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सीताबनी में भोजन के बाद एक ग्रूप फोटो |
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बारी लेडीज की : आदरणीय माताजी (पत्नी की दीदी की सास) के साथ जवां मंडली |
केवल तिवारी
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ठंड लगे तो हंस जाओ : सीताबनी के ठंडे झरनों पर स्नान |
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आओ नदी में उतरें : रामनगर गर्जिया देवी के पास नदी में उतरीं साहसिक महिलाएं |
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ये हैं भास्कर जोशी : स्वभाव में शांत, गाड़ी चलाने और खर्च करने में उस्ताद |
मुझे घूमना-फिरना
अच्छा लगता है। बशर्ते कई लोग हों। मसलन अपना परिवार, रिश्तेदारों का परिवार या मित्र।
जनवरी में चेन्नई-पुद्दुचेरी यात्रा की चर्चा अभी हमारे परिवार में चल ही रही थी कि
तय हुआ इस बार गर्मियों में उत्तराखंड चला जाये। कार्यक्रम अपने मूल घर रानीखेत भी
जाने का बना, लेकिन अचानक एक मौत की खबर आयी। रिश्ते में हमारी भाभी लगने वाली एक महिला
का निधन हो गया। अंत समय में बेहद दुखद दिन देखने वाली यह महिला अपने जमाने में
बेहद बिंदास थी। मैं उनके बच्चों की उम्र का हूं, रिश्ता हमारा देवर-भाभी वाला था।
जैसी पारिवारिक और अन्य तकलीफों से वह गुजर रहीं थीं, उनका रुखसत होना ही परिणति थी।
खैर... इस सूचना के बाद गांव जाने का कार्यक्रम तो मुल्तवी हो गया क्योंकि न तो पूजापाठ
हो सकती थी और न ही घूमना-फिरना। बच्चे गर्मियों की छुट्टियां शुरू होते ही चले गये
थे। हल्द्वानी, काठगोदाम। आसपास दीदीयां रहती हैं। ससुराल भी वहीं हैं। इस बीच अन्य
रिश्तेदार भी पहुंचे। बड़ा बेटा मामा संग अल्मोड़ा के कई इलाकों में घूमने गया। पत्नी
छोटे बेटे संग आसपास रिश्तेदारों के यहां मिलने में व्यस्त रही। तय कार्यक्रम के अनुसार
मैं भी 22 जून को पहुंच गया। तय किया कि एक दिन 'सात ताल' चला जाये। दो दिन 'गर्जिया देवी',
'कोटाबाग', 'जिम कार्बेट', 'सीताबनी' इलाकों में गुजारे जायें। एक दिन आराम के बाद फिर वापस
अपनी-अपनी जगह। इसी बीच हल्द्वानी में हमारे मित्र दिनेश, ललित दा की मांता जी के निधन
की खबर मिली। स्वस्थ हालत में करीब 85 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ। उन्हें सब लोग
ताईजी के नाम से पुकारते थे। वह मुझे बहुत प्यार करती थीं। कई बार उन्होंने अपनेपन
से डांटा कि मिलने नहीं आता। और भी कई यादें उनसे जुड़ी हैं। उनके अंतिम संस्कार में
शामिल होने में भी रानीबाग स्थित श्मशान घाट गया। खैर होनी को कौन टाले। अब फिर विचार
हुआ कि कहां चला जाये। बहुत सी जगहों पर चर्चा हुई। पहले हम लोग सात ताल गये। मैं आसपास
तो खूब घूमा हूं, लेकिन प्रॉपर सात ताल पहली बार गया। वहां बहुत अच्छा लगा। बीच ताल
में नाव में बैठकर आड़ू खाने का अलग ही लुत्फ आया। अगले दिन हम लोगों ने निकलना था
दो दिन के टूर पर। पहले कोटाबाग अपने साढू भाई को रिसॉर्ट बुक कराने को कहा, लेकिन
कोई खाली नहीं था, फिर अपने भांजे मनोज के सुसर श्री कांडपाल जी से अनुरोध किया। उन्होंने
पहले ही वाक्य में कहा, सब हो जायेगा। आप लोग बस आ जाओ। इस बार हम लोग फिर दो गाड़ियों
