केवल तिवारी
काल करे सो आज कर...। कबीरदास जी सच में बहुत बड़ी बात कर गये थे। जीवन के तमाम उतार-चढ़ाओं के बीच अनेक काम हम टाल जाते हैं, उनका प्रतिफल कितना हमें प्रभावित करता है, इसे कभी समझ पाया और कभी नहीं, लेकिन लेखन के संबंध में यह समझ आया कि देर की तो सब गड्डमड्ड। वैसे जहां तक डायरी लेखन का सवाल है, मैंने अब उसे धीरे-धीरे न्यूनतम करने की शुरुआत कर दी है। उसके कई कारण हैं, सबसे पहला कारण कि डायरियों का बहुत बड़ा ढेर लग चुका है। यहां-वहां अटे पड़े हैं। बाद में उसे रद्दी ही होना है। हां ऑनलाइन लेखन यानी ब्लॉग लेखन और पत्र-पत्रिकाओं में लेखन जारी रखूंगा। डायरी लेखन वैसे मेरे लिए ईश्वर से सीधा संवाद जैसा है, इसलिए उसे बंद नहीं कर सकता, हां संवाद नियमित डायरी के माध्यम के बजाय दिल ही दिल में होता रहेगा। खैर... एक तो मैंने ऐसे ही देर कर दी, उस पर ज्यादा भूमिका के चक्कर में पड़ गया तो और देर हो जाएगी। देरी लेखन में इसलिए नहीं करनी चाहिए कि आपके दिमाग में जो तत्काल खयाल आते हैं, वह धीरे-धीरे बदल जाते हैं या फिर दिमाग उनको उस अंदाज में याद नहीं कर पाता। ऐसा ही हुआ इस लेखन के संबंध में। कार्यक्रम का मर्म, उद्देश्य और बातें तो कभी नहीं भूल सकता, लेकिन तत्काल लिखा होता तो शायद ज्यादा अच्छा होता। खैर... देर आयद दुरुस्त आयद।
असल में करीब एक महीना होने को आया, मेरा मन जिस विषय पर तत्काल लिखने को हो रहा था, वह नहीं लिख पाया। कारण गिनाना तो अपनी कमियों को छिपाना है। सीधे मुद्दे पर आता हूं। गत 25 सितंबर को वरिष्ठ पत्रकार एवं हमारे पूर्व समाचार संपादक हरेश जी के माध्यम से एक ऑनलाइन सेमिनार में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर उनके विचारों को लेकर परिचर्चा थी। इसमें मुख्य वक्ता थे डॉ कुलदीप अग्निहोत्री जी। संचालन संघ से जुड़े एवं अभी पांच राज्यों के प्रभारी अनिल जी कर रहे थे। इसमें मेरे मित्र एवं दिल्ली स्थित भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) में प्रोफेसर प्रमोद सैनी समेत अनेक लोग जुड़े। डॉ अग्निहोत्री हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलपति हैं। उनका परिचय इतनाभर ही नहीं है। उन्होंने कई शोध कार्य किए हैं। कई महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए हैं। कई महत्वपूर्ण संस्थानों को संभाला है। उनका विस्तृत विवरण फिर कभी। सेमिनार में दीनदयाल जी के विचारों की प्रासंगकिता पर बात करते हुए डॉ अग्निहोत्री ने मोक्ष का अर्थ समझाया। उन्होंने कहा कि निरंतर जिज्ञासु बने रहना ही मोक्ष है। प्रकृति को समझना और उसके प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करना ही मोक्ष है। मोक्ष मतलब मौत के बाद का मंजर नहीं है। असल में मोक्ष की जो परिकल्पना हमारे धर्मशास्त्रों में की गयी है, उसकी समुचति व्याख्या शायद अभी नहीं हुई है। या फिर उसे ठीक से समझा नहीं गया। दीनदयाल जी की चर्चा में ही उन्होंने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय एक कुशल संचारक और भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक थे। दीनदयाल जी ने सरलता, सहजता एवं सादगी द्वारा भारतीय जनता से संवाद स्थापित किया। डॉ अग्निहोत्री के अनुसार पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय दर्शन को आधार बनाकर आधुनिक भारत की नींव रखी और आज एकात्म मानववाद और अंत्योदय इसी नए भारत का महत्वपूर्ण अंग हैं। उनका मानना था कि गलत मार्ग से सही लक्ष्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती। हमें भारत का विकास भारतीय दृष्टि से करना होगा। प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि दीनदयाल जी के विचारों द्वारा ही सबका विकास किया जा सकता है। एकात्म मानवदर्शन में संपूर्ण जीवन की एक रचनात्मक दृष्टि है। इसमें भारत का अपना जीवन दर्शन है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को टुकड़ों में नहीं, समग्रता में देखता है। इस कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं ने पंडित दीनदयाल जी और उनके विचारों के बारे में उपलब्ध सामग्री का अन्य भाषाओं में अनुवाद कराए जाने की जरूरत पर भी बल दिया। कुछ लोगों ने अन्य मुद्दे भी उठाये। परिचर्चा सार्थक रही। बस मुझे थोड़ा पहले सेमिनार को ‘लीव’ करना पड़ा क्योंकि मनुष्य तो कर्म के अधीन है और इसी कर्म के तहत ऑफिस से फोन आ गया कि पेज पर विज्ञापन आया है कुछ मैटर हटाना पड़ेगा और कुछ एडिट करना पड़ेगा। विस्तृत बातें फिर होती रहेंगी।
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