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Monday, June 30, 2025

प्राकृतिक नजारे और मसूरी यात्रा, अवनीश की बात और फुल बरसात, कसाना क्लब और हम सब

केवल तिवारी



कहीं तो चलते हैं। यह चर्चा घर में थी। कुछ उहापोह, कुछ उलझन। बेटा कार्तिक बोला, उत्तराखंड में खूबसूरत जगह है ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ यानी फूलों की घाटी। आसपास क्या है? सवाल के जवाब में उसने बताया कि बद्रीनाथ जा सकते हैं और हेमकुंट साहिब। बात थोड़ी जंची। बद्रीनाथ धाम और हेमकुंट साहिब जाने की लंबे समय से प्रबल इच्छा थी। साथ में मन में आशंका थी कि बरसात का मौसम है। फिर माताजी के कथन याद आये कि यदि कहीं जाना हो तो या जाने का कार्यक्रम बनाओ तो अगर-मगर मत करना। हां, ना तो भगवान भरोसे है, अपनी तैयारी करते रहना। छोटा बेटा धवल बोला, कोचिंग का क्या होगा, ऐसी ही शंका पत्नी के मन में भी थी। चूंकि छुट्टी का महीना ही यही था और इसी महीने जाने का कार्यक्रम बन सकता था। सारी बातें सोचकर हमने तैयार कर ली। कार्तिक ने एक ट्रेवल एजेंसी से संपर्क किया। वहां से हमारा पूरा प्लान बनकर आ गया। कुछ एडवांस मिल गया। कोचिंग में छुट्टी की अप्लीकेशन दे दी गयी। गमलों में पानी डालने के लिए पड़ोसी सुक्खू परिवार से कह दिया गया। जाने के एक दिन पहले पता चला कि जहां-जहां हमारे जाने का कार्यक्रम है, वहां मौसम बेहद खराब है। अब क्या करें? रहने देते हैं। फिर देहरादून में अवनीश से बात की। अवनीश वरिष्ठ पत्रकार हैं। मेरा छोटा भाई जैसा। उसने सलाह दी कि आप मसूरी घूम लीजिए। तीन दिन पर्याप्त हैं, वहां घूमने के लिए। रहेंगे कहां के सवाल पर बोले, महिंद्रा क्लब के पास कसाना क्लब है। क्लब के आजाद कसाना मेरे जानकार हैं। फोन पर उनको लेते हुए उनसे सीधे बात करा दी। कार्यक्रम बना कि मसूरी तक अपने ही वाहन से चला जाये, आगे के सफर के बारे में वहीं सोचेंगे। … और हम चल दिए अपने सफर पर।
हर सफर की है एक कहानी, अक्सर अपनी सी लगे जो जगह हो अंजानी।
जिंदगी एक सफर है, हर मोड़ पर मिलेंगे कितने हमसफर
तू चलत रहेगा तो सफर बढ़ेगा, तू चलने की हिम्मत तो कर।
मंगलवार, 24 जून की सुबह हम लोग चल पड़े अपने सफर पर। मैं बहुत पहले यहां गया था। उस वक्त अविवाहित था। मित्र धीरज और राजेश के साथ वहां जाना हुआ था। तब हम लोग देहरादून तक ट्रेन से गए थे। वह सफर बहुत ही ‘खतरनाक’ जैसा था। कांवड़ियों का सीजन था। जनरल टिकट लिया और कैसे गए, उसका विवरण ही बहुत अजीब होगा। दोपहर होते-होते हम लोग पहुंच गए मसूरी।







