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Tuesday, August 27, 2024

परंपरा और आधुनिकता की जुगलबंदी से मधुर होंगे भारतीय साज और आवाज

साभार : दैनिक ट्रिब्यून 



केवल तिवारी

इसे सुखद संयोग ही कहेंगे कि एक तरफ चंडीगढ़ में 'वर्षा ऋतु संगीत संध्या' चल रही थी, दूसरी तरफ बाहर रिमझिम फुहार। गीतों के बोल भी ऐसे ही थे, मसलन 'गरजे घटा घन कारे-कारे', 'घन घनन घनन घन घोर', 'गरजत आये री बदरवा', 'बूंदनीया बरसे', 'झुक आयी बदरिया सावन की' वगैरह-वगैरह। पिछले दिनों इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने पहुंचे थे शास्त्री संगीत में साज और आवाज के तीन दिग्गज। 'दैनिक ट्रिब्यून' के साथ बातचीत में इन लोगों ने साज, संगीत और आज के वातावरण पर विस्तार से बातचीत की। पेश है तीनों कलाकारों से हुई बातचीत के चुनींदा अंश-
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दादा से सीखा, पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया : विदुषी मीता पंडित
विदुषी मीता पंडित, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक अग्रणी और लोकप्रिय गायिका हैं। उन्होंने भारत और 25 से अधिक देशों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। विदुषी मीता ऑल इंडिया रेडियो की एक शीर्ष श्रेणी की कलाकार हैं। सूफी, ठुमरी, भक्ति और सुगम शैलियों में उनकी प्रस्तुति समान रूप से भावपूर्ण है। ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखने वाली विदुषी मीता पंडित का मानना है संगीत के प्रति अनुराग किसी के भी तन-मन को झंकृत करता है। उन्होंने कहा कि यह शास्त्रीय संगीत की सुमधुरता ही है कि देश के कोने-कोने के अलावा विदेशों में भी इसको लेकर कार्यक्रम होते हैं और लोग बहुत चाव से इसे सुनते हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पुरोधा रहे पद्म भूषण पं. कृष्णराव शंकर पंडित की पोती एवं पं. लक्ष्मण कृष्णराव पंडित की बेटी मीता पंडित का भी रुझान बचपन से ही संगीत की ओर रहा। उन्होंने अपने पुश्तैनी परंपरा को तो आगे बढ़ाया ही, आज की पीढ़ी को भी संगीत के सुरों को समझाया। मीता आज के तड़क-भड़क के गीत संगीत और शास्त्रीय संगीत के बीच किसी तरह की तुलना करने से ही इनकार कर देती हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों संगीतों और दोनों के श्रोताओं में तुलना का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने यह दावा जरूर किया कि अगर शास्त्री संगीत की समझ रखी जाये और इसे गौर से सुना जाये तो लोग इसके मुरीद होते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत के शौक का उम्र से कोई लेना-देना नहीं।
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शास्त्रीय संगीत में प्रयोग की पूरी संभावना : डॉ. अविनाश कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज में संगीत के शिक्षक डॉ. अविनाश कुमार मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत में प्रयोग की पूरी संभावना है। वह कहते हैं न केवल संभावना है, बल्कि ऐसा किया जाना जरूरी है। क्योंकि आज के समय में एक ही राग पर आधारित किसी गीत को घंटों सुनने का लोगों के पास वक्त नहीं। कुमार मानते हैं कि आज युवा शास्त्रीय संगीत की तरफ पूरी तरह से आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत के माहौल में पले-बढ़े बच्चों का चित्त शांत रहता है। युवा हिंदुस्तानी शास्त्री गायक डॉ. अविनाश कुमार ने साधना चटर्जी और पूर्णचंद्र चटर्जी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। बाद में उन्होंने रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद आफताब अहमद खान से उन्नत प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने आगरा और किराना घराने के पंडित तुषार दत्त और किराना घराने के पंडित सोमनाथ मर्दुर से संगीत का भी प्रशिक्षण लिया।
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मां से सीखा तबला बजाना : पं. राम कुमार मिश्र
शीर्ष तबला वादक पंडित राम कुमार मिश्र का मानना है कि भारतीय साज और आवाज को आगे बढ़ाने में युवाओं को आगे आना चाहिए। जाने-माने तबला वादक पंडित अनोखे लाल मिश्र के पौत्र एवं पद्म विभूषण पंडित छन्नू लाल मिश्र के पुत्र राम कुमार को तबले की तालीम उनकी मां मनोरमा मिश्र से मिली। उन्होंने कहा कि अब इस परंपरा के उनके पुत्र आगे ले जा रहे हैं। बनारस घराने के तबला वादक कुमार कहते हैं कि कार्यक्रमों के दौरान प्रत्येक दर्शक से वह कनेक्ट होते हैं और जिस तरह गायन शैली में परिवर्तन हो रहा है, प्रयोग हो रहे हैं, तबले की ताल में भी प्रयोग की हमेशा गुंजाइश बनी रहती है। वह आधुनिक वाद्य यंत्रों के साथ ही परंपरागत यंत्रों की जुगलबंदी को भी जरूरी मानते हैं।

Friday, August 23, 2024

ऊना के अंब का शानदार सफर और यादगार रहगुजर

 केवल तिवारी

15 अगस्त का दिन। राष्ट्रीय पर्व। ऐसा दिन, जब हम सभी यानी अखबार में काम करने वाले सभी मित्रों को एक साथ छुट्टी मिल सकती है। कभी-कभी ऐसी छुट्टियों का कुछ पारिवारिक प्रोग्राम बन जाता है, लेकिन कभी-कभी ‘खुद के लिए जीने’ का सबब। 
अंब में हम तीन
अगस्त महीने की शुरुआत में ही ‘कहीं चलने’ की चर्चा हुई। मित्र जतिंदरजीत सिंह, नरेंद्र कुमार और रवि भारद्वाज के साथ मेरा कार्यक्रम बनने लगा। क्या कसौली चलें, क्या मोरनी चलें। मोरनी और कसौली की चर्चा के बीच रवि जी का सुझाव आया कि मेरे घर चलो। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में अम्ब गांव में। तैयारी हो गयी, लेकिन जतिंदरजीत जी पारिवारिक कारणों से चलने में असमर्थ थे। तैयारी पूरी हो गयी, लेकिन मौसम ने थोड़ा डराया। एक दिन पहले तक तेज बारिश हो रही थी। पहाड़ों पर बारिश में कुछ घटनाओं से भी खौफ था। घरवालों को ताकीद कर रही थी कि किंतु-परंतु मत करना। क्योंकि मेरी माताजी कहती थी कि कोई भी शुरुआत, खासतौर पर कहीं जाने के बारे में हां, ना फिर हां, फिर ना नहीं करनी चाहिए। उनको इतना समझा दिया कि बच्चे नहीं हैं, कहीं लगेगा कि मौसम ज्यादा खराब है या तो जाएंगे ही नहीं या फिर लौट आएंगे। सच में मौसम ने हमारा साथ दिया और ऐसा साथ दिया कि उस गीत की पंक्तियां हम लोग गुनगुनाने लगे जिसके बोल हैं, ‘सुहाना सफर और ये मौसम हसीं।’
सुबह करीब आठ बजे हम लोग चल पड़े। सफर की शुरुआत पर उन पंक्तियों को याद करता हूं जो किसी शायर ने इस तरह से व्यक्त किए हैं-
जिंदगी को यादगार बनाते चलिए, इसलिए सफर पर जरूर चलिए।


