केवल तिवारी
वो ऑफिस का कारवां, वो कारवां से हटना
वो हंसते-हंसते मिलते हुए मिलने की बातें करना
वो अपनापन, वो प्यारी बातें और कुछ पकड़ना, कुछ छूटना
वो घर पहुंचने का सिलसिला और घर पर ही रुकना
ये जीवन की परियां हैं, इन्हें यूं ही खेलते रहना
चलते-चलते फिर यूं ही बनेगा एक नया कारवां।
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सेवानिवृत्ति नहीं सम्मान समारोह। स्मृति चिन्ह संग जीजाजी। |
तारीख : 31 जनवरी, 2023। स्थान : लखनऊ। मुख्य कार्यक्रम : जीजा जी (पूरन चंद्र जोशी) की सरकारी सेवा से सेवानिवृत्ति। 30 जनवरी की रात ट्रेन में बैठा और लखनऊ के लिए निकल पड़ा। बार-बार दुआ कर रहा था कि ट्रेन लेट न हो। ट्रेन की देरी को लेकर कभी दुआएं कबूल हो जाती हैं और कभी नहीं होती। कभी लगता है दूसरी तरफ के उत्साह का भी असर पड़ता है। खैर जो भी हो, ट्रेन ज्यादा लेट नहीं हुई। शीला दीदी और भानजे- सौरभ, गौरव कुणाल एवं जीजाजी के दीदी-जीजाजी इंतजार कर रहे थे। घर में सुंरदरकांड का पाठ रखा था। घर पर सुंदरकांड करीब 12:30 बजे तक चला। इस बीच तेलीबाग से भाई साहब एवं भाभीजी (भुवन चंद्र तिवारी एवं राधा तिवारी) भी पहुंच गए। मिलजुलकर आरती की और फटाफट जीजाजी के साथ निकल गया केसरबाग स्थित राजस्व परिषद यानी बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के दफ्तर के लिए। सबसे पहले सेक्शन 10 गया। इस सेक्शन से मेरा भी पुराना नाता है। बेशक अब कार्यालय नये रंग-रूप में आ चुका था, लेकिन स्थान तो वही होता है। उस परिसर को देखकर और सुबह चारबाग से मुंशी पुलिया तक के सफर में कुछ यादों में खो सा गया। कभी यूनिवर्सिटी को देखकर कुछ याद आया और अब राजस्व परिषद के इस प्रांगण को देखकर बहुत कुछ याद आया। ऑफिस में पहुंचकर कुछ देर बातें हुईं और जीजाजी के साथ अनेक सेक्शनों में उनके वरिष्ठों, कनिष्ठों, साथियों से मिलने का सिलसिला चला। इसके बाद हुई सेक्शन में सम्मानित करने के कार्यक्रम की शुरुआत। बातें हुईं। दो मिनट मुझे भी मौका मिला। मैंने बस यही कहा, ‘सरकारी सेवा से निवृत्ति एक प्रक्रिया है, लेकिन कभी भी संबंधों से निवृत्ति नहीं होनी चाहिए।’
जीजाजी इस दौरान नये सूट में अलग ही अंदाज में लग रहे थे। मैंने मजाक में कहा कि जीजाजी को बोर्ड ऑफ रेवेन्यू ने भरी जवानी में रिटायर्ड कर दिया। बेशक रिटायरमेंट का समय पुराना होता है। यानी पुरानी होती जॉब में नयेपन की शुरुआत। लेकिन करीब सात लोगों की रिटायरमेंट का यह वक्त मानो कह रहा हो, ‘कि सब कुछ लागे नया-नया।’
मिथिलेश जी का साथ और बातों से निकली बात
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मिथिलेश जी |
