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Tuesday, December 20, 2022

‘सुखद-समृद्धि’ की ओर हरियाणवी विरासत

 केवल तिवारी 

यहां बेबाकी है। बेतकल्लुफी है। माटी से जुड़े रहने की ‘जिद’ है। आसमान में ‘उड़ने’ का हौसला है। परिवर्तन की गवाही है। सांस्कृतिक लिहाज है। आधुनिकता का खुलापन है। यह हरियाणा है। इस हरियाणा के सांस्कृतिक समृद्धि की झलक पिछले दिनों कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में आयोजित ‘रत्नावली’ कार्यक्रम में दिखी। संस्कृति की विभिन्न विधाओं में ‘लट्ठ गाड़ने’ वाले हरियाणावी देश-विदेशों में छा चुके हैं। खेलों में परचम लहरा रहा युवा वर्ग संस्कृति को सहेजने में जुटा है। विस्मृत की जा चुकी चीजों पर शोध कर रहा है। तभी तो जाने-माने कलाकार युवाओं को संदेश देते हैं, ‘सपनों का पीछा करो और ईमानदारी से आगे बढ़ो।’ 

गत 28 से 31 अक्तूबर तक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की रौनक कुछ अलग ही रही। प्रवेश करने से पहले ढोल की गूंज सुनाई देने लगती थी। रंग-बिरंगा परिसर और वहां सजे विभिन्न स्टॉल। कोने पर ही पगड़ी पहनने की होड़। बगल में ही दामण, लहंगा, चुनरी, हसली और कमरमंद का स्टॉल। बाहर के नजारे से जरा अंदर पहुंचे तो ऑडिटोरियम की दर्शक दीर्घा में हर कोई झूमने को मजबूर। झूमे भी क्यों ना। कभी रसिया, कभी लूर तो कभी समूह नृत्य। कलाकार जिन गीतों पर थिरके और संग-संग दर्शक झूमे जरा उन पर गौर फरमाइये- ‘दामन बावन गज का, मैं मटक चलूंगी’,‘रुत आई बंसत बहार की मेरा चुंदड़ उड़ उड़ जा’,‘तेरे बिन आवे न चैन’, ‘चलो री सखी मंगल गा लो’ ‘यू म्हारा हरियाणा’, ‘बसेरे आए रे बसेरे’, ‘यशोदा मईया करो कमाल, रसिया हम खेले फागन में’, ‘ऐसो कियो कमाल, बलम घर पडवा दे’‘ब्रज में होरी मोरी रसिया’, ‘होली खेलो कृष्ण मथुरा की गली’ मुख्य ऑडिटोरियम के बगल में दूसरे हॉल में सुनाई दीं कविताएं। कुल 26 महाविद्यालयों के काव्य प्रतिभागियों ने अलग ही माहौल बनाया। प्रथम, द्वितीय तो प्रतियोगिता की परिणति है, लेकिन दर्शकों के लिए तो हर क्षण आनंदित होने का था। इन कविताओं ने सबको मोह लिया। कविताओं के साथ ही कॉलेज विद्यार्थियों की हरियाणवी वेशभूषा और ‘सभी नै राम-राम’ का संबोधन सबको भा गया।  

दैनिक ट्रिब्यून की शुरुआती कवरेज


मजाकिया अंदाज, कटाक्ष के साथ संवाद 

रत्नावली समारोह में भले ही ज्यादातर कार्यक्रम प्रतियोगी स्वरूप में थे, लेकिन जीत-हार और प्रथम-द्वितीय की बात को दरकिनार रखा जाये तो इनके प्रस्तुतीकरण रहा लाजवाब। मजाकिया अंदाज और कटाक्षभरे संवाद। सिस्टम पर भी चोट और बात भी पते की। देखिये कुछ संवाद, ‘रै बालको! थम भी क्या याद करोगे, थारते कोरोना के सीजन में बिना पेपर दिए पास किया। इसते बत्ती ओर के चाहो हो, छह-छह साल में जो पास न होए, कोरोना मैं म्हारी दी छूट मै उनका कलेश कट गया।’ इस संवाद का जवाबी अंदाज देखिए, ‘इन बालकां का तो भला हो गया, पर उनके पेट पै लाठी लगी जो पिसे दे कै पास कराकै अपना टब्बर पालैं ते।’ अब थोड़ा सियासत में मजाकिया छौंक। देखिए संवाद-  

‘एक नेता बोल्या म्हारे तै वोट दो, म्हारे तै वोट मिलण तै देश नै इतना ऊंचा ले जैंगे.... अर इतनी ऊंचा... इतनी ऊंचा.... बस न्यूं समझ ल्यों ऊंचे तै भी ऊंचै। दूसरा नेता बोल्या-रोक दै मित्र इतनी ऊंचे तू देश नै लेग्या, ओड़े ऑक्सीजन का टोटा पड़ जैगा... अर ऑक्सीजन का टोटा दूर करना थारै बस का सोदा कोनै।’ कोरोना काल में ऑक्सीजन संकट पर यह गहरी चोट थी। ऐसे ही अनेक कार्यक्रम हुए जिनमें हंसी-मजाक के संदेश भी था। यही तो है हरियाणा और हरियाणवियों का अंदाज।  


रघुवेंद्र मलिक : संजीदा कलाकार हरियाणवी धरोहरों से प्यार 

राघवेन्द्र मलिक जी


जाने-माने कलाकार रघुवेंद्र मलिक की संजीदगी हमें अनेक मंचों पर देखने को मिलती रही है। कई फिल्मों में अपनी सशक्त भूमिका से दर्शकों का दिल जीतने वाले मलिक हरियाणवी धरोहरों को भी संजोने का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी इच्छा इन धरोहरों को संजोकर रखने की है। यानी एक संग्रहालय बनाने की ताकि हरियाणा की आने वाली पीढ़ियों के मन से ये विस्मृत न हो जायें। कर्यक्रम से इतर उन्होंने कुछ चित्र दिखाए। चित्र उन धरोहरों के जो उनके पास हैं। इनके नाम देखिए परात, दोही, बोहिया, दरांत, पलिए, कुंडी, सिप्पी, लोटा, कटोरदान, छाज, छालणी, मूसल, हारी, तेलड़ी, दीपदान, लोढणी, छिक्का, खुरपी, तुंबा, खुरेहरा, बीजणा, फरमे, ठप्पे, लालटेन, डोलवगैरह-वगैरह।रघुवेंद्र ने कहा, ‘ये सभी चीजें हमारे रोजमर्रा की जरूरतोंमें शामिल रहा करती थीं।’ हरियाणा में इनमें से कुछ चीजें भले ही समय के साथ लुप्त हो गई हों, लेकिन अभिनेता रघुवेंद्र के पास इनका संकलन है और वह यह काम जारी रखे हुए हैं। उक्त सामानों के अलावा खेती-बाड़ी के लिए भी कई ऐसी चीजें थी जिनमें से शायद अब बहुत कुछ ना हो और लोगों को तो उनका पता ही ना हो जैसे दो सींगा चार सींगा जेली, गडासी, हालस, सांटा, जुआ, फरसा, गोपिया, नकेल, हल, हलस वगैरह-वगैरह। घर-परिवार की जिन चीजों को महिलाएं तैयार करती थीं, उनका संग्रह भी उनके पास हैं। इनमें शामिल हैं घागरा, ओढ़नी, झूला, टोपी, बटुए, बिंदरवाल, मोड़, तागड़ी, ईढ़ी, खेस, खरड़, पालना, दरी, मुड्डे, झुनझुना, चौपड़ आदि। मनोरंजन की सामग्री में संगीत से जुड़े कुछ वाद्य यंत्रों का भी उन्होंने जिक्र किया जैसे सारंगी, ग्रामोफोन, नगाड़ा, बीन, बांसली,डफ, तासावगैर-वगैरह। मलिक ने हरियाणवी फिल्मों पर भी बात की और उम्मीद जताई कि आज के युवा निश्चित रूप से स्थानीय सिने संसार को आगे ले जाएंगे।  