सबसे पहले पौधरोपण और कुछ मिलना-जुलना
हम लोग करीब 12 बजे रवि जी के मूल निवास स्थान पर पहुंच गए। हमारा कार्यक्रम सबसे पहले मंदिर जाने का था। वहां हमने बेल के पौधे को रोपना था। (संबंधित वीडियो साझा कर रहा हूं।) उससे पहले रवि जी ने कुछ इलाके दिखाए। एक बरसाती नदी को देखा। उनके कुछ जानकार मिले। उनसे नमस्कार आदि हुई। फिर शिव मंदिर प्रांगण में पौधरोपण मैंने और नरेंद्र जी ने किया। लग रहा था कि कुछ देर पहले ही वहां कोई हवन करके गया है क्योंकि अग्नि प्रज्जवलित थी। दीपक जल रहे थे। हम लोगों ने पौधे को रोपा। मंदिर में प्रणाम किया और फिर चल पड़े सफर के दूसरे पड़ाव की तरफ।
करोगे सफर तो मिलेंगे नए दोस्त, राही बनोगो तो मिलेगा हमसफर,
जिंदगी के सफर में तू है मुसाफिर, हमेशा चलते रहना जिंदगी की खातिर।
वादियां तो खूबसूरत थी ही, उतने ही अच्छे वहां के लोग भी। जैसे एक गीत के बोल हैं, धड़कते हैं दिल कितनी आजादियों से, बहुत मिलते-जुलते हैं इन वादियों से। रवि जी के कुछ जानकारों के पास गए। एक जगह एक सज्जन की पुरानी मिठाई की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने थोड़ी सा चखाया। मिठाई अच्छी लगी कुछ खरीद भी ली। उसका स्वाद अल्मोड़ा में बनने वाली सिंगौड़ी मिठाई की तरह लगा। आप लोग कभी सिंगौड़ी मिठाई सर्च करेंगे तो पता चल जाएगा। यह एक खास मिठाई होती है जिसे पत्ती में लपेटकर दिया जाता है। यह मिठाई जल्दी खराब नहीं होती। ऐसे ही कई लोग मिले बातें होती रहीं और हम लोग ऊपर एक शांत एवं सुरम्य स्थल पर पहुंच गए। वहां एक पेड़ पर लगे आम देखकर लालच आया और एक सज्जन ने हमारे लिए काफी आम तोड़े। उन आमों की चटनी का स्वाद अब भी हम ले रहे हैं। शाम को रवि जी के ही कुछ जानकारों के यहां कहीं चाय और कहीं भोजन की व्यवस्था हुई।
जो दुनिया नहीं घूमें, तो क्या घूमा, जो दुनिया नहीं देखी, तो क्या देखा।
जब भी सफर करो, दिल से करो, सफर से खूबसूरत यादें नहीं होतीं।
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं। अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं
आए ठहरे और रवाना हो गए, ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश, हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं
कुछ खास लोगों की बात जरूरी
यूं तो इस सफर में अनेक लोग मिले और सभी से अपना अपनत्व मिला। उनमें से कुछ लोगों का जिक्र यहां करना जरूरी समझ रहा हूं। प्रिंसिपल अजय कुमार जी से बेहद सार्थक बातचीत हुई। तय हुआ कि अगली बार विस्तार से बातें होंगी और फिर मुलाकात होगी। उनके अलावा संजीव कुमार, नीतीश कुमार, राहुल कुमार, लाड्डी शर्मा सभी से मुलाकात बहुत शानदार रही। चूंकि यह दौरा बेहद संक्षिप्त था। अगले दिन हमने आना था। कुछ बातें हुईं और अगले दिन हम लोग लौट आए। रास्ते में आईआईटी रोपड़ से अपने बेटे कार्तिक को भी साथ ले लिया। दोपहर में घर पहुंचे और फिर शुरू हो गयी वही रोज की आपाधापी। ऐसे कार्यक्रम बनते रहने चाहिए। मित्र नरेंद्र और रवि का बहुत-बहुत धन्यवाद। अगला कार्यक्रम भी जल्दी बनेगा।
कुछ और तस्वीरें साझा कर रहा हूं 





Monday, August 5, 2024

इस फोन का भावुक पल भी तो यादगार है, कुक्कू की ओर से बड़ा गिफ्ट

केवल तिवारी






मेरे इस बार के जन्मदिन (18 जुलाई 2024) के कुछ दिन बाद और बेटे कुक्कू यानी कार्तिक के जन्मदिन (27 जुलाई) से कुछ दिन पहले का वाकया है। बेटा माइक्रोसॉफ्ट में इंटर्नशिप करके लौटा था। रंग में भंग थोड़ा सा इसलिए पड़ा था कि मेरे पैर में प्लास्टर चढ़ा था, लेकिन मेरी उत्सुकता इस कदर थी कि मैं फिर भी एयरपोर्ट गया। खैर... उस रात हमेशा की तरह मैं करीब साढ़े ग्यारह बजे घर पहुंचा। भावना, कुक्कू और धवल सभी जगे हुए थे। मैं हाथ-पैर धोकर सभी से बातचीत करने लगा तो भावना ने कहा कि कुक्कू तुम्हारे बर्थडे का गिफ्ट चॉकलेट लेकर आया है। धवल भी बोला, हां पापा दो चॉकलेट हैं। कुक्कू हमेशा की तरह हल्का मुस्कुराया। गिफ्ट चूंकि उसी की ओर से था तो मैंने कहा कि चॉकलेट तो मैं खाता ही नहीं, लेकिन चलो शुक्रिया। वह बोला- आप खोलो हम खा लेंगे। मैंने रैपर खोला तो उसमें पहले चार्जर निकला फिर एक फोन। सैमसंग m35 5G. मैं अवाक रह गया। ये क्या? कुछ पल भावुक हुआ फिर बोला, अभी मेरा फोन सही तो था क्यों मंगा लिया। कुक्कू बोला, कितना तो हैंग मारता है आपका फोन? एक कॉल लगाने में भी इंतजार करना पड़ता है। मेमोरी भी फुल है। मैं बहुत ही ज्यादा भावुक हो गया और बहुत खुश भी कि बच्चे अब ऐसी चिंता करने वाले हो गये हैं। फोन की कीमत तो नहीं बताऊंगा क्योंकि गिफ्ट तो गिफ्ट है, लेकिन मेरे हिसाब से बहुत महंगा है। इससे पहला फोन धवल ने कहीं से मिली पुरस्कार राशि से दिलाया था। मैं उठा कुछ बहाने से मंदिर वाले कमरे में गया और ईजा की तस्वीर की तरफ देखकर दो आंसू निकल आए। यह फोन ही नहीं, कुक्कू ने इंटर्नशिप के पैसे से एक मिक्सी, घर के कुछ अन्य सामान और कुछ अपने लिए भी लिया और एक कर्ज माफी का अमाउंट भी दिया। इसी के साथ मुझे भी बच्चों ने अगले कुछ दिनों के बीच सीख दी। अच्छा लगता है जब बच्चे कुछ समझाने की स्थिति में आ जाते हैं। तनाव नहीं लेने को कहते हैं। खान-पान अच्छा करने को कहते हैं। ईश्वर बच्चों को सही राह पर ले जाना, यही प्रार्थना है। खुश रहो बच्चो। 

Friday, July 26, 2024

कार्तिक @21 : उम्र का नया पड़ाव, खुशियों का नया सोपान और जरूरी है सेहत

 


पिता का पत्र पुत्र के नाम 

प्रिय कुक्कू। सदा खुश रहो। ईश्वर की कृपा सदा तुम पर बरसती रहे। तुम स्वस्थ रहो। हमारा आशीर्वाद सदा तुम पर बना रहे। आज तुम 21 वर्ष पूर्ण कर चुके हो। पीछे की ओर देखता हूं तो अब भी याद आता है वह मासूम सा कुक्कू, जिसे हम आइसक्रीम की कोन पकड़ाते थे और वह खुश हो जाता था। वह कुक्कू जो मेरे पीछे-पीछे पूरे पार्क के चक्कर लगा लेता था। वह कुक्कू जिसके लिए अम्मा भुट्टा लेकर आती थी। वह कुक्कू जिसे उसके नाना गोबर गणेश कहते थे। वह कुक्कू जिसके लिए पुष्पा बुआ कहती थी कि इसकी तरक्की को मैं ऊपर से देखूंगी। वह कुक्कू जो तीसरे फ्लोर पर स्थित अपने घर से नीचे उतरते समय इतना बोलता था कि पूरे मोहल्ले को पता चल जाता था। वह कुक्कू जो स्कूल में टॉप आता था। वह कुक्कू जिसकी वजह से हमें भी पहचान मिली। वह कुक्कू जो पढ़ाई संबंधी अपने किसी भी प्रोजेक्ट की जिद पूरी कराकर छोड़ता था। वह कुक्कू जिसका आधार कार्ड बनवाने का वाकया याद है, भारी बारिश और बाइक पंचर। वह कुक्कू जिसे कोचिंग छोड़ने का लंबा सिलसिला चला। वह कुक्कू जो दस-दस रुपये बचाने के लिए कई बार पैदल चलता था। वह कुक्कू जिसे गिनकर 30-40 रुपये मिलते थे। वह कुक्कू जो स्टूडेंट ऑफ द ईयर बना। स्कूल का हेड बॉय बना। वह कुक्कू जिसे एक-दो बार भयानक रूप से डांट भी पड़ी। वह कुक्कू जिसने खुद को साबित किया। और अब यही कुक्कू 21 वर्ष का युवा हो गया है। सिर्फ युवा नहीं हुआ, सिर्फ मोटा-ताजा नहीं हुआ, वह एक मुकाम पर पहुंचा है। हालांकि यह स्थायी पड़ाव नहीं है, अभी और तरक्की करनी है। लेकिन जहां वह पहुंचा है, उसने हमें एक पहचान दी है। हमारे लिए तो ऐसे मुकाम पर इस उम्र में पहुंचना कल्पनाओं से भी परे है। आईआईटी में प्रवेश पाते ही मुझे जो बधाइयां मिली हैं, वे मेरे लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट हैं। इसी दौरान माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी में इंटर्नशिप, फिर वहीं से जॉब ऑफर। सचमुच कुक्कू यानी कार्तिक तुमने फिर एक बार खुद को साबित किया है। मैं मानता हूं इस सबमें तुम्हारी बहुत मेहनत है, लेकिन साथ ही याद रखना कि अम्मा का आशीर्वाद, हमारे घर के सभी बड़े लोगों की शुभकामनाएं, हमारे कुल देवताओं की कृपा भी इस तरक्की पथ पर पग-पग में हमारे साथ है। अब अनेक बातों को तुमसे शेयर करता रहता हूं। साथ ही मैं और तुम्हारी मम्मी तुमसे स्वास्थ्य संबंधी जिक्र भी करते हैं। उम्मीद है अच्छा पहनने के साथ-साथ तुम अच्छा यानी हेल्दी फूड खाने की कोशिश करोगे। इसके बारे में हम-तुम जिक्र करते ही रहते हैं। इस बीच, तुमने बहुत हाथ बंटाया है, वह तो होते रहना चाहिए। भविष्य की योजनाएं भी हमने मिलजुलकर करनी है, बाकी सब तो ईश्वर के हाथों में है। आज तुम्हारा दिन है। खूब मस्त रहो। खूब तरक्की करो। हम सब पर भगवान की कृपा बनी रहे। फिर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई। खुश रहो।
तुम्हारा पापा और साथ में पूरा परिवार
केवल तिवारी

