केवल तिवारी
नानू। आचार्य नवीन चंद्र पांडेय। ऐसे ही तो संबोधित करता था तुमको। तुम्हारा वह मामा कहना कानों में गूंजता है अभी भी। कोई लाग लपेट नहीं। कोई ‘जी’ नहीं। सिर्फ मामा। और कभी-कभी अरे मामा कहना। पिछले कुछ समय से तुमसे घनिष्ठता बढ़ गयी थी। फिर उस शनिवार रात जिंदगी और मौत से जूझते हुए तुम लखनऊ पीजीआई में थे और मैं यहां चंडीगढ़ में सिर्फ प्रार्थना कर पा रहा था।
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एक पूजा में व्यस्त। अब बस यादें। |
शनिवार रात आए थे तुम सपने में। कहा था मामा आपको उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर ले जाऊंगा। मैंने तैयारी कर ली है। मैं पहुंच रहा हूं आप फिर आना। रविवार सुबह-सुबह पत्नी को सपने के बारे में बताया। उसने भी कहा, लगता है नानू अब धीरे-धीरे रिकवर हो जाएगा। धवल और भावना को लेकर हम चले गए शिव-शनि मंदिर। वहां एक गुरुजी के आश्रम में भी जहां में पिछले एक हफ्ते से रोज जा रहा था। दोपहर को लौटने लगे तो सूचना आई। सबकुछ सन्नाटा। पता नहीं क्या लगा? ड्राइव कर रहा था। भावना बोली कार आराम से चलाओ। पहले घर पहुंचो। लगा बड़ा सा ज्वार-भाटा पिछले एक हफ्ते से आ रहा था और अचानक सब थम गया। खौफनाक सन्नाटा। मरघट जैसा। मरघट ही पहुंच गए। क्या करता, क्या कहता? एक दोस्त को फोन किया। लखनऊ अर्जेंट जाना है। कुछ लोगों से बात की। सबने कहा, हड़बड़ी मत करो, अंतिम दर्शन नहीं कर पाओगे। पंकज से बात करने की भी हिम्मत नहीं हुई। एक मैसेज डाल दिया। अगले दिन तत्काल में रिजर्वेशन मिला। पहुंचा लखनऊ।
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आसमान टूटने से बेखबर बच्चियां मेरे साथ। |
तुम्हारे बगैर वह सड़कें अनजानी सी लग रही थीं। घर में लग रहा था सब रो-रोकर थक चुके हैं। कुछ आसूं बहाए। तुम्हारी दोनों बेटियां कुछ समझ नहीं पा रही थीं। वह मेरे साथ खूब हंसी बोलीं। दीदियों का चेहरा देख, परिवार में सबकी स्थिति देख दिल दहल उठा। ज्योति तो जैसे पत्थर बन गयी। कुछ देर उसके साथ भी बैठा।
तभी मुझे अपने बारे में खयाल आया। कैसे संभाला होगा मेरी मां ने। बताते हैं कि जब पिताजी गुजरे थे तो मैं दो साल का था। भाई साहब नौवीं में पढ़ते थे। शीला दीदी और प्रेमा दीदी भी छोटी ही थीं। फिर तुलना करते-करते ठिठक गया। बातचीत में कहा, पिताजी का निधन 67 वर्ष में हुआ था। चलो कुछ तो जी गये थे। पिताजी को मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। वह माताजी से ऐसा ही कह भी गए थे। नानू तुम तो अभी 40 के भी नहीं हो पाए थे। चले गए हो अब तो। सपनों में ही आओगे। क्या कहूं अब। मैं लिखकर ही अपने दिल की बात कह पाता हूं। क्योंकि इग्नोरेंस हमेशा झेला है। यहां भी यही बात तुमसे। खुश रहना। अलविदा।
3 comments:
Pandit ji asamay hi chale gaye naman
अपूरणीय श्क्यति
दुःख हुआ
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