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Wednesday, January 31, 2024

ये मुलाकात एक बहाना है....

केवल तिवारी

जीवन पथ पर कुछ लोगों के बीच उस वक्त की दोस्ती लगभग टिकाऊ सी होती है, जब आप करिअर और पारिवारिक उत्तरदायित्वों की दहलीज पर होते हैं। कुछ किंतु-परंतु के बावजूद इनकी 'मित्रता' बरकरार रहती है। उनमें से कुछ लोग ऐसे दौर में नून-तेल का हिसाब लगाने की स्थिति में आ जाते हैं। कुछ का हिसाब-किताब ही गड़बड़ाया होता है, कुछ पैदाइशी हिसाबी होते हैं, कुछ शादी की तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ हरफनमौला टाइप होते हैं, मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र के निबंध 'मित्रता' में कही हुई बात के मानिंद। उन्होंने लिखा था कि असली मित्रता तो वही है जब वैचारिक, खानपान आदि विविधताओं के बावजूद बरकरार रहे। इसके बाद कुछ अनबन के बावजूद ऐसी दोस्ती का छोटा सा 'वायरस' जिंदा रहता ही है। स्कूली दोस्तों के बीच तो हाथापाई भी हो जाती है, कुछ समय तक कट्टी फिर सल्ला भी हो जाती है। लेकिन जीवन का यह दौर जिसका मैंने जिक्र किया न तो ज्यादा लड़ने-झगड़ने का होता है और ना ही ज्यादा मनमुटाव पालने का। यह अलग बात है कि 'नासमझ' मित्रों में हमेशा कुछ न कुछ गड़बड़ चलता ही है। जब 'पढ़े-लिखों' का उक्त टाइप का मित्र समाज हो तो एडजस्टमेंट की भी बहुत गुंजाइश होती है। ऐसी ही एक मित्र मंडली है 'हिमगिरि 911' इसके सूत्रधार हैं सुरेंद्र पंडित। संरक्षक हम सब श्री भुवन चंद्र जी को मानते हैं। वह हम सबके जीजाजी हैं। इनका हमें संघर्ष के उस दौर में बहुत सहयोग मिला। मित्र सुरेंद्र के जरिये ही हम आपस में मिल पाए। आज इस ग्रूप का जिक्र इसलिए कि लगभग दो दशक बाद हम सब लोग पिछले दिनों दिल्ली में मिले। चाणक्यपुरी उत्तरांचल सदन में। देहरादून से आए राजेश डोबरियाल ने यहां कमरा बुक किया था। मित्र सुरेंद्र की बदौलत आवभगत अच्छी हो गयी। बॉम्बे से सचिन जादौन उर्फ चश्मा डॉट कॉम उर्फ ठाकुरके पहुंचे और चंडीगढ़ से मैं यानी केवल तिवारी उर्फ बामन के। बाकी सभी मित्र मसलन- धीरज, जैनेंद्र उर्फ जैनी, हरीश, पंकज और वैभव शर्मा उर्फ बंटी गाजियाबाद से। कुछ लोगों का उर्फ जानबूझकर छोड़ दिया है। पहले पहल तो उम्मीद नहीं थी कि सभी पहुंचेंगे। क्योंकि हमारे ग्रूप 'Himgiri 911' में सन्नाटा सा ही पसरा रहता है। मित्र सचिन ने एक दिन करीब डेढ माह पहले मुझे बताया कि जनवरी के अंत में मैं दिल्ली-एनसीआर में हूं, क्या मिलने का प्रोग्राम बन सकता है। अपनी भाषा में उन्होंने कहा, 'करंट लेकर देखो।' मैंने करंट लिया और ग्रूप में मैसेज डाल दिया। तीन-चार मित्रों का रेस्पांस आया। होते-करते उम्मीद बंधने लगी कि हम मिलेंगे ही। देहरादून, मुंबई और चंडीगढ़ से तीन आ ही रहे थे। दो-तीन मित्रों का बेहतरीन रेस्पांस था। जीजाजी भी बातचीत में सहभागी थे। तमाम आशंकाओं के बावजूद इतना बेहतरीन रहा कि हम सभी मित्र मिल पाए। हालांकि सभी में अगर सूची बनाएं तो हिमगिरि के उक्त फ्लैट में दो दर्जन लोग जुड़े होंगे, लेकिन हम 9 लोग तो किसी न किसी तरह जुड़े ही रहते हैं।

