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Monday, August 29, 2022

Twin टावर ध्वस्त ... एक संदेश एक सबक... जीवन दर्शन

केवल तिवारी

नोएडा स्थित बहु चर्चित ट्विन टावर को रविवार की दोपहर ध्वस्त कर दिया गया। कई वर्षों में तैयार करोड़ों के ट्विन टावर को ध्वस्त होने तें महज 10 सेकेंड का समय लगा। दो गगनचुंबी इमारतों के इस तरह से ध्वस्त होने के पीछे एक संदेश है, एक सबक है और जीवन दर्शन भी है। संदेश यही है कि भ्रष्टाचार की सुप्रीम सुनवाई अब भी है, इसलिए व्यवस्था से बहुत निराश होने की जरूरत नहीं है। 
इसी मलबे के ढेर पर खड़े थे टावर


लड़ाई थोड़ी लंबी हो सकती है, लेकिन परिणाम सामने आता ही है। ये इमारतें महज इसलिए नहीं गिराई गयीं कि ये खतरनाक थीं और इसमें रहना जोखिमभरा हो सकता है, बल्कि इसलिए भी गिराई गयीं कि दंभ किसी का नहीं चलेगा। तमाम नियम-कानूनों को ताक पर रखकर जिस तरह से बिल्डर ने यह समझ लिया था कि वह पैसों के बल पर सबकुछ खरीद सकता है, वह ऐसा कर नहीं पाया। सबक यही है कि देशभर में करोड़ों बिल्डर सिर्फ कमाई की ही न सोचें, उस भावना के बारे में भी संजीदगी से विचार करें जो उस व्यक्ति के मन में उमड़ती है जो सपनों का घर या आशियाना बनाने में अपने जीवनभर की कमाई को लगा देता है। इस टावर में भी लोगों ने बड़े अरमानों से पैसे लगाए होंगे, बेशक इसमें अनेक लोग ऐसे होंगे जिन्होंने सिर्फ इनवेस्टमेंट के उद्देश्य से पैसा लगाया होगा, लेकिन ज्यादातर के लिए सपनों का घर बन रहा होगा। दीगर है कि शीर्ष कोर्ट के आदेश के अनुसार उन्हें ब्याज समेत पैसा लौटाया जाएगा।
जीवन दर्शन इस अर्थ में है कि घर, परिवार, दोस्ती यारी सबके बनने में बहुत लंबा समय लगता है, लेकिन अगर उसे खत्म करने की बात हो तो कुछ ही पलों में यह खत्म हो जाता है। यह समाप्ति गलत फहमियों के कारण हो सकती है, विचारों और अहंकार के टकराव से हो सकती है। यदि ट्विन टावर की तरह ध्वस्त ही करना हो संबंधों को तब तो बिल्डर की तरह अड़ियल ही बने रहना ठीक, नहीं तो उदारता के साथ इतनी मजबूत इमारत बनाने की कोशिश करनी चाहिए कि परिस्थितिजन्य कोई भी डायनामाइट इसे उड़ा ही न सके। वैसे पार्ट ऑफ लाइफ यही है कि हवा के झोंकों के मानींद जीवन चलता रहता है।
सभी जानते हैं कि रविवार 28 अगस्त को नोएडा के सेक्टर 93ए में सुपरटेक के ट्विन टावर को उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद धराशायी कर दिया गया। दिल्ली के ऐतिहासिक कुतुब मीनार (73 मीटर) से भी ऊंचे गगनचुंबी ट्विन टावर को खास तकनीक से गिराया गया। ट्विन टावर भारत में अब तक ध्वस्त किए गए सबसे ऊंचे ढांचे थे। राष्ट्रीय राजधानी से लगे नोएडा के सेक्टर 93ए में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट हाउसिंग सोसाइटी के भीतर 2009 से 'एपेक्स' (32 मंजिल) और 'सियान' (29 मंजिल) टावर निर्माणाधीन थे। इमारतों को ध्वस्त करने के लिए 3,700 किलोग्राम से अधिक विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया। ट्विन टावर में 40 मंजिलें और 21 दुकानों समेत 915 आवासीय अपार्टमेंट प्रस्तावित थे। यानी हजारों घर बसने थे और कई दुकानें भी। इन ढांचों को ध्वस्त किये जाने से पहले इनके पास स्थित दो सोसाइटी एमराल्ड कोर्ट और एटीएस विलेज के करीब 5,000 लोगों को वहां से हटा दिया गया। इसके अलावा, करीब 3,000 वाहनों तथा बिल्ली और कुत्तों समेत 150-200 पालतू जानवरों को भी हटाया गया। अनुमान के मुताबिक, ट्विन टावर को गिराने के बाद इससे उत्पन्न हुए 55 से 80 हजार टन मलबा हटाने में करीब तीन महीने का समय लगेगा। यहां भी एक संदेश है कि संबंधों को झटके से तोड़ा तो जा सकता है, लेकिन उसके बाद उपजी कड़वाहट को खत्म करने में कभी-कभी पूरा जीवन भी लग सकता है। इसलिए जीवन छोटा है, अपने हिस्से की उस जिम्मेदारी को पूरा कर लीजिए जिससे दूसरों को दुख न पहुंचे। हां आनंद ही नकारात्मकता मेें आता है तो कोई कुछ नहीं कर सकता।

