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Tuesday, July 26, 2022

चलते रहो तरक्की पथ पर, स्वस्थ रहो और मस्त रहो

प्रिय बेटे कुक्कू (कार्तिक) खूब खुश रहो, खूब तरक्की करो। देखते-देखते बीटेक के दो सेमेस्टर (करीब 9 महीने में एक साल) पूरे हुए। जगह-जगह आईआईटी में चल रही तुम्हारी पढ़ाई के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया सुनता हूं तो अपार खुशी से भर जाता हूं। कहीं खुद ही बढ़-चढ़कर बताता हूं कि बेटा बीटेक कर रहा है आईआईटी से। तुम्हें पिछले साल पत्र लिखा था, जब आईआईटी रोपड़ में जाना लगभग तय हो चुका था, लेकिन महामारी के विकराल रूप ने कुछ और ही कर दिया। तुम्हें याद होगा कि पिछले पत्र में एक कविता लिखी थी, वह पूरा पत्र और कविता मेरे ब्लॉग में भी है और शायद तुम्हारी डायरी में भी। अब तो वह डायरी पुरानी हो गयी है। अनुभव, समय के हिसाब से चीजें बदलती हैं, इसलिए तुम भी जब उस डायरी को पढ़ोगे तो कई सारे कैरिकेचर और मैटर पर तुम्हें भी हंसी आएगी। यही होता है, समय के साथ-साथ चीजें बदलती हैं। बस उम्मीदें, जज्बा और जोश को बनाए रखना चाहिए। सपनों को नहीं मरने देना चाहिए। और सबसे बड़ी बात कि अपनी ही नजरों में आदमी को ऊंचा बना रहना चाहिए। हर बर्थडे पर मन करता है कि कुछ बड़ा गिफ्ट दूं, लेकिन हर बर्थडे के आसपास कुछ ऐसा हो जाता है कि बस सोच ही बड़ी रह जाती है। इस बार भी तुमसे पूछा तो था कि क्या दें, लेकिन तुमने भी सारी स्थितियों को समझते हुए कह दिया, सब तो ठीक है। सब ठीक ही, वाकई। सबसे ठीक तो यह है कि घर में हंसी-खुशी का माहौल है। कुछ पारिवारिक मसलों पर मैं जरूर चिंतित रहा हूं, रहता था, शरीर कमजोर हुआ, फिर कई लोगों ने काउंसलिंग की और समझ में आया कि ज्यादा विचार मंथन नहीं करना चाहिए। चूंकि अब तक तुम्हें इन बातों से अंजान रखा था, लेकिन अब तुम कुछ-कुछ समझने लगे हो। बेशक समझो, या कभी हमसे कोई नेगेटिविटी सुनो तो उस पर करेक्शन करना और हमेशा अपनी तरफ से पॉजिटिव बने रहना। परिवार पहले। परिवार के बाद समाज। इसलिए नकारात्मकता को खत्म करना ही ठीक रहता है। जैसा कि तुम्हारा हमेशा फोकस पढ़ाई पर ही रहा है, वह जारी रहेगा ही साथ ही कॉलेज लाइफ को भी एंजॉय करो। अच्छाई-बुराई की समझ रखते हुए आगे बढ़ो। हमेशा मेरी लेखन शैली यानी स्टाइल ऑफ राइटिंग उपदेशात्मक ही रहती है, लेकिन उपदेश के अलावा फिलहाल कुछ ज्यादा दे भी नहीं सकता। जन्मदिन की बहुत-बहुत मुबारक। एक और कविता लिखने की कोशिश की है, पढ़ो कैसी लगती है। सफर पर हम चलते रहें, यूं ही डगर भरते रहें, जीवन के हर मोड़ पर नयी इबारत लिखते रहें। बदलाव को स्वीकार कर, कदम बढ़ते रहें, मंजिलों पर नजर रख, सीढ़ियां चढ़ते रहें। हैं दुआएं यही कुक्कू कि खुशहाली रहे बरकरार, जहां चल पड़ो तुम, तरक्की के खुल जाएं द्वार। अपनेपन की बगिया में समा जाये हमारा संसार, पढ़ाई, लिखाई, हंसी-ठिठोली और हो पूरा प्यार। आएंगे उतार-चढ़ाव, ये तो जिंदगी का दस्तूर, हर पल की अहमियत है, चलते ही रहना बदस्तूर। गिफ्ट के इस दौर में प्यार से बढ़कर कुछ नहीं, जब जुटेंगे सब लोग चल पड़ेंगे दूर कहीं। अपनेपन को बनाये रखना, भावनाओं को समझते रहना, मुबारक हो 20वां साल, मजबूती से चलते रहना। हजारों दुवाओं के साथ तुम्हारा पापा (साथ में मम्मी और भैया की बधाई)

