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Friday, March 29, 2024

एक और बनारस यात्रा, इस बार विस्तारित

 केवल तिवारी

शुरुआत हर हर महादेव से ही करता हूं क्योंकि इस ब्लॉग को लिखते वक्त सुबह साढ़े चार बजे बनारस की पवित्र धरती पर हूं। असल में शनिवार 30 मार्च, 2024 की सुबह पांच बजे की ट्रेन है। हम लोग यानी बड़े भाई साहब भुवन तिवारी जी, भाभी राधा तिवारी जी, पत्नी भावना, छोटा बेटा धवल और मैं यानी केवल तिवारी ट्रेन में अपनी सीट पर बैठ चुके हैं। कुछ किंतु -परंतु के साथ वापसी की यात्रा बेहतरीन यादों को समेटे शुरू होने वाली है। जैसा कि मैं हमेशा कहता रहता हूं कि कोई भी नकारात्मक बात का उल्लेख करना ही नहीं है, सिवा व्यवस्थागत समस्याओं को उठाने के, क्योंकि वैसे मुद्दों को उठाना हमारा परम धर्म है। तो चलिए इस यात्रा की शुरुआत से आपको भी रूबरू करा दूं।

अचानक बने कार्यक्रम के तहत हम लोग मंगलवार, 26 मार्च को लखनऊ पहुंच गए। हमारे परिवार के सबसे छोटे सदस्य हेमांक का अन्न प्रासन था। पूरा दिन समारोहपूर्वक बीता। साथ में यह तैयारी भी कि सुबह सात बजे बनारस इंटरसिटी ट्रेन पकड़नी है। मन में जब कहीं चलने का कार्यक्रम बना रहता है तो अवचेतन मन चलायमान रहता है। ऐसा ही हुआ, अलार्म बजने से पहले ही जग गया, सभी लोगों ने समय पर स्नान ध्यान कर लिया। पड़ोसी बब्बू यानी राजेश शुक्ला ने हमें स्टेशन पहुंचा दिया। सही समय पर हम लोग बनारस पहुंच गए। वहां घूमने में सहायक बने सभी लोगों ने कहा कि अधिकतम कोशिश ई रिक्शा पर जाने की करना क्योंकि उसके जरिए गंतव्य के एकदम करीब तक पहुंच जाओगे, हमने वही किया और भ्रमण बहुत अच्छा रहा।

किशोर का जिक्र अवश्यंभावी, साथ में यात्रा विवरण

भांजे किशोर का जिक्र किए बगैर इस यात्रा का विवरण बेमानी होगा। शीला दीदी का भतीजा। यूपी सरकार में अधिकारी। कुछ दिन पहले जब अपनी इच्छा जताई तो यहां रहने और दर्शन की व्यवस्था किशोर ने करवा दी। यहां आकर आरके सिंह जी के जरिए विश्वनाथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की। अथाह भीड़ के बारे में बातचीत की तो कुछ ने कहा, रोज का यही आलम है, कुछ की राय थी कि यह रिवर्स टूरिज्म है। अयोध्या में भगवान राम मंदिर के लिए निकले श्रद्धालु यहां का कार्यक्रम भी बना रहे हैं। मैंने टूरिज्म शब्द पर आपत्ति जताई, लेकिन अपनी राय देने के बजाय लोगों को सुना। अनेक मुद्दों पर बातचीत हुई। बनारस के संबंध में प्रचलित अनेक बातों को महसूस भी किया। 