Tuesday, August 23, 2022

लिखे हुए को पढ़ना, कहे हुए को सुनना जरूरी

 केवल तिवारी

बात शुरू करने से पहले एक किस्सा सुनाता हूं। करीब 20 साल पहले की बात है। फीचर में लिखने के लिए अनेक लोग अखबारों के दफ्तरों में चक्कर लगाते थे। ऐसे ही किसी लेखक का जिक्र करते हुए एक वरिष्ठ पत्रकार ने पूछा कि आप किस तरह के लेख लिखते हैं। उन सज्जन ने अपनी लेखकीय विशेषज्ञता का बखान कर दिया। बाद में फीचर प्रभारी महोदय ने उनसे ताकीद की कि आप कुछ दिन लिखने के बजाय पढ़ना शुरू कीजिए। लगता है आप लिखते तो बहुत हैं, लेकिन पढ़ते कम हैं। उन दिनों मैं भी बहुत लिखता था। कुछ-कुछ पढ़ता भी था। खैर इस प्रकरण के बाद जब-जब लिखने का मौका आया, इस किस्से को याद करता हूं। अब दैनिक ट्रिब्यून में पिछले नौ सालों से ब्लॉग चर्चा कॉलम के लिए मैटर जुटाता हूं। जाहिर है कुछ पढ़ने का मौका मिलता ही है, इसके अलावा समीक्षार्थ अनेक पुस्तकें मिलती हैं, उन्हें निश्चित समय में पढ़ना होता है, इस तरह फढ़ना जारी है, इन सबसे इतर काम डेस्क का है, अक्सर खबरें रीराइट करनी होती हैं, तो पढ़ना ही पढ़ना।