इस मिलन के बाद छोटा सा ब्लॉग लिखने के लिए पहले में इंटरनेट पर शेर ओ शायरी ढूंढ़ रहा था ताकि कुछ यहां चिपका दूं, लेकिन फिर मन में आया कि कुछ शायरियां ब्लॉग के अंत में चिपकाऊंगा, पहले ऐवें ही लिखा जाये। क्योंकि जब मिलन समय, तारीख और स्थान तय हो गया तो जाहिर है उसका जिक्र होना ही था। वही जिसका कभी जिक्रभर हो जाए तो पूरा दिन फिक्र में लग जाता था, लेकिन अब सच में उस कुछ के जिक्र से ज्यादा अच्छा लग रहा था मिलजुलकर कुछ गरियाते हुए अंदाज में पुरानी बातों को याद करें क्योंकि कुछ का तो अब सबका अपना-अपना हिसाब हो गया है। मित्र जैनी एक बार कहते थे कि आज हम ब्रांड पूछते हैं कुछ समय बाद पेट सफा की दवाई के बारे में बात करेंगे। खैर मिलन अच्छा रहा। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ समझा, किसी को कुछ समझाया गया। डिनर के बाद मैं और राजेश ही वहां रुके, जिनकी वजह से रुकने का इंतजाम किया था, उन्हें जाना पड़ा। फिर कुछ का कुछ तो होगा ही। उम्मीद है अगली बार इस कुछ में से हम कुछ निकाल लेंगे। कुछ सुधर जाएंगे और कुछ सुधार कर लेंगे, बस दुआ है कि ऐसी मीटिंग होती रहें। तो ये थी खाली-पीली की खारिश, खुजली पूरी हुई। सभी मित्रों का धन्यवाद। अब कुछ शेर चिपका रहा हूं। साथ में कुछ फोटो साझा कर रहा हूं। ब्लॉग के शीर्षक पर मत जाना, वह तो बस ऐंवें ही है।


दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त, दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से।


दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है, रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है।


मिरी वहशत मिरे सहरा में उन को ढूंढ़ती है, जो थे दो-चार चेहरे जाने पहचाने से पहले 


नोट : चंडीगढ़ आकर मित्र मिलन कार्यक्रम की फोटोज मैंने अनेक लोगों दिखाई तो 99 प्रतिशत लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इतने वर्षों से आप लोगों का साथ है और आप मिलते रहते हैं। मैंने कहा, मिले तो दो दशक बाद हैं, पर साथ तो है। कुल मिलाकर और कुछ हुआ हो या नहीं, आश्चर्यजनक काम तो हुआ ही है।

तो फिर एक बार जय हो...







Thursday, January 18, 2024

बोर्ड परीक्षा : अब सिर्फ रिविजन पर जोर

 

दैनिक ट्रिब्यून में छपा लेख

साभार: दैनिक ट्रिब्यून 

केवल तिवारी 

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा अगले महीने यानी फरवरी से शुरू हैं। कुछ जगहों पर प्रैक्टिल की डेटशीट भी आ चुकी है। अनेक बच्चे जहां पहले से ही लक्ष्य साधकर प्रॉपर तैयारी कर रहे हैं, वहीं कुछ अब घबराए हुए हैं। यह समय घबराने का नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस वक्त सिर्फ रिविजन पर जोर दें। सालभर जो पढ़ा है और पढ़ाई के दौरान टीचर्स ने जो महत्वपूर्ण चैप्टर बताए हैं, उन पर फोकस करें। रिविजन से ही अब लक्ष्य सधेगा। कोई नया चैप्टर अब पढ़कर बात नहीं बनेगी, हां अगर किसी चैप्टर को लेकर टीचर्स ने बताया हो तो उस पर अलग से टाइम निकालकर फोकस करें। फिजिक्स, कैमेस्ट्री और मैथ्स के फार्मूले पर जोर दें। बेहतर होगा अगर आप कुछ विशेष फार्मूलों को लिखकर अपने स्टडी टेबल के सामने चिपका दें। इसके साथ ही बोर्ड पर कोई अच्छा सा कोटेशन यानी सूत्र वाक्य भी लिखकर रखें। अगर इसे प्रतिदिन बदल सकें तो यह आपको नया विश्वास पैदा करने में मददगार साबित होगा। ध्यान रहे कि जितना अधिक रिविजन होगा, परीक्षा हाल में आप उतने ही सहज रहेंगे। इसके साथ ही प्रतिदिन अलग-अलग विषय को लेकर कुछ लिखते रहें। साथ ही ध्यान दें कि आपकी हैंड राइटिंग में भी सुधार हो रहा हो। क्योंकि परीक्षाओं में लिखावट का भी बहुत महत्व होता है। लिखावट फर्स्ट इंप्रेशन की ही तरह है। तो बोर्ड की परीक्षा देने को तैयार बच्चे बिना घबराहट के साथ अपने आत्मविश्वास को बरकरार रखते हुए रिविजन पर लगातार फोकस करें।  

