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Wednesday, January 25, 2023

जोशीमठ : विकास, विनाश, किंतु-परंतु और पलायन का दंश

 

फोटो साभार : इंटरनेट
केवल तिवारी

घर मतलब घर। महज चहारदीवारी नहीं। महज चंद दरवाजे या खिड़कियां नहीं। इसीलिए तो Home और House में कई बार फर्क समझाया जाता है। घर एक भाव है जो सुरक्षा का अहसास कराता है। घर एक अपनापन है जो सारे जहां को कुछ गज में समेट देता है। घर में किसी का इंतजार होता है। घर में एक सामूहिक प्यार होता है। लेकिन इन दिनों कुछ घर इसलिए ढहाए जा रहे हैं कि सुरक्षा बनी रहे। घर के लोग सुरक्षित रह सकें। है ना अजीब सी बात। घर ढहाने में कैसी सुरक्षा, लेकिन ऐसा हो रहा है। ये घर इसलिए नहीं ढहाए जा रहे हैं कि जर्जर हो चुके हैं, बल्कि इसलिए तोड़े जा रहे हैं कि यहां एक अजीब सा खौफ दिनोंदिन मुंह फाड़ रहा है। खौफ की जो दरारें चंद दिन छोटी थीं, उनका आकार बढ़ता जा रहा है। आप ठीक समझे, बात कर रहे हैं उत्तराखंड के जोशीमठ की। इसे कुदरत का कहर कहें या अनियोजित विकास की रफ्तार की जोशीमठ पिछले कुछ समय से सुर्खियों में है। सुर्खियां यहां अचानक आ रही दरारों को देखकर। लोगों ने जीवनभर की जोड़ी गयी रकम से सपनों का घर बनाया था। लेकिन इस घर पर मानो बहुत बुरी नजर लग गयी। अभी तक लगभग हजार घरों में छोटी-बड़ी दरारों की सूचना आ चुकी है। अलग-अलग एजेंसियां जहां इसके कारणों को जानने में लगी हैं, वहीं खतरनाक घोषित किए गए भवनों को ध्वस्त करने का भी सिलसिला चल निकला है। खतरनाक तरीके से आपस में जुड़ गये चार होटलों (अलग-अलग स्थानों पर दो-दो होटल) को भी तोड़ा जा रहा है। मरता क्या न करता? सरकारी फरमान के बाद अनेक लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा। एक शायर की दो पंक्तियां यहां सटीक बैठती हैं-
कोई वीरानी सी वीरानी है, दश्त को देख के घर याद आया।
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ, घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना।
आखिर दोष किसका
दोषारोपण करने में भी दो गुट बने हैं। सियासत की मानिंद। एक गुट जो कहता है, यह सब अनियोजित विकास के कारण हुआ है। सरकार ने सही जांच पड़ताल के बगैर ही बड़ी-बड़ी योजनाओं पर काम शुरू करवा दिया। उसका परिणाम आज दिख रहा है। ऐसा कहने वालों में ज्यादातर इस वक्त वे लोग मुखर हैं जो टेहरी बांध निर्माण के समय से ही सरकार की कटु आलोचना कर रहे हैं। उनकी बात में दम भी है क्योंकि प्रभावित क्षेत्र के आसपास ही इन दिनों अनेक विकास कार्य हो रहे हैं। इनमें सबसे चर्चित एनटीपीसी का टनल है। साथ ही रेलवे निर्माण कार्यों को भी गति मिलने की सूचना है। तर्क यह है कि जब हिमालयी पहाड़ा का यह हिस्सा बेहद कमजोर है तो आखिर क्यों यहां ऐसे विकास कार्य कराए जा रहे हैं जिनके कारण पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है। इन सबसे इतर, एक दूसरा गुट है जो विकास कार्यों को अवश्यवंभावी बताता है। ऐसे लोग हिमाचल प्रदेश का उदाहरण देते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि मैदानी इलाकों में बैठे वे लोग सामान्यत: ऐसे लोग विकास का विरोध करते हैं जो पहाड़ों पर महज टूरिस्ट बनकर आते हैं। इन लोगों का तर्क होता है कि पहाड़ को पहाड़ ही रहने दो। असल में जब विकास परियोजनाएं नहीं चलाई जाएंगी तो स्थानीय युवाओं को रोजगार कैसे मिलेगा। दोनों सोच का सार यही है कि नियोजित विकास हो, स्थानीय युवाओं को रोजगार मिले और पहाड़ भी सुरक्षित रहें। फिलहाल जोशीमठ के संबंध में राहत की बात यह है कि जान के नुकसान की दुखद सूचनाएं नहीं हैं। हां कुछ खबरें मवेशियों को लेकर हैं जो पीड़ा पहुंचाती हैं। यानी पालतू पशुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया है। वैसे कुछ सामाजिक संगठन उनकी देखरेख के लिए आगे आई हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि दिल को पीड़ा पहुंचाने वाली कोई खबर न आने पाए।
रिवर्स पलायन जोर पकड़े तो अच्छा...
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है, अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।
ज़लज़ला आया तो दीवारों में दब जाऊँगा, लोग भी कहते हैं ये घर भी डराता है मुझे।
अपने ही घर आकर अपनापन के बजाय परायापन सा महसूस हो तो इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। लेकिन किसी शायर की उक्त पंक्तियां बहुत कुछ कहती हैं। उसी तरह जैसे कि किसी ने कहा है कि 'वर्षों बाद घर आया तो अजनबी से पता पूछना पड़ा।' पिछले कुछ वर्षों से उत्तराखंड में 'रिवर्स पलायन' की खबरें हैं। रिवर्स पलायन का मतलब सब समझ ही रहे हैं। यानी कि यहां से बाहर गए लोग फिर से यहां बस रहे हैं। उनकी बसावट अच्छा संकेत है। अगर यह बसावट अच्छा संकेत है तो इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
फोटो साभार : इंटरनेट


