Sunday, May 26, 2024
आकाशवाणी के विविध आयामों की तरह बहुमुखी प्रतिभा के धनी मनोहर सिंह रावत
Thursday, May 16, 2024
आइसर भोपाल में धवल, परिवार का मिलन ‘नवल'
केवल तिवारी
ये जीवन, ये नव्यता, ये घर और ये परिवार
ये सफर, ये दुश्वारियां और अपना घरबार
चल पड़े थे सफर पर, ट्रैक पर थे अवरोध
धवल के आईसर सफर पर दिखा जीवन का शोध।
जो ठान लो कुछ तो
पिछले दिनों छोटे बेटे धवल को अपने स्कूल द ट्रिब्यून स्कूल (The Tribune School) की ओर से भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान यानी Indian Institute of Science Education and Research (IISER, Bhopal यानी आईसर भोपाल) में एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। असल में करीब एक माह पहले स्कूल से इस संबंध में सूचना मिली और कहा गया कि यदि इच्छुक हैं तो ऑनलाइन फॉर्म भर दें। पहले मन में कुछ किंतु-परंतु उठे, लेकिन जब धवल ने इच्छा जाहिर की तो मैंने तुरंत हामी भर दी। भोपाल पहुंचकर धवल को बहुत कुछ नया सीखने को मिला, जीवन की आपाधापी की पहचान हुई और हम दोनों ने परिवार में मिलन का ‘नवल’ अनुभव भी किया। विस्तार से बिंदुवार पूरा वृतांत सामने रखता हूं।
महान है भारतीय रेलवे और महान हैं ट्रेन ट्रैक पर बैठने वाले आंदोलनकारी
जब भोपाल जाने का मन बना लिया तो सबसे पहले रिजर्वेशन कराना जरूरी था क्योंकि तत्काल में भी मिलना मुश्किल हो जाता है। सीटें फुल दिखाने का जो रेलवे का खेल है, वह भी इस दौरान समझ में आया। आईसर में सेमिनार 6 मई से था, मुझे पांच को पहुंचना था। मैंने अंबाला से भोपाल की ट्रेन में धवल के साथ रिजर्वेशन कराया। वापसी का दिल्ली तक सेकेंड सिटिंग में कराया। भोपाल जाने से एक दिन पहले रेलवे का मैसेज आया कि ट्रेन नाभा से लेकर दिल्ली के सब्जीमंडी तक के स्टेशनों पर नहीं जाएगी। पहले तो मैसेज का मतलब समझ में नहीं आया। ऑफिस में मित्र नरेंद्र, जतिंदरजीत एवं सूरज से चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह ट्रेन या तो दिल्ली से पकड़नी पड़ेगी या फिर टिकट कैंसल कराना पड़ेगा। टिकट कैंसल का मतलब पूरा पैसा कटना। 139 पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं। गूगल पर रेलवे का पुराना रूट ही दिख रहा था। बेशक रेलवे ने ट्रेन डायवर्जन का कारण नहीं बताया, लेकिन मैं समझ रहा था कि पटियाला के पास राजपुरा में ट्रेन ट्रैक पर कुछ आंदोलनकारी बैठे हैं। मैं समझ नहीं पाया कि करूं क्या? कुछ ने बताया कि संबंधित स्टेशन पर अगर सीट नहीं ली गयी तो टीटीई उसे कैंसल कर किसी और को दे देते हैं। फाइनली वसुंधरा में रावत जी से बात की उन्होंने कहा कि अगर टिकट ऑनलाइन बुक किया है तो वहीं लॉगइन कर बोर्डिंग फ्रॉम न्यू डेल्ही यानी नयी दिल्ली से बैठने का ऑप्शन क्लिक कर दें। गनीमत है कुछ दिक्कतों के बाद यह हो गया। मैं और धवल अगली शाम सात बजे दिल्ली पहुंच गये थे। ट्रेन का समय था रात 8:40 बजे, लेकिन यह आई रात एक बजे। धवल इंतजार में तब तक बेहाल हो चुका था। संबंधित वीडियो साझा कर रहा हूं। खैर किसी तरह धवल को आईसर भोपाल पहुंचाया। वापसी में भी ट्रेन पांच घंटे विलंब से आई और पूरे रास्ते लोगों से यही अपील करता रहा कि यह रिजर्वेशन डिब्बा है, लेकिन कुछ लोग लड़ने पर उतारू थे, पर मानने को राजी नहीं हुए। इसी तरह एक हफ्ते बाद मेरा और धवल का टिकट था। एक महीने पूर्व जब टिकट कराया था तो 14 वेटिंग था। जिस दिन आना था तीन घंटे पहले पता चला कि रिजर्वेशन कनफर्म नहीं हुआ। मैं परेशान हो गया। अकेला होता तो जनरल में भी आने की हिम्मत कर लेता, लेकिन बच्चा साथ था। एक दिन बाद से उसकी परीक्षाएं थीं। नवल जी बोले कि तत्काल में देखते हैं। दिल्ली तक की कई