 हां अखबार के लिए भले ही लेखन कम हो गया हो, स्वांत: सुखाय के लिए कभी डायरी तो कभी ब्लॉग लेखन जारी है, ऐसे में कल ही विचार आया कि लिखे हुए को पढ़ना जरूरी है। साथ ही कहे हुए को सुनना जरूरी है। कहे हुए को आप सुन तो नहीं सकते। हां अगर कुछ रिकॉर्डिंग की गयी हो तो सुना जा सकता है, लेकिन इस सुनने को दूसरे संदर्भ में इस अर्थ में ले सकते हैं कि आप समाज में बैठें तो सिर्फ अपनी ही बात करने के बजाय, दूसरों की सुनें। समाज में बैठो तो सुनना जरूरी है... असल में यह विचार भी मेरा मौलिक नहीं है। ब्लॉग चर्चा के लिए एक मैटर से मिला। एक आइडिया भी आया और उसपर काम करूंगा। खैर, लिखे हुए को पढ़ने की जहां तक बात है, अपनी दो तीन कहानियां पढ़ डालीं। कुछ डायरी के पन्ने पलटे। कुछ डायरियां बक्से में बंद हैं। यहां रेंडमली कुछ पन्नों का जिक्र कर रहा हूं। सुनने की तो जीन डेवलप हो चुका है। तो चलिए आज कुछ पुरानी बातें, बहुत पुरानी नहीं.... बहुत पुरानी भी शेयर करूंगा। आज कुछ पन्ने पलटते हैं कुछ वर्ष पूर्व की डायरी के-
1- रविवार 10 मई, 2015 चंडीगढ़ दोपहर 1 बजे
इस डायरी की शुरुआत में कई पन्ने ऐसे हैं जो वास्तव में डायरी होने का एहसास दिलाते हैं। मैंने उन पन्नों को इसीलिए अभी खाली छोड़ा है ताकि बीच-बीच में हिसाब किताब लिखूंगा। जैसे अभी थोड़ी देर बाद ही धन संग्रह का अपना हिसाब... खैर आज मैं ऑफिस से मिले अप्रेजल फॉर्म को भर रहा हूं। अभी कुक्कू की मदद ली, अब उसे लिखने जा रहा हूं। धवल और कुक्कू टीवी देख रहे हैं। भावना कपड़े धो रही है। यूं तो आज संडे है, मुझे 1 घंटे बाद ऑफिस जाना होता, लेकिन आज छुट्टी मिल गई है। इसलिए रिलैक्स होकर फॉर्म भर रहा हूं। फिर आज एशियन सर्कस बच्चों को दिखाने का मन है। थोड़ी देर पहले गुलाबी बाग प्रकाश का फोन आ गया था। वे लोग ज्वालाजी, माता चिंतपूर्णी आदि जगह यात्रा पर जा रहे हैं। 30 को चंडीगढ़ आएंगे।... अब फार्म भरने जा रहा हूं। ईश्वर सब ठीक रखना। गलतियां माफ करना। इस फॉर्म के जरिए, कुछ बेहतर हो यही कामना है।
2- सोमवार, 24 अगस्त 2015, तड़के 4:45 बजे
इस वक्त मुझे गहरी नींद में होना चाहिए था, लेकिन पता नहीं क्यों रात करीब 2:00 बजे से मुझे नींद नहीं आ रही है। ऐसी कोई तनाव वाली बात भी नहीं है। पिछले 2 दिनों से मेन डेस्क इंचार्ज हूं। सब सामान्य हो रहा है, लेकिन पता नहीं क्यों जब नींद नहीं आती है तो मन में कुछ तो उमड़-घुमड़ चलती ही है। कभी लखनऊ कन्नू-दीपू के बारे में सोचता हूं तो कभी दिल्ली में उत्तरांचल सोसाइटी और राजेश के कर्ज के बारे में। कभी फर्जीवाड़े की बातों में तो फिर कभी कुछ। कल मुझे मुंबई जाना है। इसका भी उमड़-घुमड़ चल रहा है। इस बार शायद 2 दिन के लिए रहना पड़ जाए। देखता हूं क्या होता है? जब नींद नहीं आ रही है तो सोचा डायरी लेखन यानी ईश्वर से संवाद कर लो। फिर एक अपनी अधूरी कहानी को भी पूरा करना है। और इसी बहाने ईश्वर से प्रार्थना भी हो जाएगी।