 प्रतिदिन दो विषय के सैंपल पेपर हल करें 

बेशक अब बोर्ड परीक्षाओं का पैटर्न बदल रहा है, फिर भी पिछले पांच-छह साल के सैंपल पेपर निकालकर प्रतिदिन दो विषयों के पेपर को सॉल्व करने की कोशिश करें। इसके अलावा रुटीन पढ़ाई भी जरूरी है। सैंपल पेपर इस तरह से सॉल्व करें कि मानो आप परीक्षा भवन में ही बैठे हैं। इसमें आप अपने घर के किसी बड़े की मदद ले सकते हैं। मदद से आशय है कि सॉल्व पेपर को उनसे चेक करवाएं। फिर मार्किंग भी करवाएं। ऐसा ऑनलाइन पेपर निकालकर उसकी आन्सर शीट घर के किसी बड़े सदस्य को देकर कर सकते हैं। धीरे-धीरे आपका अभ्यास बढ़ेगा और परीक्षा हॉल में आप सहजता से पेपर दे सकेंगे।  

 यदि चल रही हो दोहरी तैयारी 

12वीं का पेपर देने जा रहे अनेक बच्चे दोहरी तैयारी कर रहे हैं। दोहरी तैयारी से मतलब कुछ लोग इंजीनियरिंग की परीक्षा देने वाले हैं और कुछ मेडिकल की। ऐसे बच्चों के लिए समय थोड़ा ज्यादा परिश्रम का है, लेकिन मुश्किलभरा दौर नहीं। आपको दोनों चीजों के हिसाब से समय का बंटवारा करना होगा। जेईई या नीट के सैंपल पेपर के साथ-साथ इन बच्चों को बोर्ड की भी तैयारी करनी होती है, इसलिए पढ़ाई के कुछ घंटे तो बढ़ाने ही पड़ेंगे। लेकिन यह तैयारी बिना घबराहट के ही होनी चाहिए।  

बदले पैटर्न पर ध्यान दें 

अपनी तैयारी को जारी रखते हुए आप बदले पैटर्न पर ध्यान जरूर दें। क्योंकि यदि आपकी तैयारी पुराने पैटर्न पर होगी और परीक्षा हॉल में अचानक आपको पैटर्न बदला दिखेगा तो पहलेपहल दिक्कत होगी। इसलिए पेपर्स में क्या बदलाव होने वाला है। ऑब्जेक्टिव एवं सब्जेक्टिव कितने प्रश्न आने हैं, इसका अंदाजा पहले से होना जरूरी है। इसके अलावा साहित्य जैसे कि हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी या संस्कृत में कुछ अपठित गद्यांश या पद्यांश के तरीकों पर भी ध्यान दें। इनके जवाब देते वक्त संबंधित पद्यांश या गद्यांश को अच्छे से पढ़ लें।  

 

टीचर्स के संपर्क में जरूर रहें 

कुछ स्कूलों में बोर्ड परीक्षार्थियों की अब छुट्टी शुरू हो जाएगी। संभवत: कुछ स्कूलों में हो भी गयी हो, लेकिन टीचर्स बच्चों से संपर्क बनाए रखने को कहते हैं। आजकल तो ऑनलाइन इतने सारे प्लेटफॉर्म हैं, इसलिए टीचर्स के टच में रहना जरूरी है। इसी संदर्भ में यह बात भी जरूरी है कि सोशल मीडिया को कुछ महीनों के लिए बाय-बाय कर दीजिए। बस मतलब भर के लिए इनका इस्तेमाल करें। हो सके तो पैरेंट्स के ही फोन का इस्तेमाल करें, अपने पास स्मार्ट फोन न रखें।  

 

फल जरूर खाएं, मेडिटेशन भी करें 

इस आपाधापी के बीच एक बहुत महत्वपूर्ण बात कि मेडिटेशन जरूर करें। सुबह शाम कम से कम आधा घंटा लंबी सांसें खींचना एवं अनुलोम विलोम करें। यदि अपने-अपने धर्म के हिसाब से पूजा-अर्चना करते हों तो उस दौरान भी यह काम किया जा सकता है। इसके साथ ही ध्यान रहे कि फल जरूर खाने हैं। वैसे तो हर पैरेंट्स बच्चों का ध्यान रखते हैं, लेकिन कई घरों में माता-पिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं, ऐसे बच्चे फलों की डिमांड कर घर में साफ कर उन्हें रख लें और पढ़ाई के दौरान ही उनका सेवन कर सकते हैं। ऐसे में भोजन हल्का रहेगा और आलस्य नहीं घेरेगा। 

Sunday, January 14, 2024

मकर संक्रांति : प्रकृति से सीखने और पर्यावरण को संवारने का पर्व

 केवल तिवारी 

मकर संक्रांति। एक विशेष त्योहार। प्रकृति से सीखने का और पर्यावरण को सहेजने का पर्व। भारतीय संस्कृति की मान्यताओं का सार है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात अंधकार से प्रकाश यानी रोशनी की तरफ बढ़ें। मकर संक्रांति इसी मान्यता का अहम पड़ाव है। सूर्य उत्तरायण की ओर। प्रकृति, एक नया संदेश देने के लिए तैयार है। नयेपन का संदेश। बिना नवीनता के सुख कहां। सृष्टि में एक नवीनता आने लगती है। नवीनता ही सृष्टि का नियम है। यह समय किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं, वरन संपूर्ण भारत वर्ष यहां तक कि विश्व के अनेक देशों के लिए विशेष होता है। पंजाब में लोहड़ी की धूम, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी का पर्व।