ट्रेन देखीं, तत्काल भी वेटिंग। फिर नवल जी ने बताया कि एक प्रीमियम तत्काल भी होता है। मैंने अनुरोध किया कि कृपया तुरंत देखें। एक ट्रेन में मिला। थर्ड एसी का तीन हजार रुपया किराया दिखाया। मैंने कहा कर दीजिए। वे बोले, एक-दो ट्रेन और देख लेते हैं। जब नहीं मिली तो वापस उसी ट्रेन पर आए, पता चला कि इस बीच वह टिकट 3300 के करीब का हो चुका है। मरता क्या न करता। साढ़े छह हजार के दो टिकट लिए और किसी तरह दिल्ली पहुंचे और वहां से बस पकड़कर चंडीगढ़। जै हो रेलवे की और जै हो ट्रैक पर बैठने वालों की। सफर के दौरान सेहत संबंधी कुछ परेशानियां भी आईं, लेकिन अंतत: सब ठीक हो गया। इस दौरान कुछ देर भतीजी कन्नू और दीदीयों- प्रेमा दीदी एवं शीला दीदी से बातचीत से भी थोड़ा सुकून मिला।
… पर धवल को आईसर का कार्यक्रम बहुत भाया और फिर हम दोनों का परिवार का ‘नवल’ मिलन
तमाम दुश्वारियों के बावजूद धवल जब आईसर भोपाल पहुंचा तो इसे उसका कैंपस बहुत भाया। हॉस्टल रूम और साथी भी अच्छा था। उसने तुरंत वीडियो कॉल के जरिये अपनी मम्मी और भाई को यह बात बताई। उसे छोड़कर मैं दिल्ली आ गया। वह अक्सर वैज्ञानिक प्रयोगों की वीडियो और फोटो भेजता। भोजन मैन्यू के बारे में बताता। कई नयी चीजों का भी उसने अनुभव लिया और हॉस्टल लाइफ को भी समझा। उसे आनंदित देखकर लगा कि इस जानकारीपरक जीवन के आगे परेशानियां गौण हैं। मैं तो दिल्ली आ चुका था, लेकिन इस बीच डॉ. नवल लोहानी जी उससे लगातार बातचीत करते रहे। बता दूं कि नवल जी मेरी पत्नी भावना की बुआ के बेटे हैं। भोपाल में ये तीन भाई रहते हैं। कमल जी, नवल जी और दीपक जी। कमल जी से मेरा ज्यादा परिचय नहीं है, लेकिन नवल जी और दीपक जी से अनेक बार मिलना हुआ है। नवल जी बेहद विनम्र, शांत और अपनापन बनाए रखने वाले व्यक्ति हैं। दीपक जी लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं। उनके साथ कुछ साहित्यिक चर्चाएं भी हो जाती हैं। वापसी वाले दिन मैं पहले नवल जी के यहां पहुंचा। फिर उन्हीं की कार में आईसर गया। हमारे साथ उनका बेटा वरद भी था। नन्हा वरद हंसमुख और चंचल स्वभाव का है। बच्चों के साथ बातें करने में जो आनंद आता है वह वरद के साथ आया। वरद का पड़ोसी दोस्त कनिष्क से भी खूब बातें हुईं। धवल को लेकर आए। इससे पहले फोन पर हुई बातचीत के आधार पर धवल की प्रतिक्रिया आई थी, ‘नवल मामा तो कितना प्यारा बोलते हैं।’ वरद की मम्मी, मौसी, नानी और पड़नानी से मुलाकात हुई। सब लोग बेहद हंसमुख। दीपक जी के परिवार से भी अच्छी बातचीत हुई और इन लोगों से बातों-बातों में बुआजी की भी खूब याद आई। बुआ कुमाऊंनी और हिंदी को मिक्स कर बोलती थीं। मेरी माताजी के साथ भी उनकी अच्छी बातचीत थी। कोविड के दौरान वह इस दुनिया से चल बसीं। वह अक्सर मेरी पत्नी भावना से कहती थीं कि भोपाल घूमने आओ। एक बार तो उनहोंने गुस्से में कह दिया जब मैं मर जाऊंगी तब आना। उनकी यादें शेष हैं। खैर… इस दौरान पूरे परिवार के बीच बातचीत। परिवार के लोगों के बारे में बातचीत और दीपक जी के बच्चों से बात करना अच्छा लगा। कुछ फोटो यहां साझा कर रहा हूं।
Friday, May 3, 2024
मां विंध्यांचल देवी : यहां होते हैं संपूर्ण विग्रह के दर्शन
साभार: dainiktribuneonline com
केवल तिवारी