3- सोमवार, 19 अक्टूबर 2015, चंडीगढ़, दोपहर 1 बजे
थोड़ी देर पहले कालीबाड़ी मंदिर होकर आया हूं। भावना साथी। वापसी में घर के पास हरेश जी मिले। संक्षिप्त बात हुई। घर आकर तलवार फिल्म देखी। पहले आधी देख चुका था, फिर आधी आज देखी। वाकई फिल्म में जांच के तर्क हैं बहुत जबरदस्त। खैर कालीबाड़ी मंदिर में मैंने भगवान से प्रार्थना की कि दीपू आज कहीं इंटरव्यू देने गया है... उसका हो जाए। मां दुर्गा से अनुरोध है कि दीपू का काम हो जाए प्रसाद चढ़ाऊंगा। मैंने मंदिर परिसर से शीला दीदी को भी फोन लगाया, लेकिन उनका फोन नहीं उठा। मैंने सभी के लिए प्रार्थना की। जो रह गई उसके लिए क्षमा। डायरी लेखन कल रात के सिलसिले में भी लिखना था। पेज प्रीव्यू करने के बाद संपादक जी का मैसेज आया। उनका जवाब आया कि बात करना। इसके बाद मैंने बात की। अजय जी के बारे में बात हुई। मेरे काम को इन दिनों रिकोग्नाइज किया जा रहा है। ईश्वर सब ठीक रखना।
4- मंगलवार, 23 फरवरी 2016, दोपहर एक बजे
लखनऊ सौरभ गौरव का जनेऊ संस्कार बहुत बढ़िया ढंग से संपन्न हो गया। मैंने इस कार्यक्रम को बहुत इंजॉय किया। विपिन का साथ रहना बहुत अद्भुत था। रविवार को दिनभर तेलीबाग निवास भी बहुत अच्छा रहा। जब लौटे तो सबसे पहले तो ट्रेन लेट थी, लेट की खबर ने परेशानी में डाला। यह सोचकर कि 4 घंटे ट्रेन लेट हो गई तो क्या, पहुंच ही जाऊंगा, लेकिन अंततः मुझे कई घंटे बस अड्डे पर इंतजार करने एवं इधर-उधर हांडने के बाद गुलाबी बाग विपिन के यहां जाना पड़ा। वहां बीना ने बहुत बेहतरीन खाना बनाया था। खाना खाकर कुछ आराम किया, फिर शाम को एक बारात में चला गया, लेकिन मेरा मन कहीं भी नहीं लग रहा था। यह मेरे नौकरी के करियर में पहली दफा था जब मैं पहले से निर्धारित तारीख पर नहीं लौट पाया। अगले दिन भी न पहुंच पाया जाट आंदोलन के चलते सारी बसें बंद थी। बस अड्डे पर सहारा वाले नरेश वत्स मिल गए। हम लोग कश्मीरी गेट बस अड्डे से पहले आनंद विहार आए, वहां से गाजियाबाद। फिर वहां से शालीमार एक्सप्रेस पकड़कर मेरठ-मुजफ्फरनगर, सहारनपुर होते हुए अंबाला पहुंचा। वहां से रात 11:00 बजे घर पहुंचा। कुछ सबक भी लिया। पार्टी वगैरह में बैठना ठीक पर अकेले नहीं। मित्र दोस्त के साथ कोई रहे तो सब ठीक इसके अलावा भी बहुत कुछ। खैर इस बार पारिवारिक माहौल बहुत बढ़िया रहा। आज ऑफिस जाऊंगा।
चलिए, चलता रहेगा ये सफर और पुरानी डायरी के कुछ पन्नों को फिर पलटेंगे।

