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Monday, March 21, 2022

स्टार थे, स्टार बन गए...खुश रहना जीजा जी, मिश्रा जी

 केवल तिवारी

कल्पना से परे भी चीजें चली जाती हैं।

अस्वस्थता के कारण जीवन की कुछ-कुछ कल्पना मैं भी करने लगता हूं, लेकिन जिंदादिली भी तो कोई चीज होती है। जब जिंदादिली के मायने हैं तो मौत कैसे आ गई...और यह मौत दबे पांव आई क्योंकि डरती थी वह जिंदादिल इंसान से। ऐसे इंसान से जो सचमुच महात्मा था। उसने गरीबी को भी ठाठ से जिया। उसने अफसोस जताने के बजाय आगे की ओर देखा। वर्तमान में जीने वाला आदमी... रमेश चंद्र मिश्रा। यही नाम था जीजा जी का।

खुशी के वे फल

विष्णु भगवान का ही नाम होता है या रमेश मतलब विष्णु। और छोड़ गए हैं हमें। अपने पीछे परिवार... यादें... विचार। मेरे साथ रिश्ता तो जीजा जी का था, लेकिन वह मेरे अभिभावक जैसे भी थे। मेरे दोस्त जैसे भी थे और मेरे दोस्तों के भी दोस्त। अक्सर तो पूछते थे फलां कैसा है, उनके क्या हाल हैं। करीब 3 माह पूर्व आए थे चंडीगढ़। प्रेमा दीदी के साथ मंदिर में गए हम लोग। ज्वाला जी माता मंदिर में उनको चक्कर आ गया। मैं और प्रेमा दीदी फटाफट उनको रेस्टोरेंट में लाए। उनके लिए खाना लिया उन्होंने खाना खाया। तब तक शीला दीदी, जीजाजी भांजा कुणाल भी पहुंच गए। सभी ने खाना खाया। इतने में जीजा जी खाना खा चुके थे। प्रेमा दीदी ने उनकी तरफ देखा। समझ गए थे वह कि दीदी स्वास्थ्य के बारे में सवाल पूछना चाह रही है। अपने आप बोले अब मैं ठीक हूं और उठकर काउंटर पर गए और खुशी-खुशी सभी के खाने का भुगतान करा आए। यहां बता दूं जब मैं छोटा था यानी विद्यार्थी वह केएमओ स्टेशन पर हमें समोसे और मिठाई खिलाते थे। मुझे लगता था, मेरे जीजा जी कितने अमीर हैं, बाद मैं...। खैर मंदिर में दीदी जीजाजी ने एक दूसरे को देखा और दोनों निश्चिंत कि सब ठीक है। उस दिन यानी 11 मार्च को अपनी सालगिरह की अगली सुबह जब उन्होंने इस संसार से रवानगी डाली तो प्रेमा दीदी की यही इच्छा तो थी कि वह एक बार तो उनकी ओर देखते। एक बार तो कहते कि अब मैं ठीक हूं या नहीं हूं। इतना बोलने वाला व्यक्ति जब अंतिम सफर पर निकला, तो एकदम चुपचाप। इतने चुपचाप जाना ही था तो एक दिन पहले सबसे इतना क्यों बोले। बधाई वाली हंसी। मजाक किया। फिर चल दिए। जीजा जी हमें भी कहां पता था कि आपके विवाह की वर्षगांठ 10 मार्च को होती है। वह तो 10 मार्च 2010 को धवल हुआ तो दीदी ने बताया। दीदी और आपने कितना साथ दिया। कुक्कू होने वाला था, डॉक्टर ने डरा दिया। तुरंत आपको फोन किया कि ईजा को लेकर आओ। आप अगली शाम पहुंच गए, ईजा को लेकर। धवल होने वाला था तो आप दीदी को छोड़ गए। भावना का आपरेशन हुआ तो आप आए। क्या कहूं। सालगिरह की बधाई देते महज 12 साल हुए थे। आज शायद ठीक उसी समय जब करीब 44 साल पहले हमारी दीदी को दुल्हन बना कर विदा कराकर चले होंगे हमारे घर से डोली से दीदी को ले गए होंगे आप दीदी को छोड़कर चले गए। 11 मार्च को भांजी रेनू का फोन सुबह 6:00 बजे आया। थोड़ी सी घबराहट तो हुई, फिर विचार आया कि शायद मेरे बेटे धवल को जन्मदिन की बधाई देने के लिए किया होगा क्योंकि यही तो यादगार दिन था जब धवल का जन्मदिन और दीदी जीजाजी की सालगिरह एक ही दिन पड़ता था। फोन उठाते उठाते भावना से पूछा कल भूल गए थे शायद। इसलिए आज कर रहे होंगे। लेकिन यह क्या? फोन पर भांजी के पति कुलदीप प़ंत यानी कंचू थे। बोले, मामाजी चोरगलिया पापा जी एक्सपायर हो गए हैं। यही शब्द थै।  कितना चिल्लाकर बोला मैं क्या कह रहे हो... फिर कुछ नहीं बोल पाया। पंत जी बोले आप परिवार में अन्य लोगों को भी बता देना। मैं रोने लगा। पत्नी रोने लगी। बगल के कमरे से पहली रात 2:00 बजे सोया बेटा कुक्कू भी उठ गया वह भी रोने लगा। वहीं पर सोया धवल भी जग गया। बड़ी हिम्मत की। सबसे पहले लखनऊ दाज्यू को फोन किया। क्या बात होती। बस इस अभागी सूचना का आदान प्रदान हुआ। अब क्या करूं? क्या गाड़ी लेकर निकल जाऊं? सवाल-जवाब मंथन।  फिर हिम्मत की। शीला दीदी को फोन किया‌ रो रो कर बुरा हाल। एक दिन पहले ही जीजा-साली ने कितनी बातें की थीं। शीला दीदी के सामने असमंजस का चौराहा था। समझाया मैंने। पता नहीं कहां से आ गई हिम्मत। कसम दी मैंने। अपनी विदेश यात्रा को टालना मत। जीजा जी भगवान बन गए हैं। पुण्य आत्मा को मोक्ष मिल गया है। क्या करता।  मुझे भी डॉक्टर के पास जाना था,  अपनी मेडिकल रिपोर्ट लेकर। फटाफट डॉक्टर के पास बेटे कार्तिक के साथ गया। बस का पता किया और चल दिया चोरगलिया के लिए। कैसे...क्या... क्यों... सवालों का उमड़ घुमड़ जारी था। यहीं से थोड़ी दूर नानकमत्ता में कुछ माह पहले लखनऊ भाभी जी के जीजा जी का निधन हुआ था। भाभी जी को मैसेज किया था मैंने। मन किया वहां जाऊं, लेकिन बेदर्द प्राइवेट नौकरी। आजकल बड़ा परिवर्तन है...। खैर 