चार बार हुई शादी कैसे टूट सकती है : राजेंद्र गुप्ता 

कलाकारों और कार्यक्रम के संयोजक महासिंह पूनिया के साथ राजेंद्र गुप्ता।


संजीदा अभिनेता राजेंद्र गुप्ता से अनेक बातें हुईं। लेकिन जैसे ही उनसे प्रेम के संबंध में पूछा गया तो आसपास खड़े युवा ऐसे चौकन्ने हुए मानो उनके जवाब के लिए ‘इरशाद’ कर रहे हों। उन्होंने शुरुआत में कहा, ‘जब मैं 1963 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का छात्र था, लड़कियों की तरफ देखते हुए भी डरता था। वह वक्त कुछ और था।’ जवाब से जुड़ा सवाल, ‘आपने भी तो प्रेम विवाह किया, कैसे हुआ सबकुछ और कैसा अनुभव है जीवन में?’ बोले- ‘कैसे हुआ तो मैं भी नहीं जानता। फिल्मी सी कहानी है। नाटक अंधा युग की शूटिंग के दौरान दो दिन की मुलाकात के बाद तीसरे दिन बातचीत हुई और पहले मंदिर में चुपचाप शादी की। घर आए तो घरवालों ने हिंदू रीति-रिवाज से शादी कर दी। फिर कुछ संबंधियों ने कहा कोर्ट मैरिज करेंगे। वह भी हुआ। उसके बाद ससुराल भोपाल जाकर उनके रीति रिवाज यानी ईसाई धर्म के अनुसार विवाह हुआ। यानी चार बार शादी की रस्में।’ फिर हंसते हुए बोले- ‘चार बार हुई शादी कैसे टूट सकती है।’ एक समृद्ध व्यापारी का बेटा फिल्मों में कैसे, पूछने पर उन्होंने कहा, ‘व्यापार के लिए संवेदनाओं को कुचलना पड़ता है क्योंकि उसका पहला ध्येय मुनाफा है, वह मेरे से नहीं हुआ। रसायन शास्त्र की पढ़ाई में भी मन कम लगा और जहां लगा वहां आज हूं।’ उन्होंने कहा कि हरियाणवी सिनेमा को और समृद्ध बनाने के लिए हर किसी को अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी होगी।   

चीजों को संभालना, बेहतरी के परिवर्तन को होगा स्वीकारना 


कलाकारों ने माना कि समय के साथ-साथ कुछ चीजें लुप्तप्राय हुई हैं तो कुछ में परिवर्तन हुआ है। फैशन से जुड़े लोगों ने जहां माना कि दामण, कमरबंद और ऐसे ही अन्य चीजों में इनोवेशन हुई है और दावा किया कि नये रूप में इन्हें स्वीकारा जा रहा है। इसी तरह हरियाणवी सांग में बहुत मोडिफिकेशन हुआ है और लूर नृत्य में शोध हुए हैं। कलाकार नाम सिंह सांझी कहते हैं, 'सांग तो आठ-नौ घंटे तक चलता था। लोग भी इतने धैर्यवान थे कि डटे रहते थे, लेकिन समय के साथ आज इसे पहले दो-तीन फिर एक घंटे तक का करना पड़ा।' 'कलाकार संदीप ने कहा कि लंबे सांग में दर्शक गायब हो जाते हैं। हमने युवाओं के मन को पढ़ा और इसमें परिवर्तन किया।' उन्होंने कहा, 'छोटा सांग बड़े वर्ग को जोड़ेगा।' इसी तरह कई कलाकारों ने रसिया और अन्य नृत्यों के बारे में भी कहा कि इसमें परिवर्तन हो रहा है और युवाओं की भागीदारी सुखद अनुभूति है। 

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कलाकृतियों में भी रंगों का गजब संयोजन 

रत्नावली उत्सव में कला प्रतियोगिताएं भी हुईं। एक ओर जहां मझे हुए कलाकारों की पेंटिग्स की प्रदर्शनी चली तो दूसरी ओर नौजवानों ने कला के प्रति अपनी रुचि का इजहार किया। इनमें ज्यादातर प्रतिभागियों ने चटख रंग का प्रयोग किया था। वॉटर पेंटिंग, स्टिकर्स आर्ट्स, बुक मार्क्स, राइजिंग की-चेन, ईयर रिंग्स, इंक वर्क व मुख्य रूप से एल्कोहलिक इंक मार्क्स की पेंटिंग को देखते-देखते दर्शकों का हुजूम प्रतियोगिता के तौर पर बन रही चित्रकारी पर भी अटक जाता। पास में ही बने सेल्फी पाइंट पर भी लोगों का जमावड़ा देखा गया। खासतौर पर युवा वर्ग का। चरखी दादी की रीना कहती हैं, ‘सेल्फी क्लिक करने का ट्रेंड और अलग ही स्वैग है।’ 

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और छा गए यशपाल शर्मा 

पूरी मस्ती में यशपाल शर्मा


कार्यक्रम के अंतिम दिन यानी 31 अक्तूबर को जाने-माने अभिनेता यशपाल ने समां बांध दिया। पहले उन्होंने दर्शक दीर्घा में बैठे युवा वर्ग से सीधा संवाद किया और उनकी फिल्म दादा लखमी चंद की बात शुरू होते ही युवाओं की तालियों से सभागार गूंज उठा। इस फिल्म के प्रोमो भी समारोह परिसर में चल रहे थे। इस फिल्म में जहां वह लीड रोल में हैं, वहीं उन्होंने इसे निर्देशित भी किया है। उन्होंने इसकी तैयारी में पांच साल लगाए। उनकी इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ हरियाणवी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है। उल्लेखनीय है कि दादा लखमी फिल्म पंडित लखमी चंद के संगीतमयी यात्रा पर आधारित है। जिसको हाल में ही ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ से नवाजा गया। बताया गया कि फिल्म लगभग 300 लोगों की 6 साल की कड़ी मेहनत का परिणाम है। पंडित लखमी चंद सोनीपत के गांव जाटी से थे

Monday, December 19, 2022

सार्थक प्रयास का समारोह, जोश-जज्बा, अपनों से मिलन और खबर-वबर

केवल तिवारी 
वे जोश से लबरेज थे। कोई उत्तराखंड की वादियों से आया था तो कोई वसुंधरा से। खचाखच भरे हॉल में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बहुत दिनों से तैयारी जो की थी। दो दिन दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में घूमने और उसकी चर्चा करने का लुत्फ अलग था। कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही दिल्ली के आईटीओ स्थित हिंदी भवन में, मैं भी पहुंच चुका था। कुछ देर इन्हीं बच्चों से बतिया लिया जाये, यही सोचकर बच्चों से पूछा, ठंड नहीं लग रही, बोले बिल्कुल नहीं। मुझे जानते हो, चार बच्चों ने कहा हां। गजब। सिर्फ एक या दो बार सार्थक प्रयास के पुस्तकालय गया होऊंगा और बच्चों को याद है। बाद में जब इनका कार्यक्रम देखा तो समझ गया कि ठंड नहीं लग रही सवाल के जवाब में इनका जवाब इतना जोशीला क्यों था? गणपति बप्पा मोरया प्रस्तुति देखकर तो तालियों की ऐसी गड़गड़ाहट हुई कि बस उसे बयां करना मुश्किल है।



खैर… कार्यक्रम शुरू होने को अभी कुछ वक्त बाकी था, तभी चारूदा आए और बोले, ‘हिटो चहा पी ल्हीनू’ चाय पीने गए तो वहां सुशील बहुगुणा जी, उत्तराखंड से बच्चों की टीम लेकर आए पवन तिवारी जी, आकाशवाणी में वरिष्ठ प्रोड्यूसर एमएस रावत जी, सार्थक प्रयास से शुरू से जुड़े रवि जी, राजेन्द्र भट्ट जी समेत कई बंधु-बांधव मिले। मंच संचालन की जिम्मेदारी इस बार हंसा जी के अलावा सिद्धांत सतवाल को मिली थी। सार्थक प्रयास को हर परिस्थिति में आगे ले जाने में लगे उमेश पंत जी तो कभी यहां तो कभी वहां भागते नजर आ रहे थे। यह कार्यक्रम बहुत लंबे समय बाद हो पा रहा था। इससे पहले कोविड काल की बहुत सी दुश्वारियां झेलीं। इस दुश्वारियों के दौरान सार्थक प्रयास की सार्थक पहल भी देखी। साथ ही यह भी कुलबुलाहट हुई कि जब सबकुछ सामान्य चल पड़ा है तो कुछ नया हो जिसमें कुछ पुरानापन छिपा हो। इसी दौरान पंत जी का फोन आया कि वार्षिकोत्सव की तिथि तय कर दी गयी है। मैं नियत तिथि के दिन सुबह 6 बजे की बस से दिल्ली की ओर रवाना हो गया। एक बजे आईएनएस बिल्डिंग पहुंचा। मीडिया के कुछ मित्रों से मिला। कुछ को मैसेज किया। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुआ। कैसा लगा, बताने की जरूरत नहीं। शाम को मित्र जैनेंद्र सोलंकी जी, धीरज ढिल्लों जी और संजय जी के साथ कुछ वक्त बिताया। और फिर हो गयी वापसी। इस कार्यक्रम के लिए जो खबर तैयार थी उसे हू ब हू नीचे दे रहा हूं। साथ ही कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें और अखबारों में मिली कवरेज की कुछ झलकियां। देखिए, समझिए। सार्थक प्रयास में भागीदार बनिए। अभी भी और भविष्य में भी।