Friday, August 19, 2022

बात से निकली सार्थक बात, जब अनिरुद्ध जी का मिला साथ

 केवल तिवारी 

कुछ दिन पूर्व ऑफिस की कैंटीन में चर्चा के दौरान पंडित अनिरुद्ध से सार्थक बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि मुझे कई बार यह लगता है कि आप इस बात का ध्यान ज्यादा रखते हैं कि आपके हावभाव पर दूसरे लोग गौर करते हैं और शायद इसीलिए आप चलने, फिरने और बैठने के अंदाज के प्रति सतर्क रहते हैं। यही नहीं बोलने में भी बहुत संतुलित होकर बोलते हैं। इसी के साथ उन्होंने जोड़ा कि आप अति एनर्जिक रहते हैं। एनर्जिक यानी ऊर्जावान बने रहना बहुत अच्छा है, लेकिन अति एनर्जिक अच्छा नहीं। इसी तरह चिंतन-मनन अच्छा है, लेकिन अति ठीक नहीं। 

पंडित अनिरुद्ध शर्मा 


उन्होंने यह टिप्पणी मेरे कमजोर होते शरीर को देखते हुए कही। मैं भी मानता हूं कि पिछले कुछ समय से मेरा वजन कम हुआ है। उसका पहला कारण तो यही है कि मैं बहुत ज्यादा सोचता हूं। पहली सोच पारिवारिक मसले पर होती है और दूसरी सोच कामकाजी मसले पर। दूसरा कारण है शुगर कंट्रोल रखने की जुगत। इसके तहत प्रतिदिन जहां करीब चार किलोमीटर की सैर है, वहीं मीठे से एकदम परहेज। खैर पंडितजी की कुछ बातों से मैं इत्तेफाक रखता हूं और मानता हूं कि शायद मेरे शरीर पर 'अति' का असर है। शादी-ब्याह में हंसी-ठिठोली का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मन की किया करें। यानी कभी जोर-जोर से हंसना है, कभी गुनगुनाना है और बिना परवाह किए कभी चुटकुले सुनना और सुनाना है। मैं इन सारी बातों से इत्तेफाक रखता हूं, लेकिन ऑफिस परिवेश में कुछ तो डेकोरम होता है। जहां तक एनर्जिक रहने की बात है, मेरी इच्छा है कि हर व्यक्ति ऐसा रहे। कोई लुंज-पुंज जैसा न हो। काम दिया और पहला शब्द हां होना चाहिए, शिकायतें बाद में। वैसे पंडित जी के साथ कई बातें होती हैं। पूजा-पाठ में भी उनके साथ कई बार भागीदारी रही है। परोपकार और निस्वार्थ यथासंभव सेवा के प्रति उनके भाव अनुकरणीय हैं। यह इत्तेफाक है कि जिस दिन उन्होंने ये बातें बताईं, उससे कुछ दिन पूर्व ही एक डॉक्टर से काउंसलिंग के बाद मैंने 'मस्त' रहने का फैसला किया था। असल में कई बातें होती हैं, जिन्हें जानते सब हैं, लेकिन व्यवहार में कई कारणों एवं किंतु-परंतुओं के चलते पालन नहीं कर पाते।

मैं अपने सोच के स्तर की कुछ कमियां गिना दूं। पहला, परिवार में अगर कोई ठीक से बात नहीं करता तो मैं घंटों, महीनों मंथन करने लगता हूं। कोई व्यक्ति अगर कहीं अपनी कार पार्क करता हो और किसी दिन वहां कोई और व्यक्ति कार पार्क कर दे तो मैं तनाव में आ जाता हूं, जबकि मेरा दोनों में से किसी से कोई खास लगाव या ताल्लुकात नहीं। ऑफिस का काम हो या किसी पारिवारिक समारोह का, सारा काम खुद पर उड़ेल लेता हूं, जाहिर है इससे दिक्कतें ही बढ़नी हैं और बढ़ती हैं। कभी हंसी-मजाक कर लूंगा तो फिर सोचने लगता हूं कि कहीं इस मजाक का नकारात्मक असर तो नहीं। कई बार सोचता हूं कोई ऐसा काम ही न करूं जिस पर पछतावा हो, फिर मानवीय स्वभाववश करता भी हूं तो फिर महीनों तक सोचता रहता हूं। कोई मेरी नमस्ते पर अच्छा रेस्पांस न दे तो उस पर भी सोचने लगता हूं। फिर अपनी तरफ से कोशिश करता हूं कि मैं तो ठीक बना रहूं। ऐसे ही बेवजह की बातें हैं। वैसे अब मैंने खुद को बहुत बदला है और उस बदलाव का असर भी मुझे महसूस हो रहा है। खैर...

यह भी इत्तेफाक है कि इसी चर्चा के दौरान मुझे पुस्तक 'बड़ा सोचें, बड़ा करें' पढ़ने को मिली थी। समीक्षार्थ। उसमें भी कुछ बातें बड़ी गजब की हैं। कुछ-कुछ पंडित अनिरुद्ध जी से बातचीत से मिलती जुलती हैं। उसकी कुछ बातें यहां लिख रहा हूं। उसमें एक महत्वपूर्ण संदेश है, 'अहं एक बुलबुला है। इसे फोड़कर सच्चाई जानने के बजाय हम अपनी ज्यादातर ऊर्जा इसकी रक्षा करने में लगा देते हैं।' मैं चाहता हूं कि इस बात को हर कोई समझे। साथ ही यह भी सोचता रहता हूं कि कई बार कुछ लोग क्यों मुझसे द्वेष रखने लगते हैं। फिर इसे भी पार्ट ऑफ लाइफ मानकर खुद को शांत करता हूं। इसी पुस्तक में एक जगह लिखा गया है, 'आदतें हमें उर्वर बनाती हैं, लक्ष्य हमें बंजर बनाते हैं।' लेखक कहता है लक्ष्य छोड़ो आदत बनाओ। आदत पढ़ने की, आदत जानकारी जुटाने की। एक जगह लेखक ने लिखा है, 'शिकायत करने से कभी किसी की समस्या नहीं सुलझती है।' यह बात मुझे अच्छी लगती है और आज तक किसी की शिकायत नहीं की। बल्कि कई बार दूसरों की गलती को अपने माथे पर मढ़ा है।