Monday, July 15, 2024

सबसे स्नेह, राग-द्वेष मिटाने, सबकी मंगल कामना और प्रकृति को सहेजने का पर्व हरेला

 केवल तिवारी 

यूं तो हर पर्व और त्योहार हमें कुछ न कुछ संदेश देते हैं। फिर भी मानवीय गुण दोष ऐसे होते हैं कि हम इन संदेशों को या तो आत्मसात नहीं कर पाते या फिर जल्दी भूल जाते हैं। ऐसा क्यों होता है, हम थोड़ा आत्ममंथन करेंगे तो कुछ समझ पाएंगे। अब बात करें उत्तराखंड की तो पहाड़ तो गजब संदेश देते हैं। आप पहाड़ पर चढ़ेंगे तो आपको थोड़ा सा झुककर चलना पड़ेगा। झुककर धीमी गति से चलने पर मंज़िल मिलेगी। इसी धीमी गति या पहाड़ का संदेश यहां की नृत्य और गायन शैली में है। होली के गीत हों या फिर झोड़ा, चांचरी जरा याद कीजिए कितने सुरीले अंदाज में ये गीत और नृत्य हमें सुहाते हैं। इसी महान परंपरा का ही एक रूप है हरेला का पर्व।

जी रये, जागि रये, तिष्ठिये, पनपिये, दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये, हिमाल में ह्यूं छन तक, गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन और यो मास भेटनैं रये, अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये, स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो। अर्थात तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में बर्फ रहने और गंगा यमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो…। साथ ही मेल मुलाकात करते रहो।

आज के व्यस्त जीवन में भले मेल मुलाकात का समय कम हो, लेकिन हम सोशल मीडिया पर तो बिना गणित लगाये, बिना तोल मोल करे संवाद बनाए रख सकते हैं। हरेला पर्व प्रकृति को सहेजने का भी संदेश देता है। पहाड़ के लोगों से ज्यादा प्रकृति को कौन समझ सकता है। लेकिन आज अनेक लोगों ने नासमझ बनने का बीड़ा उठा रखा है। गाड़ गधेरे भी अतिक्रमण की जद में आ गए हैं। परिणाम सबके सामने है। ये सब बातें ऐसी हैं जो हम सब जानते हैं। बस त्योहारों की भांति एक चर्चा जरूरी है। आप सबको हरेला की हार्दिक शुभकामनाएं। सभी स्वस्थ रहें और प्रसन्न रहें। अपनों से खूब बातें कीजिए। सीधे नहीं तो आभासी दुनिया के जरिए ही सही। जय हो



Saturday, July 13, 2024

चोट-पटक, दुर्घटना की स्थिति में सकारात्मक सोच कैसे बने

केवल तिवारी



इन दिनों मेरे बाएं पैर में प्लास्टर चढ़ा हुआ है। करीब एक पखवाड़े पहले, रात में घर से महज 200 मीटर की दूरी पर बाइक स्लिप कर गयी और पैर में चोट लग गई। रात को ही आफिस में अपने साथी और पड़ोस में रहने वाले सुनील कपूर को लेकर GMCH 32 अस्पताल गया। एक्स-रे करवाया गया। एमरजेंसी में डॉक्टर ने कहा कि फ्रैक्चर नहीं है। एक हफ्ता रेस्ट करो, ठीक हो जाओगे। बिस्तर पर ही रहना। मैंने कहा, डॉक्टर साहब आफिस तो जाना पड़ेगा, दिनभर घर रहता हूं, शाम की ड्यूटी है, बोले छुट्टी मिलने में दिक्कत हो तो बताओ, प्लास्टर चढ़ा देता हूं। मैंने कहा, जरूरत हो तो चढ़ा दीजिए, मैं मैनेज कर लूंगा। वह बोले, जरूरत नहीं। पेन किलर लिख देता हूं। हमने पूछा, कल ओपीडी में आना होगा, वह बोले, जरूरत नहीं। रात तीन बजे घर आए, सूजन बढी थी। खैर किसी तरह सो गए। अगली सुबह बच्चों के शेखर मामा जो उत्तराखंड से official काम से आए थे, को लुधियाना, अमृतसर आदि जगह जाना था। वह तैयार हुए ही थे कि उनके कमर, पेट के आसपास भयानक दर्द उठने लगा। मैं बहुत लाचारी महसूस कर रहा था। फिर उनके छोटे भाई भास्कर यानी राजू को बुलाया गया। उस दिन राजू के office में बड़ा इवेंट था। थोड़ी देर बाद वह अपनी पत्नी प्रीति के साथ आ गये। आसपास के अस्पतालों में दिखाया। खैर, इलाज तो ज्यादा नहीं हुआ, अलबत्ता मर्ज का पता चल गया। मैं शाम को office चला गया। हमारी समाचार संपादक मीनाक्षी मैडम ने कहा कि छुट्टी ले लेते। उन्होंने कुछ डॉक्टरी सलाह भी दी। खैर... मित्रों - सूरज, नरेन्द्र, जतिंदरजीत, विवेक, सुनील आदि के सहयोग से रुटीन लाइफ चलने लगी, लेकिन पैर की सूजन कम नहीं हुई। तमाम सलाहों के मुताबिक पहले तीन दिन बर्फ़ फिर गर्म पानी से सिकाई भी की। पत्नी भावना घबराने लगी। अंततः करीब दस दिन बाद फिर अस्पताल गया। मित्र मुकेश अटवाल की मदद से उसी अस्पताल में दिखाया। प्लास्टर कक्ष में तेजेन्द्र जी और सुभाष जी ने मदद की। डॉक्टर से रायशुमारी के बाद तय हुआ कि प्लास्टर लगना चाहिए। उसी दिन लग जाता तो अच्छा था। लाइट वेट प्लास्टर का सामान मंगवाकर पैर में लग गया। आदतन मेरा मन बहुत व्यथित हो गया। अनेक काम पेंडिंग थे। कुछ दिन पहले लखनऊ से लौटा था, भाभी जी के दोनों घुटनों का ऑपरेशन हुआ था। भाई साहब के भी कमर में चोट है। भतीजी कन्नू work from home कर रही है, दिक्कतें और भी हैं। जीवन की आपाधापी ऐसी कि लखनऊ से हफ्ते भर बाद ही लौट आना पड़ा। मैंने इसी माह 18-19 को फिर एक चक्कर लखनऊ जाने की सोची थी। लेकिन हो कुछ और गया। अब इन तमाम परेशानियों के बीच सवाल यही कि सोच को सकारात्मक कैसे रखा जाए। कुछ सवाल कुछ मंथन और कुछ विचार निम्नलिखित हैं -

1- सबसे पहले मैंने बाइक की रफ्तार क्यों बढाई जब कुत्ते पीछे पड़े, जबकि मैं औरों को समझाता हूं कि ऐसे में भागा मत करो।

2- अनेक पेंडिंग कामों को लेकर मन में रात रात भर मंथन क्यों चलता रहता है।

3- शेखर दा को अचानक परेशानी क्यों आई। 

4- क्या भक्ति, आस्था में कोई कमी, या गलती हो गई है।

और भी कई सवाल। 

ऐसे अनेक सवालात पर मैं बैठ गया अपनी डायरी लिखने। डायरी लेखन मेरे लिए ईश्वर से सीधा संवाद है। लिखते लिखते या यूं कहें ईश्वर से संवाद के दौरान कुछ बातें मन में आईं। उनके जिक्र से पहले बता दूं कि इन्हीं दिनों ईजा (माताजी) सपने में आईं। एक खौफनाक पक्षी किसी जानवर को मुंह में दबाकर उड़ रहा है और मुझे खूंखार नजरों से देख रहा है। तभी माता जी मुझे एक कोने में ले जाती है और एक कपड़े से ढकते हुए मुझे उस खौफनाक पंछी की नजरों से बचा लेती है।

इस सपने के मायने मुझे नहीं पता, लेकिन ईश्वर संवाद के दौरान कुछ बातें साफ हुईं। 

1- हादसे, हारी-बीमारी भी part of life है। बस जरूरत है सोच समझकर चलने की।

2- कुत्तों के भौंकने पर सावधानी जरूरी है, घबराहट नहीं।

3- मेरी यह आदत तो अच्छी है कि मैं जरा सी दूरी तक भी बाइक से जाता हूं तो हेलमेट पहनना नहीं भूलता। उस दिन भी हेलमेट नहीं पहना होता तो सिर पर चोट लग सकती थी।

4- ईश्वर भक्ति और आस्था,  विश्वास अच्छी बात है। ईश्वर कभी बुरा नहीं करता। उसके आशीर्वाद से ही बड़ी दशा टल गई।

5- लखनऊ फिर जाना होगा, तब तक भाभी जी, भाई साहब का स्वस्थ्य काफी सुधर चुका होगा।

6- अच्छा हुआ शेखर दा को घर रहते ही तकलीफ हुई, कहीं लुधियाना के रास्ते में होता तो?