हुनर को मिला मंच और सपनों को लगे पंख 
सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था सार्थक प्रयास के वार्षिकोत्सव पर बच्चों ने दी प्रस्तुति, 
'दृष्टि का हुआ लोकार्पण' 
नई दिल्ली। सचमुच प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। यह बात एक बार फिर साधनविहीन बच्चों ने सही साबित की। इन बच्चों को जब मंच मिला तो इन्होंने एक से बढ़कर एक ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए कि सभागार में बैठा हर व्यक्ति तारीफ किए बगैर नहीं रह पाया। मौका था सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘ *सार्थक प्रयास’ के 12वें स्थापना दिवस का। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के हिन्दी भवन में संस्था के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। इस अवसर संस्था की वार्षिक स्मारिका ‘दृष्टि’ का लोकार्पण भी किया गया। इस समारोह में अल्मोड़ा जनपद के चैखुटिया और वसुंधरा के बच्चों ने बहुत उत्साह और आत्मविश्वास से अपनी प्रस्तुतियों से लोगों का मन मोह लिया। संस्था के अध्यक्ष उमेश चंद्र पन्त ने बताया कि , ‘सार्थक प्रयास’ पिछले 12 वर्षों से आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था के अलावा उनमें रचनात्मकता के साथ आत्मविश्वास पैदा करने के लिए लगातार काम कर रहा है। संस्था ने अपनी सामाजिक यात्रा के इन पड़ावों में कई तरह से जरूरतमंद लोगों की मदद की है। गाजियाबाद के वसुंधरा क्षेत्र के झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों का पढ़ाने से शुरू हुई इस मुहिम ने बाद में आपदा और कोविड-19 तक हर समय आम लोगों की तकलीफों के साथ खड़े रहकर मदद की है। उत्तराखंड मे 2010 में आई आपदा और केदारनाथ में 2013 की आपदा में संस्था ने प्रभावित लोगों कर मदद की। राहत कार्यो में भी अपनी भूमिका निभाई। पिछले दो-तीन सालों में कोविड के समय दवाओं के वितरण, लोगों को उनके घर पहुंचाने और जरूरतमंद लोगों तक राशन पहुंचाने का काम किया। अभी संस्था वसुंधरा, चौखुटिया और केदार घाटी में 150 के लगभग बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था करती है। इन तीनो जगहों पर पुस्तकालयों की स्थापना कर बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ाने का काम भी कर रही है। ‘सार्थक प्रयास’ के 12वें स्थापना दिवस पर बच्चों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सभी ने प्रशंसा की। इस मौके पर अल्मोड़ा जनपद के चैखुटिया से आये बच्चों ने सरस्वती वंदना, कुमाउनी लोकगीतों, लोकनृत्यों और नृत्य नाटिका से दर्शकों का मन मोह लिया। वसुंधरा के बच्चों ने राजस्थानी लोकगीत-नृत्य, नुक्कड़ नाटक, थीम सांग प्रस्तुत किये। इस मौके पर संस्था की वार्षिक स्मारिका ‘दृष्टि’ लोकार्पण किया। स्मारिका का इस बार ‘प्रकृति, मानव और कोविड’ विषय पर केन्द्रित थी। इससे पहले संस्था के बारे में एक डाॅक्यूमेंटरी भी दिखाई गई। कार्यक्रम के पहले दिन चालीस बच्चों को दिल्ली के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कराया गया। दिल्ली मेट्रो में सफर के अलावा बच्चों ने इंडिया गेट, वार मैमोरियल, राष्ट्रपति भवन के अलावा आकाशवरणी का भ्रमण किया। कार्यक्रम का संचालन हंसा अमोला और सिद्धांत सतवाल ने किया। अंत मे रवि शर्मा ने सभी मेहमानों का धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में चारु तिवारी, पवन तिवारी, सुषमा पन्त, राजेन्द्र भट्ट और संस्था के बहुत से गणमान्य लोग उपस्थित थे।









Wednesday, December 14, 2022

40 के भी नहीं हुए थे… फिर भी चले गए… अलविदा नानू

 केवल तिवारी

नानू। आचार्य नवीन चंद्र पांडेय। ऐसे ही तो संबोधित करता था तुमको। तुम्हारा वह मामा कहना कानों में गूंजता है अभी भी। कोई लाग लपेट नहीं। कोई ‘जी’ नहीं। सिर्फ मामा। और कभी-कभी अरे मामा कहना। पिछले कुछ समय से तुमसे घनिष्ठता बढ़ गयी थी। फिर उस शनिवार रात जिंदगी और मौत से जूझते हुए तुम लखनऊ पीजीआई में थे और मैं यहां चंडीगढ़ में सिर्फ प्रार्थना कर पा रहा था। 

एक पूजा में व्यस्त। अब बस यादें।


शनिवार रात आए थे तुम सपने में। कहा था मामा आपको उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर ले जाऊंगा। मैंने तैयारी कर ली है। मैं पहुंच रहा हूं आप फिर आना। रविवार सुबह-सुबह पत्नी को सपने के बारे में बताया। उसने भी कहा, लगता है नानू अब धीरे-धीरे रिकवर हो जाएगा। धवल और भावना को लेकर हम चले गए शिव-शनि मंदिर। वहां एक गुरुजी के आश्रम में भी जहां में पिछले एक हफ्ते से रोज जा रहा था। दोपहर को लौटने लगे तो सूचना आई। सबकुछ सन्नाटा। पता नहीं क्या लगा? ड्राइव कर रहा था। भावना बोली कार आराम से चलाओ। पहले घर पहुंचो। लगा बड़ा सा ज्वार-भाटा पिछले एक हफ्ते से आ रहा था और अचानक सब थम गया। खौफनाक सन्नाटा। मरघट जैसा। मरघट ही पहुंच गए। क्या करता, क्या कहता? एक दोस्त को फोन किया। लखनऊ अर्जेंट जाना है। कुछ लोगों से बात की। सबने कहा, हड़बड़ी मत करो, अंतिम दर्शन नहीं कर पाओगे। पंकज से बात करने की भी हिम्मत नहीं हुई। एक मैसेज डाल दिया। अगले दिन तत्काल में रिजर्वेशन मिला। पहुंचा लखनऊ। 

आसमान टूटने से बेखबर बच्चियां मेरे साथ।


तुम्हारे बगैर वह सड़कें अनजानी सी लग रही थीं। घर में लग रहा था सब रो-रोकर थक चुके हैं। कुछ आसूं बहाए। तुम्हारी दोनों बेटियां कुछ समझ नहीं पा रही थीं। वह मेरे साथ खूब हंसी बोलीं। दीदियों का चेहरा देख, परिवार में सबकी स्थिति देख दिल दहल उठा। ज्योति तो जैसे पत्थर बन गयी। कुछ देर उसके साथ भी बैठा।

तभी मुझे अपने बारे में खयाल आया। कैसे संभाला होगा मेरी मां ने। बताते हैं कि जब पिताजी गुजरे थे तो मैं दो साल का था। भाई साहब नौवीं में पढ़ते थे। शीला दीदी और प्रेमा दीदी भी छोटी ही थीं। फिर तुलना करते-करते ठिठक गया। बातचीत में कहा, पिताजी का निधन 67 वर्ष में हुआ था। चलो कुछ तो जी गये थे। पिताजी को मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। वह माताजी से ऐसा ही कह भी गए थे। नानू तुम तो अभी 40 के भी नहीं हो पाए थे। चले गए हो अब तो। सपनों में ही आओगे। क्या कहूं अब। मैं लिखकर ही अपने दिल की बात कह पाता हूं। क्योंकि इग्नोरेंस हमेशा झेला है। यहां भी यही बात तुमसे। खुश रहना। अलविदा।   

Monday, November 28, 2022

सपने में अपनापन देखेंगे

 केवल तिवारी



जीवन के विविध रंग देख लिए। लेकिन सचमुच समझ में बहुत कुछ नहीं आया। बहुत कुछ क्या, पर्याप्त भी नहीं आया। कभी किसी का इगो, कभी अहं ब्रह्मास्मि का भाव और कभी कुछ। अगर खुद के संदर्भ में कुछ कहूं तो पारिवारिक मसलों पर सरेंडर करने में ही सुख है। तमाम झंझावात देखे, कितने अज़ीज़ चले गए। एक बारगी मन में आया कि लेखन ही बंद कर दूं, लेकिन फिर खुद को समझाया। अगले पल का पता नहीं। आज कुछ काव्यात्मक अभिव्यक्ति मन से फूट पड़ीं। मन करे तो पढ़िएगा। आत्मिक आवाज आत्मा तक पहुंच ही जाएगी।


नींद आ जाए भरपूर कि आज सपने देखेंगे।

सपने में अब अपनों का अपनापन देखेंगे।।

मीठी-मीठी बातों का पैगाम कहेंगे।

सब सलामत रहें, ये दुआ कऱेंगे।।

जो बिछड़ गए उनसे कुछ दिल की कहेंगे।

वो बातों का सिलसिला हम टूटने न देंगे।।

नींद आ जाए भरपूर कि...

वो वादे, वो इरादे वो नजारे देखेंगे।

जो कह न सके जागते हुए, सपनों में कहेंगे।

खुली आंखों में रह गई थी जो कसक,

बंद आंखों में उसे भी रोशन करेंगे।।

ये क्यों, वो क्यों इधर उधर की न कहेंगे।

सीधे सीधे बस अपने दिल की ही कहेंगे।।

नींद आ जाए भरपूर कि आज सपने देखेंगे...

