केवल तिवारी
शनिवार 27 फरवरी। चंडीगढ़ के आकाश में सुबह से ही घने बादल दिख रहे थे। बाहर का नजारा देखकर लग रहा था कि रात से ही कुछ बूंदाबांदी भी हुई है। बेटे कार्तिक और धवल के साथ ही उनकी मम्मी भावना भी थोड़ी उदास थीं। क्योंकि एक हफ्ते से कार्यक्रम बना था कि छतबीड़ जू चलना है। बड़े दिनों बाद बच्चों को आसपास कहीं लेकर जाने का कार्यक्रम बना था। दस बजे तक हम लोग स्नान-ध्यान के बाद नाश्ता कर चुके थे। कार्यक्रम टल ही गया था। छोटे बेटे की उदासी देखकर अजीब लग रहा था। फिर उसने ही कहा, 'क्या पता चिड़ियाघर वाले इलाके में बारिश न हो रही हो?' मैं उठा और सबसे कहा कि तैयार होओ चलते हैं। बारिश होगी तो वापस आ जाएंगे। करीब 11 बजे हम चले और साढ़े ग्यारह बजे वहां पहुंच गए। वाकई तब तक हल्की धूप दिखने लगी। वहां पहुंचे, वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाकर टिकट लिया और शुरू किया जू में घूमना।बच्चों का यहां आने के लिए सबसे उत्साहजनक बात थी यहां नया बनाया गया डायनासोर पार्क। वाकई अच्छा बना है। उससे पहले कई पिंजड़ों को देखा। अनेक पिंजड़े खाली थे। कोई जानवर नहीं था, कहीं जानवर छिपे हुए थे, शायद मौसम के कारण। पक्षी पार्क भी अच्छा लगा। डायनासोर पार्क देखते-देखते बेटा कार्तिक बोला, 'लगता है कुछ सालों बाद ऐसे ही बुत जैसे ही जानवरों को देखना पड़ेगा।' धवल का जवाब था, 'हां अब जानवर खत्म हो रहे हैं।' फिर हर पिंजरे को देखकर बच्चों का यही कहना होता कि इन्हें देखकर दया आ रही है। कहां ये जंगलों में मदमस्त होकर घूमते कहां ये कैद हैं। मैंने समझाया कई जानवर तो आदमखोर हो जाते हैं इसलिए भी चिड़ियाघरों में लाए जाते हैं। कुछ जानवर बहुतायत में हैं जैसे लोमड़ी या शियार। हां बाघ, शेर, चीते आदि अब लुप्तप्राय से ही हो रहे हैं। कुछ जानवरों के पिंजरे के बाहर लिखा भी था कि अब इनकी प्रजाति बची नहीं है। तमाम बातों के बीच मुझे 'भविष्य में जानवरों के बुत' वाली बात भावुक लगी। क्या वाकई ऐसा होगा? शंकाएं...आशंकाएं। इसी बीच, यह बात भी याद आई कि बेशक जानवरों के बारे में कहा जा रहा हो कि इनकी संख्या बहुत कम हो गयी है, लेकिन उत्तराखंड से तो कई बार खबरें आती हैं कि बाघ (तेंदुआ, शेर, लकड़बग्घा आदि) ने इतनों को मार दिया। खैर...। जानवरों का संसार तो उन्मुक्त होता ही है, लेकिन चिड़ियाघरों में दर्शनीयता का अंदाज भी अब बदल रहा है। क्रिएटिविटी हो रही है। बच्चों के साथ बड़ों को भी बदलता अंदाज भा रहा है। भविष्य पेड़-पौधों का भी कोई ऐसा पार्क हो जहां आम जनता जा सके तो कितना अच्छा हो। मुगल गार्डन जैसा या ट्यूलिप गार्डन जैसा। एक ही क्षेत्र में हजारों तरह के पेड़-पौधे और फल-फूल। पूरी जानकारी लेते हुए इन्हें देखना अच्छा लगेगा ना।
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