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Tuesday, October 1, 2013

पता न पूछो शहर में


पहली अक्टूबर को कुछ काम के सिलसिले में चंडीगढ़ के कुछ सेक्टरों का भ्रमण किया। खराब आदत कह लें या फिर मजबूरी। जेब में 20 रुपये थे, वही लेकर चल दिया। वेतन आ चुका था। जेब में एटीम कार्ड था, सोचा लंच के समय पैसा भी निकाल लूंगा और ऑफिस आ जाऊंगा। चूंकि अब तक मेरा वास्ता अपने दफ्तर दैनिक ट्रिब्यून (सेक्टर 29 सी) से और अपनी रिहाइश ट्रिब्यून कांप्लेक्स रायपुर खुर्द (एयरपोर्ट चौक-पंजाब बॉर्डर) तक आने-जाने का ही रहा है। यहां सामान्यत: ऑटो में एक तरफ का किराया 10 रुपये लगता है। मैंने यही सोचकर घर से निकलते ही एटीएम का रुख नहीं किया कि अगर काम नहीं भी बना तो ऑफिस तो पहुंच ही जाऊंगा। ऑफिस कैंपस में एटीम है। मैं एयरपोर्ट चौक से सेक्टर 34 के लिए ऑटो में बैठा (कुछ लोगों ने कहा कि एयरटेल का दफ्तर वहीं पड़ेगा)। मुझे काम एयरटेल दफ्तर में ही था। सेक्टर 34 उतरा तो ऑटो वाले को 10 रुपये दिये। उसने कहा यहां तक के 15 रुपये पड़ते हैं। 10 रुपये तो पीछे सेक्टर 32 तक के हैं। मैंने दूसरा दस का नोट भी दिया। उसके पास मात्र चार रुपये थे। मैंने उसी में संतोष कर लिया। जेब में रखे और मार्केट तलाशने लगा, जहां दफ्तर बताया गया था। सामने मार्केट भी दिख गयी। चारों तरफ नजर दौड़ाई, कहीं भी एयरटेल का दफ्तर नहीं मिला। किससे पूछूं। सडक़ किनारे एक जूस वाला दिखा, लपककर उसके पास तक गया, लेकिन उसने कान पर मोबाइल लगा रखा था और वह किसी से बात कर रहा था। मैंने सोचा इसकी बात खत्म हो जाने देता हूं, लेकिन उसने एक सेकेंड होल्ड कर मुझसे पूछा कितने वाला बनाऊं। बड़ा तीस का, छोटा बीस का। वह अपनी बात एक सांस में कह गया। मैंने कुछ नहीं कहा, आगे खिसक लिया। अगर उससे पता पूछने लगता तो शायद वह गुस्से में आता। नहीं बताता। या गलत भी बता देता। मार्केट के दूसरे छोर पर मैं पहुंच गया। वहां एटीएम मिल गया। मैं खुश। मैंने सोचा सारा काम छोडक़र पहले पैसे निकाल लेता हूं। लेकिन एटीएम पर पर्ची लगी थी ‘आउट ऑफ सर्विस।’ अब क्या किया जाये। कुछ युवा दिखे, लेकिन सब अपने साथियों के साथ बातें करते हुए तेज-तेज चल रहे थे। सामने से एक बुजुर्ग दिखे, मुझे लगा इन्हीं से पूछना ठीक रहेगा। उनके करीब पहुंचा तो देखा वह भी मोबाइल पर लगे थे। उनकी तरफ आशाभरी नजरों से मैंने देखा, उन्होंने फोन होल्ड किया। मैंने पूछा, सर ये एयरटेल का ऑफिस कहां है, उन्होंने पूछा किस सेक्टर में, मैंने कहा सेक्टर 34। फिर वे बोले, पता नहीं और फोन पर बतियाते हुए आगे बढ़ गये। मुझे अजीब भी लगा और हंसी भी आयी। क्योंकि हम लोग अक्सर इस तरह के चुटकुले सुनाते रहत हैं आपस में। उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं