indiantopbligs.com

top hindi blogs

Tuesday, August 23, 2022

लिखे हुए को पढ़ना, कहे हुए को सुनना जरूरी

 केवल तिवारी

बात शुरू करने से पहले एक किस्सा सुनाता हूं। करीब 20 साल पहले की बात है। फीचर में लिखने के लिए अनेक लोग अखबारों के दफ्तरों में चक्कर लगाते थे। ऐसे ही किसी लेखक का जिक्र करते हुए एक वरिष्ठ पत्रकार ने पूछा कि आप किस तरह के लेख लिखते हैं। उन सज्जन ने अपनी लेखकीय विशेषज्ञता का बखान कर दिया। बाद में फीचर प्रभारी महोदय ने उनसे ताकीद की कि आप कुछ दिन लिखने के बजाय पढ़ना शुरू कीजिए। लगता है आप लिखते तो बहुत हैं, लेकिन पढ़ते कम हैं। उन दिनों मैं भी बहुत लिखता था। कुछ-कुछ पढ़ता भी था। खैर इस प्रकरण के बाद जब-जब लिखने का मौका आया, इस किस्से को याद करता हूं। अब दैनिक ट्रिब्यून में पिछले नौ सालों से ब्लॉग चर्चा कॉलम के लिए मैटर जुटाता हूं। जाहिर है कुछ पढ़ने का मौका मिलता ही है, इसके अलावा समीक्षार्थ अनेक पुस्तकें मिलती हैं, उन्हें निश्चित समय में पढ़ना होता है, इस तरह फढ़ना जारी है, इन सबसे इतर काम डेस्क का है, अक्सर खबरें रीराइट करनी होती हैं, तो पढ़ना ही पढ़ना।