7- कुछ पेंडिंग काम के पूरा होने का अभी समय नहीं आया होगा।

8- सपने में ईजा, यानी मातृभूमि में जाने का कार्यक्रम बनाने का संकेत।

9- भविष्य में ज्यादा सचेत रहने, विचारों को सकारात्मक बनाए रखने की जरूरत।

कुछ सीख, कुछ विचार, कुछ किंतु परंतु, कुछ ये कुछ वो। ईश्वर सब ठीक रखे। तीन हफ्ते बाद प्लास्टर कटते ही नयी योजनाएं बनेंगी। जय हो।

Sunday, May 26, 2024

आकाशवाणी के विविध आयामों की तरह बहुमुखी प्रतिभा के धनी मनोहर सिंह रावत

 



प्रमोद कुमार वत्स
आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनल आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम प्रमुख श्री मनोहर सिंह रावत अपने जीवन के लगभग 37 वर्ष Akashvani की सेवा करने के उपरांत 31 मई 2024 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं l श्री मनोहर सिंह रावत ने सितंबर 1987 में  देवभूमि उत्तराखंड के सुदूर भारत चीन सीमावर्ती जिले पिथौरागढ से आकर देश की  राजधानी दिल्ली में आकर पहली बार एक महानगर की जिंदगी देखी l साधारण पृष्ठभूमि और निम्न  मध्यम वर्गीय परिवार में  जन्मे  श्री मनोहर सिंह रावत, गाँव  मुन्शियारी के मूल निवासी हैं l यह क्षेत्र आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति आज भी देश के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत पिछड़ी हुई है l ऐसी विषम और विकट परिस्थितियों में एक कड़ा संघर्ष करने के उपरांत श्री मनोहर सिंह रावत ने देश की सर्वोत्तम सांस्कृतिक संस्था में प्रवेश किया प्रसारण निष्पादक के रूप में 1987 में l इस महानगर में ना कोई आशियाना था, ना कोई आसरा, ना ही किसी से कोई विशेष परिचय l पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के  जीवन  में  वैसे  भी  कठिनाइयों की  कोई  कमी  नहीं होती पर मैदानों में आकर जीवन यापन करना सबसे कठिन निर्णय होता है l ये निर्णय लेना श्री मनोहर सिंह रावत के लिए भी आसान नहीं था लेकिन विकल्प भी कोई नहीं था l परिवार के संस्कार , काम के प्रति समर्पण, सच्चाई और ईमानदारी के साथ श्री मनोहर सिंह रावत ने प्रसारण निष्पादक के रूप में कार्य आरंभ किया l क्योंकि अभी तक का जीवन संघर्ष और कठिनाइयों से भरा था तो कठिन परिश्रम की आदत भी थी तो इन्होंने ऑफिस के विभिन्न कार्यों में भी सहयोग देना आरंभ किया और जल्द ही महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों के निर्माण में, विशिष्ठ कार्यक्रमों के आयोजनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे l ये वो समय था जब आकाशवाणी में कार्यक्रमों के format में और तकनीक में परिवर्तन हो रहे थे l short wave और medium wave के साथ साथ FM mode आ रहा था और कार्यक्रम प्रस्तुति के अंदाज और  सलीखे में बदलाव आ रहा था l Recording, Editing, Dubbing, Production and Programme Presentation सहित सभी Digital Technology को अपना रहे थे , ऐसे में श्री मनोहर सिंह रावत ने वर्तमान तकनीक के साथ साथ Digital technology को सरलता से सीखकर सफलता से अपना लिया l इस बीच 1997 में श्री मनोहर सिंह रावत कार्यक्रम अधिकारी के रूप में पदोन्नत होकर 6 माह के लिए आकाशवाणी मथुरा चले गए लेकिन आकाशवाणी दिल्ली पर इनकी आवश्यकता को देखते हुए इन्हें शीघ्र ही आकाशवाणी दिल्ली बुला लिया गया l श्री मनोहर सिंह रावत ने कार्यक्रम अधिकारी के रूप में Sports section ,  Hindi Spoken Word के विभिन्न कार्यक्रमों के साथ साथ अखिल भारतीय स्तर के अनेक कार्यक्रम के दायित्वों का निर्वहन किया l
Sports में इनकी स्वाभाविक रुचि थी और इन्होंने Sports कार्यक्रमों की प्रस्तुति में नए प्रयोग किए l आज Sports commentaries से  पूर्व में , मध्य में और अंत में जो विशेष कार्यक्रम होते हैं और जिनमें विशेषज्ञों के साथ श्रोताओं की भागीदारी भी होती है ये विशेष कार्यक्रम श्री रावत की ही सोच का ही परिणाम है l श्री मनोहर सिंह द्वारा आकाशवाणी के खेल कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने और श्रोताओं के लिए अधिक रूचिकर बनाने के कारण इनका नाम Doha और Incheon में आयोजित हुए एशियाई खेलों और राजधानी में 2012 में आयोजित हुए commonwealth games में आकाशवाणी coverage team में रखा , साथ ही इन्होंने ICC world Cup के सिलसिले में दो बार श्री लंका में आकाशवाणी commentary team का नेतृत्व किया l श्री रावत ने आकाशवाणी के Sports programme में जो विशेष बदलाव किए उनमें मुख्य हैं- use of  latest technique and format  ,   communication of latest updates/ information supported by authentic  sound bytes and resource person ie सबसे पहले,  सबसे तेज , सबसे विश्वसनीय l
Sports के साथ साथ श्री रावत जन हित में आम आदमी की दैनिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान के लिए आकाशवाणी पर अनेक कार्यक्रम करते रहे जिनमें Public Grievances पर आधारित live phone in  Programme को विशेष सफलता मिली l लगभग 15 वर्ष तक श्री रावत ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया और  भारत सरकार , राज्य सरकार , स्थानीय निकायों,  Public sector Undertakings , Autonomous Bodies/ Institutions के सक्षम अधिकारियों को कार्यक्रम में बुलाकर लोगों की समस्याओं से अवगत करवाया और लोगों को अपनी बात की सीधे कहने का अवसर दिया l इस phone in programme और ऐसे ही कितने ही Public grievances के कार्यक्रम श्री रावत के निर्देशन में हुए जिनकी success stories की सूची भी बड़ी लम्बी है l


Sports के साथ साथ श्री रावत का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा देश की सेवा कर रहे वीर जवानों के योगदान को आकाशवाणी के माध्यम से highlight करने का l Military/ Defence/ Para Military forces / Police force सभी संस्थाओं के बलिदान और शौर्य पर आधारित कार्यक्रमों के निर्माण में इन्होंने विशेष भूमिका निभाई l
2008- 2009 के अपनी लेह में posting के दौरान इन्होंने  सेना और पुलिस के जवानों के जीवन को नजदीक से देखा और इनके जीवन पर  आधारित कार्यक्रमों के निर्माण की प्रेरणा ली l


