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Sunday, April 24, 2022

मयंक की शादी : भांजियों का समागम और संत सरीखी उपस्थिति

केवल तिवारी

भांजियों के इस समागम में संत सरीखी उपस्थिति रही। अनेक परिजन ऐसे थे जिनसे 20-25 साल के अंतराल में मुलाकात हुई। किस्मत से मेरी पांच भांजियां हैं और इतने ही भांजे। किस्मत के एक कदम आगे की बात कि इस बार बड़ी भांजी के बेटे ललित मोहन उर्फ मयंक की शादी थी। लता और हरीश पंत जी का फोन महीनेभर पहले आ गया था। 15 अप्रैल की दोपहर जब हल्द्वानी के कठघरिया स्थित उनके निवास स्थल पर पहुंचा तो मन प्रसन्न हो गया। 

दादी और नानी के साथ दूल्हा मियां। साथ में भाई


भांजियों, उनके पतियों और बच्चों से तो मुलाकात हुई ही, उस दीदी से विशेष मुलाकात हुई जिसके नाती की आज शादी थी। यानी विमला दीदी। जाहिर है दीदी के करीबी अनेक लोगों से मिला। चूंकि मेरे जीवन में शाहजहांपुर का दो साल का निवास एक अहम पड़ाव वाला है, इस लिहाज से वहीं से दीदीयों की ननदों और अन्य परिजनों से मिलने या बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था, आज फिर उनमें से कई लोगों से मुलाकात हुई। समय तो काफी लंबा निकल गया, लेकिन बदलाव बहुत ज्यादा कहां आता है। मुझे भी अनेक लोगों ने पहचान लिया और मैंने भी उन्हें पहचाना। जानने-पहचानने के इस क्रम में हंसी मजाक भी चलती रही और कार्यक्रम भी संपन्न होते रहे। 



कुछ कार्यक्रमों से मैं पहली बार परिचित हुआ और इसे आत्मसात किया क्योंकि बदलते समय के साथ अगर कदमताल करते रहें तो उसमें हर्ज कैसा। जैसा कि परिवार के कुछ लोगों को हल्दी की रस्म के बाद दी गयीं विशेष टी शर्ट और उन पर लिखे कमेंट। पंत जी यानी दूल्हे के पिताश्री की टीशर्ट पर लिखा था ‘मैं सब जानता हूं।’ बन्ना भांजी जहां ‘मौसी ब्यूटीफुल थी’ वहीं उसके पति अनुज का पुष्पा स्टाइल ‘झुकेगा नहीं साला।’ वैसे इस कमेंट से मैंने इत्तेफाक नहीं रखा। रमा भांजी ‘बिंदास मौसी’ बनी तो उसके पति को ‘कभी-कभी खुद के जवान होने का गुबान था।’ वैसे संजय यानी हमारे प्रिय संजू हमेशा जवान हैं। उनका गांभीर्य स्वभाव मुझे भाता है। उनकी बेटी के कमेंट पर मैं पूरी तरह सहमत था। ‘एटीट्यूड क्वीन’ की तो आंखों से शरारत टपकती है। प्यारी है बच्ची। अविरल बाबू हैं ही स्मार्टी, ऐसे ही निक्कू आदि भी कमेंट के मुताबिक। लखनऊ से पहुंचे दूल्हेराजा के चाचा नित्यानंद जी वाकई वही कर रहे थे जो उन्हें कमेंट मिला था, ‘रिस्पोंसेबल चाचा।’ ऐसे ही दूल्हे के छोटे भाई वाकई ‘शर्मीला देवर’ लग रहे थे। वैसे मुकुल बाबू की एक जिम्मेदारी वाला भाव मुझे इतना भाया कि अब तक उसकी चर्चा करता हूं। वह हर रस्मो रिवाज पर दादी का हाथ पकड़कर उस समारोह स्थल पर लाना नहीं भूले। गुड मुकुल बेटे। फिर लखनऊ से पधारे पंडित नानू मामा का वह कमेंट तो सचमुच जोरदार था, ‘मामा का भौकाल, जय महाकाल।’ कमेंट की बातों के बीच प्रिय भांजे पंकज की पत्नी मनीषा और इनकी बिटिया अग्रणी के साथ नवीन पंडितजी उर्फ नानू की बिटियाएं रिद्धि-सिद्धि का भी जिक्र जरूरी है। मनीषा को मैंने बुलाकर प्रणाम करवाया। भीड़ थी, मैं लोगों को दिख नहीं रहा था। ऐसे भी अपने स्टैंडर्ड साइज के कारण दिख कहां पाता हूं। ऑफिस में भी जब कहा कि भांजी के बेटे की शादी में जाना है तो लोग गौर और हैरत से मुझे देख रहे थे। खैर जब मैं बच्चों से कह रहा था कि मैं तुम सबका नाना हूं तो अविरल बाबू आये और बोले, अगर आप इनके नाना हैं तो मेरे भी होंगे। मैंने कहा बिल्कुल। पैर छू लो और अपनी मम्मी का नाम बताओ। जैसे ही उसने बन्ना का नाम लिया मैं समझ गया इसी बच्चे को दिल्ली में नामकरण के बाद आज पहली बार यहां हल्द्वानी में देख रहा हूं। मनीषा के पिताजी से मिला और उनसे सीखा कि जिजीविषा बहुत जरूरी है। पूरे कार्यक्रमों में पंकज को मिस करते रहे। हालांकि उससे चैटिंग चलती रही। 



