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Monday, January 2, 2023

कृष्ण के बाल्यकाल स्थलों के दर्शन... साथ में कुछ बातें-वातें

केवल तिवारी

श्रद्धा। भावना। परिक्रमा। पूजा-अर्चना। हरिनाम का जाप। यही सब तो होता है जब आप किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं। कुछ चीजों से आपका मन शांत और प्रसन्न हो जाता है तो कुछ चीजें आपको व्यथित भी कर देती हैं। लेकिन आपके वश में कुछ नहीं होता। हां, आप जिस उद्देश्य से जाते हैं, वह फलीभूत हो जाए तो बस क्या चाहिए? हमारी इच्छा भी थी कि भगवान श्रीकृष्ण जन्म और बाल्यकाल से जुड़े स्थलों पर सपरिवार जाकर पूजा-अर्चना करें। मैं तो एक बार गया हूं। हालांकि वह जाना बहुत जल्दी-जल्दी का था। कई वर्षों से विचार बना, लेकिन बुलावा इस बार आया। माध्यम बने भास्कर जोशी (राजू) का परिवार और उनके पड़ोसी अग्रवाल साहब। 


क्रिसमस पर्व के दिन रविवार 25 दिसंबर को मैं कार्तिक, धवल और भावना पहुंच गए फरीदाबाद। भव्य का इंतजार देखने लायक होता है। सातवीं में पढ़ने वाला यह बच्चा लाइव लोकेशन मांगता है। प्रीति मैडम की चाय और बच्चों के लिए विशेष डिश। पूरे परिवार का अपनापन खींच ले जाता है फरीदाबाद। फिर भावना और राजू का जुड़वां होना। खैर... चलते हैं सफर पर।
शुरुआत बरसाना और नंदगांव से
सोमवार को दोपहर हम लोग बरसाना के लिए चल पड़े। तय किया गया कि कुछ धार्मिक स्थलों पर आज शीश नवा के आ जाते हैं, कुछ पर मंगलवार को। सीधे बरसाना गए फिर नंद गांव। नंद गांव में एक वाकये ने परेशान किया। असल में मंदिरों की इस नगरी में भी जगह-जगह मंदिर हैं। एक जगह तो 'असली मंदिर' बताकर श्रद्धालुओं की श्रद्धा और भावनाओं से खेला गया। गाय के नाम पर और राधारानी के शृंगार के नाम पर पैसे लिए गए। बाद में जिसे पता चला कि असली मंदिर तो ऊपर है तो वह परेशान हुआ। पता नहीं क्यों ऐसी ठग विद्या करते हैं लोग। अव्वल तो यह है कि सभी धार्मिक स्थलों को ट्रस्ट बना दिया जाये। खैर हम श्रद्धाभाव से गए थे और दोनों मंदिरों के अलावा उस नगर की हर गली को भी शीश नवाया। मन में भगवान का सुमिरन किया। इसी मंदिर में जाते वक्त का एक वाकया याद है। असल में वहां खड़ी चढ़ाई में कार चलाकर ले गया। पहले तो ठीक चल रही थी जैसे ही आगे चल रही कार ने ब्रेक लगाया, मुझे भी लगाना पड़ा। जब दोबारा रेस दी तो कार थोड़ा सा पीछे को सरकी। कार में बैठीं प्रीति और भावना डर गए। वैसे सब ठीक रहा और वापसी में कार बैक राजू ने की और हम दर्शन कर प्रसन्नचित्त होकर आ गए। शाम को अग्रवाल साहब के घर पर रुके।
सुबह-सुबह परिक्रमा, फिर दर्शन और बांके बिहारी की भीड़ के साथ गुरुजी-वुरुजी