Saturday, October 22, 2022

कार्तिक का महीना, दिवाली का त्योहार और पर्यावरण-पारिजात

 केवल तिवारी 




दिवाली का त्योहार हम सब मना रहे हैं। इस त्योहार पर प्रदूषण को लेकर कई सवालात उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि पर्यावरण को खतरा है। खतरा है भी। धुआं फैलने और पटाखों की गंध से प्रदूषण तो बढ़ेगा ही। इस मुद्दे पर सियासत भी हो रही है, लेकिन सियासत से इतर इन दिनों हमारे घर में पारिजात फूल की खूब चर्चा हो रही है। पारिजात फूल खिलने की खुशी कई जगह साझा की। शीला दीदी ने कहा कि कार्तिक मास में इसे शिव और विष्णु पर चढ़ाने का विशेष प्रयोजन है। असल में लगभग एक साल पूर्व एक छोटा सा पौधा अपने ससुराल काठगोदाम से लेकर आया था। उम्मीद कम ही थी इसके ठीक से बढ़ पाने की। फिर भी एक नया गमला तैयार किया और पौधा रोप दिया गया। बमुश्किल 20-25 पत्तियां इस पौधे में थीं। उनमें से एक-दो पीली पड़कर नीचे गिर गयीं। मन को मनाया शायद यह पौधा गमले में नहीं होता होगा। लेकिन धीरे-धीरे उसमें रंगत आने लगी। मैंने भी समय-समय पर गुड़ाई और खाद-पानी देना जारी रखा। देखते-देखते उसमें पत्तियां बढ़ने लगीं। वह बड़ा होने लगा और लगभग 8 माह में ही वह मुझसे लंबा हो गया। इस बीच उसकी कई शाखाएं फूट गयीं। गत अगस्त माह से उसमें एक-एक शाखा में इतने सारे गुच्छे लगने शुरू हुए कि समझ में नहीं आता कि ये गुच्छे पत्तियों के हैं या कलियां खिलने वाली हैं। अक्तूबर शुरू होते-होते आश्वस्त हो गया कि ये फूल ही खिलने वाले हैं। और पता चला कि कार्तिक मास में ये फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं। एक शाम अपने ऑफ के दिन देखा कि छोटा सा बल्बनुमा कली सी लगी है। मैंने कैमरे में क्लिक कर दिया। करीब घंटेभर में ही वह कली फूल बन गयी और एक सुगंध सी बिखर गयी। सुबह वह फूल सचमुच स्वत: ही गिर गया। जैसा कि सुना था, वही हुआ। मैंने सबसे पहले काठगोदाम भावना के भाई शेखर जी और उनकी पत्नी को फोटो भेजकर खुशी जताई। फिर कई अन्य जगह भी। इसी सब पर मुझे याद आया कि कुछ दिन पहले ही पर्यावरण और हमारी संस्कृति पर बात हो रही थी। सचमुच पर्यावरण प्रेम और पेड़-पौधों को बचाने की परंपरा तो हमारे यहां सदियों से है। तुलसी, नीम, गेंदा, पीपल, बड़, बरगद और ऐसे ही अनगिनत पेड़-पौधों को बचाने की कवायद और धार्मिक मान्यताएं हमारे यहां प्राचीन काल से है। पारिजात का यह पौधा एक गमले में ही सही, पेड़नुमा बना है और रोज ढेर सारे फूल आंगन में दिखते हैं। साथ में ही गुड़हल भी है। सचमुच कुदरत ने हमें क्या-क्या अनमोल तोहफे दिए हैं। पारिजात के बारे में कई कहानियां भी प्रचलित हैं। कोई कहता है कि समुद्र मंथन के दौरान यह निकला था और किसी की मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने इसे दिया था। जो भी हो, प्रकृति प्रेम हम सबमें होना चाहिए। चाहे वह धार्मिक मान्यताओं के आधार पर हो या फिर अपने पर्यावरण को बचाने के नाम पर। तो चलिए हम भी पर्यावरण प्रेम की ओर बढ़ें। जमीन है तो खूब पेड़-पौधे लगाएं। नहीं है तो गमले में ही बसंत को ले आएं। दिवाली और उसके बाद आने वाले सभी त्योहारों की शुभकामनाएं।  

Tuesday, October 4, 2022

सुखमें सुमिरन... दुख में सुमिरन

केवल तिवारी 

दुख में सुमिरन सब करेसुखमें करे  कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुख काहे को होय। 

कबीरदासजी के इस दोहे को पिछले दिनों नये रूप में महसूस किया।नया रूप क्याकह सकते हैं बदले रूप में उस बदले रूप को लेकर बहसें हो सकती हैं। असल में इस माह की शुरुआत में उत्तराखंड प्रेमा दीदी के पास गयाथा।गत मार्च मेंजीजाजी के निधन केबाद मन में थाकि दो माह में एक बार तो हो हीआऊंगा। हालांकि मेरे जाने से दुख कम नहीं हो जाएगालेकिन सालभर तक का जो भयानक कालखंड होता हैशायद उसमें दो घड़ी मैं दुखों को साझा कर सकूंऐसा मेरा मानना है। हालांकि जीजाजी की स्मृतियां तो हर पल मन में हैंदिल में हैं। दुखों को साझा करनेके ही क्रम में दीदी के साथ बातचीत कर ही रहा था कि दीदी बोली, 'मेरा मन तो पूजा-पाठ में अब बिल्कुल नहीं लग रहा।क्यों कहते हैं कि दुख में सुमिरन सब करे। पूजा-पाठ में तो तभी मन लगता था जब तेरे जीजाजी थे। घर में सब अच्छा चल रहा होता है तो खूब पूजा-पाठ में मन लगता है। दुख में तो सुमिरन हो ही नहीं रहा। मैंने इस बात पर सहमति जताई कि हांदुख जब  जाता हैतो कई बार मन विचलित हो जाता है।पूजा-पाठ या यूं कहेंकि रुटीन के कर्मकांडों में मन कम लगता है।



लेकिन सुमिरन का जो कांसेप्टहैउसकी विशाल व्याख्या हो सकतीलेकिन यहां मैंने दीदी के हां में हां मिलाई और एक दार्शनिक अंदाज में दिल ही दिल में रोते हुए कहा कि 'नियति को यही मंजूर।कबीरदास जी की उक्तियां तो अनेकार्थी हैं। एक-एक वाक्य की बड़ी-बड़ी व्याख्या हो सकती हैलेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में दीदी की हां में हां मिलाना ही ठीक लगा। असल में सुमिरन का यह मामला तो उसी तरह है जैसे हमारे सामने कोई तात्कालिक परेशानी आ गयी, हम मन ही मन प्रभु से प्रार्थना करने लगे कि हे ईश्वर दुख दूर करना, जब परिस्थितियां सामान्य हो गयीं तो हम ईश्वर को भूल गये। या सुमिरन करने की औपचारिकता सी निभाने लग गये। असल में यहां सुमिरन करने या नहीं करने की कोई बात नहीं। यहां भाव की बात है। घर में माहौल अच्छा हो तो साफ-सफाई, पूजा-पाठ, मेहमाननवाजी आदि सब में मन लगता है, लेकिन जब माहौल अच्छा नहीं हो तो मन उखड़ा उखड़ा सा लगता है। यही उखड़ा हुआ मन इन दिनों चोरगलिया दीदी के यहां है। जाहिर है सबसे ज्यादा व्यथित दीदी है। दीदी ऐसी दार्शनिक बातें कभी करती नही थी, जैसा इन दिनों कर रही है। लेकिन यह सब भी नियति है और सब समय का फेर है। देसी अंदाज में हमारी माताजी (ईजा) कहती थी, ‘मन करे गुड़मुड़ गाड़मुड़, करम करे निखाणी’ अर्थात मन में हम बहुत मनसूबे बनाते हैं प्लानिंग करते हं, लेकिन कर्म फल तो कुछ और ही लिखे होते हैं। खैर… ईजा की भी याद ही याद हैं और जीजाजी की भी। 

मित्र जैनेंद्र संग चर्चा और अंकल जीकी याद 

इसी दौरान मित्र जैनेंद्र सोलंकी जी के पिताजी के निधन की दुखद सूचना आई। जैनेंद्र जिन्हें हम जैनीबाबू कहते हैं, से करीब 22 साल पुराना नाता है। अंडरस्टैंडिंग है। अंकल जी से भी यदा-कदा मुलाकातें हो जाया करती थीं। जैनीबाबू की शादी में उन्होंने पूछा था, ‘बेटा कैसा इंतजाम है?’ मैंने कहा, ‘अंकल जी शानदार।’ उन्होंने तपाक से कहा, ‘यही सुनना चाहता था।’ वह अक्सर कुछ शारीरिक दिक्कतों का भी जिक्र करते और फिर खुद ही कह देते उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऐसी समस्याएं आती रहती हैं। आंटी से अपनापन बहुत मिलता रहता है। इस बीच, जैनीबाबू से बातें हुईं। जो बात उन्होंने कही वाकई वह बहुत गंभीर और हकीकत के करीब थी। जैसे कि अक्सर कुछ बताने को मन होगा तो उनकी याद आएगी। खासतौर पर कोई पॉजिटिव बात। सचमुच ऐसाही होता है। हमारी ईजा को इस दुनिया से गए 13 साल हो गए हैं। आज भी जब कोई खुशी की बात होती है तो मन करता है कि तुरंत ईजा को फोन लगाऊं, लेकिन फिर याद आता है ओह वह तो हैं ही नहीं। फिर पहले उनकी तस्वीर देखता हूं फिर आसमान में और अपनी बात कह देता हूं। क्योंकि मुझे लगता है वह है इसी ब्रह्मांड में है। ऐसे ही जैनीबाबू ने कहा कि अचानक उनकी यादें आया करेंगी। साथ ही हम दोनों ने एक-दूसरे से कहा कि जीवन की असली सच्चाई मौत ही है, बस असमय कुछ नहीं होना चाहिए। बाकी तो सब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है।  

