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Monday, December 19, 2022

सार्थक प्रयास का समारोह, जोश-जज्बा, अपनों से मिलन और खबर-वबर

केवल तिवारी 
वे जोश से लबरेज थे। कोई उत्तराखंड की वादियों से आया था तो कोई वसुंधरा से। खचाखच भरे हॉल में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बहुत दिनों से तैयारी जो की थी। दो दिन दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में घूमने और उसकी चर्चा करने का लुत्फ अलग था। कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही दिल्ली के आईटीओ स्थित हिंदी भवन में, मैं भी पहुंच चुका था। कुछ देर इन्हीं बच्चों से बतिया लिया जाये, यही सोचकर बच्चों से पूछा, ठंड नहीं लग रही, बोले बिल्कुल नहीं। मुझे जानते हो, चार बच्चों ने कहा हां। गजब। सिर्फ एक या दो बार सार्थक प्रयास के पुस्तकालय गया होऊंगा और बच्चों को याद है। बाद में जब इनका कार्यक्रम देखा तो समझ गया कि ठंड नहीं लग रही सवाल के जवाब में इनका जवाब इतना जोशीला क्यों था? गणपति बप्पा मोरया प्रस्तुति देखकर तो तालियों की ऐसी गड़गड़ाहट हुई कि बस उसे बयां करना मुश्किल है।



खैर… कार्यक्रम शुरू होने को अभी कुछ वक्त बाकी था, तभी चारूदा आए और बोले, ‘हिटो चहा पी ल्हीनू’ चाय पीने गए तो वहां सुशील बहुगुणा जी, उत्तराखंड से बच्चों की टीम लेकर आए पवन तिवारी जी, आकाशवाणी में वरिष्ठ प्रोड्यूसर एमएस रावत जी, सार्थक प्रयास से शुरू से जुड़े रवि जी, राजेन्द्र भट्ट जी समेत कई बंधु-बांधव मिले। मंच संचालन की जिम्मेदारी इस बार हंसा जी के अलावा सिद्धांत सतवाल को मिली थी। सार्थक प्रयास को हर परिस्थिति में आगे ले जाने में लगे उमेश पंत जी तो कभी यहां तो कभी वहां भागते नजर आ रहे थे। यह कार्यक्रम बहुत लंबे समय बाद हो पा रहा था। इससे पहले कोविड काल की बहुत सी दुश्वारियां झेलीं। इस दुश्वारियों के दौरान सार्थक प्रयास की सार्थक पहल भी देखी। साथ ही यह भी कुलबुलाहट हुई कि जब सबकुछ सामान्य चल पड़ा है तो कुछ नया हो जिसमें कुछ पुरानापन छिपा हो। इसी दौरान पंत जी का फोन आया कि वार्षिकोत्सव की तिथि तय कर दी गयी है। मैं नियत तिथि के दिन सुबह 6 बजे की बस से दिल्ली की ओर रवाना हो गया। एक बजे आईएनएस बिल्डिंग पहुंचा। मीडिया के कुछ मित्रों से मिला। कुछ को मैसेज किया। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुआ। कैसा लगा, बताने की जरूरत नहीं। शाम को मित्र जैनेंद्र सोलंकी जी, धीरज ढिल्लों जी और संजय जी के साथ कुछ वक्त बिताया। और फिर हो गयी वापसी। इस कार्यक्रम के लिए जो खबर तैयार थी उसे हू ब हू नीचे दे रहा हूं। साथ ही कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें और अखबारों में मिली कवरेज की कुछ झलकियां। देखिए, समझिए। सार्थक प्रयास में भागीदार बनिए। अभी भी और भविष्य में भी।