बुधवार को यहां पहुंचकर शाम को हमने गंगा आरती के दर्शन किए। कार्यक्रम बनाया कि अगली सुबह भगवान विश्वनाथ का अभिषेक कर सारनाथ जाएंगे। तय कार्यक्रम के मुताबिक ही हम चलते रहे। मन प्रसन्न हुआ। सारनाथ के संबंध में सुना था, इस बार अच्छी तरह देखा, महसूस किया और विस्तारित यात्रा की शुरुआत हुई। पिछली बार में अकेले आया था। वरिष्ठ पत्रकार विजय प्रकाश भाई साहब की बिटिया की शादी में शामिल होने आया था। उन दिनों वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र निर्मल जी का बेटा प्रखर उर्फ शुभम बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का छात्र था। उस दौरान बनारस घूमने का एक रोचक प्रसंग है जिसे मैं अक्सर सुनाता रहता हूं, लेकिन आज कलमबद्ध भी कर देता हूं। असल में विजय प्रकाश भाई साहब के पास पहुंचने के बाद अगला दिन पूरा था। वहां एक सज्जन मिले, उन्होंने पूछा क्या बनारस घूमना चाहेंगे। मैं तुरंत राजी हो गया। फिर मैंने साधन के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि मेरी गाड़ी में पेट्रोल भरवा देना, मैं अधिकतम जगह घुमा दूंगा। मैंने हां तो कर दिया, लेकिन मन ही मन सोचने लगा कि पता नहीं कौन सी कार होगी, कितना तेल भरवाना होगा। तरह तरह की बातों पर विचार करते हुए हम लोग होटल से बाहर निकले। मैंने पूछा गाड़ी कहां खड़ी है, उन सज्जन ने इशारा कर बताया यह है। असल में उन्होंने मोपेड हीरो पुक की ओर इशारा किया। मैंने ज्यादा कुछ नहीं पूछा, बस हेलमेट की जिद की। बनारस घूमने की जोरदार तैयारी के बाद मैंने पेट्रोल पंप पर चलने को कहा, साथ ही पूछ लिया कि कितने का तेल भरवाना है। पास में ही पंप पर ले जाकर वह बोले, दो सौ रुपए का भरवा दीजिए। मैंने पंप वाले से कहा कि टंकी फुल कर दो। शायद चार सौ रुपए में टंकी फुल हो गई। सचमुच उन साहब ने मुझे बहुत जगह घुमा दिया।

खैर इस बार की विस्तारित यात्रा में मिर्जापुर में गंगा दर्शन, नाव यात्रा, माता विंध्याचल मंदिर दर्शन, अष्टभुजा मंदिर यात्रा भी शामिल रहा। थोड़ा सा बनारस की मार्केट, कुछ राजनीतिक बातें वगैरह वगैरह भी यात्रा में शामिल रहा। कुल मिलाकर सब अच्छा रहा। हमारी इस यात्रा को सुखद बनाने में शामिल हर व्यक्ति को दिल से धन्यवाद। विशेष तौर पर किशोर पंत का। एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि धार्मिक स्थलों के संबंध में ट्रस्ट बनाकर उसका विकास किया जाना चाहिए क्योंकि धार्मिक स्थलों पर ठगी बहुत होती है। पता नहीं उन्हें ईश्वर से डर नहीं लगता या वे इसे नियति मान लेते हैं या फिर दिनभर की करतूतों के बाद अकेले में भगवान से क्षमा मांग लेते हैं। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन श्रद्धालुओं को नमन जो ईश्वर भक्ति में सच में लीन हैं। विंध्याचल मंदिर में पंक्तिबद्ध रहने के दौरान इसका अहसास हुआ। यात्रा अच्छी रही, विस्तारित रही, यादगार रही‌ हर हर महादेव। ब्लॉग लिखते लिखते लखनऊ वापसी का आधा सफर हो चुका है। अब धवल स्कूल के नये सेशन की शुरुआत, एक बार फिर ईजा की याद और अपने पुराने दिनों की याद और बच्चों के सामने उनके जिक्र का समय। सोमवार से रुटीन जद्दोजहद चालू। इस यात्रा की कुछ तस्वीरें साझा कर रहा हूं। जय हो। 

बुआ की गोद में हेमांक











Saturday, March 9, 2024

सैर-सपाटा, परिवार और यादगार लम्हे

 केवल तिवारी

समेट लो इन लम्हों को कि यादों का सजा रहे ताज
घर-परिवार का वक्त बीते बातों में, कल हो या आज
तभी तो कभी बनती है योजना, कभी होतीं बातें पुरानी
सैर-सपाटा, पूजन-अर्चन और सुनी-अनसुनी कहानी
जीवन के इस सफर में कुछ मोड़ यूं आएंगे
चलते, रुकते और थकते, हम गीत अपने गाएंगे।