चार दीदीयां और फिर पांच भांजे एवं पांच भांजियां। बहुत सौभाग्यशाली हूं। साथ ही जीवन के अनेक किंतु-परंतु। खैर यहां ज्यादा जिक्र नहीं। भांजी रुचि उसके पति दीपेश, भांजी रेनु उसके पति कंचन और कंचन की माताजी से भी कार्यक्रम में मुलाकात हुई। इन मुलाकातों के बीच में अगर ससुराल का जिक्र नहीं करूंगा तो... तो... तो...। ससुराल वाले भी आए। उन्हें भी निमंत्रण था। लखनऊ प्रवास के समय से ही मेरे मित्र शेखर जोशी एवं उनकी पत्नी यानी हमारी भाभी भी पहुंची थीं। अच्छा लगा। खूब बातें हुईं। इस विशेष समारोह की बातें तो इतनी हैं कि न जाने कितना लिख जाऊं, लेकिन इसी लेख में कुछ फोटो भी तो साझा करूंगा जो खुद कहानी बयां करेंगे। लेकिन यह सच है कि सभी सज्जनों की मौजूदगी और हरीश पंत जी के पारिवारिक बौंडिंग ने भाव विभोर कर दिया। दूर-दूर तक के रिश्तेदार आए हुए थे। लता-हरीश जी को बहुत-बहुत बधाई।



और उर्मिला दीदी को विशेष धन्यवाद

सुआल पथाई वाली शाम भावना की थोड़ी तबीयत बिगड़ गयी। मैंने बन्ना से इसका जिक्र किया। उसने तुरंत पड़ोस में उर्मिला दीदी के यहां व्यवस्था कर दी। पंतजी एवं बन्ना लोगों की दोस्ती का असर तो होगा ही, उर्मिला दीदी का भी स्वभाव होगा कि उन्होंने खूब आतिथ्य सत्कार किया। सुबह गर्म पानी, बेहतरीन चाय से लेकर पूरे घर को हमारे हवाले करने जैसे उनके स्वभाव ने दिल जीत लिया। दो दिन बाद रिसेप्शन के मौके पर उन्होंने अपनी बहू से हमारी मुलाकात कराई। उर्मिला दीदी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना, बस यही कहना आप यूं ही हंसते-मुस्कुराते रहें, स्वस्थ रहें। थैंक्स ए लॉट।

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सुख-दुख दोनों जहां, जीवन है वो गांव... कहीं धूप तो कहीं छांव

जीवन चक्र है, यहां सबकुछ चलता है। शादी कार्यक्रम संपन्न होने के अगले दिन यानी रिसेप्शन वाले दिन नानू के ससुर जी का निधन हो गया। चारों तरफ ध्यान रखने वाली हमारी साहसी दीदी विमला दीदी नानू एवं उसके परिवार को लेकर वहां पहुंची। आवश्यक रस्में पूरी करवाईं। शाम को नानू मिला तो संवेदनाएं प्रकट कीं। मनीषा और नानू ने बताया कि कुछ दिन से वह ज्यादा ही कष्ट में थे। इसी आवागमन की बात पर बता दूं कि मैं शादी से पहले यानी 14 अप्रैल को सीधे चोरगलिया गया और वहां प्रेमा दीदी के गले लगकर एक बार फिर खूब रोया। कुछ दिन पहले तक जीजाजी रमेश चंद्र मिश्र जी  कहते थे हल्द्वानी में शादी में मिलेंगे। लेकिन इससे पहले ही वह अनंत यात्रा पर निकल गए। भावना, धवल के साथ था। वहां मनोज आदि खेती-बाड़ी भी समेट रहे थे और हर मौके पर जीजाजी को याद कर रहे थे। उधर, बातों-बातों में भतीजे बिपिन का भी जिक्र हो रहा था जिसकी बरसी अभी 20 अप्रैल को हुई है। ईश्वर से प्रार्थना है सबको शक्ति देना। महामारी के इस रूप को अब खत्म करना।

2 comments:

Unknown said...

मामा जी मयंक की शादी का इतना सुंदर वर्णन पढ़ कर मेरा मन आत्म बिभोर हो गया। आपको बहुत बहुत धन्यबाद ।

Bhawna said...

सुंदर और सुखद।