केवल तिवारी
15 अगस्त का दिन। राष्ट्रीय पर्व। ऐसा दिन, जब हम सभी यानी अखबार में काम करने वाले सभी मित्रों को एक साथ छुट्टी मिल सकती है। कभी-कभी ऐसी छुट्टियों का कुछ पारिवारिक प्रोग्राम बन जाता है, लेकिन कभी-कभी ‘खुद के लिए जीने’ का सबब।
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अंब में हम तीन |
अगस्त महीने की शुरुआत में ही ‘कहीं चलने’ की चर्चा हुई। मित्र जतिंदरजीत सिंह, नरेंद्र कुमार और रवि भारद्वाज के साथ मेरा कार्यक्रम बनने लगा। क्या कसौली चलें, क्या मोरनी चलें। मोरनी और कसौली की चर्चा के बीच रवि जी का सुझाव आया कि मेरे घर चलो। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में अम्ब गांव में। तैयारी हो गयी, लेकिन जतिंदरजीत जी पारिवारिक कारणों से चलने में असमर्थ थे। तैयारी पूरी हो गयी, लेकिन मौसम ने थोड़ा डराया। एक दिन पहले तक तेज बारिश हो रही थी। पहाड़ों पर बारिश में कुछ घटनाओं से भी खौफ था। घरवालों को ताकीद कर रही थी कि किंतु-परंतु मत करना। क्योंकि मेरी माताजी कहती थी कि कोई भी शुरुआत, खासतौर पर कहीं जाने के बारे में हां, ना फिर हां, फिर ना नहीं करनी चाहिए। उनको इतना समझा दिया कि बच्चे नहीं हैं, कहीं लगेगा कि मौसम ज्यादा खराब है या तो जाएंगे ही नहीं या फिर लौट आएंगे। सच में मौसम ने हमारा साथ दिया और ऐसा साथ दिया कि उस गीत की पंक्तियां हम लोग गुनगुनाने लगे जिसके बोल हैं, ‘सुहाना सफर और ये मौसम हसीं।’
सुबह करीब आठ बजे हम लोग चल पड़े। सफर की शुरुआत पर उन पंक्तियों को याद करता हूं जो किसी शायर ने इस तरह से व्यक्त किए हैं-
जिंदगी को यादगार बनाते चलिए, इसलिए सफर पर जरूर चलिए।
सबसे पहले पौधरोपण और कुछ मिलना-जुलना
हम लोग करीब 12 बजे रवि जी के मूल निवास स्थान पर पहुंच गए। हमारा कार्यक्रम सबसे पहले मंदिर जाने का था। वहां हमने बेल के पौधे को रोपना था। (संबंधित वीडियो साझा कर रहा हूं।) उससे पहले रवि जी ने कुछ इलाके दिखाए। एक बरसाती नदी को देखा। उनके कुछ जानकार मिले। उनसे नमस्कार आदि हुई। फिर शिव मंदिर प्रांगण में पौधरोपण मैंने और नरेंद्र जी ने किया। लग रहा था कि कुछ देर पहले ही वहां कोई हवन करके गया है क्योंकि अग्नि प्रज्जवलित थी। दीपक जल रहे थे। हम लोगों ने पौधे को रोपा। मंदिर में प्रणाम किया और फिर चल पड़े सफर के दूसरे पड़ाव की तरफ।
करोगे सफर तो मिलेंगे नए दोस्त, राही बनोगो तो मिलेगा हमसफर,
जिंदगी के सफर में तू है मुसाफिर, हमेशा चलते रहना जिंदगी की खातिर।
वादियां तो खूबसूरत थी ही, उतने ही अच्छे वहां के लोग भी। जैसे एक गीत के बोल हैं, धड़कते हैं दिल कितनी आजादियों से, बहुत मिलते-जुलते हैं इन वादियों से। रवि जी के कुछ जानकारों के पास गए। एक जगह एक सज्जन की पुरानी मिठाई की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने थोड़ी सा चखाया। मिठाई अच्छी लगी कुछ खरीद भी ली। उसका स्वाद अल्मोड़ा में बनने वाली सिंगौड़ी मिठाई की तरह लगा। आप लोग कभी सिंगौड़ी मिठाई सर्च करेंगे तो पता चल जाएगा। यह एक खास मिठाई होती है जिसे पत्ती में लपेटकर दिया जाता है। यह मिठाई जल्दी खराब नहीं होती। ऐसे ही कई लोग मिले बातें होती रहीं और हम लोग ऊपर एक शांत एवं सुरम्य स्थल पर पहुंच गए। वहां एक पेड़ पर लगे आम देखकर लालच आया और एक सज्जन ने हमारे लिए काफी आम तोड़े। उन आमों की चटनी का स्वाद अब भी हम ले रहे हैं। शाम को रवि जी के ही कुछ जानकारों के यहां कहीं चाय और कहीं भोजन की व्यवस्था हुई।
जो दुनिया नहीं घूमें, तो क्या घूमा, जो दुनिया नहीं देखी, तो क्या देखा।
जब भी सफर करो, दिल से करो, सफर से खूबसूरत यादें नहीं होतीं।
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं। अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं
आए ठहरे और रवाना हो गए, ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश, हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं
कुछ खास लोगों की बात जरूरी
यूं तो इस सफर में अनेक लोग मिले और सभी से अपना अपनत्व मिला। उनमें से कुछ लोगों का जिक्र यहां करना जरूरी समझ रहा हूं। प्रिंसिपल अजय कुमार जी से बेहद सार्थक बातचीत हुई। तय हुआ कि अगली बार विस्तार से बातें होंगी और फिर मुलाकात होगी। उनके अलावा संजीव कुमार, नीतीश कुमार, राहुल कुमार, लाड्डी शर्मा सभी से मुलाकात बहुत शानदार रही। चूंकि यह दौरा बेहद संक्षिप्त था। अगले दिन हमने आना था। कुछ बातें हुईं और अगले दिन हम लोग लौट आए। रास्ते में आईआईटी रोपड़ से अपने बेटे कार्तिक को भी साथ ले लिया। दोपहर में घर पहुंचे और फिर शुरू हो गयी वही रोज की आपाधापी। ऐसे कार्यक्रम बनते रहने चाहिए। मित्र नरेंद्र और रवि का बहुत-बहुत धन्यवाद। अगला कार्यक्रम भी जल्दी बनेगा।
कुछ और तस्वीरें साझा कर रहा हूं
4 comments:
Yadgar sir
जी बिल्कुल
आपका ब्लाॅग पढ़कर यात्रा का कुछ आनंद तो मुझे भी आ ही गया... जतिंदर
Very good
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