इन दिनों कुछ लिखता हूं तो शुरुआत दो-चार काव्यात्मक पंक्तियों से हो जाती है। क्योंकि गाना यानी गुनगुनाना और रोना स्वाभाविक मानवीय गुण है और भावुक पलों के दौरान ये गुण सर्वोपरि स्थापित हो जाते हैं। ऐसा ही हुआ पिछले दिनों जब लखनऊ से भाई साहब, नोएडा से भाभीजी, भतीजा, भतीजी, बहू और पोता चंडीगढ़ पहुंचे। जिस दिन से कार्यक्रम बना, छोटे बेटे धवल के सवालों से रू-ब-रू होता रहा। कब आएंगे?, हेमांक क्या बोलने लगा है?, ताऊजी-ताईजी को कहां ले जाओगे? ऐसे ही अनेक बाल सुलभ सवाल। भाई साहब बीसी तिवारी को लखनऊ से सीधे चंडीगढ़ आना था और भतीजे दीपू, उसकी पत्नी जया और बेटे हेमांक को अमरोहा से पहले नोएडा भतीजी कन्नू यानी भावना और भाभीजी यानी राधा तिवारी के पास नोएडा आना था फिर यहां। कार्यक्रम बनने के बाद भी बीच-बीच में किसान आंदोलन के कारण किंतु-परंतु लगते रहे। मन कर रहा था कि ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी ले लूं, लेकिन यहां संभव नहीं था। हालांकि बहुत संकोचवश मैंने अपनी न्यूज एडिटर मीनाक्षी मैडम से शनिवार 2 मार्च की छुट्टी के लिए कहा तो उन्होंने तुरंत हां कही। मैं संकोच इसलिए कर रहा था कि दो दिन बाद ही मंगलवार को मैंने बड़े बेटे कार्तिक के साथ दिल्ली जाना था। शनिवार की छुट्टी मिली तो कार्यक्रम बना लिया। इधर, इंद्रदेव भी अपनी रवानगी में दिख रहे थे। शुक्रवार 2 मार्च की दोपहर बाद भाई साहब पहुंचे, देर रात नोएडा से बाकी सब परिजन। तय हुआ कि कल सुबह पहले रॉक गार्डन फिर सुखना लेक चला जाये। रॉक गार्डन का जिक्र होते ही सवाल उठा कि भाभी जी उतना चल नहीं पाएंगी। बीच-बीच में भावना द्वय (मेरी पत्नी का नाम भी भावना है और भतीजी का भी) इस बात की ताकीद करते कि ये मत बोलो कि भाभीजी चल नहीं पाएंगी, इससे वह घबरा जाएंगी। खैर हुआ भी यही। बारिश की बूंदाबांदी के बीच भाभीजी इस तरह रॉक गार्डन के सफर पर रहीं कि युवाओं को भी मात दे दें। मौसम बिगड़ता देख हम लोग वहीं से वापस आ गए। बाकी जगह जाने का कार्यक्रम मुल्तवी कर दिया। शाम को चंडीगढ़ प्रेस क्लब गए, कुछ बातचीत हुई और लौट आए। रविवार को भतीजी सुबह ही दिल्ली के लिए रवाना हो गयी। हम लोगों ने साईं मंदिर में दर्शन किए फिर जबदरस्त बारिश हो गयी। इस कारण कहीं जाने का कार्यक्रम बन नहीं पाया। सोमवर को भाई साहब लोगों को वाघा बॉर्डर के लिए भेज दिया। सुबह पांच बजे ही उनकी रवानगी हो गयी। बीच में एक बड़ा व्यवधान आया, लेकिन उसका जिक्र नहीं करूंगा। कहते हैं कि नकारात्मक