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Wednesday, April 27, 2022

महाभारत का संजय, पत्रकार धर्म और प्रो कुठियाला, केजी सुरेश व विजय क्रांति की खास बातें

 केवल तिवारी

महाभारत का एक महत्वपूर्ण किरदार है संजय। उसका झुकाव पांडवों की ओर है, लेकिन जब वह अपना काम करता है यानी धृतराष्ट्र को युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाता है तो उसकी वाणी में कोई अंतर नहीं होता। जब अभिमन्यु बध का दृश्य होता है तब भी वह शांत स्वभाव से सबकुछ बताता है और जब दुर्योधन का बध होता है तब भी। यानी पहले न तो उसके स्वर में कोई पीड़ा झलकती है और न ही बाद में खुशी। उसका धर्म और कर्त्तव्य सूचना देना था। वह समावेशी भाव से ऐसा कर रहा था। यही एक पत्रकार का धर्म भी होता है। उसे निष्पक्षता बनाये रखते हुए समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा, साथ ही समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह तय करे कि मीडिया किस तरह का हो। खासतौर से आज के बदले परिप्रेक्ष्य में समाज का यह दायित्व और बढ़ जाता है। इस तरह की बातें पिछले दिनों हरियाणा राज्य उच्चतर शिक्षा परिषद, पंचकूला के अध्यक्ष प्रोफेसर बृज किशोर कुठियाला ने कहीं। 



कुठियाला एक संगोष्ठी में बोल रहे थे। संगोष्ठी का विषय था 'समाज के प्रति मीडिया की जवाबदेही।' कुठियाला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि मीडिया को समाज पोषित होना चाहिए। साथ ही यह भी चिंतन का विषय होना चाहिए कि समाज की मीडिया के प्रति क्या जिम्मेदारी है। इस संगोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ पत्रकार एवं पत्रकारों के हक में लड़ाई रहते रहे श्याम खोसला की पहली पुण्यतिथि पर किया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व कुलपति प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला ने श्याम खोसला को बौद्धिक योद्धा बताते हुए कहा कि उन्होंने राष्ट्र की परिभाषा, हिंदुत्व की व्याख्या और धर्म एवं रिलीजन पर अपनी अलग चिंतन पद्धति दी। श्याम खोसला के साथ दो किताबें लिखने वाले प्रो. कुठियाला ने कहा कि पत्रकारिता का धर्म क्या है और समाज के प्रति एक पत्रकार का दायित्व बोध क्या होना चाहिए, इस पर श्री खोसला का विशेष फोकस रहता था। उन्होंने श्याम खोसला के शब्द ‘बौद्धिक योद्धा।’ पर जोर दिया। उन्होंने पत्रकार का समाज को और समाज का मीडिया को बौद्धिक योगदान के महत्व को रेखांकित किया। कुठियाला ने कहा कि मीडिया को समाजपोषित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता को उच्च मानदंडों पर ले जाने वाले बौद्धिक योद्धा के महत्व को आज का समाज समझे। इस कार्यक्रम में अन्य वक्ता भी रहे। वक्ताओं ने कहा कि खबर सही हो और उसके निर्माण में ईमानदारी बरती जाये, इसके लिए जरूरी है कि खबरनवीस जानकार हो और तथ्यों का महत्व समझता हो। साथ ही जरूरी है कि खबरों एवं पत्रकारिता के संबंध में राष्ट्रीय मीडिया पॉलिसी बने।  