हरिद्वार में स्नान करते श्रद्धालु। फोटो: साभार इंटरनेट 


 तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा। उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान आदि में उत्तरायण या उत्तरायणी। केरल में 40 दिनों का बड़ा त्योहार शुरू, ओडिशा में भूया माघ मेला, हरियाणा और हिमाचल में मगही। इसी तरह असम में माघ बिहू, कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत। इन सबके साथ ही नेपाल में माघे संक्रांति, थाईलैंड में सोंगक्रण, म्यांमार में थिन्ज्ञान, कंबोडिया में मोहा संगक्रण, श्रीलंका में उलावर थिरुनाल आदि। इसके अलावा भी कई देशों और हमारे देश के अन्य हिस्सों में भी यह पर्व अलग-अलग रूप में मनाया जाता है।  

पौराणिक, धार्मिक मान्यताओं के साथ ही मकर संक्रांति का वैज्ञानिक आधार भी है। उड़द की खिचड़ी खाने का रिवाज हो या फिर मीठे पकवान बनाने का। लड्डू बनाने की परंपरा हो या फिर नदियों में स्नान फिर ध्यान लगाने का और उसके बाद दान का। सूर्य उत्तरायण होने के इस मौसम में ही हमारे शरीर में भी कुछ परिवर्तन होते हैं। मौसम के हिसाब से इन्हें नियंत्रित करने के लिए खान-पान का अलग महत्व है।  

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने का भी यह प्रतीक है। संबंध स्वस्थ तो मन स्वस्थ और मन से ही तन के क्रियाकलाप भी नियंत्रित होते हैं। एक सकारात्मक संदेश। यह सकारात्मकता खुशी और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वह उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आंखें बंद कीं और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई।  

समृद्धि का एक और प्रसंग इस त्योहार से जुड़ा है। इसी दौरान फसल पकने की शुरुआत होती है। सूर्य रोशनी, ऊर्जा, ताकत और ज्ञान का प्रतीक है। चैतन्यता का प्रतीक है। ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ का प्रतीक है। ‘अब रैन कहां जो सोअत है’ का प्रतीक है। बहुत हुआ सोना, अब उठना है। सोने से मतलब है कि धुंध का माहौल। उठना यानी यह धुंध अब छंटेगा। खुशहाली आएगी। आप अपने चारों ओर नजर दौड़ाइये- कहीं सरसों खिलने लगी है, गेहूं में बालियां आने लगी हैं। गन्ने के खेत लहलहाने लगे हैं। ऐसे ही अवसर के लिए तो शायद एक कवि ने सटीक लिखा है, 'सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंद में आज आंगन हरा भरा है।' मकर संक्रांति स्नान, ध्यान के साथ ही दान का भी पर्व है यानी चैरिटी का। यथाशक्ति जरूरतमंदों को दान दें। प्रकृति का संदेश भी तो यही है। हवा, पानी, पेड़-पौधे देने वाली प्रकृति यही तो कहती है कि दान दीजिए, मेरी तरह यानी प्रकृति की तरह। प्रकृति को संवारने का भी यह पर्व है। कुदरत के इस अनूठे पर्व को समझिये, इसके मर्म को समझिये और प्रकृति को संवारिये, निहारिये, सीखिये। यही है मकर संक्रांति।  


Thursday, January 4, 2024

परिवार, संस्कार की बात और फिर बातों से निकली बात

 

