indiantopbligs.com

top hindi blogs

Monday, February 19, 2024

फैशन में मत पड़िये, कोचिंग से पहले बच्चे का रुख भी जानिये

साभार दैनिक ट्रिब्यून online संस्करण

dainiktribuneonline.com

दैनिक ट्रिब्यून online edition में छपा लेख 


केवल तिवारी

पहला मामला : मनोज परेशान है कि तीसरी कक्षा से ही ट्यूशन लगाने के बावजूद उसका बेटा अनंत पढ़ाई में औसत ही क्यों है?

दूसरा मामला : संगीता अपनी बेटी सृष्टि को नौवीं से बड़े कोचिंग सेंटर में भेजना चाहती है ताकि अच्छी पढ़ाई के बाद वह डॉक्टर बनाने का मां-बाप का सपना पूरा कर सके, लेकिन सृष्टि को कोचिंग जाना कतई गवारा नहीं।

दोनों मामलों की कहानी लगभग एक जैसी है। अनंत कोचिंग जा तो रहा है, लेकिन माता-पिता की मर्जी से, इधर सृष्टि पढ़ने में तो ठीक है, लेकिन वह अपने ही अंदाज में पढ़ना चाहती है। जानकार कहते हैं कि सामान्यत: तीन कारणों से लोग अपने बच्चों को बहुत छोटी क्लास से ही ट्यूशन लगा देते हैं। पहला, मां-बाप दोनों नौकरी करते हैं और उनके पास अपने बच्चों को पढ़ा पाने का समय ही नहीं है। दूसरा, अनेक लोगों को लगता है कि बचपन से ही ट्यूशन पढ़ाने से उनका बच्चा आगे चलकर बेहतरीन करेगा या करेगी और सफलता मिलेगी। तीसरा, मां-बाप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं या फिर आलसी प्रवृत्ति के हैं। या तो उन्हें पढ़ाई-लिखाई की कोई समझ नहीं इसलिए ट्यूशन लगाते हैं कि वहां होमवर्क आदि हो जाए। या फिर आलसी हैं, कौन चक्कर में पड़े, इसलिए ट्यूशन ही भेज दो। इसके साथ ही इन दो मामलों का यह भी एक संदेश है कि लोग फैशन के चक्कर में पड़कर ट्यूशन या कोचिंग में भेजते हैं। 

अगर जानकार या शिक्षाविदों की ही मानें कि बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार काम करने दीजिए तो इसमें भी सौ प्रतिशत सत्यता नहीं। रुचि तो यह भी हो सकती है बच्चा पढ़ना ही नहीं चाहता हो। इसलिए सख्ती के साथ पढ़ाई की तरफ उन्मुख करना पड़ेगा। अनुशासन सिखाना पड़ेगा, लेकिन बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना है इसलिए महंगी कोचिंग केंद्रों में भेजा जाए, यह कहना भी उतना ही गलत है। कोचिंग केंद्रों से आएदिन आ रही भयावह खबरों के चलते ही पिछले दिनों सरकार ने नियमावली जारी की थी। सरकारी दिशानिर्देश के मुताबिक कोचिंग संस्थान 16 साल से कम उम्र के बच्चों का दाखिला नहीं कर सकेंगे। न ही अच्छे नंबर या रैंक दिलाने की गारंटी जैसे वादे कर पाएंगे। इस फैसले के पीछे सरकार ने मंशा थी कि गली-मोहल्लों में बिना मानकों के खुल रहे कोचिंग केंद्रों पर रोक लगे। बड़े-बड़े सपने दिखाकर ये कोचिंग सेंटर अभिभावकों का मानसिक और आर्थिक शोषण कर रहे हैं। गला-काट प्रतिस्पर्धा को खत्म करना भी इसकी एक मंशा है। 

---------------------

जब जरूरत हो महसूस तो जरूर करें पहल

कोचिंग भेजने या नहीं भेजने को पूर्णत: सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता। कुछ बच्चे पढ़ने में बेहतरीन होते हैं, लेकिन उनको सपोर्ट की जरूरत होती है। साथ ही बदले पैटर्न के हिसाब से भी उन्हें कुछ ज्ञान लेना होता है। ऐसे बच्चों को कोचिंग की जरूरत होती है। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनके लिए रुटीन की पढ़ाई ही भारी होती है साथ ही वे इंजीनियरिंग, डॉक्टरी के बजाय दूसरे फील्ड में जाना चाहते हैं, ऐसे बच्चों के साथ जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट काउंसिलिंग से लेकर पैरेंट्स टीचर मीटिंग में भी अपडेट देते रहते हैं। 