काठगोदाम से मेरे ससुराल वाले फोन करते रहे। नंदू भाई साहब ने चोरगलिया पहुंचाया। रेनू सबसे पहले मिली। फिर दीदी। उफ क्या रूप देखा दीदी का। हमारे परिवार की सबसे सुंदर लड़की बताया जाता था उसको। अत्यधिक गोरी होने के कारण उसे कुरुली यानी सफेद दूध जैसी कहते थे। यह कुरुली आज कुरूप हो गई। बहुत समझाया। धीरे-धीरे पीतांबर जीजाजी मिले। हरिद्वार से लौटे चंद्रशेखर जीजाजी मिले। सभी बच्चे, दीदीयां। सब अपनी यादें बताने लगे। आसपास के लोग बोलने लगे अपने जेठ के लिए बहुओं को ऐसे रोते हुए हमने पहली बार देखा है। आंखें नम। साथ में काम भी। भांजा मनोज तो बस एक ही रट लगाए रहा। बहुत मलाल रह गया मामा। पापा कुछ तो मौका देते। मैंने लखनऊ पंकज भांजे का हवाला दिया। कितने मलाल रह गये उसके मन में। मैं जितना बोलता,  उसकी आंखें भर आती। मनोज की छोटी अबोल बच्ची की आंखें दादा को तलाशतीं। नहीं दिखते तो रो जाती। जीवा, काव्या को थोड़ा समझाया मैंने। कहा आपके दादा, आपके नाना अब स्टार बन चुके हैं। बच्चे का सवाल रात को दिखेंगे? मैंने कहा हां,  लेकिन तब, जब आप सो चुके होगे। जीजा जी आप हमारे स्टार थे। स्टार हो। और स्टार हो गए हो। आपने खूब संघर्ष किया। रेनू कितने किस्से बता रही थी। रुचि रो रही थी मौसा जी की याद में। आपने जीवन के कठिन दौर देखे। आपका निजी जीवन भी अजीब रहा, वह एक अलग संघर्ष था। अब आपके लिए थोड़ा चैन भरे दिन आए थे। लेकिन आप तो स्थाई शांति में चले गए। कोई बात नहीं, मौत की परिकल्पना अगर कोई करता तो ऐसी ही मौत मांगता। कोई भी। मैं भी। आप खुश रहना। आशीर्वाद बनाए रखना। जीवन चलायमान है। सब चल रहे हैं। मैं भी। अगले दिन चंडीगढ़ के लिए चल पड़ा। यह कहकर कि सब चलते रहिए। स्टार का स्टार में विलीन होना। बच्चों का समझना और समझाना। रोते हुए देख कर जीवा का दुखी होना और छोटी बच्ची कनिष्का का कुछ ढूंढना। दीदी का रोना। सबका दुखी होना। जीजा जी आपका चले जाना। आप यादों में हमेशा रहेंगे। यही रीत है जीवन की। चल रही है। चलते रहेंगे। खुश रहना आप अपने नए जहां में। सुख दुख के साथी  रहे भविष्य में भी पूरे परिवार पर आशीर्वाद बनाए रखना। जीजा जी आपको नमन।