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति केजी सुरेश, वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति रहे। कार्यक्रम में हरियाणा के शहरी निकाय मंत्री डॉ कमल गुप्ता ने फोन के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। पूर्व मंत्री एवं हरियाणा के मुख्यमंत्री से संबद्ध कृष्ण बेदी ने बातचीत की शुरुआत करते हुए बताया कि किस तरह हरियाणा सरकार ने पत्रकारों के हित में अनेक कदम उठाये हैं। वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति ने कहा कि आज परिस्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। प्रतिस्पर्धा की गलाकाट लड़ाई में गलती होने की आशंका तो अनेक हैं ही, साथ ही चुनौतियां भी अपार हैं। उन्होंने कहा कि सूचना एकत्र करने में ईमानदारी की दरकार है। साथ ही सूचना एकत्र करने वाले पत्रकार को खुद भी इतना ज्ञानशील होना चाहिए कि उसे इस बात का भान हो कि उसकी जरा सी चूक बहुत बड़ी वारदात का कारण भी बन सकती है। उन्होंने कहा कि समाज के प्रति जवाबदेही सिर्फ मीडिया की नहीं, बल्कि समाज को भी मीडिया के प्रति जवाबदेह होना होगा। समाज को तय करना होगा कि उसे कैसी मीडिया चाहिए। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति केजी सुरेश ने नेशनल मीडिया पॉलिसी बनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने तथ्यों के सटीक होने पर जोर दिया। इस मौके पर श्याम खोसला के साथ लंबे समय तक काम कर चुके एवं उनके साथ कई मौकों पर साथ रहे वरिष्ठ पत्रकार वीपी प्रभाकर, बीडी शर्मा, डॉ केएस आर्य ने भी अपने विचार रखे। मंच संचालन वरिष्ठ पत्रकार अशोक मलिक ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सीजेए के अध्यक्ष दीपक वाशिष्ठ एवं इंडियन मीडिया सेंटर-चंडीगढ़ के राकेश शर्मा ने किया। सभी वक्ताओं ने श्याम खोसला की विभिन्न खूबियों के बारे में बताया और उनके बताए मार्ग पर चलने की जरूरत पर बल दिया।
कुछ लिंक भी शेयर कर रहा हूं।

The ForeFront :
https://youtu.be/3BXcvageBFo

https://youtu.be/EwzcviRSXy4

https://youtu.be/E87u5ASiPC8

Sunday, April 24, 2022

मयंक की शादी : भांजियों का समागम और संत सरीखी उपस्थिति

केवल तिवारी

भांजियों के इस समागम में संत सरीखी उपस्थिति रही। अनेक परिजन ऐसे थे जिनसे 20-25 साल के अंतराल में मुलाकात हुई। किस्मत से मेरी पांच भांजियां हैं और इतने ही भांजे। किस्मत के एक कदम आगे की बात कि इस बार बड़ी भांजी के बेटे ललित मोहन उर्फ मयंक की शादी थी। लता और हरीश पंत जी का फोन महीनेभर पहले आ गया था। 15 अप्रैल की दोपहर जब हल्द्वानी के कठघरिया स्थित उनके निवास स्थल पर पहुंचा तो मन प्रसन्न हो गया। 

दादी और नानी के साथ दूल्हा मियां। साथ में भाई


भांजियों, उनके पतियों और बच्चों से तो मुलाकात हुई ही, उस दीदी से विशेष मुलाकात हुई जिसके नाती की आज शादी थी। यानी विमला दीदी। जाहिर है दीदी के करीबी अनेक लोगों से मिला। चूंकि मेरे जीवन में शाहजहांपुर का दो साल का निवास एक अहम पड़ाव वाला है, इस लिहाज से वहीं से दीदीयों की ननदों और अन्य परिजनों से मिलने या बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था, आज फिर उनमें से कई लोगों से मुलाकात हुई। समय तो काफी लंबा निकल गया, लेकिन बदलाव बहुत ज्यादा कहां आता है। मुझे भी अनेक लोगों ने पहचान लिया और मैंने भी उन्हें पहचाना। जानने-पहचानने के इस क्रम में हंसी मजाक भी चलती रही और कार्यक्रम भी संपन्न होते रहे। 