------------

बच्चे से फीडबैक लेते रहें

अगर आपने बच्चे को कोचिंग सेंटर में दाखिल करवा ही दिया है तो समय-समय पर उससे फीडबैक लेते रहें। बच्चे के साथ व्यवहार ऐसा रखें कि वह आपसे कुछ छिपाए नहीं। कई बार बच्चों को कोचिंग की पढ़ाई समझ नहीं आती, लेकिन वह दबाव या संकोच में ‘सब ठीक चल रहा है’ का राग अलापता रहता है, जिसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि बच्चे पर उम्मीदों का पहाड़ मत लादिए। उसे पढ़ने में मदद करें, खानपान का ध्यान दें, सिटिंग अवर्स बढ़ाने के लिए उसे मोटिवेट करें, लेकिन उम्मीदों का पहाड़ न लादें।

Tuesday, February 13, 2024

उत्सव धर्मिता का संदेश देता ऋतुराज का आगमन

 साभार दैनिक ट्रिब्यून online edition

www.dainiktribuneonline.com



केवल तिवारी

उत्सवधर्मिता। प्रसन्नता। पतझड़। ऋतुराज। नव्यता। जीवनचक्र। समय का बदलाव। आशा और निराशा। हमें इंतजार रहता है खुशियों के आने का। खुशियां मन में प्रसन्नता लाती है। प्रसन्नता आने की। प्रसन्नता नवीनता की। यह नवीनता तभी आएगी या ऊर्जावान मन और तन तभी बना रहेगा जब हमारे जीवन में उत्सवधर्मिता बनेगी। यह उत्सवधर्मिता ही हमें प्रसन्न रखेगी। प्रसन्न रहने के लिए मनसा वाचा, कर्मणा शुद्ध रहने को कहा गया। यह शुद्धता भी प्रसन्नता का ही दूसरा रूप है। चारों ओर नजर दौड़ाइये, ऐसा लगेगा मानो आपको प्रसन्न रहने के लिए कहा जा रहा है। लग रहा है कि अगर उदासी है तो परेशान क्यों? खुशियां भी आएंगी। ऋतुराज का आगमन होने वाला है। पहले भी ऐसी ही ऋतु आई, फिर आगमन हो रहा है। कुछ समय बाद भीषण गर्मी आएगी जो बताएगी कि फिर ऋतुराज आएगा। बदलाव ही नव्यता का संदेश है। युग परिवर्तन हुए। मौसम चक्र बदलता है। रात के बाद दिन आता है। आज के बाद कल आता है।

चलिए जरा प्रकृति के संग चलें जो हमें नव्यता का संदेश देते हैं। शहरों में रहने वाले हैं तो इन दिनों आसपास के ग्रामीण इलाकों की ओर कुछ समय के लिए निकल पड़िये। ग्रामीण इलाकों में ही अगर रहते हों तो चारों ओर नजर घुमाइये। दूर-दूर तक दिखेगी हरियाली और पीला सौंदर्य। सरसों के पीले फूल, सूरजमुखी के फूल और कहीं-कहीं गेंदे के फूल। बड़े-बड़े पेड़ों से खत्म होते पत्ते। ये क्या माजरा है। कहीं हरियाली की इतनी रौनक है, कहीं पेड़ों से पत्ते झर रहे हैं। इनके सथ ही पीले फूल किसी शगुन कार्यक्रम की तरह लगते हैं और कहीं-कहीं पेड़ ठूंठ से दिखने लगे हैं। ये पेड़ों से झड़ते पत्ते समझा रहे हैं कि मौसम चक्र बदलने वाला है। यानी मौसम का संधिकाल आने वाला है। पुननिर्माण के लिए तैयार हो जाइये। शरीर पर ध्यान दीजिए। यही ध्यान आने वाले समय के लिए शरीर को स्फूर्तिदायक बनाएगा। नव कोपलों की तरह। पीले सौंदर्य का भी खास महत्व है। दूर-दूर तक दिखने वाला हल्दी रंग आपके मन को स्फूर्तिदायक बनाता है। यह स्फूर्ति, यह उमंग बनी रहेगी, गर कुदरत के इन नजारों को निहारेंगे और इनके संदेशों को समझेंगे। असल में अब ऋतुराज का आगमन होगा। ऋतुराज का मतलब है चारों ओर आनंदित वातावरण। ‘सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंदन में आज आंगन हरा-भरा है।’ यह आनंदित वातावरण एक संदेश देता है। भीषण सर्दी के रूप में जीवन के कठिन दौर। इस कठिन दौर के बाद ऊर्जामयी वातावरण। नव पल्लव, नव पुष्प। उसके बाद भी कठिनाई आएगी, एक नये संदेश के लिए। यही तो जीवन चक्र है। हर बार नवीनता। इस नवीनता को बरकरार रखिए। अपने कर्मों में भी और अपने विचारों में भी। 