Monday, July 25, 2022

आंगन की हरियाली, सीधे न करें जुगाली... पत्तों को सेवन से पहले धोएं जरूर

केवल तिवारी आपके आंगन में भी छोटी-मोटी बगिया होगी। गमले तो कम से कम होंगे ही। इन दिनों तो किचन गार्डन का भी शौक नये रूप में उभर रहा है। ऐसा ही शौक मेरा भी है। फूल के पौधों के अलावा कुछ रोजमर्रा के काम आने वाले भी पौधे लगाए हैं जैसे तुलसी, पुदीना, सदाबहार, आजवाइन वगैरह-वगैरह। आप लोग भी लगाते ही होंगे? यह पूछने का मेरा मकसद यह नहीं कि मैं कोई बागवानी टिप्स आपके लिए लेकर आया हूं, बल्कि सिर्फ यह ताकीद करना है कि गमले से सीधे तोड़कर पत्ते को चबाने से जरा परहेज करें।
यूं तो बरसात के मौसम में हरी पत्तियों या हरी सब्जी से बचने की सलाह दी जाती है, साथ ही यदि इनका इस्तेमाल करना ही हो तो अच्छी तरह से साफ करके खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन यहां पर मैं आपको कोई आयर्वेद का ज्ञान भी आप अपना रुटीन अपने हिसाब से रखें, बस ध्यान रखें कि इस मुगालते में न रहें कि गमले तो आपके आंगन में हैं, आप उसमें नियमित खाद-पानी करते हैं, शुद्ध हैं इसलिए जब चाहें सीधे पत्ते तोड़े और सेवन कर लिया। जैसे कभी तुलसी का पत्ता चबा लिया, कभी सदा बहार का पत्ता लगे खाने। लेकिन ध्यान रखिएगा इन पत्तों को सीधे खाना नुकसानदायक हो सकता है। असल में पिछले दिनों शाम के वक्त मैं आंगन में बैठा था, वहां पुदीने के गमले के पास एक छिपकली दीवार पर लगी किसी चीज को चाट रही थी। यह क्रम लंबे समय तक चलता रहा (देखें वीडियो) इसके कुछ समय बाद ही मैंने देखा कि छिपकली पत्तों के बीच में भी बैठी है हालांकि वह तुरंत भाग गयी इसलिए फोटो या वीडियो नहीं बन पाया। इसी तरह कभी मक्खी, कभी मच्छर इन पत्तों पर बैठे दिखने लगे। पौधा चाहे इनडोर हो या आउटडोर, ऐसे खतरे बने रहते हैं। मैंने यह बात एक-दो मित्रों को बताई तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘अरे हम तो सीधे तोड़कर कई बार पत्ता मुंह में डाल लेते हैं।’ अब वो भी इस बात को मान रहे हैं कि सफाई तो जरूरी है। तो जब भी अपने ही गमलों की या किचन गार्डन की कोई पत्ती तोड़ रहे हों तो उसे सेवन से पहले धो लें। एक सज्जन तो कहने लगे कि मैं तो कभी-कभी कोई सूखी सी लकड़ी तोड़कर दांत में डाल लेता था, यह भी खतरनाक है। चलिए आज की बात बस इतनी...।

Monday, July 11, 2022

इतना आसान भी नहीं 'होम मेकर' की भूमिका

 केवल तिवारी

कभी गृहिणी, कभी घरवाली और कभी हाउस वाइफ के पद से नवाजी जाने वाली महिला का काम सचमुच बहुत आसान नहीं है। इसी कठिनाई को ध्यान में रखते हुए कुछ लोगों ने इस पद को 'होम मेकर' बना दिया। होम मेकर शब्द थोड़ा सम्मानजनक लगता है। ऐसे में इस सम्मानजनक पद को अनचाहे तौर पर इन दिनों मुझे भी संभालना पड़ा। कहानी लंबी है, शुरुआत संक्षेप से करता हूं। एक दुर्घटना में पत्नी के दाएं हाथ की हड्डी टूट गयी। 
प्लास्टर लगने के बाद उदास भावना


