केवल तिवारी
वैसे तो सूखी टहनी हूं, काम के नाम पर पेड़ हूं फलदार
जेहन से उखाड़कर पत्थर पर रोपा था, राहें थीं कांटेदार
संघर्ष ही जीवन है, इस शिक्षा को सुना नहीं, मैंने था देखा
चलते रहो अपने पथ पर, बनेगी जरूर कोई भाग्य रेखा
मां, भाई-बहनों से सीखा, चलते रहने का सबक
जीवन पथ पर चलते रहेंगे, सांसें हैं जब तक
पतझड़ और वसंत बहार, ये तो हैं जिंदगी के यार
सफलता की राह में, कभी इधर तो कभी उस पार।
जीवन का है सार यही, अपनों के साथ रहो सही
गलत-वलत सब भ्रम है, जीवन का मतलब श्रम है।
हम रुकेंगे, पर वक्त नहीं थमेगा
ये जीवन तो चलता रहेगा।
अपनेपन को रखो बरकरार
बातें यूं ही होती रहेंगी दो-चार।
मन में अचानक आए कुछ उदगार
लिखते-लिखते निचुड़ ही गया सार
स्वास्थ्य आपका पहला मित्र, दूजा परिवार
अकेलेपन को क्यों ओढ़ते हो, मिलकर चले संसार।