ठूंठ होते पेड़ भी कुछ कहते हैं

नये मौसम से पहले ठूंठ की मानिंद लगने वाले पेड़ भी तो हमें मानो यही सिखा रहे हैं कि नहीं मरने से पहले जीना सीख लें। सब कुछ न्योछावर कर देते हैं पेड़ दूसरों के लिए। ‘वृक्ष कबहुं नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर’ के संदेश की तरह। पत्ते बिखर रहे हैं। ये पत्ते नवसृष्टि का संदेश हैं। पेड़ों पर फिर हरियाली आएगी। पेड़ नयी ताकत के साथ बड़े होंगे। इनका संदेश मानो यही है कि बहार आएगी, लेकिन उसके पहले मुसीबतों से नहीं डरना है।

---------

पीले फूल, शगुन और सुकून

दूर-दूर तक फैले पीले फूल हम सबको जहां सुकून देते हैं, वहीं इसके फायदे ही फायदे हैं। हरियाली के अलग फायदे हैं। ये हरियाली पशु-पक्षियों से लेकर मानव तक सबके लिए अलग-अलग तरीके से लाभदायक है। पशुओं के लिए चारा है। पंछियों के चुगने के लिए इन खेतों में बहुत कुछ है। घोसलों के लिए तैयार होते पेड़ हैं। मनुष्यों के लिए साग-सब्जी के अलावा अब गेहूं की बालियां भी निकलने वाली हैं। अब बात करें पीले सौंदर्य की। सरसों का साग तो है ही, लेकिन अब इनमें फूल और फल आने शुरू हुए हैं। इसके फूल में कई चमत्कारी गुण हैं। जानकार कहते हैं कि सरसों के फूल न सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि कई समस्याओं का समाधान भी हैं। इनमें एंटीइफ्लेमेटी, एंटी सेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते है। साथ ही कई मिनरल्स भी इन पीले रंग से फूलों में पाए जाते हैं। इनसे त्वचा भी निखरती है। फल लगने के बाद सरसों के तेल के गुणों को तो हम सब जानते हैं। तो आइये कुदरत के इन नजारों को निहारें और इन नजारों का आनंद लेते हुए इनके संदेशों को भी समझें।