में थे। मेरी दीदी-जीजा जी, बच्चों के मामा-मामी बाद में एक साढूभाई की माताजी भी साथ
हो लीं। उनके भी कुछ रिश्तेदार। इस बार के सफर में बच्चों की बड़ी मामी उनकी बेटी और
बेटा साथ नहीं चले। हम लोग सुबह गर्जिया देवी गये। वहां पूजा-अर्चना के बाद नदी में
बच्चों ने काफी देर तक एंजॉय किया। उसके बाद कांडपाल जी को फोन लगाया। उन्होंने कहा
रिसॉर्ट तो सब फुल चल रहे हैं, पर इंतजाम पूरा है। आप लोग आ जाओ। जायें कि नहीं, इस
असमंजस में हम लोग चल दिये। बीच में गाड़ी वाले ने कुछ चालाकी दिखायी और पैसे लेकर
चलता बना। हमने भी उससे चिकचिक करनी पसंद नहीं की। कुछ लोग कांडपाल जी के यहां रुक
गये, कुछ चले गये कोटाबाग। भांजे मनोज का आग्रह और कांडपाल जी की प्यारी जिद ने मुझे भी वहीं रोक लिया। अगले दिन सुबह पास में ही छोटे से डैम में मैं, मेरा बेटा
और जीजाजी नहाने चले गये। एक घंटा नदी में ही पड़े रहे। बेहद आनंद आया। उसके बाद गये
रमणीक स्थल सीताबनी में। यहां जाने का रास्ता था जिम कार्बेट जंगल के बीच पथरीली राहों
भरा। बच्चों के मामा भास्कर की गाड़ी में मैं बैठा था। दिल्ली में कार चलाने वाले भास्कर
ने इतनी खूबसूरती से वहां गाड़ी ड्राइव की, मैं हतप्रभ रह गया। सीताबनी पहुंचे। ठंडे
झरनों में स्नान किया। फिर पूजापाठ। उसके बाद वहीं चाय बनायी। वहीं खाना बनाया और खाया।
जंगल से सूखी लकड़ियां लेकर खाना बनाने और साथ खाने का जो आनंद आया, वह अवर्णनीय है।
इस सबमें अन्य लोगों के अलावा मेरे साढूभाई सुरेश पांडेय जी का सहयोग बेहद सराहनीय
रहा। शाम को हम लोग कोटाबाग होते हुए काठगोदाम आ गये। यहां आकर फिर पता चला एक बच्चे
(हम तो बच्चा ही कहते हैं हालांकि वह करीब 25 साल का हो गया है) ने अपनी मां पर हाथ
उठाया है। असल में वह उत्तराखंड में फैले स्मैकियों के जाल में कुछ साल पहले फंस चुका
है। उसको सुधारने के तमाम प्रयास बेकार साबित हुए। उसे नशा मुक्ति केंद्र में भी डाला
गया। प्यार से समझाया भी गया। वह इतना ‘चालाक’ है कि हम जैसे दो दिन के मेहमानों के
समझाने पर ऐसे रिएक्ट करता है, मानो वह सुधर गया, लेकिन ऐसा होता नहीं। उस वक्त थोड़ा
गुस्सा किया। अगले दिन उसे कुछ समझाया। उसके चाचा तो अगले दिन अपने काम पर लौट गये,
लेकिन मुझे दो दिन और रुकना था। उसे मैंने भी बहुत समझाया। वह बोला, अब पढ़ाई करूंगा,
कंपटीशन दूंगा। यहां बता दूं कि वह दसवीं तक पढ़ने में बहुत अच्छा था। जब तक हम रुके
वह सामान्य बना रहा, लेकिन फिर खबरें नकारात्मक आ रही हैं। पता नहीं क्या होगा उसका।
लेकिन इस बीच हैरान करने वाली बात हुई। पुलिस के कुछ अधिकारियों से मैंने बात की। उनका
कहना था कि स्मैकियों के नेटवर्क को तोड़ना बहुत मुश्किल है। पंजाब आदि जगहों की तो
लोग चर्चा करते हैं, लेकिन उत्तराखंड में नशे का भयानक जाल फैला है। इस पर कोई चर्चा
नहीं करता। मैंने एसएसपी आदि को अलग से मेल भी किया है। जगह-जगह स्मैक बिक रहा है।
कई बच्चे इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं। हाल ही में वहां एक नशामुक्ति केंद्र तक में
ये नशे के सौदागर पहुंच गये। खैर... उत्तराखंड का पूरा टूर अच्छा रहा, लेकिन इस बच्चे
की वजह से सारा गड्डमड्ड हो गया। पता नहीं यह सुधरेगा भी या नहीं।