Saturday, January 14, 2023

नये गीत, पुराने गीत और बच्चे

 केवल तिवारी 

हंसनारोना और गाना गुनगुनानासंभवतहर व्यक्ति केसाथ होता है। कोई खुलकर हंसता हैकोई मुस्कुराता है और कोईदेशकाल और परिस्थिति केहिसाब से अपनी हंसीको बिखेरता है। इसी तरह रोने के भी अपने-अपने भाव और ताव हैं। कोई अकेले में रोता है। कोई मौके पर रोता है और कोई चुपके-चुपके रात-दिन…। हंसने और रोने के बाद अब बात करत हैं गाने की। गीत कोई भी हो, कैसा भी हो अपनी-अपनी पसंद के मुताबिक गुनगुनाता है हर कोई। कोई बाथरूम सिंगर होता है, कोई गाहे ब गाहे गुनगुनाता रहा है। बड़े गायकों की बात छोड़ दें तो कुछ लोग हमारी आपकी फरमाइश पर दो-चार लाइनें किसी गीत का सुना देता है। अब अगर बात पसंद या नापसंद की करें तो भंडार है गीतों का। इसीलिए कई सार्वजनिक जगहों पर गुजारिश की जाती है कि संगीत न बजाएं। ज्यादा शौक हो तो ईयरफोन या हेडफोन लगाकर सुनें। आज तो ऑनलाइन इतने एप हैं कि बैकक्राउंड में म्यूजिक बजता रहेगा और आप बोल अपने डाल दीजिए। आपने कैसा गाया, इसकी रैंकिंग भी तुरंत मौजूद।  