Friday, February 9, 2024

स्वाति की शादी... सहज और सादगीपूर्ण भव्य आयोजन

 केवल तिवारी 

सात फरवरी की सुबह करीब आठ बजे स्वाति, शुभम, भाभी जी और भाई साहब से विदा लेने लगा तो अपनी सबसे छोटी दीदी के वैवाहिक कार्यक्रम का दृश्य जेहन में घूम गया। वर्ष 1991 में लखनऊ में हुए उस वैवाहिक कार्यक्रम में कन्यादान के समय परंपरा के अनुसार कुछ महिलाएं एक गीत गा रही थीं, जिसके बोल थे, 'वर नारायण बन्नी को अर्पण, अब यह बन्नी तुम्हारी है।' आज स्वाति की शादी में जिस तरह शुभम भागादौड़ी कर रहा था, ठीक उसी तरह मैं भी उस वक्त दौड़-भाग कर रहा था और उक्त गीत सुनकर मेरी रुलाई छूट गई। कुछ महिलाओं की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने गाना बंद कर दिया। सुखद संयोग है कि दो माह पूर्व ही उसी दीदी के बड़े बेटे यानी मेरे प्रिय भानजे सौरभ का विवाह हुआ। दो माह पूर्व हुए इस विवाह में बेशक हम लड़के वाले थे, लेकिन देहरादून में सांची (दीदी की बहू) की विदाई के वक्त मैं वहां भी भावुक हो गया था। आज इंदौर में स्वाति बिटिया की शादी में तो हम लड़की वालों के मन में भावनाएं फूटनी ही थीं। मंगलवार, 6 फरवरी की रात जब स्वाति को जयमाल के लिए लाया जा रहा था तो निर्मल भाई साहब ने जिस तरह स्वाति का हाथ पकड़ा था, हम सब भावुक हो गए। सुधा भाभी जी से भी इस बात का जिक्र किया तो उनका गला रुंध गया। भाभी तो अपने नाम के मुताबिक ही हैं। उनके नाम में व जोड़ दें तो .... सचमुच वह पृथ्वीस्वरूपा ही हैं। वसुधा। धीर गंभीर। सबकी चिंता करने वालीं। दैनिक ट्रिब्यून में हमारे सहायक संपादक अरुण नैथानी जी अनेक ऐसे भावुक पलों को देख रहे थे। साथ में अलका भाभी जी और मैं निर्मल जी परिवार से जुड़े अनेक किस्सों को साझा कर रहे थे। बस यही किस्से, यही बातें। निर्मल जी हमारे कोई रिश्तेदार नहीं, लेकिन जीवन सफर में कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से इतर अनकहे से, अबूझ से, पता नहीं कैसे होते हैं कि खून के रिश्तों के आसपास ही घूमते हुए से महसूस होते हैं। ऐसा ही है निर्मल परिवार। सच में निर्मल। उनकी सीख से कभी-कभी खीझ भी जाती हो तो क्या? होती रहे, लेकिन क्या करें ऐसे शख्स का जिसके मन में कोई लाग लपेट है ही नहीं। सही को सही और गलत को ग़लत। हो गया होगा जमाना उत्तर आधुनिक। निर्मल जी की संगत का असर और कुछ हम लोगों के संस्कार। सहायक संपादक अरुण नैथानी जी पूरे सफर मेरा खयाल छोटे भाई की तरह रख रहे थे। हमारी बातचीत चली, सवाल-निर्मल जी ने कमाया क्या? जवाब -बच्चे कमाए, मित्र कमाये। बच्चे भी कमाल। निर्मल सुधा संस्कारों से लबालब। तभी तो हम कुछ लोग जैसे ही अमर विलास होटल में मिले तो सब एक साथ बोले, ‘स्वाति ने इंदौर घुमा दिया।‘ जी हां इंदौर। ईश्वर के आशीर्वाद से बेहतरीन घर -वर मिला। स्वाति की शादी इंदौर में होना निश्चित हुआ। चंडीगढ़ से मै, अरुण नैथानी जी, अलका भाभी 6 फरवरी को पहुंचे। शुभम यानी प्रखर श्रीवास्तव ने हमें बताया कि हमने होटल अमर विलास पहुंचना है। वहां विज्ञान जी मिले, लोकमित्र जी मिले और लखनऊ से आए संजय श्रीवास्तव जी मिले। आइए उत्सव सरीखी स्वाति बिटिया के विवाह उत्सव की एक छोटी झलक पर नजर डालें। अरे इतना भावुक भी नहीं होना है। जो गीत संगीत बने थे वे उस दौर के थे, जब किसी की कुशल ही चिट्ठी के मार्फत महीने 15 दिन में मिलती थी। इस उत्सव में ये सब बातें भी हुईं। आइए इस सफर में मेरे हमसफ़र बनिए

