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Thursday, May 19, 2022

घुमंतू जनजातियां... बात सिर्फ इतनी सी नहीं है

 केवल तिवारी

घुमंतू जनजातियों के बारे में आप कुछ जानते होंगे। शायद यह भी कि अलग-अलग क्षेत्रों में इन्हें और भी कई उपनामों से जाना जाता है। हो सकता है इतिहास खंगालने की कोशिश में आप कुछ और जान गए होंगे, लेकिन इन सबसे भी इतर इनके बारे में कई बातें हैं। कुछ पुराने समय की और कुछ वर्तमान की। ज्यादातर बातें हैं रौंगटे खड़े करने वालीं। इनके संबंध में पिछले दिनों एक अनौपचारिक परिचर्चा में चर्चा हुई। घुमंतू जनजातियों के जीवन के संबंध में लंबे समय से काम कर रहे अनिल जी ने बताया कि अंग्रेजों ने इनके संबंध में कड़ा कानून बनाया। इन्हें अपराधी घोषित किया गया। किसी व्यक्ति को जन्म से ही अपराधी मानने वाली अंग्रेजी मानसिकता का यह जहर आजाद भारत में भी बहुत लंबे समय तक चलता रहा, बल्कि यूं कहें कि अब भी कई जगह है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कुछ जगह इनकी स्थिति सुधारने की कोशिश हुई। इस कोशिश में अंग्रेजों के जमाने का वह कानून तो हटाया गया जिसमें इन्हें जन्मजात अपराधी घोषित किया गया था, लेकिन इन्हें आदतन अपराधी बताया गया। इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि घुमंतू जनजाति के इन लोगों को पुलिस जब-तब पकड़ लेती। कई जगह तो हद ही हो गयी। अपराध कोई और करता, लेकिन जब पुलिस किसी को पकड़ने में फेल रहती तो इनके समाज से किसी व्यक्ति को अरेस्ट कर लिया जाता। अनिल जी ने बताया कि लंबे प्रयासों के बाद हरियाणा में इनके समाज के लिए बहुत कुछ किया गया। आलम यह है कि आज हर राजनीतिक पार्टी का ‘घुमंतू जनजाति प्रकोष्ठ’ है। केंद्र सहित कई राज्य सरकारों ने इन्हें आदतन अपराधी कानून को निरस्त किए जाने के मुद्दे पर विचार शुरू कर दिया गया है। इसके लिए बाकायदा आयोग गठित किया गया।

घुमंतु, अर्धघुमंतु और विमुक्त समाज

इस समुदाय के लोग सरकारी दस्तावेजों में तीन तरह के होते हैं। एक घुमंतु, दूसरे अर्धघुमंतु और विमुक्त। घुमंतु तो वे हैं जो हमेशा यहां से वहां चलते रहते हैं और अर्ध घुमंतु वे हैं जो कुछ समय तक एक जगह ठहरते हैं या उनका परिवार ठहरता है और कमाऊ पुरुष इधर से उधर जाते रहते हैं और विमुक्त वे हैं जिन्हें कठोर कानून से छुटकारा मिल चुका है। इस संदर्भ में बता दें कि संसद में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल सिंह गुर्जर ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि राष्ट्रीय विमुक्ति घुमंतु तथा अर्धघुमंतु जनजाति आयोग की अंतरिम रिपोर्ट में आदतन अपराधी अधिनियम को निरस्त करने का सुझाव दिया गया है। द्रमुक सदस्य तिरुची शिवा के सवाल पर गुर्जर ने बताया कि देश के तमाम इलाकों में इन जनजातियों को आदतन अपराधी की नजर से देखा जाता है इसलिए पुराने समय से चले आ रहे इस कानून की वजह से इन समुदायों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना मुश्किल हो रहा है। गुर्जर ने बताया कि साल 2005 में गठित आयोग की 2008 में पेश रिपोर्ट में इस बारे में कोई संस्तुति नहीं की गई थी। इस समस्या को देखते हुए 2015 में फिर से इस आयोग का गठन किया गया। मनोनीत सदस्य के टी एस तुलसी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के हवाले से आदतन अपराधी कानून निरस्त करने की सिफारिश के पूरक प्रश्न के जवाब में गुर्जर ने कहा नवगठित आयोग की जुलाई 2017 में पेश अंतरिम रिपोर्ट में भी इसे निरस्त करने की संस्तुति की गई थी। सरकार भी इस कानून को निरस्त करने के पक्ष में है।

हरियाणा में उत्थान के लिए व्यापक प्रयास

हरियाणा सरकार इन्हें आदतन अपराधी के दायरे से बाहर ले आई है। इस संबंध में बने एक्ट में प्रदेश में 26 जातियां शामिल हैं तथा प्रदेश में करीब 20 लाख आबादी है। असल में घुमंतू जातियों पर आदतन अपराधी एक्ट अंग्रेजों द्वारा थोपा गया था, जिसकी वजह से विमुक्त घुमंतू जातियां देश आजाद होने के बाद भी अपराधी होने का दंश झेल रही हैं। इन जातियों में शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिए सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, रोहतक, पानीपत, करनाल, रेवाड़ी, फरीदाबाद कुरुक्षेत्र में काफी काम चल रहा है।