सफर के राही, राहों के सफर

केवल तिवारी

कभी-कभी आपस में बात कर लेने से भी बहुत कुछ हासिल हो जाता है। यह भी तो कहा ही जाता है कि बात ही किसी समस्या का समाधान है। हमें किसी से शिकायत है, हो सकता है उसे इसका भान ही न हो। या मुझसे किसी को कोई दिक्कत है, लेकिन मुझे पता ही न हो। या फिर यह भी तो कि संस्कार, परिवार मामले में हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी। जो हुए, वह क्यों? क्या सुधार की गुंजाइश बची है, यदि हां तो कितनी। या समय के बहाव के साथ बहते हुए कुछ चीजों को बचाकर रखना होगा। बोलेंगे, सुनेंगे तो सब होगा। ऐसी ही एक सार्थक बातचीत पिछले दिनों हुई। एक अनौपचारिक था और दूसरा औपचारिक। एक रात की बातचीत थी और दूसरी दिन की। रात था नये साल के स्वागत का और दिन था फिल्म संबंधी एक राष्ट्रीय स्तर के किसी कार्यक्रम के सिलसिले में। रात वाली तो ज्यादातर बातें रात गयी, बात गयी में तब्दील हुई, लेकिन मेरे लिए यह बातचीत भी सार्थक रही क्योंकि पुराने मोहल्ले के अनेक लोग मिले। ऑफिस के भी कई ऐसे लोग मिले जिनके चेहरे पहचानता हूं, नाम नहीं। कुछ जानकारियां मिलीं। किसी को किसी कारण सांत्वना दी और कुछ योजनाओं का पता चला। कुछ अपनी राय दी, कुछ दूसरों की सुनी। मोगा से ब्रदर इन लॉ सतीश जोशी उर्फ सोनू सपरिवार पहुंचे थे, उनके साथ गुफ्तगू हुई। चूंकि नये साल के स्वागत की बात थी इसलिए ऑफिस से काम निपटाकर जाना संभव हो पाया। दूसरा मसला था दिन का। दो दिन बाद। वहां लघु फिल्मों के कार्यक्रम को लेकर कुछ बातें हुईं। इस मुख्य मुद्दे से पहले कुछ लोगों ने और बातें भी की।
शादी-व्याह, परिवार और संस्कार
औपचारिक बैठक से पहले घर, परिवार और संस्कार की बातें हुईं। कुछ लोगों ने माना कि ज्यादातर मामलों में हम अभिभावक ही जिम्मेदार होते हैं। जैसे कि कहीं कार्यक्रम में जाना हो तो बच्चों के मना करने पर हम मान जाते हैं। कायदे से उन्हें ले जाना चाहिए। इसी तरह पहले परिवार के लोग शादी-व्याह में काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन अब तो पर्यटन जैसा मामला हो गया। हर कपल को एक निजता चाहिए। हर दो-तीन घंटे में नये कपड़े चाहिए। संस्कारों में भी बाजार हावी हो गया। हालांकि यह भी माना गया कि स्थिति बहुत ज्यादा निराशाजनक भी नहीं है।
विज्ञापन और उनका संदेश
बातों, बातों में कुछ विज्ञापनों का जिक्र हुआ। साथ ही इस बात की जरूरत भी समझी गयी कि संयुक्त परिवारों या इसी तरह के कुछ अन्य मसलों पर विपरीत प्रभाव डालने वाले विज्ञापनों के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। कुछ आवाजें उठीं तो ऐसे विज्ञापन बंद भी हुए। मैं एक बात कहते-कहते रुक गया था कि कुछ विज्ञापन तो बहुत अच्छे भी आते हैं जिन्हें देखने में आनंद आता है। ऐसे ही एक विज्ञापन में दो दोस्त कार में जा रहे होते हैं, पीछे एक दूसरी कार वाला गलत तरीके से ओवरटेक करते हुए निकलता है। उस कार में बैठा एक शख्स कार चला रहे अपने दोस्त से कहता है कि अरे हमारी गाड़ी उससे बड़ी और अच्छी है, पीछा कर। दोस्त समझाता है भाई हमारी गाड़ी ही बड़ी नहीं है, हम भी बड़े हैं, हमारी सोच भी बड़ी है। जाने दो उसे, सफर का आनंद लो। ऐसे ही एक विज्ञापन में मां का विश्वास दिखता है कि उसके बच्चे झूठ बोल ही नहीं सकते। मैंने अनेक लोगों से बाद में कहा कि गलत मैसेज दे रहे विज्ञापनों के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। आजकल तो बस एक मेल करना है या फिर अन्य माध्यमों से संदेश भेजना होता है।
कार्यक्रम, मीडिया, रिपोर्टिंग और डेस्क
बातचीत के दौरान ही मीडिया कवरेज की बात उठी। सवाल यह भी कि किसे बुलाया जाये। फिर तय हुआ कि कार्यक्रम की कवरेज के लिए बीट रिपोर्टर को बुलाना चाहिए। संपादक मंडल को अलग से न्योता जाये और संभव हो तो डेस्क के अन्य वरिष्ठ साथियों को भी बुलावा भेजा जाये। इसमें कुछ किंतु-परंतु भी उठे, लेकिन कुछ लोगों ने कहा कि रुटीन कवर करने वाले से कई बार अचानक कवरेज के लिए भेजा व्यक्ति अच्छा कर सकता है। फिर उन लोगों की शिकायतें भी दूर होती हैं कि उन्हें नहीं बुलाया गया। खैर ये तो संस्थागत, व्यवस्थागत मसले हैं। सिर्फ कवरेज ही जरूरी नहीं, प्रबुद्धजनों को रायशुमारी के लिए भी बुलाया जा सकता है। रायशुमारी की बात पर ही लोगों की कला को परखने का भी मसला उठा। कुछ उदाहरण भी दिए गए कि सोच को ठीक रखनी होगी। पत्रकारिता में आ रहे बच्चों में जानकारी के स्तर पर भी कुछ समस्याएं हैं। फिर पेंटिंग्स और पेंटिंग से जुड़े नामचीन लोगों की 'छोटी सोच' पर भी अफसोस जताया गया।
कश्मीर, खानपान वगैरह... वगैरह
कश्मीर में बदलावों पर भी जिक्र हुआ। यहां अनुभवी से इतर उत्साही युवाओं को ले जाने के किसी कार्यक्रम पर भी बात बनी। माना गया कि वहां जाकर स्थिति का आकलन किया जाये। साथ ही यह भी कि कई लोग खानपान को धर्म से जोड़ देते हैं जो ठीक नहीं। शाकाहार या मांसाहार तो परिस्थितियों पर निर्भर था। यह अलग बात है कि देखादेखी बाद में बहुत कुछ बदल गया। बातें कुछ और भी हुईं जिन पर कहानी बन सकती है, कविताएं लिखी जा सकती हैं। विचार मंथन हो सकता है। कहानी कविताओं से ही याद आया कि इस बातचीत के दौरान बुजुर्गों द्वारा बच्चों को कहानी सुनाने के सिलसिले के खत्म सा होने पर अफसोस भी जताया गया। कुछ हंसी-मजाक भी हुई और पागल और बेवकूफ का कहानीनुमा फर्क भी समझने को मिला। जैसा कि सभी ने माना कि ऐसा मेलजोल होते रहने चाहिए। लोग भले कम हों, लेकिन बातों को समझकर समझाने वाले हों। जये हो।