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कुदरत के नजारे और पुरानी यादें…
पहले दिन हम लोग सिर्फ मॉल रोड पर घूमे। बेइंतहा भीड़। यह अलग बात है कि चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा था। कोहरा छाया हुआ था। बीच-बीच में बूंदाबांदी हो जाती। बच्चे इन नजारों को कैमरे में कैद करने लगे। हालांकि यह नजारा मेरे लिए कोई अनोखा नहीं था। पांचवी तक मैं भी उत्तराखंड स्थित अपने गांव रानीखेत के पास डढूली में रहा हूं। उसके बाद अक्सर गांव जाता रहा हूं और जून के महीने में तो अक्सर ही गांव रहता था। तब ऐसे नजारे आम होते थे। लेकिन बच्चों को आनंद आ रहा था। अगले दिन हम लोग पहले गए सैंजी गांव। इस गांव को कॉर्न विलेज भी कहते हैं। पूरे गांव में सिर्फ भुट्टे की खेती। गजब शांत इलाका। यहां बच्चों को ज्यादा अच्छा नहीं लगा, लेकिन यह जगह मेरे दिल को भा गयी। घरों के बाहर भुट्टे लटके हैं। गौरैया दिख रही है। लोगों से बात करो तो बड़े अच्छे ढंग से बात कर रहे हैं। यूं तो अन्य जगह पानी भी कोई न पूछे। महंगाई के तो क्या कहने। हम कैब में गये थे। कैब चालक तिरपन सिंह बेहद सज्जन व्यक्ति और हर जगह के बारे में तसल्ली से बताते। वह खाने के लिए भी एक बढ़िया जगह ले गये। मैंने कहा, आप भी खा लेना, संकोच मत करना। वह बोले, सर आप मेरा बिल मत देना, हमें फ्री में मिलता है। पहले मुझे लगा शायद ज्यादा रेट लगाएंगे, लेकिन अन्य जगह के मुकाबले वहां बहुत सामान्य रेट पर खानपान हो गया। सैंजी गांव के बाद हम लोग आए कैंपटी फॉल। यहां करीब तीस साल पहले दो मित्रों संग आया था और ‘घनघोर ठंडी…’ शब्द लिखा यहीं देखा था। कैंपटी फॉल के बाद कंपनी गार्डन जो अब अटल उद्यान बन गया है, वहां घूमे। फिर दलाई हिल, बुद्धा टैंपल आदि। नजारे सब जगह एक जैसे, बस किलमौड़ (एक जंगली फल जिसे बचपन में खूब खाते थे) खाने को मिला बहुत समय बाद। यह फल हिमाचल में भी होता है।
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कसाना क्लब, आजाद वादियां और मर्यादित आचरण








अवनीश की सलाह पर हम लोग कसाना क्लब गये। मसूरी मॉल रोड से करीब एक किलोमीटर ऊपर। मैं मॉल रोड से कुछ ऊपर तक तो कार ले गया, लेकिन जब बहुत ही संकरी गलियों में घुमावदार खड़ी चढ़ाई दिखी तो मैंने कसाना जी को ही फोन लगा दिया। क्लब ऑनर आजादा कसाना खुद ही आ गए और हमारी कार चलाकर ले गये। आजाद जी से हर दिन (हम लोग क्लब में तीन दिन रुके) कुछ न कुछ मुद्दे पर बात होती। खूबसूरत वादियों में बसा कसाना क्लब से चारों ओर विहंगम नजारा दिखता है। एक गीत के उस पंक्ति की मानिंद जिसके बोल हैं, ‘धड़कते हैं दिल कितने आजादियों से, बहुत मिलते-जुलते हैं इन वादियों से…’ बेशक यहां की आजाद वादियों में आप खो जाएंगे, लेकिन कसाना जी और उनके स्टाफ का आचरण बहुत मर्यादित रहता है। बात चाहे रसोईघर संभाल रहे मोहनदा की हो या फिर मनदीप की। आजाद कसाना के साथ निजी जीवन से लेकर योग, धर्म, संस्कृति पर विस्तार से बात हुई। उनका व्यवहार, आचरण और आतिथ्य भाव बहुत अच्छा रहा। उन्होंने ही हमारे लिए कैब वाले से बात की और शायद उनके तालमेल का ही असर था कि कैब से घूमना और फिर अगले दिन पैदल ही घूमने की सलाह देना हमारे काम आया। कसाना जी से फिर मिलने का वादा कर हम लौट आए। अब कुछ दिन मसूरी यात्रा की बातों में ही हम लोग खोए रहेंगे। इस यात्रा के बाद अपने संस्थान दैनिक ट्रिब्यून के लिए एक रील बनाई। उसका लिंक और संबंधित फोटो साझा कर रहा हूं।
https://youtube.com/shorts/yaPHFKPgeHg?feature=shared

https://www.instagram.com/reel/DLfDsDBK763/?igsh=ZjFkYzMzMDQzZg==



2 comments:

Anonymous said...

Amazing place kasana club ka view awesome he

Anonymous said...

Kasana club bht khubsurat jagha h vaha ka nazara bhi bht khubsurat h aur en sabse jyada khubsurat h hamare bade bhi Azad bhai ka nature jitni bhi tareef karo vo kam h🙏