स्वाति बिटिया और दामाद अंशुल जी 


अंबाला से जब शुरू हुआ सफर

चंडीगढ़ से इंदौर के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं थी, इसलिए हमने इंदौर जाने के लिए अम्बाला से मालवा एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा लिया था। जाने का कनफर्म था और आने का वेटिंग टिकट। उम्मीद थी कि कनफर्म हो ही जाएगा। टिकट होने के बाद अनेक लोगों ने मालवा एक्सप्रेस के बारे में कहा कि यह बहुत लेट हो जाती है, कुछ बोले, नहीं अब ऐसा नहीं। खैर जाते वक्त एकदम राइट टाइम यानी शाम 5:00 बजे ट्रेन अंबाला स्टेशन पर पहुंच गयी। भयानक भीड़। रिजर्वेशन वालों को भी ट्रेन में चढ़ने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। हम नैथानी जी, भाभीजी और मैंने अपनी सीट ले ली। तभी पता चला कि एक सज्जन तो चढ़ गए, लेकिन उनके चाचा-चाची अंबाला स्टेशन पर ही रह गये। उन सब लोगों को उज्जैन में महाकाल दर्शन के लिए जाना था। आखिरकार वह सज्जन कुरुक्षेत्र में उतर गए और बोले- महाकाल का बुलावा अभी नहीं आया होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि कई जरूरी काम छोड़कर उन्होंने यह रिजर्वेशन करवाया था। मुझे उनकी सकारात्मकता अच्छी लगी। सफर को शुरू में ही खत्म करने का अफसोस तो था, लेकिन चाचा-चाची छूट गए तो उसे भी भगवान का हुक्म मानकर वह उतर गए और बहुत छाती नहीं पीटी।

होटल में पत्रकार -साहित्यकार मिलन

इंदौर पहुंचकर हम लोग सीधे अमर विलास होटल गये। शुभम ने बताया कि वहां विज्ञान अंकल हैं। हम लोगों ने कमरे लिए और फिर मैंने विज्ञान जी को फोन किया। इसी दौरान संजय श्रीवास्तव जी मिल गए और उनसे वसुंधरा प्रवास की कुछ पुरानी बातों में व्यस्त हो गया। फिर विज्ञान जी के कमरे में लोकमित्र जी से मुलाकात हुई। हम लोगों ने चाय पी और जितना संभव हो सका अखबारी दुनिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया आदि पर चर्चा हुई। कुछ विज्ञान जी की रचनाधर्मिता पर भी।




 थोड़ी सी हंसी ठिठोली

होटल अमर विलास में कुछ देर साथ रहकर मैं, नैथनी जी एवं भाभी जी होटल श्रीमाया पहुंच गए जहां स्वाति के सभी वैवाहिक कार्यक्रम होने थे। निर्मल जी जाहिर है, बहुत व्यस्त थे। फोन भी सुनने हैं। शाम की व्यवस्था का जायजा भी लेना है और हम सबसे बात भी करनी है। अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद वह हमें दूसरे फ्लोर पर लेकर गए और हमारे साथ एक-एक कप कॉफी पी। वहां नैथानी जी ने कुछ पुरानी बातें याद कीं मजाकिया अंदाज में। निर्मल जी ने भी उसी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया। इससे पहले स्वाति और भाभी जी से हम लोग मिले। मैंने भाभीजी से कहा कि आपके चेहरे पर तनाव झलक रहा है। कूल रहिए और आपको भी खूब सजना-संवरना है। स्वाति बोली, अंकल ठीक कह रहे हैं आज मम्मी को मेरी बहन की तरह दिखना चाहिए। कुछ मुस्कुराहट के साथ बातें खत्म हुईं, लेकिन भाभीजी और भाई साहब की व्यस्तता और भावुकता का दिल की गहराइयों से अंदाजा लगाया ही जा सकता था। इसी दौरान नैथानी जी और निर्मल जी में फिर से कुछ पुरानी बातें चलीं। ये लोग तो बहुत पुराने जानकार हैं। स्वाति जब पैदा हुई तब ये लोग मेरठ में थे।



हेमंत पाल जी का अपनापन

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत पाल जी की चर्चा अक्सर पहले होती थी। उनको पढ़ा भी। इंदौर जाकर पता चला कि वह तो मेरे पुराने अखबार नईदुनिया में लंबे समय तक पत्रकारिता करते रहे। उनसे और उनके परिवार से मुलाकात हुई। हेमंत जी का बेहद अपनापन मिला जो दिल को भा गया। शादी समारोह में तो उनके साथ अनेक बातें हुईं। अगली सुबह भी वह होटल में मिलने आ गये। उनकी सह सहजता और अपनापन दिन को भा गया। उम्मीद है कि उनसे मुलाकातें होती रहेंगी।