लेह से पुनः आकाशवाणी दिल्ली आने पर श्री रावत को एक अलग तरह की  भूमिका मिली जो तत्कालीन केंद्र निदेशक की दृष्टि में केंद्र सबसे महत्वपूर्ण अनुभाग था और जिसका  दायित्व केंद्र के सबसे परिश्रमी और सबसे मेधावी कार्यक्रम अधिकारी को ही दी जा सकती थी और उनकी पहली पसंद बने श्री मनोहर सिंह रावत l श्री रावत जो स्वभावतः भारत सरकार के कर्त्तव्य निष्ठ सेवक रहे हैं उन्होंने भी केंद्र निदेशक को निराश नहीं किया बल्कि उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप Hindi Talks section को नई उछाल दी l अखिल भारतीय कार्यक्रमों में भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रियों, मंत्रालय के सचिवों , संस्थाओं के महानिदेशक, मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की भागीदारी होने लगी और विषय भी वो रखे गए जिनका सम्बन्ध अंतिम जन से था, एक आम भारतीय से था l
इस अनुभाग में रहते हुए रावत जी ने डाक्टर राजेंद्र प्रसाद स्मारक व्याख्यान, सर्व भाषा कवि सम्मेलन, शाम की चाय जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का आयोजन सफलता से किया l
Sports कार्यक्रमों में  अधिक  रुचि  रखने  वाले  अधिकारी  का Hindi talks में जाना वास्तव में वर्तमान के साथ भविष्य की भी आवश्यकता थी जिसके बारे में केवल विधाता जानता था या समय l वर्ष 2014 में देश को प्रधानमंत्री के  रूप में  मिले  युगपुरुष श्री नरेंद्र मोदी , जिन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से  देश को  विकसित करने का कार्य  आरम्भ किया  और विश्व पटल पर  देश का  मान  सम्मान  बढ़ाया देश और इसी क्रम में आकाशवाणी की लोकप्रियता बढ़ी प्रधान मंत्री की मन की बात से l अक्टूबर 2014 में जब माननीय प्रधान मंत्री ने मन की बात के माध्यम देशवासियों से आकाशवाणी के माध्यम से सीधे संवाद का निर्णय किया तो आकाशवाणी में इस कार्यक्रम के संयोजन का संपूर्ण दायित्व भी पहले ही अपने कार्यों की सफलता से अपनी क्षमता सिद्ध कर चुके श्री मनोहर सिंह रावत को ही देना उचित समझा गया l आदरणीय प्रधान मंत्री जी  का निजी कार्यक्रम होने के कारण और आकाशवाणी का अति विशिष्ठ कार्यक्रम होने के कारण इसमें  श्री मनोहर  सिंह  रावत की  भूमिका  के बारे में अधिक विस्तार से तो नहीं बताया जा सकता किन्तु आकाशवाणी के लिए यह गर्व की बात है कि अक्टूबर 2014 से लेकर फरवरी 2024 तक केवल लोक सभा चुनाव के दौरान ( 2019 और 2024) आचार संहिता का पालन करते हुए प्रधान मंत्री जी मन की बात के 110 episode आकाशवाणी के माध्यम से प्रसारित किए हैं l
November 2022 में श्री रावत ने आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम प्रमुख का कार्य सम्भाला l अब इनके व्यक्तित्व और कृतित्व के वे सभी पक्ष देखने को मिले जिनको अभी तक अवसर नहीं  मिला था किंतु पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी, विचार परिपक्व थे, योजना बन चुकी थी, इरादे नेक थे और समय आ गया था आकाशवाणी दिल्ली के सभी कार्यक्रमों को जो covid काल में पीछे चले गए थे उन्हें पुनः आरंभ करने और नई पहचान देने की, सबसे अधिक महत्वपूर्ण था कलाकारों  को अवसर देने और श्रोताओं को जोड़ने का प्रयास l इसी क्रम में आरंभ हुए आमंत्रित श्रोताओं के समक्ष कार्यक्रम  - माटी के रंग ( लोक संगीत पर आधारित ), Swaranjali ( classical and light music) , युवा कवि प्रतिभाओं के लिए कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति l G-20 सम्मेलन देश लिए एक प्रतिष्ठित कार्यक्रम था l श्री रावत के नेतृत्व में july 2023 से September 2023 के बीच G 20 के उपलक्ष्य और सफलता को celebrate करने के लिए लोगों के बीच जाकर देश की संस्कृति और संगीत का प्रचार प्रसार करने के कुल 27 कार्यक्रम किए गए जिनमें से अधिकांश युवाओं के लिए थे जिनका आयोजन schools , colleges, Universities के साथ Atari Border ( BSF के सहयोग से) , CISF Indirapuram में CISF के सहयोग से और देश के पहले गाँव माणा में किया गया l


श्री मनोहर सिंह रावत 37 साल आकाशवाणी की सेवा करने के उपरांत 31 मई 2024 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं l
इनका कार्यकाल आकाशवाणी के इतिहास में सदैव एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा, याद किया जाएगा l
हर महत्वपूर्ण कार्य और आयोजन यथा स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, लोक सेवा प्रसारण दिवस, Parliament sessions, आकाशवाणी संगीत सम्मेलन, National Symposium of Poets, Dr Rajendra Prasad Memorial Lecture , Sardar Patel Memorial Lecture में इनकी भूमिका और योगदान को सदा याद किया जाएगा l
आकाशवाणी दिल्ली में  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के एकमात्र आगमन की स्मृति में आज बापू स्टूडियो है, भारत रत्न पंडित रवि शंकर संगीत स्टूडियो है,  social media cell है, Radio  museum की तैयारी है जो ही शीघ्र ही पूरा होगा और जब जब इनके बारे में बात होगी तो दिल और दिमाग में एक ही तस्वीर होगी जुबाँ पर एक ही नाम होगा- मनोहर सिंह रावत
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मेरे भी रहे मनोहर संबंध
केवल तिवारी
स्नेह बड़े भाई जैसा। अंदाज ए बयां दोस्ताना। हर समय साथ रहने और हौसला बढ़ाने का जुनून। कभी पड़ोसी रहे फिर आकाशवाणी में कुछ कार्यक्रमों में मौका दिया। मेरे लिए फिलहाल यही परिचय है मनोहर सिंह रावत जी को लेकर। जिन्हें मैंने अपने मोबाइल में एमएस रावत जी के नाम से सेव कर रखा है। आकाशवाणी मुख्यालय, नयी दिल्ली से सेवानिवृत्त रावत जी से करीब दो दशकों से मुलाकात है। वह वसुंधरा के सेक्टर चार ए में रहते थे और मेरा निवास चार बी में था। मुलाकात उमेश पंत जी द्वारा बनायी गयी एक छोटी सी आमसी मेल-मिलाप संगठन के जरिये हुई। उन दिनों में हिन्दुस्तान अखबार में कार्यरत था। कई बार आते-जाते भी रावत जी से मुलाकात हो जाती। शुरुआत में मुझे रावत जी वैसे ही लगे जैसे एक आम उत्तराखंडी होता है। कुछ-कुछ इंट्रोवर्ड, कुछ-कुछ टू द पाइंट बात करने वाला। धीरे-धीरे अपनी सोसाइटी की बैठकों में देखा तो उनका अंदाज एकदम अलहदा लगा। वह बेहद सामाजिक और मिलनसार हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक है। बातें नपी-तुली पर सटीक करते हैं। गलत कहने वाला अगर सगा भी है तो उसकी आलोचना करने से भी नहीं हिचकते। कोशिश करते हैं कि सरकारी योजनाओं के बारे में लोगों को पता चले। इसके लिए आकाशवाणी के कार्यक्रमों में विशेष आयोजन करते। अधिकारियों से इस बात पर जोर देते कि आम श्रोताओं को सरल अंदाज और भाषा में बता सकें कि संबंधित योजना किसके लिए है और इसका लाभ कैसे लिया जा सकता है। फिर आपसी बैठक में भी बताते कि अगर बच्चे ने इतनी पढ़ाई कर ली है तो उसके लिए फलां ऑप्शन है। इसी तरह उन्होंने मुझे जहां कुछ खबरें उपलब्ध कराईं, वहीं आकाशवाणी में अनेक कार्यक्रमों में शिरकत करने का मौका दिया। आकाशवाणी में बचपन से ही कार्यक्रम करता रहा हूं। दिल्ली में संघर्ष के दिनों में भी कुछ काम किया। बाद में रावत जी ने जहां अनेक यादें ताजा कराईं, वहीं मन का काम भी दिया। खबरों पर डिस्कशन, उत्तराखंड के संबंध में बातचीत, आकाशवाणी के कार्यक्रमों पर चर्चा हमारी रुटीन बातचीत के विषय होते। हालिया मुलाकात उनकी बिटिया की विवाहोत्सव पर हुई। उसके बाद ही पता चला कि रावत जी मई महीने में ही रिटायर होने वाले हैं। सहसा यकीन नहीं हुआ, फिर लगा कि ये सब तो कागजी और सरकारी प्रक्रिया है। रावत जी अब और कुछ करेंगे। जीवन की नयी पारी के लिए उनको हार्दिक शुभकामनाएं। यहां कुछ अन्य फोटो और वीडियो साझा कर रहा हूं।








Thursday, May 16, 2024

आइसर भोपाल में धवल, परिवार का मिलन ‘नवल'