 हां अखबार के लिए भले ही लेखन कम हो गया हो, स्वांत: सुखाय के लिए कभी डायरी तो कभी ब्लॉग लेखन जारी है, ऐसे में कल ही विचार आया कि लिखे हुए को पढ़ना जरूरी है। साथ ही कहे हुए को सुनना जरूरी है। कहे हुए को आप सुन तो नहीं सकते। हां अगर कुछ रिकॉर्डिंग की गयी हो तो सुना जा सकता है, लेकिन इस सुनने को दूसरे संदर्भ में इस अर्थ में ले सकते हैं कि आप समाज में बैठें तो सिर्फ अपनी ही बात करने के बजाय, दूसरों की सुनें। समाज में बैठो तो सुनना जरूरी है... असल में यह विचार भी मेरा मौलिक नहीं है। ब्लॉग चर्चा के लिए एक मैटर से मिला। एक आइडिया भी आया और उसपर काम करूंगा। खैर, लिखे हुए को पढ़ने की जहां तक बात है, अपनी दो तीन कहानियां पढ़ डालीं। कुछ डायरी के पन्ने पलटे। कुछ डायरियां बक्से में बंद हैं। यहां रेंडमली कुछ पन्नों का जिक्र कर रहा हूं। सुनने की तो जीन डेवलप हो चुका है। तो चलिए आज कुछ पुरानी बातें, बहुत पुरानी नहीं.... बहुत पुरानी भी शेयर करूंगा। आज कुछ पन्ने पलटते हैं कुछ वर्ष पूर्व की डायरी के-
1- रविवार 10 मई, 2015 चंडीगढ़ दोपहर 1 बजे
इस डायरी की शुरुआत में कई पन्ने ऐसे हैं जो वास्तव में डायरी होने का एहसास दिलाते हैं। मैंने उन पन्नों को इसीलिए अभी खाली छोड़ा है ताकि बीच-बीच में हिसाब किताब लिखूंगा। जैसे अभी थोड़ी देर बाद ही धन संग्रह का अपना हिसाब... खैर आज मैं ऑफिस से मिले अप्रेजल फॉर्म को भर रहा हूं। अभी कुक्कू की मदद ली, अब उसे लिखने जा रहा हूं। धवल और कुक्कू टीवी देख रहे हैं। भावना कपड़े धो रही है। यूं तो आज संडे है, मुझे 1 घंटे बाद ऑफिस जाना होता, लेकिन आज छुट्टी मिल गई है। इसलिए रिलैक्स होकर फॉर्म भर रहा हूं। फिर आज एशियन सर्कस बच्चों को दिखाने का मन है। थोड़ी देर पहले गुलाबी बाग प्रकाश का फोन आ गया था। वे लोग ज्वालाजी, माता चिंतपूर्णी आदि जगह यात्रा पर जा रहे हैं। 30 को चंडीगढ़ आएंगे।... अब फार्म भरने जा रहा हूं। ईश्वर सब ठीक रखना। गलतियां माफ करना। इस फॉर्म के जरिए, कुछ बेहतर हो यही कामना है।
2- सोमवार, 24 अगस्त 2015, तड़के 4:45 बजे
इस वक्त मुझे गहरी नींद में होना चाहिए था, लेकिन पता नहीं क्यों रात करीब 2:00 बजे से मुझे नींद नहीं आ रही है। ऐसी कोई तनाव वाली बात भी नहीं है। पिछले 2 दिनों से मेन डेस्क इंचार्ज हूं। सब सामान्य हो रहा है, लेकिन पता नहीं क्यों जब नींद नहीं आती है तो मन में कुछ तो उमड़-घुमड़ चलती ही है। कभी लखनऊ कन्नू-दीपू के बारे में सोचता हूं तो कभी दिल्ली में उत्तरांचल सोसाइटी और राजेश के कर्ज के बारे में। कभी फर्जीवाड़े की बातों में तो फिर कभी कुछ। कल मुझे मुंबई जाना है। इसका भी उमड़-घुमड़ चल रहा है। इस बार शायद 2 दिन के लिए रहना पड़ जाए। देखता हूं क्या होता है? जब नींद नहीं आ रही है तो सोचा डायरी लेखन यानी ईश्वर से संवाद कर लो। फिर एक अपनी अधूरी कहानी को भी पूरा करना है। और इसी बहाने ईश्वर से प्रार्थना भी हो जाएगी।
3- सोमवार, 19 अक्टूबर 2015, चंडीगढ़, दोपहर 1 बजे
थोड़ी देर पहले कालीबाड़ी मंदिर होकर आया हूं। भावना साथी। वापसी में घर के पास हरेश जी मिले। संक्षिप्त बात हुई। घर आकर तलवार फिल्म देखी। पहले आधी देख चुका था, फिर आधी आज देखी। वाकई फिल्म में जांच के तर्क हैं बहुत जबरदस्त। खैर कालीबाड़ी मंदिर में मैंने भगवान से प्रार्थना की कि दीपू आज कहीं इंटरव्यू देने गया है... उसका हो जाए। मां दुर्गा से अनुरोध है कि दीपू का काम हो जाए प्रसाद चढ़ाऊंगा। मैंने मंदिर परिसर से शीला दीदी को भी फोन लगाया, लेकिन उनका फोन नहीं उठा। मैंने सभी के लिए प्रार्थना की। जो रह गई उसके लिए क्षमा। डायरी लेखन कल रात के सिलसिले में भी लिखना था। पेज प्रीव्यू करने के बाद संपादक जी का मैसेज आया। उनका जवाब आया कि बात करना। इसके बाद मैंने बात की। अजय जी के बारे में बात हुई। मेरे काम को इन दिनों रिकोग्नाइज किया जा रहा है। ईश्वर सब ठीक रखना।
4- मंगलवार, 23 फरवरी 2016, दोपहर एक बजे
लखनऊ सौरभ गौरव का जनेऊ संस्कार बहुत बढ़िया ढंग से संपन्न हो गया। मैंने इस कार्यक्रम को बहुत इंजॉय किया। विपिन का साथ रहना बहुत अद्भुत था। रविवार को दिनभर तेलीबाग निवास भी बहुत अच्छा रहा। जब लौटे तो सबसे पहले तो ट्रेन लेट थी, लेट की खबर ने परेशानी में डाला। यह सोचकर कि 4 घंटे ट्रेन लेट हो गई तो क्या, पहुंच ही जाऊंगा, लेकिन अंततः मुझे कई घंटे बस अड्डे पर इंतजार करने एवं इधर-उधर हांडने के बाद गुलाबी बाग विपिन के यहां जाना पड़ा। वहां बीना ने बहुत बेहतरीन खाना बनाया था। खाना खाकर कुछ आराम किया, फिर शाम को एक बारात में चला गया, लेकिन मेरा मन कहीं भी नहीं लग रहा था। यह मेरे नौकरी के करियर में पहली दफा था जब मैं पहले से निर्धारित तारीख पर नहीं लौट पाया। अगले दिन भी न पहुंच पाया जाट आंदोलन के चलते सारी बसें बंद थी। बस अड्डे पर सहारा वाले नरेश वत्स मिल गए। हम लोग कश्मीरी गेट बस अड्डे से पहले आनंद विहार आए, वहां से गाजियाबाद। फिर वहां से शालीमार एक्सप्रेस पकड़कर मेरठ-मुजफ्फरनगर, सहारनपुर होते हुए अंबाला पहुंचा। वहां से रात 11:00 बजे घर पहुंचा। कुछ सबक भी लिया। पार्टी वगैरह में बैठना ठीक पर अकेले नहीं। मित्र दोस्त के साथ कोई रहे तो सब ठीक इसके अलावा भी बहुत कुछ। खैर इस बार पारिवारिक माहौल बहुत बढ़िया रहा। आज ऑफिस जाऊंगा।
चलिए, चलता रहेगा ये सफर और पुरानी डायरी के कुछ पन्नों को फिर पलटेंगे।

2 comments:

Anonymous said...

वाह क्या बात। पुरानी यादें

Jatinder said...

Wow