दुख के मौके पर भी सामान्य परिस्थिति बनाने में बच्चों का अनमोल योगदान 




बच्चे सचमुच उत्सव सरीखे होते हैं। इनमें से भी लड़कियों का योगदान ज्यादा है। भावुकता का मामला हो या फिर घर में माहौल को अच्छा रखने का, सचमुच लड़कियों का योगदान कुछ अधिक होता है। वह परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाती हैं। जब दीदी के यहां पहुंचा तो था वहां भानजी रेनु अपनी बिटिया काव्या के साथ पहुंची थी। साथ ही भानजा मनोज था। मनोज की दोनों बिटिया जीवा और तनिष्का भी। तनिष्का के तो बोल अभी फूट ही रहे हैं, लेकिन वह इस बात को नहीं समझ पा रही है कि दादाजी आखिर गए कहां। बार-बार फोटो को देखती है और तेज इतनी है कि दादाजी के पसंद का गाना ढूंढ़ने को कहो तो यूट्यूब से खोल देती है। जीवा थोड़ी समझदार हो गयी है। उसने जब दादी यानी मेरी दीदी के गले लगकर यह कहा कि दादी हम हैं न आपके साथ, आप रोया मत करो। दादाजी तो स्टार बन गये हैं, मैं बहुत भावुक हो गया। उनकी कई और बातें भी दीदी ने बताईं जो बेहद भावु हैं। बात करें काव्या की तो पहले वह नाराज हो गयी कि जो चॉकलेट मैं ले गया था, वह उसे खाती ही नहीं। फिर दीदी की बहू दूसरी चॉकलेट लेकर आई तो फिर उसने बात शुरू की। अपने नाना को याद किया। मेरे सवालों का जवाब देते-देते उसने सवाल किया कि आप कल क्यों नहं आये। यानी वह एक दिन पहले आई थी और मेरे साथ खूब वक्त बिताना चाहती थी। फिर उसने मासूम सी बात कही कि शायद हो सकता है हमें भी जाने के लिए बस न मिले। यानी वह दिल से चाहती थी कि आज हम सब साथ रहें। इन बच्चों के मन में एक बात तो छिपी थी कि आज दादी के साथ इतने लोग हैं तो वह घड़ी-घड़ी रो नहीं रही है। इसलिए इस माहौल को बनाये रखना चाहिए। लेकिन ऐसा कहां होता है। दो घंटे बाद काव्या और रेनू चले गए और अगले दिन मैं भी चला आया। लेकिन थोड़े से वक्त में बच्चियों ने माहौल अच्छा बना दिया। आप भी देखिए ये एक-दो वीडियो।  

Monday, August 29, 2022

Twin टावर ध्वस्त ... एक संदेश एक सबक... जीवन दर्शन

केवल तिवारी

नोएडा स्थित बहु चर्चित ट्विन टावर को रविवार की दोपहर ध्वस्त कर दिया गया। कई वर्षों में तैयार करोड़ों के ट्विन टावर को ध्वस्त होने तें महज 10 सेकेंड का समय लगा। दो गगनचुंबी इमारतों के इस तरह से ध्वस्त होने के पीछे एक संदेश है, एक सबक है और जीवन दर्शन भी है। संदेश यही है कि भ्रष्टाचार की सुप्रीम सुनवाई अब भी है, इसलिए व्यवस्था से बहुत निराश होने की जरूरत नहीं है। 
इसी मलबे के ढेर पर खड़े थे टावर


लड़ाई थोड़ी लंबी हो सकती है, लेकिन परिणाम सामने आता ही है। ये इमारतें महज इसलिए नहीं गिराई गयीं कि ये खतरनाक थीं और इसमें रहना जोखिमभरा हो सकता है, बल्कि इसलिए भी गिराई गयीं कि दंभ किसी का नहीं चलेगा। तमाम नियम-कानूनों को ताक पर रखकर जिस तरह से बिल्डर ने यह समझ लिया था कि वह पैसों के बल पर सबकुछ खरीद सकता है, वह ऐसा कर नहीं पाया। सबक यही है कि देशभर में करोड़ों बिल्डर सिर्फ कमाई की ही न सोचें, उस भावना के बारे में भी संजीदगी से विचार करें जो उस व्यक्ति के मन में उमड़ती है जो सपनों का घर या आशियाना बनाने में अपने जीवनभर की कमाई को लगा देता है। इस टावर में भी लोगों ने बड़े अरमानों से पैसे लगाए होंगे, बेशक इसमें अनेक लोग ऐसे होंगे जिन्होंने सिर्फ इनवेस्टमेंट के उद्देश्य से पैसा लगाया होगा, लेकिन ज्यादातर के लिए सपनों का घर बन रहा होगा। दीगर है कि शीर्ष कोर्ट के आदेश के अनुसार उन्हें ब्याज समेत पैसा लौटाया जाएगा।
जीवन दर्शन इस अर्थ में है कि घर, परिवार, दोस्ती यारी सबके बनने में बहुत लंबा समय लगता है, लेकिन अगर उसे खत्म करने की बात हो तो कुछ ही पलों में यह खत्म हो जाता है। यह समाप्ति गलत फहमियों के कारण हो सकती है, विचारों और अहंकार के टकराव से हो सकती है। यदि ट्विन टावर की तरह ध्वस्त ही करना हो संबंधों को तब तो बिल्डर की तरह अड़ियल ही बने रहना ठीक, नहीं तो उदारता के साथ इतनी मजबूत इमारत बनाने की कोशिश करनी चाहिए कि परिस्थितिजन्य कोई भी डायनामाइट इसे उड़ा ही न सके। वैसे पार्ट ऑफ लाइफ यही है कि हवा के झोंकों के मानींद जीवन चलता रहता है।
सभी जानते हैं कि रविवार 28 अगस्त को नोएडा के सेक्टर 93ए में सुपरटेक के ट्विन टावर को उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद धराशायी कर दिया गया। दिल्ली के ऐतिहासिक कुतुब मीनार (73 मीटर) से भी ऊंचे गगनचुंबी ट्विन टावर को खास तकनीक से गिराया गया। ट्विन टावर भारत में अब तक ध्वस्त किए गए सबसे ऊंचे ढांचे थे। राष्ट्रीय राजधानी से लगे नोएडा के सेक्टर 93ए में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट हाउसिंग सोसाइटी के भीतर 2009 से 'एपेक्स' (32 मंजिल) और 'सियान' (29 मंजिल) टावर निर्माणाधीन थे। इमारतों को ध्वस्त करने के लिए 3,700 किलोग्राम से अधिक विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया। ट्विन टावर में 40 मंजिलें और 21 दुकानों समेत 915 आवासीय अपार्टमेंट प्रस्तावित थे। यानी हजारों घर बसने थे और कई दुकानें भी। इन ढांचों को ध्वस्त किये जाने से पहले इनके पास स्थित दो सोसाइटी एमराल्ड कोर्ट और एटीएस विलेज के करीब 5,000 लोगों को वहां से हटा दिया गया। इसके अलावा, करीब 3,000 वाहनों तथा बिल्ली और कुत्तों समेत 150-200 पालतू जानवरों को भी हटाया गया। अनुमान के मुताबिक, ट्विन टावर को गिराने के बाद इससे उत्पन्न हुए 55 से 80 हजार टन मलबा हटाने में करीब तीन महीने का समय लगेगा। यहां भी एक संदेश है कि संबंधों को झटके से तोड़ा तो जा सकता है, लेकिन उसके बाद उपजी कड़वाहट को खत्म करने में कभी-कभी पूरा जीवन भी लग सकता है। इसलिए जीवन छोटा है, अपने हिस्से की उस जिम्मेदारी को पूरा कर लीजिए जिससे दूसरों को दुख न पहुंचे। हां आनंद ही नकारात्मकता मेें आता है तो कोई कुछ नहीं कर सकता।