बातों-बातों से बातें निकलती हैं, ऐसी ही यह बात भी थी। कुछ समझने और कुछ सीखने का अवसर मिल जाए और वह सार्थक हो तो क्या बात। यही दुआ है कि ये बातें होती रहें।

गुरुजी की वह बात याद है, जब उन्होंने कहा था वाह वाह मेरा मन

यहां बता दूं कि एक बार अनिरुद्ध के सौजन्य से ही डीएवी कॉलेज के कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। वहां गुरुदेव ब्रह्मर्षि गुरुवानंद जी मुख्य अतिथि थे। उन्होंने बच्चों से दोनों हाथ फैलाकर खुलकर बोलने के लिए कहा, वाह वाह मेरा मन। एक दो बार की कोशिश के बाद सबको ऐसा करने में आनंद आया। उन्होंने कहा कि अपने मन से बढ़कर कुछ नहीं। मन की सुनिए। मन की कीजिए और अपने नजरों से कभी मत गिरिए। इसी दौरान उन्होंने कहा कि संकल्प लें तो उस पथ पर पूरी निष्ठा से चलें क्योंकि संकल्प में विकल्प नहीं होता। यहां मैंने महसूस किया है कि मैंने कई बार संकल्पों में विकल्प ढूंढ़ा है। उस कार्यक्रम के बाद खुद को कई बार अलर्ट किया है और गुरुजी को याद किया है। वाकई उनके स्मरण से कई सकारात्मक चीजें हुई हैं।

Saturday, August 6, 2022

रक्षाबंधन और मुहूर्त : वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल ने दूर की भ्रम की स्थिति

राहुल देव 
 सावन का महीना कई अर्थों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक तो इस महीने विवाहिताएं अपने पीहर जाती हैं और सखियों संग झूला झूलती हैं। अठखेलियां करती हैं। इसके अलावा भी सावन के पवित्र महीने में शिव शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। इस सबके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं,आध्यात्मिकता भी है और धार्मिक भावनाएं भी हैं। सावन के महीने का समापन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते वाला रक्षाबंधन पर्व के साथ होता ह। रक्षाबंधन का पर्व समय-समय पर कई चीजों की यादों को समेटे हुए हैं। इसमें कुछ कुछ परिवर्तन भी होता रहा है। भाई बहन के अलावा रक्षा सूत्र ब्राह्मण द्वारा बांधा जाना या अपने प्रकृति के प्रति रक्षा की भावना रखना, पर्यावरण को स्वच्छ रखना ऐसे ही अनेक कारण इस पवित्र त्यौहार के पीछे हैं। इसके अलावा भी सावन के महीने में खानपान का एक अलग अंदाज रहता है। मीठा ज्यादा खाया जाता है...
आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल

खैर इन सब बातों से इतर हम आते हैं रक्षाबंधन पर। जैसा कि कई बार होता है त्यौहार की असली तिथि यानी तारीख को लेकर कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है। रक्षा बंधन के संबंध में उत्पन्न भ्रमपूर्ण स्थिति को दूर करते हुए वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल का कहना है कि रक्षा बंधन सदैव श्रावण मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है और पूर्णिमा उस दिन 18 से 24 घड़ी या अपराह्न व्यापनी होनी चाहिए, जोकि इस वर्ष 11 अगस्त को 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर 12 अगस्त को प्रातः 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। किंतु पूर्णिमा तिथि शुरू लगते ही भद्रा शुरू होगी जो रात्रि 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, भद्रा के साए में राखी बांधना कष्टदायक हो सकता है। अति आवश्यक होने पर 11 अगस्त को भद्रा पूंछ या दुम के समय 5:18 से 6:18 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है अन्यथा 11अगस्त को 8:54 रात्रि से 9:50 रात्रि तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद 12 अगस्त को सूर्य उदय समय से 7:05 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है। वेदमाता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के व्यवस्थापक एडवोकेट राहुल देव मुदगल ने बताया कि रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा पर वेदमाता गायत्री की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। उन्होंने बताया इसके अलावा भी शक्तिपीठ में विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए पूजा अर्चना के साथ साथ संस्कार संबंधी सुविचारों के आयोजन होते हैं।

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