खैर… भूमिका कुछ लंबी हो गयी। असल में बात निकली थी एक गीत के बोल से। गीत के बोल हैं तुझसे नाराज नहीं, जिंदगी हैरान हूं मैं…। इसी गीत के आगे एक मुखड़े में एक लाइन है मुस्कुराएं तो मुस्कुराने के कर्ज उतारने होंगे। छोटा बेटा धवल एक दिन अपनी मां से बोला, ‘आज मुझे इस लाइन का मतलब समझ में आ गया।’ कैसे, पूछने पर बोला, आज मैं स्कूल से आते वक्त बड़ा खुश था, लेकिन पैर में चोट लग गयी। हंस सकते ही नहीं, कुछ न कुछ हो जाता है। यह बात सुनकर मैं मुस्कुरा दिया। यूं तो पहले बड़ा बेटा कार्तिक (कुक्कू) भी मुझे कई गीतों को सुनने का आग्रह करता था, ज्यादातर गीत विदेशी होते थे। मैं अनमने भाव से सुनता था। लेकिन कुछ गीतों में मुझे रस आने लगा। वह तो अब पढ़ाई के लिए हॉस्टल में है। अब छोटा बेटा धवल भी कई बार उसी तरह के गीतों को यूट्यूब पर सुनने का आग्रह करता है। मुझे अच्छे भी लगते हैं। आजकल तो कई बार कतर में हुए फुटबॉल के थीम गीत को उसने सुनवाया। खैर उक्त गीत की पंक्ति के बारे में जब उससे पूछा कि उसने इसे कहां सुना, तो बोला आप लोग (मैं और भावना) से। असल में कई बार इस गीत को हम यूट्यूब चलाते हैं या कभी-कबार खुद ही गुनगुनाने लगते हैं। बच्चे ने इस गीत का अपने हिसाब से अर्थ लगाया। मेरे साथ भी ऐसा होता है, अगर मैंने कोई फिल्म न देखी हो और मैं उसके कुछ गीत गाता हूं या सुनता हूं तो उसका फिल्मांकन मेरे दिमाग में मेरे हिसाब से चलता है। ऐसे ही एक बार मैं एक गीत गुनगुना रहा था, ‘चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहां तुम चल गए, कहां तुम चले गये।’ मैं इसे अपने किसी अन्य संदर्भ में जोड़कर सुनता या गुनगुनाता था, बाद में फिल्म की कहानी का पता चला तो कुछ और ही मतलब निकला। चलिए गुनगुनाने, गाने और रोने पर आज की बात बस इतनी, बाकी फिर कभी।  



Wednesday, January 11, 2023

रहस्य-रोमांच, विश्वास-अविश्वास और....

केवल तिवारी

दैनिक ट्रिब्यून में मेरे वरिष्ठ सहयोगी पंडित अनिरुद्ध शर्मा जी का एक दिन फोन आया। उन्होंने कहा, दो पुस्तकों को पढ़ने की सलाह दे रहा हूं। बेहतर हो आप इन्हें खुद ही मंगवा लें। उन दिनों दो पुस्तकों को पहले से ही पढ़ रहा था। समीक्षार्थ। इसलिए करीब 15 दिनों बाद विश्वविद्यालय प्रकाशन को ईमेल किया।

 



पैसे भेजे और तीन या चार दिन में पुस्तकें आ गयीं। एक पुस्तक को तो जल्दी ही पढ़ गया। हालांकि उसमें कुछ क्लिष्ट शब्दों ने परेशान किया, लेकिन दूसरी पुस्तक को शुरू करने से पहले कई व्यवधान आए। खैर, आज 11 जनवरी, 2023 को दूसरी पुस्तक भी पढ़ डाली। ठंड के मौसम में कहीं जाने का कार्यक्रम था नहीं। पिछले तीन-चार दिनों से लगातार पढ़ रहा था और आज दोपहर उसे संपन्न कर लिया। साथ ही पुस्तक में दिए गए चित्रों को देखा और उनके कैप्शन पढ़े। पुस्तक में जगह-जगह चित्रों के माध्यम से यात्रा वर्णन के बारे में बताया गया है। पुस्तक में किशोर रिंचू के बारे में दी गयी बातें हों या फिर दुर्गम विषम परिस्थितियों का चित्रण, महज एक उबले आलू का सेवन हो या फिर सूक्ष्म शरीर से यात्रा का। एक मर चुके युवक से साक्षात्कार की बात हो या फिर महिला का विवाह संबंधी वर्णन साथ ही जगह-जगह प्रश्नोत्तरी... सचमुच यह सब वर्णन अनूठा है। दोनों पुस्तकों का नाम है, तिब्बत का रहस्यमयी योग व अलौकिक ज्ञानगंज और तिब्बत का अज्ञात गुप्त मठ। विवरण है श्रीमत् शंकर स्वामी की यात्रा वृतांत का। शंकर स्वामी को सिद्ध योगी माना जाता है। साथ ही कहा जाता है कि उन्होंने हिमालयी क्षेत्र के ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्रा की है जहां सबके लिए जा पाना संभव नहीं होता। दावा तो यह भी किया जाता है कि आज भी उन दुर्गम स्थानों पर अगर कोई तप और योग के बल पर जाये तो उसे आलौकिक दर्शन होंगे। माजरा जो भी हो पुस्तक के कई अंश रोचक हैं, रोमांचकारी हैं। समीक्षात्मक टिप्पणी से पहले पुस्तक से ही लिए गए कुछ अंशों पर गौर फरमाइये जो यह संदेश भी देते हैं कि हिमालयी क्षेत्र महज पर्यटन और मौज मस्ती के लिए नहीं है। सिर्फ मौज मस्ती के दुष्परिणाम हमने देखे हैं- पढ़िए दोनों पुस्तकों से लिए गए कुछ अंश-
'विश्व विधाता की अपूर्व सृष्टि जगत को जिससने देखा ही नहीं, जाना ही नहीं उसके विधि-विधान को अनुभव भी नहीं किया, उसका विशाल विश्व का आयोजन भ्रमण पर्यटन का नाम दिया गया दो-चार मठ मंदिरों की परिक्रमा, होटलों में गले तक खाना पीना और उद्दंड हो हुल्लड़ करके आने को ही पर्यटन कहते हैं। बहुत घूमे। इस होटल की व्यवस्था अच्छी, इस रेस्टोरेंट का आहार रचना तृप्त उस गली में स्त्री पुरुषों के कपड़े सस्ते उस अंचल की स्थानीय युवतियां देखने में सुंदर। यह देखो वहां की कलाकृति, ... यह तो भ्रमण नहीं सिर्फ हुल्लड़ है। इस दलित मन में कहां पाएंगे वह मुक्ति। कौन देगा उन्हें आशा की किरण। जातियों की मानसिकता देख सुनकर अतिशय करो ना होती मोटरवाहन की सीट पर बैठकर दूर बहुत दूर दूसर पर्वत श्रेणियों के दृश्य में विविध भावनाओं में डूबा रहा बस में। अंत में अवतरण हुआ सीमांत जनपद धारचूला में।'

