(Kufri Himachal Pradesh) यू ट्यूब पर दो भजन सुनने के बाद एक मित्र गुनगुनाने लगा, ‘ये दिल और उनकी निगाहों के साये।’ तभी दूसरा बोला, इस वक्त तो यही गाना
बजना चाहिए, सफर भी तो अब पहाड़ का शुरू होने वाला है। तुरंत यूट्यूब पर सर्च कर गाना लगा दिया गया। पिंजौर आ चुका था और वाकई पहाड़ों का सफर शुरू हो चुका था। सफर था शिमला से थोड़ा आगे ढली का। यह विवरण है गत 26 जनवरी को चार मित्रों के एक छोटे से सफर का। सफर बर्फीली
वादियों का। सफर शिमला का। सफर जाखू टैंपल का। नरेंद्र ने 10 जनवरी के आसपास प्रस्ताव रखा 27 को सोमवार है, अगर छुट्टी मिल जाती है तो चलते हैं शिमला। मैंने तुरंत हामी भर दी। दो दिन बाद मीनाक्षी मैडम से छुट्टी के बावत पूछा तो उसके लिए भी हां हो गयी। शुरुआत अच्छी
थी तो चलने की तैयारी करनी थी। दो दिन बाद ही नरेंद्र का मैसेज आया कि टॉय ट्रेन में रिजर्वेशन करा लिया है, लेकिन वेटिंग है। मैंने कहा, वेटिंग लेने की जरूरत नहीं थी। खैर...एक-दो दिन यूं ही निकल गये। मैंने कहा टॉय ट्रेन से जाने का मतलब ज्यादा घूम नहीं पाएंगे।
फिर ध्यान आया हमारे पेज डिजाइनर रवि भारद्वाज कई बार शिमला चलने की बात करते हैं। मैं उनसे पूछने गया तो उन्होंने हामी भर दी। अब हो गये तीन। तय हुआ कि कार से चलना है। एक साथी और चाहिए था। अच्छा लगता। हालांकि हम तैयारी कर चुके थे कि चार नहीं भी हुए तो तीन ही चलेंगे।
खैर अचानक सलिल मौर्य ने हामी भरी तो बात बन गयी। एक व्यक्ति हमें ‘सलिल जी जैसा’ भी चाहिए था। 26 जनवरी को सुबह 8 बजे चलने का फैसला किया गया। कहां जाना है, कहां ठहरना है, कुछ नहीं मालूम। रवि साथ हैं तो फिर अंधेरा कहां रहना। पिंजौर पार करने के बाद पता चला कि हम
लोग पहले ढली जाएंगे। ढली में रवि के जीजाजी योगराज शर्मा जी का घर है, रेस्तरां है। मैं थोड़ा सकुचाया कि घर में जाना ठीक रहेगा क्या। बेवजह दीदी-जीजा और बच्चों को डिस्टर्ब करेंगे। सभी बोले, चलते हैं, कुछ अटपटा लगेगा तो देख लेंगे। इस दौरान अलग-अलग पसंद के गीत
चलते रहे। बीच में एक जगह किन्नू खरीदे। हम लोग करीब 12 बजे ढली पहुंच गये। वहां शर्मा जी पहले से इंतजार कर रहे थे। उन्होंने पहले रेस्तरां में ही चाय पिलाई फिर घर ले गये। उनके बच्चे इन दिनों कहीं गये थे। सिर्फ दीदी थीं और वे खुद। बेहद आलीशन घर। हम लोग कुछ मिनट
वहां रुके फिर चल दिए कुफ्री को। ढली से निकलते ही चारों ओर बर्फीले नजारे ने मन मोह लिया। इस बीच नरेंद्र वीडियो बनाते रहे।
वो अंकल, वो सवाल-जवाब और सेब (Apple)
बर्फीले वादियों में हम लोग जगह-जगह रुके। एक जगह वीडियो बनाते-बनाते नरेंद्र एक सज्जन के घर चले गये। वह अपनी छत पर करीब 3 फुट
जमी बर्फ को एक फावड़े से काट-काटकर निकाल रहे थे। नरेंद्र ने उनसे कुछ सवाल पूछे और वो सज्जन इन्हें अपने घर के अंदर ले गये। वहां उन्होंने इनको एक बड़ा से सेब दिया। नरेंद्र ने कहा, अंकल दो सेब दो क्योंकि हम चार लोग हैं और आधा-आधा खाएंगे। ‘धड़कते हैं दिल कितनी
आजादियों से’ गीत की मानिंद उन्होंने तुरंत दो सेब दे दिए। शाम को ढली लौटे। दीदी ने लाजवाब व्यंजन बनाए थे। चार तरह की सब्जी (उनमें से एक हिमाचल स्पेशल), राजमा, चटनी, चावल और चपाती। खाना खाकर हम लोग उनके ऊपरी फ्लोर में आ गये। वहां बड़ा सा हीटर लगाकर कुछ हंसी
मजाक चली। बात करते-करते सभी सो गये।
जाखू दर्शन, पूजा अर्चना और थोड़ी बेचैनी
अगले दिन सुबह करीब 8 बजे तक हम लोग स्नान ध्यान कर तैयार हो गये। दीदी ने आलू के पराठे बनाये। भरपेट पराठे खाकर पहले हम लोग जाखू
मंदिर गये। वहां बंदरों की शरारतों और उनके मान जाने के नजारे देखे। भगवान हनुमान जी की गगनचुंबी प्रतिमा देखी। बाबा बालकनाथ के मंदिर गये। फिर पैदल ही रिज की तरफ लौट आये। इस रास्ते में जगह-जगह बोतलों, पन्नियों को देखकर
मन खट्टा हुआ। कई लोग अब भी ऐसे हैं जो पर्यावरण की चिंता नहीं कर रहे। रिज पर पहुंचे तो वहां रवि की बुआ के बेटे मिले। वह जिम ट्रेनर हैं। सरकारी जिम देखा। फिर शिमला प्रेस क्लब गये। वहां एक-एक चाय पी। और दोपहर होते-होते हमारा चंडीगढ़ का सफर शुरू हो गया। बेहद यादगार रहा वह ट्रिप और हमने नाम दिया ‘kufri calls’
मन खट्टा हुआ। कई लोग अब भी ऐसे हैं जो पर्यावरण की चिंता नहीं कर रहे। रिज पर पहुंचे तो वहां रवि की बुआ के बेटे मिले। वह जिम ट्रेनर हैं। सरकारी जिम देखा। फिर शिमला प्रेस क्लब गये। वहां एक-एक चाय पी। और दोपहर होते-होते हमारा चंडीगढ़ का सफर शुरू हो गया। बेहद यादगार रहा वह ट्रिप और हमने नाम दिया ‘kufri calls’
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