 जीजा जी, मामाजी भाइयों की बातें वातें

शादी का आयोजन है तो जाहिर है अनेक लोग मिले और बातें हुईं। मैंने पहले एक दो लोगों से बात की। स्वाति की मौसी हों या मौसा जी। भाभी जी हों या फिर मामाजी एवं जीजाजी सभी से अलग-अलग तों हुईं। कुछ राजनीतिक विषयों पर भी चर्चा हुई। वारंगल से आए मौसा जी ने बहुत कुछ जानकारी दी। कुछ पल की ही सही, लेकिन बातें-मुलाकातें दीर्घकालिक यादगार बन गयीं।

 सादगी पूर्ण भव्य आयोजन, चौकस निर्मल जी

विवाह का यह कार्यक्रम भव्य, लेकिन सादगीपूर्ण रहा। बेहतरीन सुख-सुविधाओं से लैस होटल में शानदार आयोजन। उतने ही अच्छे सभी लोग। कोई बनावटीपन नहीं। सहज। विवाह कार्यक्रम में कोई डीजे का शोर नहीं, मध्यम आवाज में चलता संगीत। लोग हंसते-मुस्कुराते बातें करते, वैवाहिक कार्यक्रम को देखते। जयमाल के दौरान फोटोग्राफी का छोटा सा सेशन चला। जितना सादगीभरा पूरा आयोजन रहा, उतने ही चौकस निर्मल जी रहे। मन में उनकी कई बातें आ-जा रही होंगी। भावुक क्षण है उनके लिए। इसी के साथ तमाम भावनाओं, व्यवस्तताओं के साथ ही वह बहुत चौकस दिख रहे थे। कहां, क्या चाहिए, इसका पूरा ध्यान। आने-जाने वालों के साथ भी कुछ पल बातचीत। सबसे पूछना कि कुछ खाया या नहीं। फिर ध्यान कुर्सियां ठीक से लगी हैं। उधर, पंडितजी का सारा सामान व्यवस्थित है या नहीं। उनके व्यवस्थित रहने के कई किस्से हमने साझा भी किए।

इंदौर स्टेशन 


 और फिर शुरू हो गई जद्दोजहद अगली मुलाकात तक

विवाह कार्यक्रम के बहुत सुंदर तरीके से संपन्न होने के बाद सात फरवरी को पौने ग्यारह बजे हम लोग इंदौर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए। ट्रेन के इंतजार तक शादी समारोह की ही चर्चा चलती रही। साथ ही ट्रेन के लंबे सफर का भी हमें भान था। इस बार दो कोचों में सीटें मिलीं। मैं दूसरे कोच में बैठ गया। पूरे सफर में खचाखच भरी ट्रेन के बीच नैथानी जी बीच-बीच में हाल-चाल जानने आ जाते। खाने को भी कभी कुछ और कभी कुछ पकड़ा जाते। मेरी सीट के पास ही पांच-छह महिलाएं बैठी थीं, ज्यादातर उम्रदराज। उनमें से एक-दो तो मुझे अपनी मां जैसी लगने लगीं। उन लोगों ने बीच-बीच में भजन, कीर्तन और शबद का ऐसा सिलसिला चलाया कि हर कोई मुग्ध हो गया। इसके साथ ही एक समूह वैष्णोदेवी यात्रा के लिए जा रहा था। चूंकि मालवा एक्सप्रेस कटरा तक चलती है, इसलिए पूरा धार्मकि माहौल था इसमें। कोई उज्जैन में महाकाल के दर्शन करके लौट रहे थे तो कोई वैष्णोदेवी जा रहा था। ये महिलाएं जालंधर से आगे व्यास जा रहे थे। राधास्वामी सत्संग से इनका नाता जुड़ा था। इनसे अनुमति लेकर मैंने एक-दो छोटी-छोटी वीडियो बनाई, जिन्हें यहां साझा कर रहा हूं। हम लोग बेहद सुखद यादों को लेकर चंडीगढ़ लौट आए। अन्य लोगों की कुशल भी व्हाट्सएप के जरिये मिलती रही। स्वाति को ढेर सारी शुभकामनाएं और आशीर्वाद। जय हो।