नया साल : उम्मीदें अपार, चुनौतियों की भरमार

साभार : दैनिक ट्रिब्यून

केवल तिवारी

नवीनता! उम्मीदें! चुनौतियां! संभावनाएं! आशंकाएं! यादें! सबक! राहें! मंजिलें! सफर! ब्रह्मांड के नियमानुसार बदलाव अवश्यंभावी। बदलाव हर दृष्टि से। कुछ स्वाभाविक और कुछ सप्रयास। बदलाव की बात है तो सबसे पहले नये साल की। 21वीं सदी का 24वां साल शुरू हो चुका है। यह साल पूरे विश्व में बड़े बदलावों का है। राजनीतिक। सामाजिक। आर्थिक। सर्जनात्मक, और भी बहुत कुछ। उसी तरह से जैसे कि कहा ही गया है, ‘बिना नवीनता के सुख कहां।’ यानी नवीनता है तो कुछ बदला-बदला सा है। कुदरती बदलाव क्या होंगे, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन कुछ अच्छे होने की उम्मीदें तो बनी हैं और बनी रहनी चाहिए। बंपर फसल होने की उम्मीद है। कार्बन उत्सर्जन घटने की उम्मीद है। चांद-सितारों को छूने की उम्मीद है। महामारी से पार पाने की उम्मीद है। ‘वैश्विक उथल-पुथल’ कम होने की उम्मीद है। उम्मीद हैं तो चुनौतियों से भी नजरें कैसे फेरी जा सकती हैं। चुनौतियां भी अपार हैं। साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहा है। आशंका है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कहीं ‘भस्मासुर’ न बन जाए। समय पर नहीं चेते तो रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास जैसी स्थितियां कहीं और भी न बन जायें। खैर आशंकाओं के पनपने को ज्यादा तवज्जो क्यों देना, चलिए चर्चा इस पर करते हैं कि क्या होगा इसा साल और कैसी होंगी चुनौतियां।
78 देशों में चुनावी बयार
वर्ष 2024 को वैश्विक दृष्टिकोण से चुनावी साल कहना गलत न होगा। एक अनुमान के मुताबिक 78 देशों में किसी न किसी रूप में व्यापक स्तर पर चुनाव होंगे। बेशक, कुछ देशों में ये चुनाव महज औपचारिक रहेंगे, लेकिन ज्यादातर में लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर नयी सरकार का गठन करेंगे। जानकार तो कहते हैं कि इतने व्यापक स्तर पर चुनाव अब अगले 24 साल तक देखने को नहीं मिलेंगे। सबसे पहले तो भारत में ही आम चुनाव इसी साल प्रस्तावित हैं जो अप्रैल-मई के बीच होने की संभावना है। इसके बाद ब्राजील और तुर्किए जैसे कुछ स्थानों पर आम चुनाव नहीं होंगे, लेकिन निकाय चुनावों में पूरा देश भाग लेगा। जी20 देशों में भी ज्यादातर में इसी साल चुनाव हैं। साल की शुरुआत में ही भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान में चुनाव होने वाले हैं। बांग्लादेश में जनवरी और पाकिस्तान में फरवरी में ये चुनाव होने हैं। जाहिर तौर पर वहां के परिणामों का भारत पर भी असर पड़ेगा। उसके बाद भारत में चुनाव होंगे। यहां के परिणामों का असर भी पड़ोसी देशों के रिश्तों पर पड़ना स्वाभाविक है। फरवरी में ही इंडोनेशिया में चुनाव होने हैं। मई में दक्षिण अफ़्रीका में चुनाव होने हैं। यहां 1994 में रंगभेद की समाप्ति के बाद से इन चुनावों को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके अलावा अल्जीरिया, बोत्सवाना, चाड, कोमोरोस, घाना, मॉरिटानिया, मॉरीशस, मोज़ाम्बिक, नामीबिया, रवांडा, सेनेगल, सोमालीलैंड, दक्षिण सूडान, ट्यूनीशिया और टोगो में भी चुनाव प्रस्तावित हैं। यूरोप के लिए भी यह साल चुनावी साल ही साबित होगा। फ़िनलैंड, बेलारूस, पुर्तगाल, यूक्रेन, स्लोवाकिया, लिथुआनिया, आइसलैंड, बेल्जियम, यूरोपीय संसद, क्रोएशिया, ऑस्ट्रिया, जॉर्जिया, मोल्दोवा और रोमानिया में भी लोग नयी सरकारों को चुनेंगे। सबसे बड़ी महाशक्ति के रूप में जाने जाने वाले अमेरिका में भी इसी साल चुनाव होने हैं। अमेरिका में साल के अंत तक चुनाव हो जाएंगे। 