पहले पवित्र गंगा नदी में स्नान। फिर चारों ओर का विहंगम दृश्य। पैदल पथपर भक्ति में लीन पंक्तिबद्ध श्रद्धालु। ऐसा ही भक्तिमय दृश्य आपको नजर आएगा जब आप मां विंध्याचल देवी के दर्शन के लिए जाएंगे। इस स्थान को प्रमुख शक्ति पीठ का दर्जा मिला है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में स्थित विंध्याचल देवी मंदिर की महिमा अपार है। आसपास अन्य मंदिर जैसे अष्टभुजा देवी का मंदिर, कालीखोह मंदिर और सीताकुंड भी हैं। मान्यता यह भी है कि विंध्याचल देवी जिसे मां विंध्यवासिनी भी कहा जाता है, एक ऐसी शक्तिपीठ है जिसका अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व हुआ। विंध्य क्षेत्र को तपोभूमि भी कहा जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे इस मंदिर प्रांगण में श्रद्धालु सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। इस देवी को त्रिकोण यंत्र पर विराजित माना जाता है। मान्यता है कि विंध्याचल निवासिनी यह देवी लोक कल्याण के लिए महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं।
विंध्याचल देवी का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वाराणसी से करीब 90 किलोमीटर दूर है। मान्यता है कि देवी ने इस पर्वत पर रहकर मधु एवं कैटभ नामक राक्षसों का वध करने का लक्ष्य साधा। अक्सर पूजा-अर्चना विशेषतौर पर नवरात्र के दिनों में जिस दुर्गा सप्तशती का श्रद्धालु पाठ करते हैं, उसमें भी इस धार्मिक जगह का उल्लेख मिलता है। देवी को लेकर विभिन्न कथाओं में एक कथा यह भी है कि जब भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था उसी वक्त यशोदा ने भी एक कन्या को जन्म दिया था जो देवी के रूप में थी। जब कंस ने उनको पत्थर से मारने की कोशिश की तो वह चमत्कारिक रूप से दुर्गा के रूप में बदल गई। इस तरह देवी ने विंध्याचल को अपना निवास स्थान बना लिया।
विंध्याचल देवी के इसी मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है, जिनकी पूजा मां काजला के रूप में की जाती है। मिर्जापुर मूल शहर से करीब दस किलोमीटर दूर इस मंदिर पर इन दिनों जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। श्रद्धालुओं को भव्यता का अनुभव कराने के लिए जगह-जगह विशेष पत्थर से निर्मित खंभे लगाए जा रहे हैं। लाल पत्थर वाली छत के नीचे भक्त जयकारा लगाते हुए चलते हैं। हमारे विभिन्न देवी महात्म्य स्थलों में से विंध्यवासिनी ही एक ऐसा मंदिर है जहां देवी पूर्ण रूप में विराजमान हैं। यहां उल्लेखनीय है कि दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में कूद गयीं देवी सती (पार्वती) को लेकर जब भगवान शिव ने ब्रह्मांड का चक्कर लगाना शुरू किया और भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया, उसके बाद विभिन्न अंगों के गिरने से अलग-अलग देवी शक्तिपीठ स्थापित हुए जिसमें नैना देवी, सुनंदा, महामाया, त्रिपुरमालिनी, जयदुर्गा, दाक्षायणी, गंडकी, बहुला, भ्रामरी, कामाख्या, ललिता, जयंती, युगाद्या अथवा भूतधात्री, कालिका आदि हैं। इसी मंदिर में देवी पूर्णरूप में अर्थात यहां पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं।
नवरात्र के दिनों में मां के विशेष शृंगार के लिए मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद किए जाते हैं। सामान्य दिनों में मंदिर के कपाट रात 12 बजे से सुबह 4 बजे तक बंद रहते हैं। दिन में भी कुछ देर के लिए कपाट बंद किए जाते हैं। जैसा कि सर्वमान्य है कि ईश्वर भाव का भूखा है, इसलिए मंदिर प्रांगण में जाना ही पुण्य का काम है। ऐसे परिसरों में घूम रहे उन तत्वों से सावधान रहना चाहिए जो दर्शन कराने या पूजा-अर्चना कराने के नाम पर ठगी करते हैं। इस तरह का कुछ विकृत रूप कभी-कबार यहां भी नजर आ जाता है। हालांकि जल्दी ही सबकुछ सुव्यवस्थित होने का दावा किया जा रहा है। प्रतिदिन इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु माथा टेकते हैं और देवी मां का पूजन जय मां विंध्यवासिनी के उद्घोष के साथ करते इन दिनों जीर्णोद्धार कार्य त्वरित गति में हैं, इसमें परिक्रमा स्थल से लेकर संपूर्ण परिसर का नवीनीकरण शामिल है।