केवल तिवारी

ये जीवन, ये नव्यता, ये घर और ये परिवार

ये सफर, ये दुश्वारियां और अपना घरबार

चल पड़े थे सफर पर, ट्रैक पर थे अवरोध

धवल के आईसर सफर पर दिखा जीवन का शोध।

जो ठान लो कुछ तो

पिछले दिनों छोटे बेटे धवल को अपने स्कूल द ट्रिब्यून स्कूल (The Tribune School) की ओर से भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान यानी Indian Institute of Science Education and Research (IISER, Bhopal यानी आईसर भोपाल) में एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। असल में करीब एक माह पहले स्कूल से इस संबंध में सूचना मिली और कहा गया कि यदि इच्छुक हैं तो ऑनलाइन फॉर्म भर दें। पहले मन में कुछ किंतु-परंतु उठे, लेकिन जब धवल ने इच्छा जाहिर की तो मैंने तुरंत हामी भर दी। भोपाल पहुंचकर धवल को बहुत कुछ नया सीखने को मिला, जीवन की आपाधापी की पहचान हुई और हम दोनों ने परिवार में मिलन का ‘नवल’ अनुभव भी किया। विस्तार से बिंदुवार पूरा वृतांत सामने रखता हूं।



महान है भारतीय रेलवे और महान हैं ट्रेन ट्रैक पर बैठने वाले आंदोलनकारी

जब भोपाल जाने का मन बना लिया तो सबसे पहले रिजर्वेशन कराना जरूरी था क्योंकि तत्काल में भी मिलना मुश्किल हो जाता है। सीटें फुल दिखाने का जो रेलवे का खेल है, वह भी इस दौरान समझ में आया। आईसर में सेमिनार 6 मई से था, मुझे पांच को पहुंचना था। मैंने अंबाला से भोपाल की ट्रेन में धवल के साथ रिजर्वेशन कराया। वापसी का दिल्ली तक सेकेंड सिटिंग में कराया। भोपाल जाने से एक दिन पहले रेलवे का मैसेज आया कि ट्रेन नाभा से लेकर दिल्ली के सब्जीमंडी तक के स्टेशनों पर नहीं जाएगी। पहले तो मैसेज का मतलब समझ में नहीं आया। ऑफिस में मित्र नरेंद्र, जतिंदरजीत एवं सूरज से चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह ट्रेन या तो दिल्ली से पकड़नी पड़ेगी या फिर टिकट कैंसल कराना पड़ेगा। टिकट कैंसल का मतलब पूरा पैसा कटना। 139 पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं। गूगल पर रेलवे का पुराना रूट ही दिख रहा था। बेशक रेलवे ने ट्रेन डायवर्जन का कारण नहीं बताया, लेकिन मैं समझ रहा था कि पटियाला के पास राजपुरा में ट्रेन ट्रैक पर कुछ आंदोलनकारी बैठे हैं। मैं समझ नहीं पाया कि करूं क्या? कुछ ने बताया कि संबंधित स्टेशन पर अगर सीट नहीं ली गयी तो टीटीई उसे कैंसल कर किसी और को दे देते हैं। फाइनली वसुंधरा में रावत जी से बात की उन्होंने कहा कि अगर टिकट ऑनलाइन बुक किया है तो वहीं लॉगइन कर बोर्डिंग फ्रॉम न्यू डेल्ही यानी नयी दिल्ली से बैठने का ऑप्शन क्लिक कर दें। गनीमत है कुछ दिक्कतों के बाद यह हो गया। मैं और धवल अगली शाम सात बजे दिल्ली पहुंच गये थे। ट्रेन का समय था रात 8:40 बजे, लेकिन यह आई रात एक बजे। धवल इंतजार में तब तक बेहाल हो चुका था। संबंधित वीडियो साझा कर रहा हूं। खैर किसी तरह धवल को आईसर भोपाल पहुंचाया। वापसी में भी ट्रेन पांच घंटे विलंब से आई और पूरे रास्ते लोगों से यही अपील करता रहा कि यह रिजर्वेशन डिब्बा है, लेकिन कुछ लोग लड़ने पर उतारू थे, पर मानने को राजी नहीं हुए। इसी तरह एक हफ्ते बाद मेरा और धवल का टिकट था। एक महीने पूर्व जब टिकट कराया था तो 14 वेटिंग था। जिस दिन आना था तीन घंटे पहले पता चला कि रिजर्वेशन कनफर्म नहीं हुआ। मैं परेशान हो गया। अकेला होता तो जनरल में भी आने की हिम्मत कर लेता, लेकिन बच्चा साथ था। एक दिन बाद से उसकी परीक्षाएं थीं। नवल जी बोले कि तत्काल में देखते हैं। दिल्ली तक की कई ट्रेन देखीं, तत्काल भी वेटिंग। फिर नवल जी ने बताया कि एक प्रीमियम तत्काल भी होता है। मैंने अनुरोध किया कि कृपया तुरंत देखें। एक ट्रेन में मिला। थर्ड एसी का तीन हजार रुपया किराया दिखाया। मैंने कहा कर दीजिए। वे बोले, एक-दो ट्रेन और देख लेते हैं। जब नहीं मिली तो वापस उसी ट्रेन पर आए, पता चला कि इस बीच वह टिकट 3300 के करीब का हो चुका है। मरता क्या न करता। साढ़े छह हजार के दो टिकट लिए और किसी तरह दिल्ली पहुंचे और वहां से बस पकड़कर चंडीगढ़। जै हो रेलवे की और जै हो ट्रैक पर बैठने वालों की। सफर के दौरान सेहत संबंधी कुछ परेशानियां भी आईं, लेकिन अंतत: सब ठीक हो गया। इस दौरान कुछ देर भतीजी कन्नू और दीदीयों- प्रेमा दीदी एवं शीला दीदी से बातचीत से भी थोड़ा सुकून मिला।



 पर धवल को आईसर का कार्यक्रम बहुत भाया और फिर हम दोनों का परिवार का ‘नवल’ मिलन

तमाम दुश्वारियों के बावजूद धवल जब आईसर भोपाल पहुंचा तो इसे उसका कैंपस बहुत भाया। हॉस्टल रूम और साथी भी अच्छा था। उसने तुरंत वीडियो कॉल के जरिये अपनी मम्मी और भाई को यह बात बताई। उसे छोड़कर मैं दिल्ली आ गया। वह अक्सर वैज्ञानिक प्रयोगों की वीडियो और फोटो भेजता। भोजन मैन्यू के बारे में बताता। कई नयी चीजों का भी उसने अनुभव लिया और हॉस्टल लाइफ को भी समझा। उसे आनंदित देखकर लगा कि इस जानकारीपरक जीवन के आगे परेशानियां गौण हैं। मैं तो दिल्ली आ चुका था, लेकिन इस बीच डॉ. नवल लोहानी जी उससे लगातार बातचीत करते रहे। बता दूं कि नवल जी मेरी पत्नी भावना की बुआ के बेटे हैं। भोपाल में ये तीन भाई रहते हैं। कमल जी, नवल जी और दीपक जी। कमल जी से मेरा ज्यादा परिचय नहीं है, लेकिन नवल जी और दीपक जी से अनेक बार मिलना हुआ है। नवल जी बेहद विनम्र, शांत और अपनापन बनाए रखने वाले व्यक्ति हैं। दीपक जी लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं। उनके साथ कुछ साहित्यिक चर्चाएं भी हो जाती हैं। वापसी वाले दिन मैं पहले नवल जी के यहां पहुंचा। फिर उन्हीं की कार में आईसर गया। हमारे साथ उनका बेटा वरद भी था। नन्हा वरद हंसमुख और चंचल स्वभाव का है। बच्चों के साथ बातें करने में जो आनंद आता है वह वरद के साथ आया। वरद का पड़ोसी दोस्त कनिष्क से भी खूब बातें हुईं। धवल को लेकर आए। इससे पहले फोन पर हुई बातचीत के आधार पर धवल की प्रतिक्रिया आई थी, ‘नवल मामा तो कितना प्यारा बोलते हैं।’ वरद की मम्मी, मौसी, नानी और पड़नानी से मुलाकात हुई। सब लोग बेहद हंसमुख। दीपक जी के परिवार से भी अच्छी बातचीत हुई और इन लोगों से बातों-बातों में बुआजी की भी खूब याद आई। बुआ कुमाऊंनी और हिंदी को मिक्स कर बोलती थीं। मेरी माताजी के साथ भी उनकी अच्छी बातचीत थी। कोविड के दौरान वह इस दुनिया से चल बसीं। वह अक्सर मेरी पत्नी भावना से कहती थीं कि भोपाल घूमने आओ। एक बार तो उनहोंने गुस्से में कह दिया जब मैं मर जाऊंगी तब आना। उनकी यादें शेष हैं। खैर इस दौरान पूरे परिवार के बीच बातचीत। परिवार के लोगों के बारे में बातचीत और दीपक जी के बच्चों से बात करना अच्छा लगा। कुछ फोटो यहां साझा कर रहा हूं।