भारत का शीर्ष न्यायालय करेगा कई बड़े फैसले
सर्दियों की छुट्टी खत्म होते ही भारत का सुप्रीम कोर्ट कई अहम मु्द्दों पर फैसला सुनाएगा। इनमें प्रमुख हैं इलेक्टोरल बॉण्ड, धन शोधन यानी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती, कुर्की के साथ-साथ सर्च करने का अधिकार, दिल्ली में सेवा अधिकार मामला, मुफ्त चुनावी वादे, अविवाहित महिला को सरोगेसी आदि। इसके अलावा कई अन्य मुद्दे भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन हैं जिनमें से कई स्वत: संज्ञान वाले हैं तो कुछ पर याचिकाएं डाली गयी हैं। 
नौ लंबे वीकेंड
घूमने-फिरने के शौकीनों के लिए इस बार नौ लंबे वीकएंड पड़ रहे हैं। यानी एक या दो दिन की छुट्टी लेकर वे निकल सकते हैं चार-पांच दिन घूमने के लिए। ऐसे ही कोई पारिवारिक कार्यक्रम भी इन छुट्टियों के हिसाब से तय कर सकता है। सोमवार से शुरू हो रहे नये साल में अनेक छुट्टियां शनिवार और इतवार के आगे या पीछे पड़ रही हैं। जैसे, लोहड़ी शनिवार को है तो सोमवार को मकर संक्रांति एवं पौंगल। गणतंत्र दिवस इस बार शुक्रवार को पड़ रहा है यानी आगे दो दिनों की छुट्टी। शिवरात्रि शुक्रवार 8 मार्च को है, होली सोमवार 25 मार्च को है, गुड फ्राईडे 29 मार्च को है, बुद्ध पूर्णिमा बृहस्पतिवार 23 मई को है, बकरीद सोमवार, 17 जून को है, स्वतंत्रता दिवस इस बार बृहस्पतिवार को पड़ेगा। जन्माष्टमी सोमवार 26 अगस्त को है, ईद उल मिलाद उन नबी सोमवार 16 सितंबर को है, राम नवमी शुक्रवार 11 अक्तूबर को है। दिवाली शुक्रवार 1 नवंबर को है। गुरु नानक जयंती शुक्रवार 15 नवंबर को है। इस तरह त्योहारों और अपनी छुट्टियों के हिसाब से लोग अपना छुट्टी कैलेंडर तैयार कर सकते हैं। 
शुभ मुहूर्त की 77 तिथियां
यूं तो हर दिन शुभ है, बस निर्भर करता है किसी के भाव और स्वभाव पर। फिर भी कुछ मांगलिक कार्य सनातन धर्मी शुभ मुहूर्त निकालकर करते हैं। गृह प्रवेश, जनेऊ, विवाह आदि जैसे कई शुभकार्य ज्योतिषीय गणना के हिसाब से मुहूर्त निकालकर किए जाते हैं। वैसे कुछ दिनों जैसे कि वसंत पंचमी, रक्षा बंधन आदि दिवसों पर लोग बिना मुहूर्त निकलवाए शुभ कार्य करते हैं। वैसे जानकारों के मुताबिक इस साल जनवरी में 10 दिन, फरवरी में 20 दिन, मार्च में 9 दिन, अप्रैल में 5 दिन, जुलाई में 8 दिन फिर अक्तूबर में 6 दिन, नवंबर में 9 दिन, दिसंबर में 10 दिन मांगलिक कार्य हो सकते हैं। 
खेलकूद के लिए भी खास है यह साल
