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Wednesday, January 25, 2023

जोशीमठ : विकास, विनाश, किंतु-परंतु और पलायन का दंश

 

फोटो साभार : इंटरनेट
केवल तिवारी

घर मतलब घर। महज चहारदीवारी नहीं। महज चंद दरवाजे या खिड़कियां नहीं। इसीलिए तो Home और House में कई बार फर्क समझाया जाता है। घर एक भाव है जो सुरक्षा का अहसास कराता है। घर एक अपनापन है जो सारे जहां को कुछ गज में समेट देता है। घर में किसी का इंतजार होता है। घर में एक सामूहिक प्यार होता है। लेकिन इन दिनों कुछ घर इसलिए ढहाए जा रहे हैं कि सुरक्षा बनी रहे। घर के लोग सुरक्षित रह सकें। है ना अजीब सी बात। घर ढहाने में कैसी सुरक्षा, लेकिन ऐसा हो रहा है। ये घर इसलिए नहीं ढहाए जा रहे हैं कि जर्जर हो चुके हैं, बल्कि इसलिए तोड़े जा रहे हैं कि यहां एक अजीब सा खौफ दिनोंदिन मुंह फाड़ रहा है। खौफ की जो दरारें चंद दिन छोटी थीं, उनका आकार बढ़ता जा रहा है। आप ठीक समझे, बात कर रहे हैं उत्तराखंड के जोशीमठ की। इसे कुदरत का कहर कहें या अनियोजित विकास की रफ्तार की जोशीमठ पिछले कुछ समय से सुर्खियों में है। सुर्खियां यहां अचानक आ रही दरारों को देखकर। लोगों ने जीवनभर की जोड़ी गयी रकम से सपनों का घर बनाया था। लेकिन इस घर पर मानो बहुत बुरी नजर लग गयी। अभी तक लगभग हजार घरों में छोटी-बड़ी दरारों की सूचना आ चुकी है। अलग-अलग एजेंसियां जहां इसके कारणों को जानने में लगी हैं, वहीं खतरनाक घोषित किए गए भवनों को ध्वस्त करने का भी सिलसिला चल निकला है। खतरनाक तरीके से आपस में जुड़ गये चार होटलों (अलग-अलग स्थानों पर दो-दो होटल) को भी तोड़ा जा रहा है। मरता क्या न करता? सरकारी फरमान के बाद अनेक लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा। एक शायर की दो पंक्तियां यहां सटीक बैठती हैं-
कोई वीरानी सी वीरानी है, दश्त को देख के घर याद आया।
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ, घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना।
आखिर दोष किसका
दोषारोपण करने में भी दो गुट बने हैं। सियासत की मानिंद। एक गुट जो कहता है, यह सब अनियोजित विकास के कारण हुआ है। सरकार ने सही जांच पड़ताल के बगैर ही बड़ी-बड़ी योजनाओं पर काम शुरू करवा दिया। उसका परिणाम आज दिख रहा है। ऐसा कहने वालों में ज्यादातर इस वक्त वे लोग मुखर हैं जो टेहरी बांध निर्माण के समय से ही सरकार की कटु आलोचना कर रहे हैं। उनकी बात में दम भी है क्योंकि प्रभावित क्षेत्र के आसपास ही इन दिनों अनेक विकास कार्य हो रहे हैं। इनमें सबसे चर्चित एनटीपीसी का टनल है। साथ ही रेलवे निर्माण कार्यों को भी गति मिलने की सूचना है। तर्क यह है कि जब हिमालयी पहाड़ा का यह हिस्सा बेहद कमजोर है तो आखिर क्यों यहां ऐसे विकास कार्य कराए जा रहे हैं जिनके कारण पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है। इन सबसे इतर, एक दूसरा गुट है जो विकास कार्यों को अवश्यवंभावी बताता है। ऐसे लोग हिमाचल प्रदेश का उदाहरण देते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि मैदानी इलाकों में बैठे वे लोग सामान्यत: ऐसे लोग विकास का विरोध करते हैं जो पहाड़ों पर महज टूरिस्ट बनकर आते हैं। इन लोगों का तर्क होता है कि पहाड़ को पहाड़ ही रहने दो। असल में जब विकास परियोजनाएं नहीं चलाई जाएंगी तो स्थानीय युवाओं को रोजगार कैसे मिलेगा। दोनों सोच का सार यही है कि नियोजित विकास हो, स्थानीय युवाओं को रोजगार मिले और पहाड़ भी सुरक्षित रहें। फिलहाल जोशीमठ के संबंध में राहत की बात यह है कि जान के नुकसान की दुखद सूचनाएं नहीं हैं। हां कुछ खबरें मवेशियों को लेकर हैं जो पीड़ा पहुंचाती हैं। यानी पालतू पशुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया है। वैसे कुछ सामाजिक संगठन उनकी देखरेख के लिए आगे आई हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि दिल को पीड़ा पहुंचाने वाली कोई खबर न आने पाए।
रिवर्स पलायन जोर पकड़े तो अच्छा...
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है, अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।
ज़लज़ला आया तो दीवारों में दब जाऊँगा, लोग भी कहते हैं ये घर भी डराता है मुझे।
अपने ही घर आकर अपनापन के बजाय परायापन सा महसूस हो तो इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। लेकिन किसी शायर की उक्त पंक्तियां बहुत कुछ कहती हैं। उसी तरह जैसे कि किसी ने कहा है कि 'वर्षों बाद घर आया तो अजनबी से पता पूछना पड़ा।' पिछले कुछ वर्षों से उत्तराखंड में 'रिवर्स पलायन' की खबरें हैं। रिवर्स पलायन का मतलब सब समझ ही रहे हैं। यानी कि यहां से बाहर गए लोग फिर से यहां बस रहे हैं। उनकी बसावट अच्छा संकेत है। अगर यह बसावट अच्छा संकेत है तो इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
फोटो साभार : इंटरनेट


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