जीजाजी के साथ जब केसरबाग स्थित उनके दफ्तर जा रहा था तो वह बोले, मेरे बॉस मिथिलेश जी बहुत अच्छे इंसान हैं। मैँ समझा कि जीजाजी खुद इतने नेकदिल हैं और इन्हें सभी अच्छे लगते हैं। वह कई बातें बताते रहे, लेकिन मैंने कोई ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। फिर दफ्तर में पहुंचने के बाद उन्होंने अपने सभी साथियों से मुलाकात कराई साथ ही मिलाया मिथिलेश जी से। दो-चार वाक्यों के आदान-प्रदान के बाद ही सचमुच लगा, मिथिलेश जी तो मिथलेश जी ही हैं। पहले वह बोले, जोशी जी के जाने के बाद दिक्कतें तो आएंगी ही। फिर हम अन्य बातों पर भी चर्चा करने लगे। कुछ ही देर की बातों से मुझे लगा कि ये भावुक हैं। भावुकता के साथ-साथ कवि हृदय व्यक्ति हैं। मेरा विचार सही निकला। वह तो गुनगुनाकर बहुत अच्छा बोलते हैं। उन्होंने पूरी एक कविता की रचना कर रखी है। जिसे आप यहां साझा की जा रही वीडियो क्लिप में सुन सकते हैं। इसके बाद शाम होने तक वह साथ रहे। यही नहीं, घर पर भी छोड़ने आए। घर पहुंचकर कुछ देर और साथ रहे। मैंने उनसे कहा कि अपने अनुभव लिखकर भेजूंगा। मिथलेश जी सचमुच आपसे मिलकर अच्छा लगा। जब भी लखनऊ आना होगा, आपसे मुलाकात करूंगा। आपका चंडीगढ़ में स्वागत है। आप आंखों की किसी समस्या से जूझ रहें, दुआ है कि जल्दी ठीक हो जायें। कुछ कविताएं मेरे ब्लॉग या यूट्यूब चैनल के लिए लिखना चाहें या पढ़ना चाहें तो स्वागत है। आपको यूट्यूब लिंक अलग से साझा कर दूंगा। विस्तार से ज्यादा कुछ नहीं लिख पाऊंगा। बस यही कहूंगा, ‘रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल।’ आप हीरा हैं।
कैसे भूल सकता हूं भानजों की वह संगत
सौरभ, गौरव और कुणाल। तुम तीनों के लिए यही कहूंगा, भगवान तुम लोगों को स्वस्थ रखे। तीनों में प्रेम बना रहे और मामा के लिए यह प्यार हमेशा बना रहे। सुबह उठकर अपने से बड़ों के पैर छूना, तीनों भाईयों का आपस में मशविरा करना, दिल को भा गया। मां की चिंता करना भी गजब था। गौरव की फक्कड़ी भी पसंद आई, लेकिन…। भूतनाथ मंदिर में गौरव का यह कहना कि अरे मामा आप खाइये, बिल आप क्यों देंगे। वह कचौड़ी का स्वाद अब भी मुंह में है। कुणाल का वीडियो कॉल के जरिये मामी को भूतनाथ मंदिर के दर्शन कराना। सौरभ से कई बातें करना, कुछ स्वाद लेना। क्या-क्या कहूं। दो लाइनों में कोशिश करता हूं बातों को समेटने की-
मेरे दिल में समाये हो, हर दिल अजीज हो। मेरे भानजो तुम्हें नहीं मालूम तुम चीज क्या हो।
कितनों से मिलना और कितनों को याद करना
सेवानिवृत्ति के मौके पर शाम को आयोजित प्रीतिभोज में अनेक लोग मिले। कुछ नये लोगों से मुलाकात हुई। कुछ ऐसे बच्चों से भी जो बड़े हो गए हैं। इस दौरान जीजाजी का मेरा परिचय बेटे कुक्कू के साथ जोड़कर कराना बहुत अच्छा लगा। कुछ लोगों की कमी भी खली। लेकिन सबकी अपनी-अपनी समस्याएं हैं। रुद्रपुर से आए जीजाजी के दीदी-जीजाजी के साथ बातचीत भी सहेजने लायक है। लब्बोलुआब यही है कि कार्यक्रम बहुत अच्छा रहा। अंत में यही कहूंगा-
ना कोई राह आसान चाहिए, ना ही हमें कोई पहचान चाहिए,
एक ही चीज मांगते है रोज भगवान से, अपनों के चेहरे पर हर पल प्यारी से मुस्कान चाहिए…
2 comments:
Badhiya varnan mithilesh mithilesh ji ko bhi badhai
भावपूर्ण
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