indiantopbligs.com

top hindi blogs

Friday, July 14, 2023

बाढ़-बरसात का झमेला, गधेरे और हरेला

 केवल तिवारी 


इस ब्लॉग को पूरा पढ़ने से पहले उक्त शब्दावलियों का मतलब समझ लीजिए। हो सकता है आप में से अनेक लोग जानते भी हों। असल में बाढ़-बरसात तो कॉमन है और आजकल हर कोई इससे दो-चार हो रहा है, लेकिन गधेरे और हरेला अनेक लोगों के लिए नये शब्द हो सकते हैं। गधेरा शब्द उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का है, इसे गध्यार भी कहा जाता है। गढ़वाल क्षेत्र में भी इसी तरह का शब्द है। गधेरे या गध्यार असल में सहायक नदियां होती हैं। इन्हें बरसाती नदियां भी हा जा सकता है। असल में अमूमन ये गधेरे सूखे रहते हैं, लेकिन जब ज्यादा बारिश होती है तो अपने इन रास्तों से वे नदियों में जाकर मिल जाते हैं। हरेला एक त्योहार है जो सावन की शुरुआत में मनाया जाता है।  

आज इन तीनों की एक साथ बात करने का कारण है हाल में आई भारी बारिश और उसके बाद बनी बाढ़ की स्थिति। इस बार हिमाचल प्रदेश में अनेक जगह वैसे ही हालात बने जैसे करीब दस साल पहले उत्तराखंड में बन गए थे। पर्यावरणविद इस आपदा का जो मुख्य कारण बताते हैं वह है नदियों की सहायक नदियों यानी बरसाती नदियों में अतिक्रमण। ऐसा ही तो हुआ है। मुझे याद है कि उत्तराखंड में हमारे बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि कभी गधेरों के आसपास मत जाना। कहा जाता था वहां भूत-प्रेत रहते हैं। यह बात अंधविश्वास हो सकती है, लेकिन भूत-प्रेत का डर दिखाना आज प्रासंगिक लगता है। जहां जानेभर से डराया जाता था, उसके आसपास कोई निर्माण करने की हिम्मत कैसे करे? हां, आज नदियों के किनारे दूर-दूर तक निर्माण हो चुके हैं। उन बरसाती नदियों के किनारे जो अमूमन सूखी दिखती हैं। ऐसे ही मैदानी इलाकों में यमुना के खादर क्षेत्र में ऐसा हुआ है। तो समझिये इशारा और नदियों की जमीन पर कब्जा मत कीजिए। 

मेरे घर में हरेला

अब बात हरेला की। असल में प्रकृति से जुड़े रहने का संदेश है हरेला। हरेला उगाना, सुख-समृद्धि की कामना के साथ सिर पर रखना। डिकारे बनाना। कई रीति-रिवाज हैं। डिकारे शिव-पार्वती के मिट्टी से निर्मित मूर्तियों को कहा जाता है। हम सब जानते हैं कि मानव और पर्यावरण का अनूठा संबंध है। हमारे रीति-रिवाज इस संबंध को बनाये रखने का संकेत देते हैं, लेकिन हम कई बार उसे भुला देते हैं। संबंध बनाए रखेंगे तो उसके अनेक लाभ हैं। हरेले के त्योहार यानी सावन की शुरुआत से करीब दस दिन पहले सात अनाजों को छोटी-छोटी टोकरियों में बोया जाता है। सावन की शुरुआत पर इसे काटा जाता है फिर आशीर्वाद स्वरूप सिर पर रखा जाता है। सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। आमतौर पर घर की महिलाएं हरेले को अन्य सदस्यों को आशीर्वाद स्वरूप उनके सिर में रखती हैं। सामान्यत: बेटियां ऐसा करती हैं। असल में बेटियां ही तो उत्सव सरीखी होती हैं। इसी उत्सवधर्मिता को बनाये रखने के लिए त्योहारों पर बेटियों को विशेष तवज्जो दी जाती है। प्रकृति, मानव का संबंध और अन्य रीति रिवाजों पर आगे बात होती रहेगी।