केवल तिवारी
शनिवार 5 जुलाई को घर में देवशयनी एकादशी की बात चल रही थी। तुलसी के पौधे रोपने की प्रक्रिया। व्रत रखने की बात। एक दिन बाद है पर्व। कुछ शुरुआत, कुछ तैयारी चाहिए। व्रत और अध्यात्म का अटूट रिश्ता। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होती है। ऐसी शुरुआत जो आध्यात्मिक साधना का संकेत देती है। भगवान विष्णु के ब्रह्मांडीय निद्रा में चले जाने की मान्यता। इस मौके पर भक्त उपवास रखते हैं। उपवास का मतलब भी आत्मनिरीक्षण से है। अर्थात प्रार्थना करें 'सर्वे भवंतु सुखिन:।' अनुशासन। आत्मानुशासन। हम क्या हैं? कैसे रहना चाहिए? ऐसा किसलिए हो गये? उसी तरह जैसे शक्तिपीठों में जाकर जय माता की कहते हैं। मन में ध्यान रहे कि हमारी अपनी माता की क्या स्थिति है। जीवित हैं तो सबसे बड़ी शक्तिपीठ आपके घर में है। माता नहीं है तो उनकी स्मृतियां हैं। इस आध्यात्मिक पर्व के दौर में ही मोहर्रम की बात हो रही है। मोहर्रम कुर्बानी की याद दिलाता है। संदेश न्याय, मानवता, धैर्य और अत्याचार के खिलाफ मजबूती से खड़े होने का है। धैर्य, मानवता और परोपकार आपको हर त्योहार, प्रतीक और संदेशों में मिलेगा। आत्मानुशासन और धैर्य के आगे बाकी सब बौने हैं। धैर्य और आत्मसीख भी आपको बहुत कुछ बताती है। किसी भी मौके पर आप कुछ सीख सकते हैँ। यह सीख आपके मित्रों, परिजनों और यहां तक अपने जीवनसाथी या बच्चों से भी मिल सकती है। एक सीख यह जरूरी है कि आपने खुद को संयमित रखना है। यहां 'अपने तो अपने होते हैं' के भाव महत्वपूर्ण होते हैं। शुरुआत अपनों से होनी चाहिए। आप फिर आपसे जुड़े लोग। सीख से आत्मालोकन करें, उसका बखान बहुत न करें। कार्यस्थल हो या फिर कोई और जगह, आपकी सीख आपको बहुत कुछ बताती है। कभी आपको मौन रहने की सीख मिलती है, कभी तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देने की। कभी कुतर्क के आगे चुप हो जाने की और कभी अपने ही कहे शब्दों पर मंथन की। हो सकता है आपके अपने शब्द ही कुछ अटपटे रहे हों। इस चातुर्मास में इस तरह का ही आत्मालोकन करें। खानपान और वाणी में संयम रखें। कुछ सीखें। सीखने की प्रक्रिया को खत्म न करें और कभी दुखी महसूस करें तो याद रखें, सब दिन होत न एक समाना। चातुर्मास यानी संयम। वाणी, कर्म पर। जय हो
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