एक और वर्णन-

'अच्छी तरह से विशेष भाव से देखने पर मैं फिर चौंक उठा। देख रहा यह तो मेरा ही स्वरूप, मेरा ही प्रकाश, मैं ही उस में समाविष्ट, मेरा अस्तित्व, स्मृति बुद्धि आवेश उत्सव आस संवेदना उसी में स्पंदित एक लम्हे में न जाने क्या हुआ? मन की गति घूम गई अपने अंग आदि हस्त पर आदि के दर्शन कर रहा हूं। देखा मैं इंद्री अभी अशरीरी रक्त मांस हीन कंकाल का ढांचा मात्र फिर से गुहा स्थित ऋषि कंकाल में दृष्टिबाधित देख रहा है। यह कंकाल मेरे ही समान रूप रंग स्वरूप लेकर बैठा है और अपने शरीर को देखकर कंकाल का ढांचा यह क्या? यह कोई अघोरी तांत्रिक लीला लामा जी के संग में क्या फलीभूत हुआ मेरे रक्त मांस वरुण को खोलकर स्वरूप कंकाल ने स्वयं को आवृत किया इस कंकाल की हड्डियों के ढांचे को लेकर में जाऊंगा जीवन में एक बार नहीं कई बार स्वयं को देखा और प्रतीत कंकाल को देखा एक ही प्रकार प्रत्यय।'

एक और

'दुख में धैर्य धारण करने और सहने के लिए अभ्यस्त बनो। सुख-दुख समाहार दीप समूह अगर नहीं कोई शंका नहीं भाई रहो तथागत पर निर्भर। दुख जिस तरह वंचित नहीं सुख भी उसी तरह अभिलाष एक नहीं अनुराग। मनन चिंतन से विधि के विधान से पाऊं सुख और दुख स्वागत बंधु स्वागत निर्माण हो नम्र निवेदन करो ताकि जीवन जिज्ञासा सुख दुख आता जाता रहता है। ... कौन हो तुम और कौन यहां किसका!'

एक अन्य

'नेपाली छोकरा प्रीत शरीर लेकर मेरे पास काम कर रहा है उसने शिखर धाम में एक नए साधु की गुफा बनाई। लोहे की चादर से बने गेट पर एक जोड़ा ग्रिल पीठ पर लेकर वह मेरे साथ शिखर धाम से उत्तरकाशी में उतर आया। मरम्मत के बाद फिर से उन्हें वापस पहुंचाया अब तक समझ नहीं आया था कि वह एक नेपाली प्रेत काया है।'

और अंत में फिर एक

'संकीर्ण बुद्धि का मानव कहता है एक-दो तकनीक सिखा दो। यदि वे सैकड़ों तकनीक भी सीख लें तब भी अंतर्मन की गोपन वार्ता से अनभिज्ञ रह जाएंगे। हाय हाय बंधन में ही इनका आत्म सुख है। बंधन में ही इनका जीवन मरण त्याग उदारता के रस की मधुरिमा से वंचित है। नहीं जानते दूसरों की सेवा सहयोग के बिना हृदय प्रसारित नहीं होता। आत्म सुख भोग करते हुए घर पर बैठकर दो-चार तकनीक करने से परमात्मा का दर्शन कर लेंगे सोचते हैं। चतुराई कर आध्यात्मिक ज्ञान विवेक अर्जुन कर लेंगे, लेकिन इनसे कुछ भी नहीं होता जिनका मानव धर्म ही नहीं उनका आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश नहीं अधिकार ही नहीं...'