बातों को ज्यादा कहना नहीं चाहिए। बस ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए और ईश्वर से हमेशा सकारात्मकता की प्रार्थना करनी चाहिए। यही किया। सब ठीक रहा। मंगलवार रात भाई साहब लोग आ गए। मैं दिल्ली से लौटा करीब 9 बजे। कुछ देर बातचीत हुई, फिर सो गए। बुधवार आराम करने के लिए रखा गया। धूप में बैठकर खूब बातें हुईं। कुछ बचपन की। कुछ ईजा द्वारा बतायी गयीं। कुछ कन्नू-दीपू के बचपन की। इसी दौरान कार्यक्रम बना कि बृहस्पतिवार सुबह मनसा देवी मंदिर, पंचकूला चला जाये। सुबह सभी लोग स्नान कर, बिना कुछ खाये मनसा देवी माता के दर्शन को गए। यहां भी मन में थोड़ी सी चिंता कि क्या भाभी जी चल पाएंगी, फिर हौसला बुलंद था। बहुत सुंदर तरीके से माता के दर्शन हुए, वहीं भंडारा में भोजन हुआ। दोपहर तक हम लोग फ्री हो गए। फिर सुखना लेक सभी को पहुंचाकर मैं एक जरूरी काम से आ गया। उस जरूरी काम का भी यहां जिक्र नहीं कर रहा हूं। शाम को सारा परिवार ताजा-ताजा चंडीगढ़ में शिफ्ट हुए मेरे बच्चों के छोटे मामा के परिवार के यहां गया। वहीं भोजन कर सब लोग रात 11 बजे तक आए। मैं भी ऑफिस से पहुंच गया। कुछ देर गपशप चली और सो गए। शुक्रवार को महाशिवरात्रि थी, इसी दिन भाई साहब को लौटना भी था। हालांकि धवल का आग्रह था कि बर्थ-डे यानी 10 मार्च तक रुक जाएं, लेकिन रिजर्वेशन हो चुका था। भतीजा उसे लेकर सुबह मार्केट गया और उसे ढेर सारे कपड़े दिला लाया। कुछ लोगों का व्रत था, कुछ लोगों ने भोजन किया और भाई साहब, भाभीजी, भतीजा, बहू और बच्चा रवाना हो गये, अमरोहा के लिए। पता ही नहीं चला कि एक हफ्ता कब निकल गया। कई सारे लोकेशन पर जाना अभी रह गया। तय हुआ कि अगली बार पहले से कार्यक्रम बनाकर आगे बढ़ेंगे, हालांकि हम सब कहां कुछ करते हैं, सब भगवान के आशीर्वाद से होता है। इसी माह एक और कार्यक्रम बना है, उसका खुलासा समय आने पर करूंगा। मन को समझाया कि बिछड़ना इसलिए जरूरी है कि फिर मिल सकें। यहां पर यह जिक्र करना जरूरी है कि इस पूरे सप्ताह हेमांक हम सबका हीरो बना रहा। उसकी हंसी, उसका रोना, उसकी अन्य हरकतें हम सबको मोहती रहीं। ईश्वर उसे स्वस्थ रखे। परिवार का यह संक्षिप्त मिलन बेहद यादगार रहा। सफर का यह दौर यूं ही चलता रहे। अंत में इंटरनेट से उठाया मशहूर शायर का एक शेर प्रस्तुत है-
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
साथ ही इस मिलन और सफर कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें और वीडियो आपके लिए-















