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Saturday, October 7, 2023

मां की याद, संदेश देता पितृपक्ष

 केवल तिवारी

सफर जिंदगी का गुजरता रहा, जब जरूरत महसूस हुई अपनेपन की, केवल मां को तलाशता रहा।


बरबस ही यह पंक्ति छूट पड़ी पिछले दिनों जब मां को याद कर रहा था। मां के जाने के बाद कई घर बदल चुका हूं, लेकिन उसकी कुछ भौतिक यादें हर घर में सिमटी-सिमटी सी रहती हैं। मन-मस्तिष्क में तो कुछ यादें हमेशा रहती हैं और रहेंगी ही। बच्चों को भी किस्से बताता रहता हूं। पितृ पक्ष की शुरुआत पर खुद से जुड़े अनेक लोगों को याद करता हूं। उनको भी जिन्हें कभी देखा नहीं और उन्हें भी जो असमय चले गए। वे भी जो भरपूर जिंदगी जीकर गए। लेकिन मां की बात तो घर में हर रोज ही होती है। अजब इत्तेफाक है कि माताजी के श्राद्ध से पहले कैथल से हमारे (यानी दैनिक ट्रिब्यून के) रिपोर्टर ललित शर्मा का एक खबर को लेकर फोन आया। उनसे कई मसलों पर अक्सर बात होती रहती है, लेकिन इस बार खबर भी थी तो पितृ पक्ष को लेकर। उसको पढ़ते-पढ़ते कई बातें मन में आयीं। उनमें से एक तो यह कि मैं माताजी से हर बात शेयर करता रहता था। अब भी करता हूं, अब मां अदृश्य होकर सुनती रहती है कोई प्रतिवाद नहीं करती, हां आत्मानुरूपी मां कुछ चीजों पर किंतु-परंतु लगाती सी महसूस होती है। दूसरी बात यह सामने आई कि ज्यादातर जगहों पर अब कौए नहीं दिखते। कौओं को पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक पक्षी माना जाता रहा है। शायद इसीलिए उत्तरायणी पर्व पर कौओं को निमंत्रण देने, उनके लिए भोजन रखने की व्यवस्था भी अनेक जगहों पर है। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए हमारे यहां हर पर्व, त्योहार, संस्कार में कुछ न कुछ व्यवस्था है। बस प्रतीकों के माध्यम से कही गयी इन बातों को समझने की जरूरत है। साथ ही जरूरत है उनके पीछे छिपे संदेश को समझने की। श्राद्ध बना है श्रद्धा शब्द से। यदि मन में श्रद्धा नहीं है तो सब बेकार। साथ ही समय के साथ इसमें कुछ बदलाव भी अवश्यंभावी हो सकते हैं। ललित जी ने इस बदलाव पर ही स्टोरी लिखी है। उसका भी लिंक इस ब्लॉग के अंत में साझा करूंगा।
जब लिखा था मां बिन नवरात्र


वर्ष 2008 में जब मां का निधन हुआ था तो बरसी के बाद जब पहली नवरात्र आई तो मैंने एक ब्लॉग लिखा था मां बिन नवरात्र। उसमें अनेक लोगों ने अपनी भावनाओं का उद्गार किया था। मैं उन दिनों गाजियाबाद के वसुंधरा स्थित घर में रहता था। उस घर से मां की बड़ी यादें जुड़ी थीं। हम तो एक बार में ही ऊपर-नीचे चढ़ने-उतरने में थक जाते थे, लेकिन माताजी एक दिन में बीसियों बार तीन मंजिल से नीचे उतरती और चढ़तीं। वहां उन्होंने अनेक संबंधियों, रिश्तेदारों को ढूंढ़ निकाला जिनसे आज तक हमारे मधुर संबंध हैं। वह पार्क में जाती, वहां लोगों से परिचय निकाल लेतीं। कभी-कभी उन्हें चाय पर बुला लेतीं। खैर... अब तो वह मकान भी अपना नहीं रहेगा। कभी वहां जाऊंगा तो दूर से ही उस घर को निहार लूंगा। अब उस मकान का मालिक जल्दी ही कोई और हो जाएगा। यहां बता दूं कि मुझे हर उस शख्स से प्यार रहता है जो अपनी मां से प्रेम करते हैं, श्रद्धाभाव रखते हैं। क्योंकि कहा भी तो गया है, 'कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।' मां के साथ पिता की जो भूमिका होती है उसे कैसे कोई नकार सकता है। स्नेह तो दोनों से पर्याप्त होता है। हां मुझ जैसे कुछ दुर्भाग्यशाली होते हैं जिन्हें पिता की शक्ल भी ठीक से याद नहीं, कभी कबार अवचेतन मन में एक बुजुर्ग शख्स सब्जी काटते हुए से धुंधलाए से याद आते हैं। मां से भी कभी जिक्र किया था तो बताया था कि हां वह हरी सब्जी को बहुत बारीकी से काटते थे, गांव के बाहर वाले कमरे में बैठकर। वैसे सपने में वह आते हैं एकदम जुदा अंदाज में। सपने में तो नाना भी आते थे जिन्हें कभी नहीं देखा। मुद्दा सिर्फ यही है कि माता-पिता की भावनाओं को समझना, उनसे स्नेह रखना। खैर अब तो मां भी नहीं रहीं, मां की अनेक सहेलियां भी नहीं रहीं, लेकिन उनकी यादें हैं। उनसे जुड़े अनेक लोगों की यादें हैं। इन्हीं यादों के जरिये बनीं किस्से-कहानियां हैं जो यदा-कदा चर्चा का विषय बनते हैं। चलिये हर बार की तरह अब अंत में कुछ शेरो-शायरी जो मां को समर्पित हैं। बड़े-बड़े शायरों की कलम से निकली हैं।
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है, माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।

दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ, कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए।

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है।

घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा, ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे।

ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले, दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है

शाम ढले इक वीरानी सी साथ मिरे घर जाती है, मुझ से पूछो उस की हालत जिस की माँ मर जाती है।

https://www.dainiktribuneonline.com/news/haryana/food-style-changed-for-priests-in-changing-environment/
नोट उक्त लिंक ललित जी की खबर का है

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