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Thursday, September 21, 2017

लखनऊ हम पर फ़िदा, हम फ़िदा ऐ लखनऊ


इमामबाड़ा : चित्र साभार इंटरनेट


चारबाग स्टेशन : साभार इंटरनेट
केवल तिवारी
पहला नजारा : लखनऊ की एक गली में जाकर किसी से पूछा, रामअवतार मिश्रा जी के यहां जाना है। जिनसे पता पूछा था वह जनाब साथ हो लिये। कुछ दूर जाकर एक घर के बाहर आवाज लगायी, 'अरे मिसिर जी देखो आपके दोस्त आये हैं।' इन साहिबान ने पता बताया, साथ में एक कप चाय पी और चले गये। दूसरा नजारा : रिक्शेवाले भाई साहब हजरतगंज की तरफ मुंह करके खड़े हैं, आपको जाना बनारसी बाग है। पूछेंगे चलने के लिये, तो मना कर देंगे क्योंकि रिक्शे का मुंह जिधर को है, उसी तरफ जायेंगे। नवाबी ठसक जो ठहरी।
लखनऊ में अपनेपन के, लखनऊ की नफासत के और लखनऊ की नवाबी ठसक के हर दिन अनेक किस्से बनते हैं, कहे जाते हैं। समय के साथ भले यहां भी बहुत कुछ बदल गया हो, लेकिन आज भी सही मायनों में लखनऊ नफासत और नज़ाक़त का शहर है। ‘पहले आप’ की संस्कृति वाला यह शहर अगर बदल भी रहा है तो अपनी खूबियों को सहेजे हुए। यहां के बारे में सही ही कहा गया है-
ये रंग रूप का चमन, ये हुस्न--इश्क़ का वतन।
यही तो वो मुक़ाम है, जहां अवध की शाम है।
अवध की शाम वाकई होती बहुत निराली है। गोमती का किनारा हो या फिर चौक और नक्खाश की गलियां। अमीनाबाद की गड़बड़झाला हो या फिर नये बसे गोमती नगर का इलाका, यहां हर जगह वह जगमग नजर आयेगी जिसके लिये लखनऊ जाना जाता है। बस में बैठे तो कंडक्टर जनाब पूछ लेंगे, ‘कहां जाइएगा।’ ’10 रुपये दीजिये।’ ‘आप निश्चिंत रहिये, समय पर पहुंच जाइयेगा।एक अजनबी से भी अदब से पेश आने के इसी नजारे के बीच दो दोस्तों में भी कुछ यूं वार्ता चलती है, ‘अमा मियां अब बहुत हो गया।’ ‘देखो अबकी कउनू बहाना चली।’ ‘खुद को समझते का हो बे।आपसी बात सुन लीजिये, खाने-पीने के अड्डों पर चले जाइये या फिर यूं ही चहलकदमी कीजिये, आपको भी उन चंद लाइनों की याद हो आयेगी जिनमें इस शहर को कुछ इस तरह बयां किया गया है-
लखनऊ है तो महज़ गुम्बद- मीनार नहीं
सिर्फ एक शहर नहीं, कूचा बाज़ार नहीं
इसके दामन में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं
लखनऊ हम पर फ़िदा, हम फ़िदा लखनऊ

नवाबी शहर में गंज नाम की है भरमार
लखनऊ के विभिन्न इलाकों की सूची बनाने बैठेंगे तो आपको दर्जनों जगहों के नाम में गंज मिलेगा। यहां का हृदय स्थान हजरत गंज तो यहां की शान है ही, इसके अलावा उदय गंज, टूड़िया गंज, यहिया गंज, मेहंदी गंज, रकाब गंज, हुसैन गंज, सआदत गंज, मेहंदी गंज, नवाबगंज वगैरह-वगैरह। गंज के बाद अगर किसी नाम के आगे कोई शब्द ज्यादा प्रचुर है तो वह है बाग। मसलन बनारसी बाग, चारबाग, तेलीबाग, आलम बाग, केसर बाग, लालबाग वगैरह-वगैरह। नये बस रहे शहरों का नाम नगर से ज्यादा है। इनमें सबसे आधुनिकतम और विशाल है गोमती नगर।

कथक नृत्य का बड़ा घराना
उत्तर भारत की महान नृत्य शैली कथक का लखनऊ से घना नाता रहा है। वर्तमान समय में बिरजू महाराज इस घराने के बड़े नाम हैं। उनके पुत्र किशन जी महाराज भी कथक के बड़े शिक्षक हैं। अवध के नवाब के राजसभा में लखनऊ घराने का और वाराणसी के सभा में वाराणसी घराने का जन्म हुआ। लखनऊ स्थित भातखंडे में कथक सीखने वालों की आज लंबी कतार है।