हुनर को मिला मंच और सपनों को लगे पंख 
सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था सार्थक प्रयास के वार्षिकोत्सव पर बच्चों ने दी प्रस्तुति, 
'दृष्टि का हुआ लोकार्पण' 
नई दिल्ली। सचमुच प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। यह बात एक बार फिर साधनविहीन बच्चों ने सही साबित की। इन बच्चों को जब मंच मिला तो इन्होंने एक से बढ़कर एक ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए कि सभागार में बैठा हर व्यक्ति तारीफ किए बगैर नहीं रह पाया। मौका था सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘ *सार्थक प्रयास’ के 12वें स्थापना दिवस का। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के हिन्दी भवन में संस्था के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। इस अवसर संस्था की वार्षिक स्मारिका ‘दृष्टि’ का लोकार्पण भी किया गया। इस समारोह में अल्मोड़ा जनपद के चैखुटिया और वसुंधरा के बच्चों ने बहुत उत्साह और आत्मविश्वास से अपनी प्रस्तुतियों से लोगों का मन मोह लिया। संस्था के अध्यक्ष उमेश चंद्र पन्त ने बताया कि , ‘सार्थक प्रयास’ पिछले 12 वर्षों से आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था के अलावा उनमें रचनात्मकता के साथ आत्मविश्वास पैदा करने के लिए लगातार काम कर रहा है। संस्था ने अपनी सामाजिक यात्रा के इन पड़ावों में कई तरह से जरूरतमंद लोगों की मदद की है। गाजियाबाद के वसुंधरा क्षेत्र के झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों का पढ़ाने से शुरू हुई इस मुहिम ने बाद में आपदा और कोविड-19 तक हर समय आम लोगों की तकलीफों के साथ खड़े रहकर मदद की है। उत्तराखंड मे 2010 में आई आपदा और केदारनाथ में 2013 की आपदा में संस्था ने प्रभावित लोगों कर मदद की। राहत कार्यो में भी अपनी भूमिका निभाई। पिछले दो-तीन सालों में कोविड के समय दवाओं के वितरण, लोगों को उनके घर पहुंचाने और जरूरतमंद लोगों तक राशन पहुंचाने का काम किया। अभी संस्था वसुंधरा, चौखुटिया और केदार घाटी में 150 के लगभग बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था करती है। इन तीनो जगहों पर पुस्तकालयों की स्थापना कर बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ाने का काम भी कर रही है। ‘सार्थक प्रयास’ के 12वें स्थापना दिवस पर बच्चों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सभी ने प्रशंसा की। इस मौके पर अल्मोड़ा जनपद के चैखुटिया से आये बच्चों ने सरस्वती वंदना, कुमाउनी लोकगीतों, लोकनृत्यों और नृत्य नाटिका से दर्शकों का मन मोह लिया। वसुंधरा के बच्चों ने राजस्थानी लोकगीत-नृत्य, नुक्कड़ नाटक, थीम सांग प्रस्तुत किये। इस मौके पर संस्था की वार्षिक स्मारिका ‘दृष्टि’ लोकार्पण किया। स्मारिका का इस बार ‘प्रकृति, मानव और कोविड’ विषय पर केन्द्रित थी। इससे पहले संस्था के बारे में एक डाॅक्यूमेंटरी भी दिखाई गई। कार्यक्रम के पहले दिन चालीस बच्चों को दिल्ली के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कराया गया। दिल्ली मेट्रो में सफर के अलावा बच्चों ने इंडिया गेट, वार मैमोरियल, राष्ट्रपति भवन के अलावा आकाशवरणी का भ्रमण किया। कार्यक्रम का संचालन हंसा अमोला और सिद्धांत सतवाल ने किया। अंत मे रवि शर्मा ने सभी मेहमानों का धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में चारु तिवारी, पवन तिवारी, सुषमा पन्त, राजेन्द्र भट्ट और संस्था के बहुत से गणमान्य लोग उपस्थित थे।









2 comments:

UMESH said...

धन्यवाद भाईसाहब, आपका सानिध्य और आसिष बना रहे💐

Anonymous said...

Sach mein sarthak prayas