Monday, March 4, 2024

भावुक भावना और रोशन भास्कर

 केवल तिवारी 

ना जाने इन पलों को क्या कहते हैं

मिलने की खुशी और बिछड़ने का गम है

हसरतों की दुनिया और उम्मीदों का जहां है

प्रसन्न होइए कि साथ हो गये, अरे हम बिछड़े कहां है।

भावना को जैकेट दिखाते भास्कर 

बृहस्पतिवार 29 फरवरी, 2024 की शाम उपरोक्त पंक्तियां अपने-आप ही निकल पड़ीं। दिमाग में सुबह का दृश्य चल रहा था। सुबह भास्कर जोशी यानी राजू अपनी बहन भावना को एक-दो जैकेट दे रहा था कि बाजार जाकर उसे रिपेयर करवा लाना। फिर कुछ पैकिंग वैकिंग की बात हुई। उसके बाद राजू आफिस चला गया। मैं और भावना गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए कुछ बातें करने लगे। भावना बोलते बोलते कुछ भावुक सी हो गई, बोली तीन चार दिनों से मन में यही चल रहा है कि राजू के साथ दो-तीन महीने कब निकल गये पता ही नहीं चला। बोलते बोलते उसकी आंखें नम हो गई। स्वभाव से मैं भी भावुक हूं इसलिए भावना को भावना में बहने दिया। असल में भाई-बहन का प्यार होता ही अनूठा है। फिर ये दोनों तो जुड़वां हैं। इसलिए मित्र जैसे भी हैं। भावना राजू की तमाम सकारात्मक बातों को बताने लगी। मैंने भी इस सकारात्मकता को महसूस किया है और बहुत कुछ सीखने की कोशिश की है। मेरा छोटा बेटा धवल यानी राजू का भानजा तो अक्सर यही कहता रहता है कि मामा कुछ ज्ञान की बात हो जाये। फिर गिनाने भी लगता है कि इतनी बातें सीख लीं। वैसे धवल और उसका हमउम्र फैमिली फ्रेंड भव्य जब बातें करते हैं तो भावना और भास्कर को गुस्सैल बताते हैं और मजाक में कहते हैं कि हिरोशिमा में जब बम गिराए गए थे तो उसके दो छर्रे उत्तराखंड के ताड़ीखेत में भी गिर गये थे। असल में इन दोनों का जन्मदिन 6 अगस्त का है। जन्मस्थान उत्तराखंड का ताड़ीखेत।

मामा से ज्ञान प्राप्त करते धवल

राजू जबसे चंडीगढ़ आया तो नया विचार आया कि धवल ने तो राजू की छवि को ही धो दिया है। असल में अक्सर पारिवारिक चर्चा में राजू यानी भास्कर को धीर गंभीर और चुपचाप रहने वाला बताया जाता है। असल में ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह बहुत केयरिंग नेचर का है। कभी अपने बेटे भव्य और पत्नी पिंकी के लिए कैब बुक करता तो पूरे रूट पर नजर रखता। फरीदाबाद घर में कुछ मंगाना होता तो यहीं से व्यवस्था कर देता। भावना ने बताया कि रोज शाम घर आते वक्त यह जरूर पूछता कि क्या लाना है। मेरे साथ तो अच्छी मित्रता है और हमारे बीच अपनी सभी बातों की शेयरिंग चलती रहती हैं। मुझे तो अनेक बार राजू जैसा बनने की सलाह भी मिलती है क्योंकि मैं बहुत वाचाल हूं, बेचैन हूं। हालांकि बेचैनी पर काफी हद तक तबसे काबू पा लिया जबसे राजू ने मंत्र दिया था कि कभी भी किसी मुद्दे पर परेशान हो तो 24 घंटे इंतजार करो। भगवान सब ठीक करता है। परिस्थितियां बदलती हैं। ऐसा नहीं कि राजू कोई अलहदा बात बताता है, बस उसका अंदाज ए बयां जानदार होता है। वह पारिवारिक कलह को दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी बताता है। इस मामले में तो मैं और मेरी पत्नी भावना हमेशा राजू के ससुराल यानी पिंकी के मायके वालों की दाद देते हैं। उनकी रिश्तेदारी में जबरदस्त बांडिंग है। सगा परिवार तो एक है ही, दूर दूर तक के रिश्तों में भी गजब की गर्माहट है। मेरा विचार यही है कि परिवार प्रथम। सबसे पहले अपनों से बनाकर रखिए, इगो को आड़े मत आने दीजिए फिर देखिए सारी दुनिया आपकी होती है। खैर राजू ट्रांसफर होकर बड़े पद पर चंडीगढ़ आ गया है। भावुक भावना को यही समझाया कि मायके से दूरी कम हो गई। बड़े भाई साहब नंदाबल्लभ जी और शेखरदा बड़ी बहन गुड़िया दीदी के करीब काठगोदाम में हैं। भास्कर यहां आ गये। भव्य और धवल का भी साथ हो गया। भावुक क्यों होना। प्रसन्न होओ। इस भावुकता पर एक ब्लाग बन गया। अंत में दो शेर प्रस्तुत कर रहा हूं। महान लेखकों के। ईश्वर सबको स्वस्थ रखे।


बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है 

वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है,।


कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें

उदास होने का कोई सबब नहीं होता।