Friday, May 3, 2024

मां विंध्यांचल देवी : यहां होते हैं संपूर्ण विग्रह के दर्शन

 साभार: dainiktribuneonline com


केवल तिवारी

पहले पवित्र गंगा नदी में स्नान। फिर चारों ओर का विहंगम दृश्य। पैदल पथपर भक्ति में लीन पंक्तिबद्ध श्रद्धालु। ऐसा ही भक्तिमय दृश्य आपको नजर आएगा जब आप मां विंध्याचल देवी के दर्शन के लिए जाएंगे। इस स्थान को प्रमुख शक्ति पीठ का दर्जा मिला है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में स्थित विंध्याचल देवी मंदिर की महिमा अपार है। आसपास अन्य मंदिर जैसे अष्टभुजा देवी का मंदिर, कालीखोह मंदिर और सीताकुंड भी हैं। मान्यता यह भी है कि विंध्याचल देवी जिसे मां विंध्यवासिनी भी कहा जाता है, एक ऐसी शक्तिपीठ है जिसका अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व हुआ। विंध्य क्षेत्र को तपोभूमि भी कहा जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे इस मंदिर प्रांगण में श्रद्धालु सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। इस देवी को त्रिकोण यंत्र पर विराजित माना जाता है। मान्यता है कि विंध्याचल निवासिनी यह देवी लोक कल्याण के लिए महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं।

विंध्याचल देवी का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वाराणसी से करीब 90 किलोमीटर दूर है। मान्यता है कि देवी ने इस पर्वत पर रहकर मधु एवं कैटभ नामक राक्षसों का वध करने का लक्ष्य साधा। अक्सर पूजा-अर्चना विशेषतौर पर नवरात्र के दिनों में जिस दुर्गा सप्तशती का श्रद्धालु पाठ करते हैं, उसमें भी इस धार्मिक जगह का उल्लेख मिलता है। देवी को लेकर विभिन्न कथाओं में एक कथा यह भी है कि जब भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था उसी वक्त यशोदा ने भी एक कन्या को जन्म दिया था जो देवी के रूप में थी। जब कंस ने उनको पत्थर से मारने की कोशिश की तो वह चमत्कारिक रूप से दुर्गा के रूप में बदल गई। इस तरह देवी ने विंध्याचल को अपना निवास स्थान बना लिया।

विंध्याचल देवी के इसी मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है, जिनकी पूजा मां काजला के रूप में की जाती है। मिर्जापुर मूल शहर से करीब दस किलोमीटर दूर इस मंदिर पर इन दिनों जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। श्रद्धालुओं को भव्यता का अनुभव कराने के लिए जगह-जगह विशेष पत्थर से निर्मित खंभे लगाए जा रहे हैं। लाल पत्थर वाली छत के नीचे भक्त जयकारा लगाते हुए चलते हैं। हमारे विभिन्न देवी महात्म्य स्थलों में से विंध्यवासिनी ही एक ऐसा मंदिर है जहां देवी पूर्ण रूप में विराजमान हैं। यहां उल्लेखनीय है कि दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में कूद गयीं देवी सती (पार्वती) को लेकर जब भगवान शिव ने ब्रह्मांड का चक्कर लगाना शुरू किया और भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया, उसके बाद विभिन्न अंगों के गिरने से अलग-अलग देवी शक्तिपीठ स्थापित हुए जिसमें नैना देवी, सुनंदा, महामाया, त्रिपुरमालिनी, जयदुर्गा, दाक्षायणी, गंडकी, बहुला, भ्रामरी, कामाख्या, ललिता, जयंती, युगाद्या अथवा भूतधात्री, कालिका आदि हैं। इसी मंदिर में देवी पूर्णरूप में अर्थात यहां पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं।

नवरात्र के दिनों में मां के विशेष शृंगार के लिए मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद किए जाते हैं। सामान्य दिनों में मंदिर के कपाट रात 12 बजे से सुबह 4 बजे तक बंद रहते हैं। दिन में भी कुछ देर के लिए कपाट बंद किए जाते हैं। जैसा कि सर्वमान्य है कि ईश्वर भाव का भूखा है, इसलिए मंदिर प्रांगण में जाना ही पुण्य का काम है। ऐसे परिसरों में घूम रहे उन तत्वों से सावधान रहना चाहिए जो दर्शन कराने या पूजा-अर्चना कराने के नाम पर ठगी करते हैं। इस तरह का कुछ विकृत रूप कभी-कबार यहां भी नजर आ जाता है। हालांकि जल्दी ही सबकुछ सुव्यवस्थित होने का दावा किया जा रहा है। प्रतिदिन इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु माथा टेकते हैं और देवी मां का पूजन जय मां विंध्यवासिनी के उद्घोष के साथ करते इन दिनों जीर्णोद्धार कार्य त्वरित गति में हैं, इसमें परिक्रमा स्थल से लेकर संपूर्ण परिसर का नवीनीकरण शामिल है।

Tuesday, April 30, 2024

पुरानी पीढ़ी की जिम्मेदारी है युवाओं को संस्कृति और खान-पान से जोड़ना : लोक कलाकार लवराज

केवल तिवारी

उत्तराखंड के लोक कलाकार लवराज का कहना है कि पुरानी पीढ़ी के लोगों की यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वे आज की पीढ़ी को अपनी संस्कृति, सभ्यता और खानपान से रूबरू कराएं। उत्तराखंड के मुनस्यारी निवासी लवराज पिछले दिनों दिल्ली में एक विवाह समारोह में अपने ग्रुप को लेकर पहुंचे थे। उन्होंने माना कि व्यावसायिक मजबूरियों के चलते बेशक उत्तराखंड का युवा वर्ग देश-विदेशों में हैं, लेकिन उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में बताना उनके परिजनों की जिम्मेदारी है। हालांकि लवराज ने इस बात को उत्साहजनक बताया कि भारत के तमाम महानगरों, शहरों में उत्तराखंड के लोग ऐसे अनेक कार्यक्रम करते हैं जिसमें अपना खानपान, वेशभूषा, संस्कृति झलकती है। 




'जागर' और 'छोलिया' नाम के ग्रुप के साथ विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुति देने वाले लवराज कहते हैं कि अगर आने वाली पीढ़ी के लिए हम विरासत में जानकारी का भंडार नहीं छोड़ेंगे तो बातें हवा-हवाई ही रहेगी। उन्होंने नैन सिंह रावत सरीखे उत्तराखं की कई हस्तियों का उदाहरण देते हुए कहा कि बात चाहे साहित्य जगत की हो, गीत-संगीत की हो या फिर खान-पान की, इसकी जानकारी और इस संबंध में उठाये जाने वाले जरूरी कदमों का उठना जरूरी है। उन्होंने बताया कि अब कई जगह भट की दाल, गहत की दाल, मडुवे की रोटी, तिमूर की चटनी आदि परोसी जा रही हैं। आज वैज्ञानिक तौर पर भी इन खानपान को बहुत अच्छा बताया जा रहा है। उन्होंने पुराने खानपान का जिक्र करते हुए बताया कि एक समय था जब जौर की रोटी खाई जाती थी, आदमी स्वस्थ रहता था। उन्होंने इस पर संतोष तो जताया कि अनेक शहरों में उत्तराखंड की संस्कृति की झलक पेश करने वाले कार्यक्रम होते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि युवाओं को आगे आकर इसे सीखना होगा। बात चाहे हुड़के की हो या फिर जागर लगाने की। लवराज स्वयं जागर लगाते हैं, आह्वान करते हैं। क्या युवा पीढ़ी इस तरफ आकर्षित हो रही है, पूछने पर लवराज कहते हैं, 'स्थिति बिल्कुल स्याय या बिल्कुल श्वेत नहीं है। कई जगह तो बेहद अट्रैक्शन युवाओं में दिखता है, लेकिन कहीं-कहीं उदासीनता भी है।' उन्होंने बताया कि वे स्वयं कई युवाओं को हुड़का बजाना सिखा रहे हैं, जागर की बारीकियां भी समझा रहे हैं। खानपान की चर्चा पर आज की पीढ़ी को मोमोज की ओर आकृष्ट होने का जिक्र करते हुए लवराज ने कहा कि उत्तराखंड में कुकला बनता था जो बेहद स्वादिष्ट होता था, आज उसकी बात होती ही नहीं है। इसी तरह दालों से कई व्यंजन बनते हैं। दिल्ली में एमएस रावत जी की बिटिया के विवाहोत्सव के दौरान छोलिया नृत्य के साथ-साथ पहाड़ी व्यंजन का जिक्र करते हुए लवराज ने कहा कि महानगरों में ऐसी संस्कृति को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर किसी को जड़ों से जुड़े रहने की ललक होनी चाहिए। यह ललक इस तरह से भी प्रदर्शित हो सकती है जैसे कि दिल्ली में वेस्टर्न कोर्ट में शादी समारोह के दौरान। उन्होंने कहा कि लोक नृत्य, लोक संगीत या स्थानीय खान-पान, चाहे किसी अंचल, क्षेत्र या प्रदेश का हो, बेहतर ही होता है। जरूरत है इन्हें सहेजे रहने की। उन्होंने कुछ वीडियो और यूट्यूब लिंक भी भेजे हैं जिन्हें शेयर कर रहा हूं।