किसी से पता पूछूं। कई महिलाएं दिखीं। लेकिन गाजियाबाद (जहां मेरा फ्लैट है) में मैंने कई ऐसे केस पढ़े-सुने कि पता पूछने के बहाने चेन झपट ली। महिलाओं को ताकीद की गयी थी कि कोई पता पूछे तो उससे बात नहीं करनी है। मुझे डर लगी कि कोई मुझे चेन झपटमार ही न समझ ले। हालांकि झपटमारों की तरह न तो मैं बाइक पर था और न ही शरीर में ऐसी फुर्ती। पर चोर या शरीफ माथे पर तो नहीं लिखा होता। तमाम उहापोह के बावजूद मैंने एक महिला से पता पूछने की हिम्मत जुटाई। जैसे ही मैंने कहा मैडम, ये एयरटेल... उनके फोन की घंटी बज गयी। उन्होंने फोन निकाला और बात करती हुईं आगे बढ़ गयीं। अब बस...। मैंने अपने ऑफिस में उन सज्जन को फोन लगाया जो एक बार मुझे अपनी कार में बिठाकर वहां ले गये थे। उनको फोन जैसे ही लगाया। वहां से बिजी टोन आई। मैं इंतजार करने लगा। दस मिनट बाद फिर फोन लगाया अब भी बिजी टोन। मैं यूं ही घूमने लगा शायद कहीं एटीएम मिल जाये। तभी उन सज्जन का फोन आ गया। मैंने पूछा भाई साहब वह एयटेल का दफ्तर नहीं मिल रहा, सेक्टर 34 की पूरी मार्केट छान ली। वो बोले, अरे जनाब सेक्टर 34 नहीं, 32 की मेन मार्केट है। 32 इससे पहले पड़ेगा ना, मेरा सवाल था। हां आप सीधे चले जाओ। कट से रिक्शा या ऑटो ले लो। 20-30 रुपये लेगा। ठीक है, धन्यवाद। मैंने फोन काट दिया। सोचने लगा कि उन्होंने कहा सीधे चले जाओ, किस साइड को सीधे। उन्होंने मुझे देखा थोड़ी मैं कहां खड़ा हूं। मैं अंदाजा लगाकर चलने लगा। एक कोठी के बाहर कपड़ों पर प्रेस कर रहे एक सज्जन से पूछा, सेक्टर 32, उन्होंने बोलना उचित नहीं समझा और हाथ से इशारा कर दिया। मैं उनके इशारे की दिशा में चल दिया। भूख भी लग रही थी। पर सिर्फ चार रुपये थे जेब में। अब मैंने ठान ली कि सेक्टर 32 का नहीं, पहले किसी एटीएम का पता पूछूंगा। मैं पैदल चल ही रहा था कि बाइक पर दो युवक आये। भाई साहब सेक्टर 33 में 348 नंबर मकान कहां पड़ेगा। मैंने तुक्के में कहा, यही तो है सेक्टर 33, बाइक पर पीछे बैठा युवक बोला, वह तो हमें पता है। हम पहले भी आये हैं, पर आज नहीं मिल रहा 348 नंबर। मैंने सामने निगाह दौड़ाई। मैंने कहा, सामने 322 है, इसके पीछे की गली में होगा। मैं भी यार एटीएम ढूढ़ रहा हूं। वह युवक बोला सीधे जाकर लेफ्ट हो जाना, सेक्टर 32 की मार्केट में है। मुझे पता लग गया। सेक्टर 32 में जाकर पहले एटीएम में गया। पर वहां से हजार का नोट निकला। एयरटेल दफ्तर गया। वहां से अजीब जवाब मिला। यानी काम नहीं हुआ। वहां से पैदल ऑफिस आया। ऑफिस आकर कैंटीन में खाना खाया। लस्सी पी और अब ब्लॉग खत्म कर रहा हूं। वाकई शहरों में पता पूछना अब कठिन काम हो गया है।
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