कुछ कार्यक्रमों से मैं पहली बार परिचित हुआ और इसे आत्मसात किया क्योंकि बदलते समय के साथ अगर कदमताल करते रहें तो उसमें हर्ज कैसा। जैसा कि परिवार के कुछ लोगों को हल्दी की रस्म के बाद दी गयीं विशेष टी शर्ट और उन पर लिखे कमेंट। पंत जी यानी दूल्हे के पिताश्री की टीशर्ट पर लिखा था ‘मैं सब जानता हूं।’ बन्ना भांजी जहां ‘मौसी ब्यूटीफुल थी’ वहीं उसके पति अनुज का पुष्पा स्टाइल ‘झुकेगा नहीं साला।’ वैसे इस कमेंट से मैंने इत्तेफाक नहीं रखा। रमा भांजी ‘बिंदास मौसी’ बनी तो उसके पति को ‘कभी-कभी खुद के जवान होने का गुबान था।’ वैसे संजय यानी हमारे प्रिय संजू हमेशा जवान हैं। उनका गांभीर्य स्वभाव मुझे भाता है। उनकी बेटी के कमेंट पर मैं पूरी तरह सहमत था। ‘एटीट्यूड क्वीन’ की तो आंखों से शरारत टपकती है। प्यारी है बच्ची। अविरल बाबू हैं ही स्मार्टी, ऐसे ही निक्कू आदि भी कमेंट के मुताबिक। लखनऊ से पहुंचे दूल्हेराजा के चाचा नित्यानंद जी वाकई वही कर रहे थे जो उन्हें कमेंट मिला था, ‘रिस्पोंसेबल चाचा।’ ऐसे ही दूल्हे के छोटे भाई वाकई ‘शर्मीला देवर’ लग रहे थे। वैसे मुकुल बाबू की एक जिम्मेदारी वाला भाव मुझे इतना भाया कि अब तक उसकी चर्चा करता हूं। वह हर रस्मो रिवाज पर दादी का हाथ पकड़कर उस समारोह स्थल पर लाना नहीं भूले। गुड मुकुल बेटे। फिर लखनऊ से पधारे पंडित नानू मामा का वह कमेंट तो सचमुच जोरदार था, ‘मामा का भौकाल, जय महाकाल।’ कमेंट की बातों के बीच प्रिय भांजे पंकज की पत्नी मनीषा और इनकी बिटिया अग्रणी के साथ नवीन पंडितजी उर्फ नानू की बिटियाएं रिद्धि-सिद्धि का भी जिक्र जरूरी है। मनीषा को मैंने बुलाकर प्रणाम करवाया। भीड़ थी, मैं लोगों को दिख नहीं रहा था। ऐसे भी अपने स्टैंडर्ड साइज के कारण दिख कहां पाता हूं। ऑफिस में भी जब कहा कि भांजी के बेटे की शादी में जाना है तो लोग गौर और हैरत से मुझे देख रहे थे। खैर जब मैं बच्चों से कह रहा था कि मैं तुम सबका नाना हूं तो अविरल बाबू आये और बोले, अगर आप इनके नाना हैं तो मेरे भी होंगे। मैंने कहा बिल्कुल। पैर छू लो और अपनी मम्मी का नाम बताओ। जैसे ही उसने बन्ना का नाम लिया मैं समझ गया इसी बच्चे को दिल्ली में नामकरण के बाद आज पहली बार यहां हल्द्वानी में देख रहा हूं। मनीषा के पिताजी से मिला और उनसे सीखा कि जिजीविषा बहुत जरूरी है। पूरे कार्यक्रमों में पंकज को मिस करते रहे। हालांकि उससे चैटिंग चलती रही। 



चार दीदीयां और फिर पांच भांजे एवं पांच भांजियां। बहुत सौभाग्यशाली हूं। साथ ही जीवन के अनेक किंतु-परंतु। खैर यहां ज्यादा जिक्र नहीं। भांजी रुचि उसके पति दीपेश, भांजी रेनु उसके पति कंचन और कंचन की माताजी से भी कार्यक्रम में मुलाकात हुई। इन मुलाकातों के बीच में अगर ससुराल का जिक्र नहीं करूंगा तो... तो... तो...। ससुराल वाले भी आए। उन्हें भी निमंत्रण था। लखनऊ प्रवास के समय से ही मेरे मित्र शेखर जोशी एवं उनकी पत्नी यानी हमारी भाभी भी पहुंची थीं। अच्छा लगा। खूब बातें हुईं। इस विशेष समारोह की बातें तो इतनी हैं कि न जाने कितना लिख जाऊं, लेकिन इसी लेख में कुछ फोटो भी तो साझा करूंगा जो खुद कहानी बयां करेंगे। लेकिन यह सच है कि सभी सज्जनों की मौजूदगी और हरीश पंत जी के पारिवारिक बौंडिंग ने भाव विभोर कर दिया। दूर-दूर तक के रिश्तेदार आए हुए थे। लता-हरीश जी को बहुत-बहुत बधाई।



और उर्मिला दीदी को विशेष धन्यवाद

सुआल पथाई वाली शाम भावना की थोड़ी तबीयत बिगड़ गयी। मैंने बन्ना से इसका जिक्र किया। उसने तुरंत पड़ोस में उर्मिला दीदी के यहां व्यवस्था कर दी। पंतजी एवं बन्ना लोगों की दोस्ती का असर तो होगा ही, उर्मिला दीदी का भी स्वभाव होगा कि उन्होंने खूब आतिथ्य सत्कार किया। सुबह गर्म पानी, बेहतरीन चाय से लेकर पूरे घर को हमारे हवाले करने जैसे उनके स्वभाव ने दिल जीत लिया। दो दिन बाद रिसेप्शन के मौके पर उन्होंने अपनी बहू से हमारी मुलाकात कराई। उर्मिला दीदी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना, बस यही कहना आप यूं ही हंसते-मुस्कुराते रहें, स्वस्थ रहें। थैंक्स ए लॉट।