मंगलवार सुबह मैं, भावना, भास्कर और प्रीति चल पड़े वृंदावन की परिक्रमा करने। छह बजे शुरू परिक्रमा करीब साढ़े आठ बजे संपन्न हुई। इसके बाद घर आए और फिर बच्चों को लेकर गए बांके बिहारी के दर्शन करने। बांके बिहारी के अद्भुत दर्शन हुए। बिल्कुल सामने से। हमारे सामने ही आरती हुई। सभी प्रसन्न। फिर पैदल आते वक्त यमुना दर्शन किए। जल के छींटे डाले। गनीमत है कि इस इलाके में यमुना अभी भी नदी नजर आती है। दिल्ली में तो इस नदी का क्या हाल है, किसी से छिपा नहीं। उसके बाद हम लोगों ने निधि वन जाने का फैसला किया। निधि वन जाते वक्त किसी गुरुजी की शोभा यात्रा निकल रही थी। श्रद्धालु तख्तियां लिए चल रहे थे। आगे एक गाड़ी में बहुत बड़े स्पीकर रखे थे जो बज रहे थे, पीछे गुरुजी की प्रतिमा। अथाह भीड़। मेरा मोबाइल बेटे कार्तिक ने लिया था। हम लोग तेजी से जा रहे थे ताकि किनारे से समय पर निधि वन पहुंच जायें। मैं तेजी से आगे निकल गया। इस बीच, जानबूझकर जाम लगा दिया गया ताकि यह लगे कि गुरुजी के फॉलोअर बहुत ज्यादा हैं। तभी भगदड़ जैसी स्थिति बन गयी। बाकी परिवार अलग और मैं अलग। नंगे पैर था, किसी ने जूता रख दिया। अंगूठे के पास थोड़ा सा कट भी गया। अब करें क्या। इस भीड़ में धवल और भव्य तो परेशान हो गए होंगे। तभी एक महिला आई, बोली, भैया मोबाइल है तो देना मेरा बच्चा पीछे छूट गया है। लेकिन मेरे पास तो मोबाइल था ही नहीं। इसी दौरान एक युवक ने फोन दिया। उसी फोन से मैंने भी कुक्कू को कॉल की। किसी तरह हम लोग निधि वन पहुंचे। दर्शन और परिक्रमा एवं शीश नवाने के बाद हम लोगों ने तय किया मथुरा जाने का।
मथुरा में मन बहुत प्रसन्न हुआ
चूंकि मथुरा का पूरा सिस्टम पुलिस और प्रशासन के हाथ में है इसलिए यहां सबकुछ सिस्टमेटिक रहा और मन प्रसन्न भी हुआ। कृष्ण जन्मस्थली पर भी हालांकि ठगी के किस्से कदम-कदम पर सुनने को मिलते हैं, लेकिन उम्मीद है कि जल्दी ही सरकार इन मंदिरों में ऐसी व्यवस्था बनाएगी कि लोग मिसाल देंगे।
क्रम में हो सकती है गलती, जहां-जहां हम घूमे
धार्मिक यात्रा के अंतिम पड़ाव में हम लोगों ने गोवर्धन की परिक्रमा की। यह परिक्रमा ई रिक्शा के माध्यम से की। लेकिन यहां रास्तेभर लोगों की श्रद्धा देख मन भावुक हो गया। सचमुच पूजा, पाठ और पूजा-अर्चना श्रद्धा और भाव वाला ही मामला है। साथ ही नितांत निजी मामला। हम गए तो अनेक जगह और हो सकता है कि उपरोक्त वर्णन में क्रम कुछ गड़बड़ा गया हो। इसलिए कुछ प्रमुख स्थलों का नाम यहां लिख रहा हूं जहां-जहां हम लोग गए। साथ ही वापसी में सरसों के खेतों में कुछ फोटोग्राफी भी की। हम लोग गए-
कोकिला वन। शनि मंदिर। टेर कदम। आशेश्वर महादेव। नंद गांव। बरसाना।
बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन। यमुना दर्शन। निधि वन। मथुरा। रमन रेती। गोवर्धन। राधा कुंड। मानसी गंगा आदि।










3 comments:

Anonymous said...

Good

Anonymous said...

वृन्दावन धाम अपार रेट जा राधेश्याम राधे।

Anonymous said...

Wah paste padre go gayee yatra