Tuesday, August 23, 2022

लिखे हुए को पढ़ना, कहे हुए को सुनना जरूरी

 केवल तिवारी

बात शुरू करने से पहले एक किस्सा सुनाता हूं। करीब 20 साल पहले की बात है। फीचर में लिखने के लिए अनेक लोग अखबारों के दफ्तरों में चक्कर लगाते थे। ऐसे ही किसी लेखक का जिक्र करते हुए एक वरिष्ठ पत्रकार ने पूछा कि आप किस तरह के लेख लिखते हैं। उन सज्जन ने अपनी लेखकीय विशेषज्ञता का बखान कर दिया। बाद में फीचर प्रभारी महोदय ने उनसे ताकीद की कि आप कुछ दिन लिखने के बजाय पढ़ना शुरू कीजिए। लगता है आप लिखते तो बहुत हैं, लेकिन पढ़ते कम हैं। उन दिनों मैं भी बहुत लिखता था। कुछ-कुछ पढ़ता भी था। खैर इस प्रकरण के बाद जब-जब लिखने का मौका आया, इस किस्से को याद करता हूं। अब दैनिक ट्रिब्यून में पिछले नौ सालों से ब्लॉग चर्चा कॉलम के लिए मैटर जुटाता हूं। जाहिर है कुछ पढ़ने का मौका मिलता ही है, इसके अलावा समीक्षार्थ अनेक पुस्तकें मिलती हैं, उन्हें निश्चित समय में पढ़ना होता है, इस तरह फढ़ना जारी है, इन सबसे इतर काम डेस्क का है, अक्सर खबरें रीराइट करनी होती हैं, तो पढ़ना ही पढ़ना।



 हां अखबार के लिए भले ही लेखन कम हो गया हो, स्वांत: सुखाय के लिए कभी डायरी तो कभी ब्लॉग लेखन जारी है, ऐसे में कल ही विचार आया कि लिखे हुए को पढ़ना जरूरी है। साथ ही कहे हुए को सुनना जरूरी है। कहे हुए को आप सुन तो नहीं सकते। हां अगर कुछ रिकॉर्डिंग की गयी हो तो सुना जा सकता है, लेकिन इस सुनने को दूसरे संदर्भ में इस अर्थ में ले सकते हैं कि आप समाज में बैठें तो सिर्फ अपनी ही बात करने के बजाय, दूसरों की सुनें। समाज में बैठो तो सुनना जरूरी है... असल में यह विचार भी मेरा मौलिक नहीं है। ब्लॉग चर्चा के लिए एक मैटर से मिला। एक आइडिया भी आया और उसपर काम करूंगा। खैर, लिखे हुए को पढ़ने की जहां तक बात है, अपनी दो तीन कहानियां पढ़ डालीं। कुछ डायरी के पन्ने पलटे। कुछ डायरियां बक्से में बंद हैं। यहां रेंडमली कुछ पन्नों का जिक्र कर रहा हूं। सुनने की तो जीन डेवलप हो चुका है। तो चलिए आज कुछ पुरानी बातें, बहुत पुरानी नहीं.... बहुत पुरानी भी शेयर करूंगा। आज कुछ पन्ने पलटते हैं कुछ वर्ष पूर्व की डायरी के-
1- रविवार 10 मई, 2015 चंडीगढ़ दोपहर 1 बजे
इस डायरी की शुरुआत में कई पन्ने ऐसे हैं जो वास्तव में डायरी होने का एहसास दिलाते हैं। मैंने उन पन्नों को इसीलिए अभी खाली छोड़ा है ताकि बीच-बीच में हिसाब किताब लिखूंगा। जैसे अभी थोड़ी देर बाद ही धन संग्रह का अपना हिसाब... खैर आज मैं ऑफिस से मिले अप्रेजल फॉर्म को भर रहा हूं। अभी कुक्कू की मदद ली, अब उसे लिखने जा रहा हूं। धवल और कुक्कू टीवी देख रहे हैं। भावना कपड़े धो रही है। यूं तो आज संडे है, मुझे 1 घंटे बाद ऑफिस जाना होता, लेकिन आज छुट्टी मिल गई है। इसलिए रिलैक्स होकर फॉर्म भर रहा हूं। फिर आज एशियन सर्कस बच्चों को दिखाने का मन है। थोड़ी देर पहले गुलाबी बाग प्रकाश का फोन आ गया था। वे लोग ज्वालाजी, माता चिंतपूर्णी आदि जगह यात्रा पर जा रहे हैं। 30 को चंडीगढ़ आएंगे।... अब फार्म भरने जा रहा हूं। ईश्वर सब ठीक रखना। गलतियां माफ करना। इस फॉर्म के जरिए, कुछ बेहतर हो यही कामना है।
2- सोमवार, 24 अगस्त 2015, तड़के 4:45 बजे
इस वक्त मुझे गहरी नींद में होना चाहिए था, लेकिन पता नहीं क्यों रात करीब 2:00 बजे से मुझे नींद नहीं आ रही है। ऐसी कोई तनाव वाली बात भी नहीं है। पिछले 2 दिनों से मेन डेस्क इंचार्ज हूं। सब सामान्य हो रहा है, लेकिन पता नहीं क्यों जब नींद नहीं आती है तो मन में कुछ तो उमड़-घुमड़ चलती ही है। कभी लखनऊ कन्नू-दीपू के बारे में सोचता हूं तो कभी दिल्ली में उत्तरांचल सोसाइटी और राजेश के कर्ज के बारे में। कभी फर्जीवाड़े की बातों में तो फिर कभी कुछ। कल मुझे मुंबई जाना है। इसका भी उमड़-घुमड़ चल रहा है। इस बार शायद 2 दिन के लिए रहना पड़ जाए। देखता हूं क्या होता है? जब नींद नहीं आ रही है तो सोचा डायरी लेखन यानी ईश्वर से संवाद कर लो। फिर एक अपनी अधूरी कहानी को भी पूरा करना है। और इसी बहाने ईश्वर से प्रार्थना भी हो जाएगी।
3- सोमवार, 19 अक्टूबर 2015, चंडीगढ़, दोपहर 1 बजे
थोड़ी देर पहले कालीबाड़ी मंदिर होकर आया हूं। भावना साथी। वापसी में घर के पास हरेश जी मिले। संक्षिप्त बात हुई। घर आकर तलवार फिल्म देखी। पहले आधी देख चुका था, फिर आधी आज देखी। वाकई फिल्म में जांच के तर्क हैं बहुत जबरदस्त। खैर कालीबाड़ी मंदिर में मैंने भगवान से प्रार्थना की कि दीपू आज कहीं इंटरव्यू देने गया है... उसका हो जाए। मां दुर्गा से अनुरोध है कि दीपू का काम हो जाए प्रसाद चढ़ाऊंगा। मैंने मंदिर परिसर से शीला दीदी को भी फोन लगाया, लेकिन उनका फोन नहीं उठा। मैंने सभी के लिए प्रार्थना की। जो रह गई उसके लिए क्षमा। डायरी लेखन कल रात के सिलसिले में भी लिखना था। पेज प्रीव्यू करने के बाद संपादक जी का मैसेज आया। उनका जवाब आया कि बात करना। इसके बाद मैंने बात की। अजय जी के बारे में बात हुई। मेरे काम को इन दिनों रिकोग्नाइज किया जा रहा है। ईश्वर सब ठीक रखना।
4- मंगलवार, 23 फरवरी 2016, दोपहर एक बजे
लखनऊ सौरभ गौरव का जनेऊ संस्कार बहुत बढ़िया ढंग से संपन्न हो गया। मैंने इस कार्यक्रम को बहुत इंजॉय किया। विपिन का साथ रहना बहुत अद्भुत था। रविवार को दिनभर तेलीबाग निवास भी बहुत अच्छा रहा। जब लौटे तो सबसे पहले तो ट्रेन लेट थी, लेट की खबर ने परेशानी में डाला। यह सोचकर कि 4 घंटे ट्रेन लेट हो गई तो क्या, पहुंच ही जाऊंगा, लेकिन अंततः मुझे कई घंटे बस अड्डे पर इंतजार करने एवं इधर-उधर हांडने के बाद गुलाबी बाग विपिन के यहां जाना पड़ा। वहां बीना ने बहुत बेहतरीन खाना बनाया था। खाना खाकर कुछ आराम किया, फिर शाम को एक बारात में चला गया, लेकिन मेरा मन कहीं भी नहीं लग रहा था। यह मेरे नौकरी के करियर में पहली दफा था जब मैं पहले से निर्धारित तारीख पर नहीं लौट पाया। अगले दिन भी न पहुंच पाया जाट आंदोलन के चलते सारी बसें बंद थी। बस अड्डे पर सहारा वाले नरेश वत्स मिल गए। हम लोग कश्मीरी गेट बस अड्डे से पहले आनंद विहार आए, वहां से गाजियाबाद। फिर वहां से शालीमार एक्सप्रेस पकड़कर मेरठ-मुजफ्फरनगर, सहारनपुर होते हुए अंबाला पहुंचा। वहां से रात 11:00 बजे घर पहुंचा। कुछ सबक भी लिया। पार्टी वगैरह में बैठना ठीक पर अकेले नहीं। मित्र दोस्त के साथ कोई रहे तो सब ठीक इसके अलावा भी बहुत कुछ। खैर इस बार पारिवारिक माहौल बहुत बढ़िया रहा। आज ऑफिस जाऊंगा।
चलिए, चलता रहेगा ये सफर और पुरानी डायरी के कुछ पन्नों को फिर पलटेंगे।

