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Wednesday, January 13, 2021

जमाना स्मार्ट है, पर नोट भी कर लेना चाहिए

 मन में विचार मंथन चलते रहते हैं। कभी कुछ, कभी कुछ। विचार मंथनों से इतर, कई बार बच्चे बड़ी-बड़ी बातें कर जाते हैं। उनकी बातों से निकली बातों पर तो कभी लेख बन गये और कभी ब्लॉग पर लिख डाला। जैसे बच्चे का सवाल कि अगर आपके जमाने में online class की स्थिति आती तो क्या चिट्ठियां भेजकर पढ़ाई होती। ऐसी ही कई बातें। मैं बच्चों से कहता हूं कि डायरी लिखा करो, रोज नहीं तो कुछ खास मौकों पर। जैसे अगर कभी कोई मेहमान आया हो, उनके बच्चों से आपकी कोई बात हुई हो या घर में कोई नयी चीज आई हो या फिर किसी का जन्मदिन हो वगैरह-वगैरह। बच्चे कभी इसे फॉलो करते हैं और कभी बच्चे तो बच्चे ठहरे। जब बात लिखने की आती है तो कई बार मैं चीजों को नोट करने के लिए कहता हूं। खुद भी सोचता हूं कि यह बात नोट कर लूं, लेकिन जब-जब चूका हूं तब-तब भूला हूं। पिछले दिनों कई आइडिया आये। सोचा कि इन्हें नोट कर लूंगा, लेकिन भूल गया। कभी भूलने या न लिख पाने या कहीं जाने के समय को लेकर बात करता हूं तो छोटा बेटा धवल कहता है, पापा स्मार्ट बनो। smart कैसे बनो, वह इसे भी दिखाता है। इन दिनों उसकी ऑनलाइन क्लास चलती हैं। उसने हर क्लास के समय से पांच मिनट पहले का अलार्म लगा रखा है। कभी अगर हम उसे टोकते हैं कि चलो तैयार हो जाओ। पेन, नोटबुक, किताब निकालकर बैठो, क्लास आने वाली है, तो सीधे जवाब देता है कि smart हूं मैं, अलार्म लगा रखा है। उसके अलार्म की बात तो यह भी है कि एक दिन उसने पूछा, पापा आप सैर (morning walk) करने कितने बजे जाते हैं, मैंने कहा, आजकल (winter season) करीब साढ़े सात बजे। उसका अगला सवाल उठते कितने बजे हो, मैंने कहा कम से कम एक घंटा पहले। मैंने उससे पूछा कि तुम्हें चलना है, बोला नहीं। मैंने कहा, चला करो आपके भैया को तो मैं कभी-कभी ले जाता हूं। उसने फिर इनकार कर दिया। अगली सुबह ठीक साढ़े 6 बजे आवाज आई, 'पापा और भैया उठ जाइये' मैं हैरान, कि यह आवाज कहां से आ रही है, छोटे बेटे को देखा तो वह सो रहा है, फिर सिरहाने के पास रखे मोबाइल की ओर नजर पड़ी, देखा मोबाइल में अलार्म बज रहा है। यह अलार्म बच्चे ने अपनी आवाज रिकॉर्ड कर लगा दिया था। खैर उस वक्त उठने का बहुत मन नहीं कर रहा था, ठंड भी बहुत थी। पांच-10 मिटन बाद पत्नी गरम पानी लेकर आ गयी। पानी पीया। फिर थोड़ी देर बाद चाय आ गयी। उसके बाद फ्रेश होते-होते और सर्दियों में खूब सारे कपड़े पहनते-पहनते साढ़े सात बज गया। तभी आवाज आई, 'राउंड करने जाइये' यही वाक्य रिपीट हो रहा था। यह आवाज भी मोबाइल से ही आ रही थी। मैंने अलार्म off नहीं किया, उसे बजने दिया। बेटा अलसाया सा उठा, बोला पापा राउंड करने जाओ। मैं हंस दिया, वाह मेरे स्मार्ट बेटे। उसके बाद कई मौके आए जब लगा कि इस अलार्म को discontinue कर दूं, लेकिन खुद ही रुक गया। सुबह-सुबह अब तो इसे सुनना अच्छा लगने लगा है। इस तरह की smartness देखकर तकनीक और तकनीक पर बच्चों की निर्भरता को लेकर चिंता भी होती है। इस निर्भरता के कारण आज शायद कुछ ही लोग होंगे जिन्हें 10-12 फोन नंबर याद हों। एक जमाना होता था लोगों को कई चीजें याद होती थीं। यहां तक कि हफ्तेभर पहले किसी को मिलने का दिया गया समय और जगह भी। अब तो सबकुछ मोबाइल में होने लगा। स्मार्ट बनना अच्छी बात है, लेकिन नोट करने जैसी विधा की कोई सानी नहीं। नोट करने का मन नहीं होता तो इतना लिख भी कहां पाते। इसलिए मैंने तो सोच लिया है कि नोट करने की अपनी बात पर अमल करूंगा। तत्काल नहीं तो कुछ देर बाद ही सही। आप क्या कहते हैं।