Friday, March 4, 2022

अब क्या जानवरों के बुत ही दिखेंगे?

 केवल तिवारी

शनिवार 27 फरवरी। चंडीगढ़ के आकाश में सुबह से ही घने बादल दिख रहे थे। बाहर का नजारा देखकर लग रहा था कि रात से ही कुछ बूंदाबांदी भी हुई है। बेटे कार्तिक और धवल के साथ ही उनकी मम्मी भावना भी थोड़ी उदास थीं। क्योंकि एक हफ्ते से कार्यक्रम बना था कि छतबीड़ जू चलना है। बड़े दिनों बाद बच्चों को आसपास कहीं लेकर जाने का कार्यक्रम बना था। दस बजे तक हम लोग स्नान-ध्यान के बाद नाश्ता कर चुके थे। कार्यक्रम टल ही गया था। छोटे बेटे की उदासी देखकर अजीब लग रहा था। फिर उसने ही कहा, 'क्या पता चिड़ियाघर वाले इलाके में बारिश न हो रही हो?' मैं उठा और सबसे कहा कि तैयार होओ चलते हैं। बारिश होगी तो वापस आ जाएंगे। करीब 11 बजे हम चले और साढ़े ग्यारह बजे वहां पहुंच गए। वाकई तब तक हल्की धूप दिखने लगी। वहां पहुंचे, वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाकर टिकट लिया और शुरू किया जू में घूमना। 



बच्चों का यहां आने के लिए सबसे उत्साहजनक बात थी यहां नया बनाया गया डायनासोर पार्क। वाकई अच्छा बना है। उससे पहले कई पिंजड़ों को देखा। अनेक पिंजड़े खाली थे। कोई जानवर नहीं था, कहीं जानवर छिपे हुए थे, शायद मौसम के कारण। पक्षी पार्क भी अच्छा लगा। डायनासोर पार्क देखते-देखते बेटा कार्तिक बोला, 'लगता है कुछ सालों बाद ऐसे ही बुत जैसे ही जानवरों को देखना पड़ेगा।' धवल का जवाब था, 'हां अब जानवर खत्म हो रहे हैं।' फिर हर पिंजरे को देखकर बच्चों का यही कहना होता कि इन्हें देखकर दया आ रही है। कहां ये जंगलों में मदमस्त होकर घूमते कहां ये कैद हैं। मैंने समझाया कई जानवर तो आदमखोर हो जाते हैं इसलिए भी चिड़ियाघरों में लाए जाते हैं। कुछ जानवर बहुतायत में हैं जैसे लोमड़ी या शियार। हां बाघ, शेर, चीते आदि अब लुप्तप्राय से ही हो रहे हैं। कुछ जानवरों के पिंजरे के बाहर लिखा भी था कि अब इनकी प्रजाति बची नहीं है। तमाम बातों के बीच मुझे 'भविष्य में जानवरों के बुत' वाली बात भावुक लगी। क्या वाकई ऐसा होगा? शंकाएं...आशंकाएं। इसी बीच, यह बात भी याद आई कि बेशक जानवरों के बारे में कहा जा रहा हो कि इनकी संख्या बहुत कम हो गयी है, लेकिन उत्तराखंड से तो कई बार खबरें आती हैं कि बाघ (तेंदुआ, शेर, लकड़बग्घा आदि) ने इतनों को मार दिया। खैर...। जानवरों का संसार तो उन्मुक्त होता ही है, लेकिन चिड़ियाघरों में दर्शनीयता का अंदाज भी अब बदल रहा है। क्रिएटिविटी हो रही है। बच्चों के साथ बड़ों को भी बदलता अंदाज भा रहा है। भविष्य पेड़-पौधों का भी कोई ऐसा पार्क हो जहां आम जनता जा सके तो कितना अच्छा हो। मुगल गार्डन जैसा या ट्यूलिप गार्डन जैसा। एक ही क्षेत्र में हजारों तरह के पेड़-पौधे और फल-फूल। पूरी जानकारी लेते हुए इन्हें देखना अच्छा लगेगा ना।