Friday, August 19, 2022

बात से निकली सार्थक बात, जब अनिरुद्ध जी का मिला साथ

 केवल तिवारी 

कुछ दिन पूर्व ऑफिस की कैंटीन में चर्चा के दौरान पंडित अनिरुद्ध से सार्थक बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि मुझे कई बार यह लगता है कि आप इस बात का ध्यान ज्यादा रखते हैं कि आपके हावभाव पर दूसरे लोग गौर करते हैं और शायद इसीलिए आप चलने, फिरने और बैठने के अंदाज के प्रति सतर्क रहते हैं। यही नहीं बोलने में भी बहुत संतुलित होकर बोलते हैं। इसी के साथ उन्होंने जोड़ा कि आप अति एनर्जिक रहते हैं। एनर्जिक यानी ऊर्जावान बने रहना बहुत अच्छा है, लेकिन अति एनर्जिक अच्छा नहीं। इसी तरह चिंतन-मनन अच्छा है, लेकिन अति ठीक नहीं। 

पंडित अनिरुद्ध शर्मा 


उन्होंने यह टिप्पणी मेरे कमजोर होते शरीर को देखते हुए कही। मैं भी मानता हूं कि पिछले कुछ समय से मेरा वजन कम हुआ है। उसका पहला कारण तो यही है कि मैं बहुत ज्यादा सोचता हूं। पहली सोच पारिवारिक मसले पर होती है और दूसरी सोच कामकाजी मसले पर। दूसरा कारण है शुगर कंट्रोल रखने की जुगत। इसके तहत प्रतिदिन जहां करीब चार किलोमीटर की सैर है, वहीं मीठे से एकदम परहेज। खैर पंडितजी की कुछ बातों से मैं इत्तेफाक रखता हूं और मानता हूं कि शायद मेरे शरीर पर 'अति' का असर है। शादी-ब्याह में हंसी-ठिठोली का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मन की किया करें। यानी कभी जोर-जोर से हंसना है, कभी गुनगुनाना है और बिना परवाह किए कभी चुटकुले सुनना और सुनाना है। मैं इन सारी बातों से इत्तेफाक रखता हूं, लेकिन ऑफिस परिवेश में कुछ तो डेकोरम होता है। जहां तक एनर्जिक रहने की बात है, मेरी इच्छा है कि हर व्यक्ति ऐसा रहे। कोई लुंज-पुंज जैसा न हो। काम दिया और पहला शब्द हां होना चाहिए, शिकायतें बाद में। वैसे पंडित जी के साथ कई बातें होती हैं। पूजा-पाठ में भी उनके साथ कई बार भागीदारी रही है। परोपकार और निस्वार्थ यथासंभव सेवा के प्रति उनके भाव अनुकरणीय हैं। यह इत्तेफाक है कि जिस दिन उन्होंने ये बातें बताईं, उससे कुछ दिन पूर्व ही एक डॉक्टर से काउंसलिंग के बाद मैंने 'मस्त' रहने का फैसला किया था। असल में कई बातें होती हैं, जिन्हें जानते सब हैं, लेकिन व्यवहार में कई कारणों एवं किंतु-परंतुओं के चलते पालन नहीं कर पाते।

मैं अपने सोच के स्तर की कुछ कमियां गिना दूं। पहला, परिवार में अगर कोई ठीक से बात नहीं करता तो मैं घंटों, महीनों मंथन करने लगता हूं। कोई व्यक्ति अगर कहीं अपनी कार पार्क करता हो और किसी दिन वहां कोई और व्यक्ति कार पार्क कर दे तो मैं तनाव में आ जाता हूं, जबकि मेरा दोनों में से किसी से कोई खास लगाव या ताल्लुकात नहीं। ऑफिस का काम हो या किसी पारिवारिक समारोह का, सारा काम खुद पर उड़ेल लेता हूं, जाहिर है इससे दिक्कतें ही बढ़नी हैं और बढ़ती हैं। कभी हंसी-मजाक कर लूंगा तो फिर सोचने लगता हूं कि कहीं इस मजाक का नकारात्मक असर तो नहीं। कई बार सोचता हूं कोई ऐसा काम ही न करूं जिस पर पछतावा हो, फिर मानवीय स्वभाववश करता भी हूं तो फिर महीनों तक सोचता रहता हूं। कोई मेरी नमस्ते पर अच्छा रेस्पांस न दे तो उस पर भी सोचने लगता हूं। फिर अपनी तरफ से कोशिश करता हूं कि मैं तो ठीक बना रहूं। ऐसे ही बेवजह की बातें हैं। वैसे अब मैंने खुद को बहुत बदला है और उस बदलाव का असर भी मुझे महसूस हो रहा है। खैर...

यह भी इत्तेफाक है कि इसी चर्चा के दौरान मुझे पुस्तक 'बड़ा सोचें, बड़ा करें' पढ़ने को मिली थी। समीक्षार्थ। उसमें भी कुछ बातें बड़ी गजब की हैं। कुछ-कुछ पंडित अनिरुद्ध जी से बातचीत से मिलती जुलती हैं। उसकी कुछ बातें यहां लिख रहा हूं। उसमें एक महत्वपूर्ण संदेश है, 'अहं एक बुलबुला है। इसे फोड़कर सच्चाई जानने के बजाय हम अपनी ज्यादातर ऊर्जा इसकी रक्षा करने में लगा देते हैं।' मैं चाहता हूं कि इस बात को हर कोई समझे। साथ ही यह भी सोचता रहता हूं कि कई बार कुछ लोग क्यों मुझसे द्वेष रखने लगते हैं। फिर इसे भी पार्ट ऑफ लाइफ मानकर खुद को शांत करता हूं। इसी पुस्तक में एक जगह लिखा गया है, 'आदतें हमें उर्वर बनाती हैं, लक्ष्य हमें बंजर बनाते हैं।' लेखक कहता है लक्ष्य छोड़ो आदत बनाओ। आदत पढ़ने की, आदत जानकारी जुटाने की। एक जगह लेखक ने लिखा है, 'शिकायत करने से कभी किसी की समस्या नहीं सुलझती है।' यह बात मुझे अच्छी लगती है और आज तक किसी की शिकायत नहीं की। बल्कि कई बार दूसरों की गलती को अपने माथे पर मढ़ा है।

बातों-बातों से बातें निकलती हैं, ऐसी ही यह बात भी थी। कुछ समझने और कुछ सीखने का अवसर मिल जाए और वह सार्थक हो तो क्या बात। यही दुआ है कि ये बातें होती रहें।

गुरुजी की वह बात याद है, जब उन्होंने कहा था वाह वाह मेरा मन

यहां बता दूं कि एक बार अनिरुद्ध के सौजन्य से ही डीएवी कॉलेज के कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। वहां गुरुदेव ब्रह्मर्षि गुरुवानंद जी मुख्य अतिथि थे। उन्होंने बच्चों से दोनों हाथ फैलाकर खुलकर बोलने के लिए कहा, वाह वाह मेरा मन। एक दो बार की कोशिश के बाद सबको ऐसा करने में आनंद आया। उन्होंने कहा कि अपने मन से बढ़कर कुछ नहीं। मन की सुनिए। मन की कीजिए और अपने नजरों से कभी मत गिरिए। इसी दौरान उन्होंने कहा कि संकल्प लें तो उस पथ पर पूरी निष्ठा से चलें क्योंकि संकल्प में विकल्प नहीं होता। यहां मैंने महसूस किया है कि मैंने कई बार संकल्पों में विकल्प ढूंढ़ा है। उस कार्यक्रम के बाद खुद को कई बार अलर्ट किया है और गुरुजी को याद किया है। वाकई उनके स्मरण से कई सकारात्मक चीजें हुई हैं।

Saturday, August 6, 2022

रक्षाबंधन और मुहूर्त : वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल ने दूर की भ्रम की स्थिति

राहुल देव 
 सावन का महीना कई अर्थों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक तो इस महीने विवाहिताएं अपने पीहर जाती हैं और सखियों संग झूला झूलती हैं। अठखेलियां करती हैं। इसके अलावा भी सावन के पवित्र महीने में शिव शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। इस सबके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं,आध्यात्मिकता भी है और धार्मिक भावनाएं भी हैं। सावन के महीने का समापन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते वाला रक्षाबंधन पर्व के साथ होता ह। रक्षाबंधन का पर्व समय-समय पर कई चीजों की यादों को समेटे हुए हैं। इसमें कुछ कुछ परिवर्तन भी होता रहा है। भाई बहन के अलावा रक्षा सूत्र ब्राह्मण द्वारा बांधा जाना या अपने प्रकृति के प्रति रक्षा की भावना रखना, पर्यावरण को स्वच्छ रखना ऐसे ही अनेक कारण इस पवित्र त्यौहार के पीछे हैं। इसके अलावा भी सावन के महीने में खानपान का एक अलग अंदाज रहता है। मीठा ज्यादा खाया जाता है...
आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल