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सुख-दुख दोनों जहां, जीवन है वो गांव... कहीं धूप तो कहीं छांव

जीवन चक्र है, यहां सबकुछ चलता है। शादी कार्यक्रम संपन्न होने के अगले दिन यानी रिसेप्शन वाले दिन नानू के ससुर जी का निधन हो गया। चारों तरफ ध्यान रखने वाली हमारी साहसी दीदी विमला दीदी नानू एवं उसके परिवार को लेकर वहां पहुंची। आवश्यक रस्में पूरी करवाईं। शाम को नानू मिला तो संवेदनाएं प्रकट कीं। मनीषा और नानू ने बताया कि कुछ दिन से वह ज्यादा ही कष्ट में थे। इसी आवागमन की बात पर बता दूं कि मैं शादी से पहले यानी 14 अप्रैल को सीधे चोरगलिया गया और वहां प्रेमा दीदी के गले लगकर एक बार फिर खूब रोया। कुछ दिन पहले तक जीजाजी रमेश चंद्र मिश्र जी  कहते थे हल्द्वानी में शादी में मिलेंगे। लेकिन इससे पहले ही वह अनंत यात्रा पर निकल गए। भावना, धवल के साथ था। वहां मनोज आदि खेती-बाड़ी भी समेट रहे थे और हर मौके पर जीजाजी को याद कर रहे थे। उधर, बातों-बातों में भतीजे बिपिन का भी जिक्र हो रहा था जिसकी बरसी अभी 20 अप्रैल को हुई है। ईश्वर से प्रार्थना है सबको शक्ति देना। महामारी के इस रूप को अब खत्म करना।

Saturday, April 9, 2022

कुछ तो लोग कहेंगे ... आशीष सर से मुलाकात का संयोग और योग

 केवल तिवारी

बहुत लंबे समय बाद स्कूल में चहल-पहल दिखी। चंडीगढ़ के सेक्टर 29 स्थित ट्रिब्यून मॉडल स्कूल। बेटा धवल 7वीं में गया है। बड़े बेटे कार्तिक ने यहीं से 10वीं की थी। कोविड काल के बाद दो साल बाद जब 2 अप्रैल को स्कूल में जाना हुआ तो आनंद की अनुभूति हुई। बच्चे तो कम ही थे, क्योंकि पीटीएम थी, लेकिन माहौल में उत्साह साफ नजर आ रहा था। अलग-अलग ग्रूप बनाए हुए थे। काउंसलर मैडम निकिता अपने संबोधन में सहभागिता की जरूरत को समझा रही थीं। चूंकि हमारा टर्म अभी आना बाकी था, इसलिए पहले संगीत कक्ष में गए। वहां अतुल सर से बात हुई। फिर स्पोर्ट्स रूम में गए। वहां सचिन सर और अनुज सर मिले। फिर बेटे ने कहा कि चलो लाइब्रेरी चलते हैं। लाइब्रेरी में जाना ही संयोग था। वहां आशीष सर मिले। आशीष शुक्ला। योग टीचर।


औपचारिक मुलाकात के बाद अनौपचारिक बातचीत शुरू हो गयी। पूछा हालचाल। मैंने उनसे मंडूकासन के बारे में पूछा। उन्होंने कुछ बातें बताईं। फिर सेहत, कम होते वजन पर मैंने उनसे कुछ बातें शेयर कीं। कुछ देर मेरी बातों को समझने के बाद वह बोले, किशोर कुमार का वह गाना एकदम सही है जिसके बोल हैं, 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।' फिर उन्होंने एक उदाहरण दिया। एक व्यक्ति अगर किसी तरह इंतजाम करके फाइव स्टार होटल में अपने बेटे या बेटी की शादी की रिसेप्शन देता है तो कई लोग कहेंगे, 'अथाह पैसा है तो देगा ही फाइव स्टार में पार्टी।' अगर वह साधारण सी दावत देता है तो फिर उनके अल्फाज हो जाएंगे, 'इतना पैसा होते हुए भी फटीचर ही बना रहता है।' इसलिए छोड़िए इन बातों को। तनाव कम कीजिए। साथ खड़ी पत्नी ने सहमति जताते हुए कहा कि ये छोटी-छोटी बातों का तनाव ले लेते हैं। 
योगासन करते आशीष शुक्ला।