खेलकूद की दृष्टि से भी यह साल बेहद खास है। पेरिस में ओलंपिक इसी साल जुलाई-अगस्त में होने हैं, इसके अलावा अनेक गेम्स के लिए यह वर्ष खास रहेगा। आइये जानते हैं कुछ मुख्य वैश्विक खेल कार्यक्रमों के बारे में। जनवरी में कतर में एशियन कप (फुटबॉल) प्रस्तावित है। इसी माह ऑस्ट्रेलियन ओपन टेनिस मेलबर्न में होना है। क्रिकेट अंडर 19 का वर्ल्ड कप जनवरी-फरवरी में दक्षिण अफ्रीका में प्रस्तावित है। फरवरी में ही 6 देशों का रग्बी है। इसी माहवर्ल्ड टीम टेबल टेनिस चैंपियनशिप प्रस्तावित है। मार्च में टोक्यो मैराथन है। अप्रैल में कई देशों में चैंपियनशिप प्रस्तावित हैं। इनमें गोल्फ, स्नूकर एवं लंदन मैराथन शामिल हैं। मई में फुटबॉल की यूरोपियन लीग प्रस्तावित है। जून में जर्मनी में फुटबॉल मैच हैं। इनके अलावा कई देशों में क्रिकेट टूर्नामेंट होने हैं। इनमें महिला विश्वकप भी शामिल है। 
फिल्मी जगत के लिए भी अनूठा वर्ष
साल 2024, टीवी सीरियल्स एवं बॉलीवुड एवं हॉलीवुड में नयी फिल्मों के अलावा भारत की प्रादेशिक फिल्मों के लिए भी खास रहेगा। जनवरी में ही अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोण, प्रभास, दिशा पाटनी अभिनीत ‘प्रोजेक्ट के’ फिल्म रिलीज होने की संभावना है। इसी माह फिल्म फाइटर भी आ सकती है। इसमें भी दीपिका पादुकोण हैं। साथ में ऋतिक रोशन और अनिल कपूर का अभिनय है। इसी तरह फरवरी में आमिर खान की मोगुल रिलीज हो सकती है। इसी साल आने वाली अन्य फिल्मों में हेरा-फेरी 3, बड़े मियां छोटे मियां, सिंघम अगेन, वॉर 2, भूल भुलैया 3, मैं अटल हूं, योद्धा, कल्कि आदि हैं। इनके अलावा हॉलीवुड भी कुछ धमाकेदार मूवीज लेकर आने वाला है। इनमें कैप्टन अमेरिका: न्यू वर्ल्ड आर्डर, डेडपूल 3, आदि हैं।
हकीकत में निपटना होगा आभासी दुनिया से
नये साल में आभासी दुनिया और हावी होने जा रही है। हावी इस तरह से भी कि असली और नकली का फर्क ही समझ में नहीं आए। हालांकि सरकार ने डीपफेक जैसे मुद्दों पर कुछ कानूनी प्रक्रियाएं शामिल की हैं, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। इसके साथ ही हम सबको सावधान भी रहना होगा। चैट जीपीटी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी बड़ी चुनौतियां हैं। अहम मुद्दा यह है कि तकनीक का विकास चुनींदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में हुआ। सरकारों के पास सीमित संसाधन और क्षमताएं हैं। तकनीकी चुनौतियों के साथ ही इस्राइल-हमास युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध का मामला भी बहुत गंभीर है। ये युद्ध नियंत्रित नहीं हुए तो इसका असर और घातक प्रभावकारी हो सकता है। इसी तरह स्वास्थ्य का मामला है। कोविड का नया रूप फैल रहा है। हालांकि उसे ज्यादा खतरनाक नहीं माना जा रहा है, लेकिन बचाव के उपायों के प्रति सतर्कता बहुत जरूरी है। नयी शिक्षा नीति के अनेक किंतु-परंतु सामने आ रहे हैं। बच्चों को उसके लिए तैयार करना और अध्यापकों की विशेष ट्रेनिंग भी जोरशोर से चलानी होगी। साइबर क्राइम पर लगाम नहीं लग पा रही है। अनेक जागरूकता संदेशों के बावजूद लोग धोखाधड़ी के शिकार हो रहे हैं।
चुनौतियों की भले ही भरमार लग  रही हो, लेकिन उम्मीदें और संभावनाएं भी कम नहीं हैं। जिम्मेदारी को समझते हुए, सजग रहते हुए नये साल में संभल-संभल कर पग धरेंगे तो निश्चित रूप से नये फलक पर विचरण के लिए कल्पनाओं को पंख लगेंगे और हर नयी डगर हकीकत के धरातल पर सकुशल आगे बढ़ेगी। अपने हिस्से की जिम्मेदारी को समझते हुए हर कोई कर्तव्य और अधिकार का संतुलन बनाए रखे तो यह परिवार, समाज के साथ देशहित में होगा।
साभार : दैनिक ट्रिब्यून