खैर इन सब बातों से इतर हम आते हैं रक्षाबंधन पर। जैसा कि कई बार होता है त्यौहार की असली तिथि यानी तारीख को लेकर कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है। रक्षा बंधन के संबंध में उत्पन्न भ्रमपूर्ण स्थिति को दूर करते हुए वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल का कहना है कि रक्षा बंधन सदैव श्रावण मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है और पूर्णिमा उस दिन 18 से 24 घड़ी या अपराह्न व्यापनी होनी चाहिए, जोकि इस वर्ष 11 अगस्त को 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर 12 अगस्त को प्रातः 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। किंतु पूर्णिमा तिथि शुरू लगते ही भद्रा शुरू होगी जो रात्रि 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, भद्रा के साए में राखी बांधना कष्टदायक हो सकता है। अति आवश्यक होने पर 11 अगस्त को भद्रा पूंछ या दुम के समय 5:18 से 6:18 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है अन्यथा 11अगस्त को 8:54 रात्रि से 9:50 रात्रि तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद 12 अगस्त को सूर्य उदय समय से 7:05 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है। वेदमाता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के व्यवस्थापक एडवोकेट राहुल देव मुदगल ने बताया कि रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा पर वेदमाता गायत्री की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। उन्होंने बताया इसके अलावा भी शक्तिपीठ में विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए पूजा अर्चना के साथ साथ संस्कार संबंधी सुविचारों के आयोजन होते हैं।

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Tuesday, July 26, 2022

चलते रहो तरक्की पथ पर, स्वस्थ रहो और मस्त रहो

प्रिय बेटे कुक्कू (कार्तिक) खूब खुश रहो, खूब तरक्की करो। देखते-देखते बीटेक के दो सेमेस्टर (करीब 9 महीने में एक साल) पूरे हुए। जगह-जगह आईआईटी में चल रही तुम्हारी पढ़ाई के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया सुनता हूं तो अपार खुशी से भर जाता हूं। कहीं खुद ही बढ़-चढ़कर बताता हूं कि बेटा बीटेक कर रहा है आईआईटी से। तुम्हें पिछले साल पत्र लिखा था, जब आईआईटी रोपड़ में जाना लगभग तय हो चुका था, लेकिन महामारी के विकराल रूप ने कुछ और ही कर दिया। तुम्हें याद होगा कि पिछले पत्र में एक कविता लिखी थी, वह पूरा पत्र और कविता मेरे ब्लॉग में भी है और शायद तुम्हारी डायरी में भी। अब तो वह डायरी पुरानी हो गयी है। अनुभव, समय के हिसाब से चीजें बदलती हैं, इसलिए तुम भी जब उस डायरी को पढ़ोगे तो कई सारे कैरिकेचर और मैटर पर तुम्हें भी हंसी आएगी। यही होता है, समय के साथ-साथ चीजें बदलती हैं। बस उम्मीदें, जज्बा और जोश को बनाए रखना चाहिए। सपनों को नहीं मरने देना चाहिए। और सबसे बड़ी बात कि अपनी ही नजरों में आदमी को ऊंचा बना रहना चाहिए। हर बर्थडे पर मन करता है कि कुछ बड़ा गिफ्ट दूं, लेकिन हर बर्थडे के आसपास कुछ ऐसा हो जाता है कि बस सोच ही बड़ी रह जाती है। इस बार भी तुमसे पूछा तो था कि क्या दें, लेकिन तुमने भी सारी स्थितियों को समझते हुए कह दिया, सब तो ठीक है। सब ठीक ही, वाकई। सबसे ठीक तो यह है कि घर में हंसी-खुशी का माहौल है। कुछ पारिवारिक मसलों पर मैं जरूर चिंतित रहा हूं, रहता था, शरीर कमजोर हुआ, फिर कई लोगों ने काउंसलिंग की और समझ में आया कि ज्यादा विचार मंथन नहीं करना चाहिए। चूंकि अब तक तुम्हें इन बातों से अंजान रखा था, लेकिन अब तुम कुछ-कुछ समझने लगे हो। बेशक समझो, या कभी हमसे कोई नेगेटिविटी सुनो तो उस पर करेक्शन करना और हमेशा अपनी तरफ से पॉजिटिव बने रहना। परिवार पहले। परिवार के बाद समाज। इसलिए नकारात्मकता को खत्म करना ही ठीक रहता है। जैसा कि तुम्हारा हमेशा फोकस पढ़ाई पर ही रहा है, वह जारी रहेगा ही साथ ही कॉलेज लाइफ को भी एंजॉय करो। अच्छाई-बुराई की समझ रखते हुए आगे बढ़ो। हमेशा मेरी लेखन शैली यानी स्टाइल ऑफ राइटिंग उपदेशात्मक ही रहती है, लेकिन उपदेश के अलावा फिलहाल कुछ ज्यादा दे भी नहीं सकता। जन्मदिन की बहुत-बहुत मुबारक। एक और कविता लिखने की कोशिश की है, पढ़ो कैसी लगती है। सफर पर हम चलते रहें, यूं ही डगर भरते रहें, जीवन के हर मोड़ पर नयी इबारत लिखते रहें। बदलाव को स्वीकार कर, कदम बढ़ते रहें, मंजिलों पर नजर रख, सीढ़ियां चढ़ते रहें। हैं दुआएं यही कुक्कू कि खुशहाली रहे बरकरार, जहां चल पड़ो तुम, तरक्की के खुल जाएं द्वार। अपनेपन की बगिया में समा जाये हमारा संसार, पढ़ाई, लिखाई, हंसी-ठिठोली और हो पूरा प्यार। आएंगे उतार-चढ़ाव, ये तो जिंदगी का दस्तूर, हर पल की अहमियत है, चलते ही रहना बदस्तूर। गिफ्ट के इस दौर में प्यार से बढ़कर कुछ नहीं, जब जुटेंगे सब लोग चल पड़ेंगे दूर कहीं। अपनेपन को बनाये रखना, भावनाओं को समझते रहना, मुबारक हो 20वां साल, मजबूती से चलते रहना। हजारों दुवाओं के साथ तुम्हारा पापा (साथ में मम्मी और भैया की बधाई)

Monday, July 25, 2022

आंगन की हरियाली, सीधे न करें जुगाली... पत्तों को सेवन से पहले धोएं जरूर

केवल तिवारी आपके आंगन में भी छोटी-मोटी बगिया होगी। गमले तो कम से कम होंगे ही। इन दिनों तो किचन गार्डन का भी शौक नये रूप में उभर रहा है। ऐसा ही शौक मेरा भी है। फूल के पौधों के अलावा कुछ रोजमर्रा के काम आने वाले भी पौधे लगाए हैं जैसे तुलसी, पुदीना, सदाबहार, आजवाइन वगैरह-वगैरह। आप लोग भी लगाते ही होंगे? यह पूछने का मेरा मकसद यह नहीं कि मैं कोई बागवानी टिप्स आपके लिए लेकर आया हूं, बल्कि सिर्फ यह ताकीद करना है कि गमले से सीधे तोड़कर पत्ते को चबाने से जरा परहेज करें।
यूं तो बरसात के मौसम में हरी पत्तियों या हरी सब्जी से बचने की सलाह दी जाती है, साथ ही यदि इनका इस्तेमाल करना ही हो तो अच्छी तरह से साफ करके खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन यहां पर मैं आपको कोई आयर्वेद का ज्ञान भी आप अपना रुटीन अपने हिसाब से रखें, बस ध्यान रखें कि इस मुगालते में न रहें कि गमले तो आपके आंगन में हैं, आप उसमें नियमित खाद-पानी करते हैं, शुद्ध हैं इसलिए जब चाहें सीधे पत्ते तोड़े और सेवन कर लिया। जैसे कभी तुलसी का पत्ता चबा लिया, कभी सदा बहार का पत्ता लगे खाने। लेकिन ध्यान रखिएगा इन पत्तों को सीधे खाना नुकसानदायक हो सकता है। असल में पिछले दिनों शाम के वक्त मैं आंगन में बैठा था, वहां पुदीने के गमले के पास एक छिपकली दीवार पर लगी किसी चीज को चाट रही थी। यह क्रम लंबे समय तक चलता रहा (देखें वीडियो) इसके कुछ समय बाद ही मैंने देखा कि छिपकली पत्तों के बीच में भी बैठी है हालांकि वह तुरंत भाग गयी इसलिए फोटो या वीडियो नहीं बन पाया। इसी तरह कभी मक्खी, कभी मच्छर इन पत्तों पर बैठे दिखने लगे। पौधा चाहे इनडोर हो या आउटडोर, ऐसे खतरे बने रहते हैं। मैंने यह बात एक-दो मित्रों को बताई तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘अरे हम तो सीधे तोड़कर कई बार पत्ता मुंह में डाल लेते हैं।’ अब वो भी इस बात को मान रहे हैं कि सफाई तो जरूरी है। तो जब भी अपने ही गमलों की या किचन गार्डन की कोई पत्ती तोड़ रहे हों तो उसे सेवन से पहले धो लें। एक सज्जन तो कहने लगे कि मैं तो कभी-कभी कोई सूखी सी लकड़ी तोड़कर दांत में डाल लेता था, यह भी खतरनाक है। चलिए आज की बात बस इतनी...।