आधुनकिता की रंगत में गुजिश्ता दौर से नातेदारी बरकरार
लखनऊ बदला है। बदल रहा है। लेकिन रोचक बात यह है कि आधुनिकता की रंगत में गुजिश्ता दौर से इसकी नातेदारी बरकरार है। किसी भी सभ्यता, समाज के लिये वाकई यह कठिन काम होता है। यह लखनऊ ही है जहां मॉल में पिजा, बर्गर खाने वाली पीढ़ी टुंडे के कबाब और बाजपेयी पूड़ी भंडार की पूड़ियां भी लंबी लाइन में लगकर खरीद रही है। रामआसरे की मिठाई, प्रकाश कुल्फी और सदर के बतासों की कहां नहीं चर्चा होती है। यही नहीं नक्खास का इतवारी बाजार हो या गोमतीनगर, जानकीपुरम, एल्डिको और आशियाना, हर जगह वैसी ही लखनवियत मिलेगी जैसी कश्मीरी मोहल्ले, शीश महल, राजा बाजार या सआदतगंज में

हर तरह का खाना
खान-पान के शौकीनों के लिये लखनऊ एक सलीके का दस्तरखान है। यहां पूड़ी-सब्जी, खस्ता-कचौड़ी, छोले-भटूरे, चाट, पानी के बताशे और बंद-मक्खन जैसे बेशुमार नज़राने हैं तो नॉनवेज का तो यह गढ़ ही है। टुण्डे कबाबी, रहीम की नहारी, नौशीजान और इदरीस की बिरयानी जैसी जगहों पर हर समय रंगत दिखती है।

गंगा-जमुनी तहजीब की नगरी
लखनऊ में गंगा-जमुनी तहजीब की बात समझनी हो तो कुछ दिन यहां रुककर कुछ जानकारियां जुटानी होंगी। शादाब के यहां मोहित की दावत। मोहित के घर शादाब की पार्टी। यही नहीं हर कोई याद करना चाहता है कि यहां झाऊ लाल का बनवाया इमामबाड़ा है, तो जनाबे आलिया का बनवाया हनुमान मंदिर भी हैपड़ाइन मस्जिद है, आसफुद्दौला का कल्याण गिरि मंदिर भी है। इसी शहर में मुसलमान बड़े मंगल पर हलवा-पूड़ी बंटवाते हैं, जमघट पर पतंग उड़ाते हैं, होली में रंग खेलते हैं, कृष्ण जी की बारात में शामिल होते हैंहिंदू मुहर्रम में अजादारी करते हैं, सबीले लगवातें हैं और रमज़ान में सहरी के लिए जगाते हैं, बल्कि इफ्तारी का इंतज़ाम भी करते हैं

इतिहास के आईने में
लखनऊ के बारे में फिरदौस ने लिखा है-
शहरे वफ़ा भी तू, शहरे निगार भी कहते हैं सब तुझे रश्के बहार भी
तू सरज़मीने इश्क, फिरदौसे हुस्न तू दुनिया में कहाँ दूसरा,तुझसा दयार भी
शाहे सुखन भी है, अहले ज़बान तू चढ़कर नहीं उतरता, तेरा खुमार भी
दुनिया में कम नहीं, तेरे चाहने वाले तेरी अदा के कायल,तुझपर निसार भी
शहरे लखनऊ, तुझको नहीं पता तुझ बिन नहीं संभलता,मेरा कल्बे ज़ार भी
लखनऊ को प्राचीन काल में लक्ष्मणपुर और लखनपुर के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि अयोध्या के राम ने लक्ष्मण को लखनऊ भेंट किया था। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 .में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे साबित हुए। आगे चलकर लॉर्ड डलहौली ने अवध का अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। लखनऊ भले बहुत बदला हो, लेकिन हर दौर को इसने अपनेआप में समेटा है।

देखने लायक जगह
यूं तो लखनऊ में कदम-कदम पर देखने लायक स्थान हैं। कुछ हाल में बने तो कुछ ऐतिहासिक। इनमें से कुछ खास इस तरह से हैं- बड़ा इमामबाड़ा, घंटाघर, सआदत अली का मकबरा, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद इमामबाड़ा, रेज़ीडेंसी,  जामी मस्जिद, नारसी बाग, पिक्चर गैलरी, मोती महल
इमामबाड़े का निर्माण आसफउद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था। यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। यहां एक अनोखी भूल भुलैया है। यहां भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। यह घंटाघर 1887 . में बनवाया गया था। इसे ब्रिटिश वास्तुकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में माना जाता है। बेगम हजरत महल पार्क के समीप सआदत अली खां और खुर्शीद जैदी का मकबरा है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं। बड़ा इमामबाड़ा की तर्ज पर ही रूमी दरवाजे का निर्माण भी अकाल राहत प्रोजेक्ट के अन्तर्गत किया गया है। हुसैनाबाद इमामबाड़ा मोहम्मद अली शाह की रचना है जिसका निर्माण 1837 . में किया गया था। इसे छोटा इमामबाड़ा भी कहा जाता है। लखनऊ रेजिडेन्सी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं। सिपाही विद्रोह के समय यह रेजिडेन्सी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत शहर के केन्द्र में स्थित हजरतगंज क्षेत्र के समीप है। यह रेजिडेन्सी अवध के नवाब सआदत अली खां द्वारा 1800 . में बनवाई गई थी। हुसैनाबाद इमामबाड़े के पश्चिम दिशा में जामी मस्जिद स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन 1840 . में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया। बनारसी बाग यहां का चिड़ियाघर है। स्थानीय लोग इस चिड़ियाघर को बनारसी बाग कहते हैं। हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी में बनी यह पिक्चर गैलरी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में मोती महल प्रमुख है। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था।