कुछ दिन पहले होमियोपैथ डॉक्टर ने भी कहा था कि तनाव से कई रोग जन्म लेते हैं। अनेक बातें होने के बाद उन्होंने एक दो आसन बताए और प्राणायाम के बारे में समझाया। आशीष सर से बातें करके बहुत अच्छा लगा। ऐसी अनौपचारिक बातें कई बार मेरा मार्गदर्शन करती हैं, लेकिन अनेक बार ऐसा होता है कि अपनत्व की बातें आगे बढ़ते-बढ़ते मैं बहुत कुछ शेयर करने लगता हूं और फिर शुरू होता है तनाव का एक नया अध्याय। हालांकि शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं। एक बार एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझसे कहा था कि कितना ही अविश्वास हो, कुछ लोगों को तो आपको अपना बनाना पड़ेगा जिनसे आप बहुत कुछ शेयर कर पाएं। आशीष सर की बताई कुछ बातों को फॉलो कर रहा हूं। उम्मीद है कि अगली मुलाकात में कह सकूं कि जो वेट लॉस हुआ था, वह अब गेन हो रहा है क्योंकि दुआ और दवा साथ चल रही है। प्रयास भी जारी हैं।



Thursday, April 7, 2022

बदले नजारे और नजारों का बदलाव

 केवल तिवारी

डॉक्टरी सलाह पर सुबह टहलना जरूरी हो गया है। वैसे तो संभव हो तो सभी को सुबह टहलना चाहिए। सुबह उठने, टहलने की जब सिर्फ बात होती है तो ती तरह के नजारों का रेखाचित्र बनता है। एक वे हैं जिनके पास सुबह समय ही नहीं है। हालांकि समय की कमी का रोना महज रोना ही है। समय तो सभी के लिए 24 घंटों का होता है। खैर...। दूसरे वे हैं जिनके पास सुबह-सुबह समय ही समय है, लेकिन या तो देर रात तक जगने के कारण या आलस्य के कारण वे कहीं नहीं जाते। तीसरी श्रेणी वह है जिन्हें डॉक्टर ने सलाह दी है कि समय निकालकर टहलना ही टहलना है या एक्सरसाइज करनी है। तीसरी श्रेणी में खुद को रखते हुए इन दिनों पार्क में नियमित तौर पर जाना होता है। वहां का नजारा देखकर लगा कि फिटनेस को लेकर कितनी जागरूकता है। बुजुर्ग व्यक्ति भी एक्सरसाइज कर रहे हैं। युवा भी योग आदि में व्यस्त हैं। कुछ बच्चों का झुंड भी है। पहले तो देखकर अच्छा लगा कि बच्चे भी सुबह-सुबह टहल रहे हैं फिर मन में सवाल उठा कि इनका तो स्कूल टाइम है, ये कैसे यहां। लेकिन बच्चे मस्त होकर खेल रहे थे। गौर से देखा तो उनकी बातचीत सन्न करने वाली थी। गाली-गलौज। झूलों में तोड़फोड़। कुछ के पास स्मार्ट फोन। उसे लेकर कहीं कोने में बैठे हैं। सोचा, इन्हें कुछ समझा दूं, लेकिन मैं राउंड लगाता रहा। मन में मंथन चलता रहा। तभी एक बुजुर्ग से सज्जन उनके पास आए और पूछा कि उन्हें पार्क में आना कैसा लग रहा है। दो-तीन बोले, बहुत अच्छा। फिर उन्होंने समझाया जब अच्छा लग रहा है तो इसे अच्छा बनाए रखो। झूलों में तोड़ फोड़ करोगे तो फिर कौन ठीक करेगा। कुछ की समझ में बात आयी या डर गए, वे वहां से चले गए। तभी कुछ बच्चे स्कूली ड्रेस में दिखे। कुछ 'जोड़े' भी दिखे। वे टहलने आए हैं, ऐसा तो कदापि नहीं लग रहा था। चलिए सुबह की इस चहचहाहट को कुछ दिन और गौर से देखा जाए। फिर संभवत: कुछ सार्थक लिखना हो पाएगा। अभी तो नजारे बदले हैं और बदलाव में भी नजारे हैं।