दोनों पुस्तकें रहस्य और रोमांच से भरपूर हैं, लेकिन शब्दावली कठिन है जिससे प्रवाह और वेग अटकता सा लगता है। कभी-कबार कुछ चीजों पर विश्वास सहज ही नहीं होता, लेकिन प्रामाणिक तरीके से चीजों को रखा गया है तो न मानने को भी मन नहीं मानता। दोनों पुस्तकें संग्रहणीय हैं। धन्यवाद अनिरुद्ध जी। 

Monday, January 2, 2023

कृष्ण के बाल्यकाल स्थलों के दर्शन... साथ में कुछ बातें-वातें

केवल तिवारी

श्रद्धा। भावना। परिक्रमा। पूजा-अर्चना। हरिनाम का जाप। यही सब तो होता है जब आप किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं। कुछ चीजों से आपका मन शांत और प्रसन्न हो जाता है तो कुछ चीजें आपको व्यथित भी कर देती हैं। लेकिन आपके वश में कुछ नहीं होता। हां, आप जिस उद्देश्य से जाते हैं, वह फलीभूत हो जाए तो बस क्या चाहिए? हमारी इच्छा भी थी कि भगवान श्रीकृष्ण जन्म और बाल्यकाल से जुड़े स्थलों पर सपरिवार जाकर पूजा-अर्चना करें। मैं तो एक बार गया हूं। हालांकि वह जाना बहुत जल्दी-जल्दी का था। कई वर्षों से विचार बना, लेकिन बुलावा इस बार आया। माध्यम बने भास्कर जोशी (राजू) का परिवार और उनके पड़ोसी अग्रवाल साहब। 


क्रिसमस पर्व के दिन रविवार 25 दिसंबर को मैं कार्तिक, धवल और भावना पहुंच गए फरीदाबाद। भव्य का इंतजार देखने लायक होता है। सातवीं में पढ़ने वाला यह बच्चा लाइव लोकेशन मांगता है। प्रीति मैडम की चाय और बच्चों के लिए विशेष डिश। पूरे परिवार का अपनापन खींच ले जाता है फरीदाबाद। फिर भावना और राजू का जुड़वां होना। खैर... चलते हैं सफर पर।
शुरुआत बरसाना और नंदगांव से
सोमवार को दोपहर हम लोग बरसाना के लिए चल पड़े। तय किया गया कि कुछ धार्मिक स्थलों पर आज शीश नवा के आ जाते हैं, कुछ पर मंगलवार को। सीधे बरसाना गए फिर नंद गांव। नंद गांव में एक वाकये ने परेशान किया। असल में मंदिरों की इस नगरी में भी जगह-जगह मंदिर हैं। एक जगह तो 'असली मंदिर' बताकर श्रद्धालुओं की श्रद्धा और भावनाओं से खेला गया। गाय के नाम पर और राधारानी के शृंगार के नाम पर पैसे लिए गए। बाद में जिसे पता चला कि असली मंदिर तो ऊपर है तो वह परेशान हुआ। पता नहीं क्यों ऐसी ठग विद्या करते हैं लोग। अव्वल तो यह है कि सभी धार्मिक स्थलों को ट्रस्ट बना दिया जाये। खैर हम श्रद्धाभाव से गए थे और दोनों मंदिरों के अलावा उस नगर की हर गली को भी शीश नवाया। मन में भगवान का सुमिरन किया। इसी मंदिर में जाते वक्त का एक वाकया याद है। असल में वहां खड़ी चढ़ाई में कार चलाकर ले गया। पहले तो ठीक चल रही थी जैसे ही आगे चल रही कार ने ब्रेक लगाया, मुझे भी लगाना पड़ा। जब दोबारा रेस दी तो कार थोड़ा सा पीछे को सरकी। कार में बैठीं प्रीति और भावना डर गए। वैसे सब ठीक रहा और वापसी में कार बैक राजू ने की और हम दर्शन कर प्रसन्नचित्त होकर आ गए। शाम को अग्रवाल साहब के घर पर रुके।
सुबह-सुबह परिक्रमा, फिर दर्शन और बांके बिहारी की भीड़ के साथ गुरुजी-वुरुजी