वकील पारधी किताब और एक खौफनाक सच

अनौपचारिक चर्चा के दौरान पता चला कि इन जनजातियों में एक समुदाय ऐसा भी है जिसमें लड़कियों से देह व्यापार कराया जाता है। इस समाज में सामान्यत: महिलाओं का ही वर्चस्व होता है। इस समाज के लोग पको कुछ काम करते दिख जाएंगे। मसलन-सब्जी बेचना, सड़क किनारे पानी बेचना, जूते पॉलिश करना, लेकिन असल में ये ग्राहकों से बातचीत करने के लिए यह सब करते हैं। यह पूछने पर कि क्या किसी लड़की ने प्रतिरोध नहीं किया, बताया गया कि अब तक ऐसा मामला सामना आया नहीं क्योंकि उनकी ग्रूमिंग ही ऐसी हुई है, लेकिन अब स्वास्थ्य, सफाई को लेकर इन लोगों में जागरूकता आ रही है। बातों के दौरान मुझे लक्ष्मण गायकवाड़ की किताब वकील पारधी की याद आई। मैंने यह किताब समीक्षार्थ पढ़ी थी। उसमें इसी समुदाय के लोगों का खौफनाक सच उकेरा गया है। पहले मुझे उस किताब में कुछ नाटकीय मिश्रण लगा, लेकिन अब पता चला कि सचमुच कितना दंश झेलता आ रहा है यह समाज। हालांकि कुछ लोगों के कारण बदनामी का दौर अभी भी जारी है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि ये राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ेंगे।

Thursday, May 5, 2022

ज्योति की छवि, मधु मैडम और मदर्स डे

 डॉ. ज्योति अरोड़ा

मैं अपने छोटे मुख से कैसे करूं तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान


भाव यही हैं, शब्दों में बयां मैं कर रही हूं। बात कर रही हूं अपनी बच्ची छवि की। यह मौका है मां की फीलिंग को समझने का। मदर्स डे। यूं तो हर दिन मां का होता है, लेकिन इस हर पल हर दिन के संबंध को किसी एक दिवस के रूप में मनाने का मौका हो तो क्यों न इसे अनुभव किया जाये। मेरी बच्ची छवि अभी छोटी बच्ची है, जैसा कि कहते हैं न कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं, सचमुच उसी सच्चाई से घर से बाहर यानी स्कूल में मां जैसी टीचर मिलीं मधु। मधु मैडम को वह कितना प्यार करती है, इसका अंदाजा तब लगा जब उसकी क्लास बदल गई। टीचर बदल गई। स्कूल के ऐसे नियम शायद बच्चों के हित में ही बनते होंगे। जैसे कि ट्रांसफर के नियम। खैर, बच्ची हैै, परेशान हो गयी। उसके इस लगाव को देख अनायास ही चंद पंक्तियां निकल पड़ीं-



घर से स्कूल के लिए निकली नन्ही जान
छवि ने मधु मधुर में जैसे पा लिया अपना जहान
मुझे लगता मानो मिला हो खुशियों का आसमान
मदर्स डे पर दो-दो बधाइयां देती हूं
ये मेरी अरमानों की ज्योति और वो मधु सी मुस्कान।
मधु मैडम



नन्ही बिटिया छवि की जो भावनाओं को समझ सकी, वो उपरोक्त चंद पंक्तियों की मानिंद ही है। पता नहीं क्या था कि उसमें स्कूल का खौफ नहीं था। निश्चित रूप से यह खौफ इसलिए नहीं था कि स्कूल का वातावरण बहुत शानदार था। लेकिन उससे भी ज्यादा इसलिए कि छवि को मां सरीखी टीचर मधु मिली थीं। वह कितनी तो बातें शेयर करतीं। जब इस टीचर से थोड़ी सी दूरी बन गयी तो वह टूट सी गयी। घर में मेरे साथ प्यार और मनुहार, लेकिन स्कूल में वह ढूंढ़ती रहती मधु सी दुलार। खैर जीवन चक्र में ऐसे बदलाव आते रहते हैं, लेकिन बच्ची की ओर से मदर्स डे पर दो-दो बधाइयां। मधु जी को बहुत-बहुत साधुवाद। आप यूं ही हंसते रहिए, मुस्कुराते रहिए।
कुछ पंक्तियां पेश हैं, इन भावनाओं के समान में

घुटनों से रेंगते-रेंगते, कब पैरों पर हो गई खड़ी
तेरी ममता की छाँव में, जाने कब होने लगी बड़ी
 काले टीके के साथ, टीकों का रखा ध्यान
तेरे लाड़ को मां कोटि कोटि सम्मान
खाना पीना और दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधा-साधा, भोला-भाला,
मैं ही सबसे अच्छी हूूं
कितना भी हो जाऊं बड़ी,
मैं तो तेरी बच्ची हूं।


हम बड़े हुए तो क्या हुआ। मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना हो तो बच्चों की बातों के जरिए ही सही। 
मधु मैडम का मधुर प्यार आज बना भावुक अंदाज
ज्योति की ऐसी छवि बनी कौन खुश और नाराज।
धन्यवाद।