[26/04, 10:45 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/ZofLVIaBhR4?si=-_9I0saEhTgHJ1cf
[26/04, 10:46 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/sSu34lMxzLs?si=tofDsBQ8ar3KfGg0
[26/04, 10:47 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/Qj6wDX80I8c?si=jjlix4LzieVNIZ8M
[26/04, 10:50 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/cgxj6ohJHfY?si=juSR2WnfW4oaeTwn
[26/04, 10:51 am] Folk Artist Loveraj Munsyari: https://youtu.be/7lbS4nzXjd0?si=fOWOGCgFQK8KsQu7

Friday, April 26, 2024

पृथ्वी दिवस पर सार्थक बात, सार्थक प्रयास और सार्थक उम्मीद

केवल तिवारी

चमक है इन आंखों में, हौसला है मन में।
बड़े होने की दहलीज पर, हिम्मत है तन में।
वक्त आने दे बता देंगे ये सब ज़माने को
अभी तो राह पर चले हैं, मंजिल तो आने दो।
इनके लिए हो रहा हर प्रयास होगा सार्थक।
मंजिल मिलेगी और लक्ष्य होगा परमार्थक।
पिछले दिनों अपने पुराने कर्मभूमि परिसर वसुंधरा, गाजियाबाद जाना हुआ। अक्सर जैसा होता है उमेश पंत जी से मिला। कुछ सार्थक बातचीत हुई। साथ ही उन्होंने कहा कि सार्थक प्रयास स्कूल के बच्चों से मिल लीजिए। ऐसे आयोजन के लिए मैं झट से राजी हो जाता हूं। संयोग से उस दिन पृथ्वी दिवस था और इस दिवस की पूर्व संध्या पर उमेश पंत जी ने मुझे अपनी छत की बागवानी दिखाई। बेहद आकर्षक और हरियाली मानो संदेश दे रही कि इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं। आपको मन में ठानना पड़ता है। उस बागवानी की कुछ तस्वीरें साझा करूंगा जो खुद ही सबकुछ बयां करेंगे। बात हो रही थी, सार्थक प्रयास स्कूल के बच्चों से रूबरू की, उसके विवरण से पहले आइए पहले कुछ सार्थक राह के अथक पथिक यानी उमेश पंत जी की बात करें।



सार्थक राह का अविचल राही
ये हैं उमेश पंत। दो दशक से अधिक समय से मेरे परिचित। नि: स्वार्थ मेल मिलाप के बाद एक समिति में साथ जुड़ गए। उन दिनों वसुंधरा का इलाका एक नया शेप ले रहा था। एक अच्छी खासी नौकरी कर रहे पंत जी निर्माण मजदूरों के बच्चों की स्थिति से द्रवित हो गये। और यह सिलसिला ऐसा चला कि लंबी कहानी है। उस पर चार पंक्तियां ऐसे ही आ गयीं, पढ़िए -
चलते रहे, हमें थकने का समय ही कहां मिला।
एक धुन में पकड़ ली राह, न शिकवा, न गिला।
मंशा हो नेक, चाहे राह हो कितनी कठिन।
पथिक तू चलता चल, छालों को न गिन।
इस सफर में अनेक लोग हमसफ़र बनेंगे।
कुछ साथ रहेंगे, कुछ अपनी राह चल पड़ेंगे।
ऐसा ही हुआ। अनेक झंझावातों से जूझते हुए इस वक्त पंत जी के सान्निध्य में अनेक पुस्तकालय, वाचनालय चल रहे हैं। वसुंधरा में सुविधाविहीन बच्चों के लिए दो स्कूल चल रहे हैं। पंत जी पर विस्तृत चर्चा फिर कभी। आइए अब उस कार्यक्रम की बात करें-
हम लोग सुबह पौने आठ बजे स्कूल पहुंच गए। पहले बच्चों ने प्रार्थना की। नयी जगह स्कूल शिफ्ट हुआ था। सार्थक प्रयास से ही निकला आनंद जो अब आनंद सर हो चुके हैं, मुस्तैद थे। टीचर्स की देखरेख में बच्चों ने पेंटिंग्स तैयार की थी। छोटे बच्चों से छोटी सी बात ही हुई। उम्मीद जगी कि ये बच्चे सही राह पर चलेंगे। फिर हुई बड़े बच्चों से मुलाकात। बहुत अच्छा लगा जब उन्होंने अपनी उत्तराखंड यात्रा के बारे में बताया। वह यात्रा जिसे पंत जी ने यह कहकर अयोजित की कि परीक्षा में अच्छा करने वाले बच्चे यात्रा पर चलेंगे। बहुत अच्छा लगा बच्चों की आंखों में चमक देखकर, तभी तो अनेक बच्चे तब भावुक हो गए जब मैंने कहा बच्चो कभी भी अपने इमोशंस को कम मत होने देना। पृथ्वी दिवस क्यों? सवाल पर बच्चों ने बहुत अच्छे जवाब दिए। एक ने कहा, 'पृथ्वी हमें इतना कुछ देती है, हमें भी उसे संवारना चाहिए।' एक अन्य ने कहा, 'जिस तरह मां होती है, वैसी ही हमारी पृथ्वी है।' एक बच्ची ने कहा, 'हमें पृथ्वी को रिटर्न गिफ्ट देना चाहिए।' बच्चों के जवाब को समझें तो ये सभी बातें आपस में मिली हुई हैं। मैंने कहा कि सचमुच पृथ्वी मां ही होती है। एक मां अपने बच्चे से सिर्फ यह उम्मीद करती है कि वह अच्छा इंसान बना रहे। इसी तरह अच्छे इंसान की तरह हम सबका फर्ज है कि पृथ्वी के प्रति अपने कर्त्तव्यों को समझें। मैंने उदाहरण देते हुए कहा कि छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें जैसे, कुछ देर पहले पंत जी ने स्कूल की ऊपरी मंजिलों की ओर जाते हुए बिना काम के जली हुई लाइट्स को बंद किया, पंखे बंद किए। इसी तरह यदि कहीं नल खुला हो, पानी बेकार बह रहा हो, उसे भी बंद कर दें। अपने हिस्से की जिम्मेदारी अगर हर व्यक्ति पूरा करे तो बहुत कुछ ठीक हो जाएगा। असल में हम लोग उपदेश देते हैं, या औरों की बुराई से जल्दी प्रभावित होते हैं। चिप्स या चॉकलेट के रैपर खुले में नहीं फेंकने हैं, हमें पता है, लेकिन जब देखते हैं कि जगह-जगह तो ऐसे रैपर फैले हुए हैं तो हम भी सोचते हैं, इतने लोगों ने तो फेंक रखे हैं, हम भी फेंक देते हैं। यहां हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी भूल जाते हैं। फिर उनसे कुछ घर-परिवार को लेकर बातें हुईं। मन में यकीन हुआ कि इन बच्चों को सार्थक मंच मिला हुआ है, अवश्य ही ये अपनी कल्पनाओं को पंख देंगे और बड़े फलक को छुएंगे। बातों-बातों में बच्चों से कुछ और भी चर्चाएं हुईं। धीरे-धीरे करिअर की दहलीज पर पैर रखने जा रहे इन बच्चों को तमाम चीजों में सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ना होगा। संभवत: ये लोग इन चीजों को समझते भी हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से भी कहना चाहता हूं बच्चो, कभी भी तड़क-भड़क को देखकर डिगना मत। राह में परेशान करने वाली चीजें या बिगाड़ने वाली चीजें ज्यादा आएंगी और आकर्षित करेंगी, उनसे बचकर चलना। इस कार्यक्रम में एक टीचर ने सुंदर कविता सुनाई, उन्हें साधुवाद। एक टीचर और पंत जी ने एक स्मृति चिन्ह दिया, उसके लिए भी धन्यवाद। एक बच्ची सार्थक प्रयास के जरिये बीकॉम कर रही है, उसे ढेर सारा आशीर्वाद।








कुछ चर्चा पंत जी की बागवानी की
बात अर्थ डे की थी तो पहली शाम को पंत जी ने अपनी छत की बागवानी दिखाई। मैं असमंजस में था कि तमाम परेशानियों के बावजूद हरियाली से ऐसा लगाव एक जुनूनी व्यक्ति ही रख सकता है। जमीन नहीं होने का बहाना नहीं चलेगा। कबाड़ को भी सोना बना दिया। टूटी टंकियां हों या फिर सीमेंट से बनायी क्यारियां। छत पर आड़ू, अंगूर, भिंडी, पुदीना और मिर्च देखकर मन गदगद हो गया। इसके अलावा अपराजिता के फूल और अन्य पौधे भी। इस चर्चा में उमेश जी की अर्धांगिनी सुषमा जी का जिक्र कैसे भूल सकता हूं। उन्होंने छत में उग रही चीजों से ही चटनी बनायी जो आलू के गुटकों के साथ बेहद स्वादिष्ट बनी। उनकी बिटिया तानी से भी कुछ बातें हुई जो इन दिनों पुणे गए भाई को बार-बार याद कर रही है। भाई यानी तन्मय भी अपनी राह पकड़ चुका है, उसे खूब सफलता मिले यही कामना है। अब यहां बागवानी के कुछ चित्र-