मंगलवार सुबह मैं, भावना, भास्कर और प्रीति चल पड़े वृंदावन की परिक्रमा करने। छह बजे शुरू परिक्रमा करीब साढ़े आठ बजे संपन्न हुई। इसके बाद घर आए और फिर बच्चों को लेकर गए बांके बिहारी के दर्शन करने। बांके बिहारी के अद्भुत दर्शन हुए। बिल्कुल सामने से। हमारे सामने ही आरती हुई। सभी प्रसन्न। फिर पैदल आते वक्त यमुना दर्शन किए। जल के छींटे डाले। गनीमत है कि इस इलाके में यमुना अभी भी नदी नजर आती है। दिल्ली में तो इस नदी का क्या हाल है, किसी से छिपा नहीं। उसके बाद हम लोगों ने निधि वन जाने का फैसला किया। निधि वन जाते वक्त किसी गुरुजी की शोभा यात्रा निकल रही थी। श्रद्धालु तख्तियां लिए चल रहे थे। आगे एक गाड़ी में बहुत बड़े स्पीकर रखे थे जो बज रहे थे, पीछे गुरुजी की प्रतिमा। अथाह भीड़। मेरा मोबाइल बेटे कार्तिक ने लिया था। हम लोग तेजी से जा रहे थे ताकि किनारे से समय पर निधि वन पहुंच जायें। मैं तेजी से आगे निकल गया। इस बीच, जानबूझकर जाम लगा दिया गया ताकि यह लगे कि गुरुजी के फॉलोअर बहुत ज्यादा हैं। तभी भगदड़ जैसी स्थिति बन गयी। बाकी परिवार अलग और मैं अलग। नंगे पैर था, किसी ने जूता रख दिया। अंगूठे के पास थोड़ा सा कट भी गया। अब करें क्या। इस भीड़ में धवल और भव्य तो परेशान हो गए होंगे। तभी एक महिला आई, बोली, भैया मोबाइल है तो देना मेरा बच्चा पीछे छूट गया है। लेकिन मेरे पास तो मोबाइल था ही नहीं। इसी दौरान एक युवक ने फोन दिया। उसी फोन से मैंने भी कुक्कू को कॉल की। किसी तरह हम लोग निधि वन पहुंचे। दर्शन और परिक्रमा एवं शीश नवाने के बाद हम लोगों ने तय किया मथुरा जाने का।
मथुरा में मन बहुत प्रसन्न हुआ
चूंकि मथुरा का पूरा सिस्टम पुलिस और प्रशासन के हाथ में है इसलिए यहां सबकुछ सिस्टमेटिक रहा और मन प्रसन्न भी हुआ। कृष्ण जन्मस्थली पर भी हालांकि ठगी के किस्से कदम-कदम पर सुनने को मिलते हैं, लेकिन उम्मीद है कि जल्दी ही सरकार इन मंदिरों में ऐसी व्यवस्था बनाएगी कि लोग मिसाल देंगे।
क्रम में हो सकती है गलती, जहां-जहां हम घूमे
धार्मिक यात्रा के अंतिम पड़ाव में हम लोगों ने गोवर्धन की परिक्रमा की। यह परिक्रमा ई रिक्शा के माध्यम से की। लेकिन यहां रास्तेभर लोगों की श्रद्धा देख मन भावुक हो गया। सचमुच पूजा, पाठ और पूजा-अर्चना श्रद्धा और भाव वाला ही मामला है। साथ ही नितांत निजी मामला। हम गए तो अनेक जगह और हो सकता है कि उपरोक्त वर्णन में क्रम कुछ गड़बड़ा गया हो। इसलिए कुछ प्रमुख स्थलों का नाम यहां लिख रहा हूं जहां-जहां हम लोग गए। साथ ही वापसी में सरसों के खेतों में कुछ फोटोग्राफी भी की। हम लोग गए-
कोकिला वन। शनि मंदिर। टेर कदम। आशेश्वर महादेव। नंद गांव। बरसाना।
बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन। यमुना दर्शन। निधि वन। मथुरा। रमन रेती। गोवर्धन। राधा कुंड। मानसी गंगा आदि।