पहले सलाह मिली कि कोई मेड रख ली जाए। फिर सलाह में संशोधन हुआ कि मेड तो एक या दो घंटे के लिए आएंगी फिर कुछ 'रिस्टिक्शंस' भी हैं कि खाना खुद बनाना होगा वगैरह-वगैरह। फिर कहा गया कि किसी रिश्तेदार को बुला लें, रिश्तेदार को बुलाने की बात पर सीधे प्रेमा दीदी की याद आई। लेकिन वह कैसे आ सकती है, उस पर तो खुद ही दुखों का पहाड़ टूटा पड़ा है। उसकी याद सबसे पहले इसलिए आई कि न जाने कितनी बार उसने हमारी गृहस्थी की गाड़ी को सामान्य बनाने में मदद की है। उससे पहले हमेशा मां का साथ रहा। खैर... बात बहुत लंबी हो जाएगी क्योंकि जब मां का जिक्र होगा तो सारा मंजर सिमट जाएगा।
फाइनली पत्नी भावना की भाभी ममता जोशी जी ने वालिंटियरी काठगोदाम से आना स्वीकार कर लिया। इसके बावजूद कि वह खुद भी अस्वस्थ हैं, घर में उनकी उपस्थिति बनी रहनी आवश्यक है। पहले मैं उन्हें न बुलाने पर पूरा जोर डाल रहा था, लेकिन नौकरी के साथ गृहस्थी की गाड़ी भी खींचने में दिक्कत आई तो मैंने भी पत्नी से कह दिया कि बुला ही लो। वह आ गयीं। कुछ दिन मुझे काम का पता नहीं चला। सब काम समय पर हो रहे थे। लेकिन आखिरकार उन्होंने हमारा ख्याल रखा तो हमें भी उनका ख्याल रखना था और हमने उन्हें सस्मान काठगोदाम भेज दिया। पत्नी के हाथ का प्लास्टर कट चुका था और गरम पट्टी लगाने एवं सिकाई करने की ताकीद की गयी थी। इसी दौरान डॉक्टर ने सलाह दी कि फिलहाल प्रभावित हाथ से कोई काम न करें। यानी अभी काम मुझे करना ही था। तीन दिन में ही पता चल गया कि सचमुच 'होम मेकर' का काम कितना कठिन है। इतने कठिन काम को इतनी सहजता से कर लिया जाता है। 
मनसा देवी मंदिर प्रांगण में अपनी भाभी संग प्रसन्न मुद्रा में।


मुझे याद आता है घर के बड़े लोगों की जिन्होंने भरे-पूरे परिवार का दायित्व भी संभाला और हंसी-खुशी संभाला। साथ ही कई जानकारों के बारे में पता है कि कैसे कामकाजी महिलाएं घर का सारा काम करती हैं और साथ में जॉब भी। ऐसी महिलाओं को तो सैल्यूट है। खैर जब महिलाओं को सैल्यूट की बात आती है तो पत्नी को एक सैल्यूट इस बात का बनता है कि उन्होंने बाएं हाथ से काफी काम करना शुरू कर दिया है। मानो कह रही हो, तुम इतना परेशान मत होओ कई काम निपटाना तो हमारे बाएं हाथ का खेल है। फिर फरीदाबाद में भव्य की वह बात भी तो स्मरणीय है जब उसने कहा, बुआ आप कुछ दिनों के लिए हमारे पास आ जाओ, ताकि फूूूफा जी को भी पता चले कि पत्नी के बगैर कितनी दिक्कत होती है। हंसी मजाक। खैर भावना के जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ। चूंकि बात घर-गृहस्थी, मां-बहन और पत्नी पर घूमी तो हर बार की तरह इस बार भी ऐसी देवियों को समर्पित कुछ शेर जिन्हें इधर-उधर से टीपा है-

कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो, कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो …
रिश्ते तो मिलते है मुकद्दर से, बस उसे खूबसूरती से निभाना सीखो … ।।

जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है, माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।

दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ, कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए।

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है, माँ देखी हैै

शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ, मैं आँखें बंद कर के घर के अंदर देख लेता हूँ।

उसने सारी कुदरत को बुलाया होगा, फिर उसमें ममता का अक्स समाया होगा,
कोशिश होगी परियों को जमीन पर लाने की, तब जाके खुदा ने बहनों को बनाया होगा।

सफ़र वही तक हैं जहाँ तक तुम हो, नजर वहीं तक हैं जहाँ तक तुम हो,
हजारों फूल देखे हैं इस गुलशन में मगर, ख़ुशबू वही तक हैं जहाँ तक तुम हो।