन पथ पर चलने की अग्रिम बधाई। वह स्वस्थ रहें, खूब घूमें, फिरें। जल्दी ही हम लोगों की मुलाकात होगी। मैंने उन्हें चंडीगढ़ आने का निमंत्रण दिया है, देखते हैं योजना कब पूरी होती है। पेश है एक शेर-
ऑफिस से विदा हुए तो क्या, हम सबको तो साथ ही आप पाओगे

है शुभकामना हमारी, जीवन में हर कदम आप खुशियां ही पाओगे।