indiantopbligs.com

top hindi blogs

Monday, April 7, 2025

पर्वों की परंपरा महान, जीवों का भी पूरा ध्यान

केवल तिवारी 



हाल ही में चैत्र नवरात्र संपन्न हो गये। इस अवसर पर अलग-अलग दृश्य देखने को मिले। व्रत के वैज्ञानिक पहलुओं पर तो अनेक बार चर्चा हो ही चुकी है। मौसम के संधिकाल में डीटॉक्स होने के लिए ऐसे मौकों पर व्रत का प्रावधान है। बात चाहे चैत्र नवरात्र या वासंतिक नवरात्र की हो अथवा शारदीय नवरात्र की। बेशक आज व्रत का स्वरूप बदल गया है, लेकिन उसका प्रतीक तो है। इस प्रतीक में ही बहुत कुछ तत्व अब भी छिपा है। इस पर ज्यादा चर्चा नहीं। व्रत के अलावा दूसरा दृश्य है पूजा-अर्चना की। लोग बहुत-बहुत देर तक मंदिर या घर में बैठकर पूजा अर्चना करते हैं। मंदिरों में कतारों में लगते हैं। कोशिश करते हैं कि क्रोध न करें। देर तक ध्यानमग्न होना, किसी को बुरा न कहना या न सोचना, ये सभी अध्यात्म के ही तो रूप हैं। इसके अलावा दूसरे दृश्य में कुछ लोगों को खेतड़ी (घर में उगाया गया पंच अनाजा या सतअनाजा) को विसर्जित करते हुए भी देखा। जानकार कहते हैं कि अंकुरण के कुछ दिन के बाद ऐसे पौधे या उन पौधों की जड़ों को जलीय जीव-जंतु बहुत चाव से खाते हैं। बात चाहे श्राद्ध पक्ष में पंछियों एवं गायों को दिए जाने वाले भोजन की हो या फिर विसर्जन सामग्री में शामिल खेतड़ी, जौ, तिल एवं अक्षत यानी चावल के दाने, ये सब पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम, उनके भोजन की व्यवस्था का भाव ही इसके पीछे छिपा है। कहीं-कहीं रंगोली बनाने के पीछे भी यही भाव है। दक्षिण में नियमति रूप से घर के बाहर गेहूं या चावल के आटे की रंगोली बनाई जाती है, इसे चींटियां या अन्य कीट-पतंगे खाते हैं। इसी तरह उत्तर में भी कई जगह चावल को पीसकर गेरू की लिपाई पर रंगोली बनाई जाती है। कुछ त्योहार विशेष तौर से कौओं के लिए होते हैं। उत्तरायणी पर्व पर अनेक जगह कौओं को खिलाने का रिवाज है। सनातनी धर्म व्यवस्था में पशु-पक्षियों के प्रति स्नेह के ऐसे अनेक उदाहरण हैं। कुछ खास व्रत-पर्वों पर कुत्तों को भोजन देने का रिवाज है। इस नवरात्र पर ऐसे ही अनेक दृश्य देखे, जिनपर मंथन किया। कई साल पहले कन्या पूजन और उनको भोजन देने पर एक जानकारी जुटाई थी, तब भी ऐसा ही ब्लॉग लिखा था, इसके अंत में उसका लिंक साझा कर रहा हूं।


जबरन न खिलाइये गायों को

बेशक पशु-पक्षियों के लिए त्योहारों का महत्व हो, लेकिन ध्यान रहे कि जानकार कहते हैं कि पशुओं को जबरन न खिलाइये। कुछ लोग खास मौकों पर पूड़ी, हलवा, सब्जी बनाकर ले जाते हैं और गाय को खिलाने का जतन करते हैं। ऐसे अवसरों पर उन्हें इतना ज्यादा तला-भुना खिला दिया जाता है कि उनके स्वास्थ्य पर बन आती है। कई जगह गायों को चारा देने का भी रिवाज है। अच्छा हो अगर गौशाला प्रबंधकों को सामग्री दे दें या कुछ धन ताकि वे लोग वैज्ञानिक तरीके से गायों के लिए चारा या अन्न लाकर दे सकें।


पंछियों के घौसलों में मत रखिए दाना

पंछियों के लिए दाना आप पार्कों, खेतों में डाल सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि उनके घौंसले में इन्हें कदापि न डालें। उनकी दिनचर्या ही है कि वे खुद दानों की तलाश में निकलती हैं और खुद के लिए एवं अपने बच्चों के लिए इसे लेकर आती हैं। कई बार घौंसलों में उनके बच्चे या अंडे होते हैं। मान्यता है कि यदि मनुष्य उन्हें छू ले तो पंछियों को वह घर डर के मारे छोड़ना पड़ता है। इसलिए दाने कहीं बिखेर दीजिए, लेकिन बेहतर हो अगर घौंसले का दीदार दूर से ही कर लें।


पानी के लिए मिट्टी का बर्तन जरूरी

यदि पंछियों के लिए पानी रखना चाहते हों तो मिट्टी का बर्तन सर्वथा उचित माना जाता है। कुछ लोग प्लास्टिक के बर्तनों में पानी रखते हैं जो कतई उचित नहीं है। यूं तो धातु के बर्तनों में भी पानी नहीं रखना चाहिए क्योंकि उनमें रखा पानी बहुत गर्म हो जाता है, लेकिन अगर रखना ही पड़ जाए तो प्लास्टिक से बेहतर स्टील या अन्य धातु के बर्तन हैं, लेकिन सबसे उपयुक्त हैं मिट्टी के बर्तन।

http://ktkikanw-kanw.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.html

1 comment:

Anonymous said...

sahi kaha hai. hamare tyohar mein chhipe hain sandesh