चंडीगढ़ में पिछले चार सालों से रह रहा हूं। जाहिर है यहां रहना हुआ तो धीरे-धीरे लोगों के सुख-दुख में भी आना-जाना शुरू हो गया। यहां के सेक्टर 25 स्थित अंत्येष्टि स्थल पर भी अनेक बार जाना हुआ। हमेशा की तरह मुझे अपनी मां की याद आ जाती है। कैसे लखनऊ के अंत्येष्टि स्थल पर मां की चिता को जलते देखता रहा। कोई आंसू नहीं। 12 दिनों की पूरी रस्म भी निभाई। उसके बाद जो सालभर रोया और आज भी गाहे-ब-गाहे मां कभी सपनों में कभी हकीकत सी अगल-बगल घूमती सी महसूस होती है। बृहस्पतिवार 8 दिसंबर की दोपहर भी कुछ ऐसा ही नजारा था। हमारे ऑफिस के सहयोगी मोहित सभरवाल की दादी की अंत्येष्टि थी। हमारे समाचार संपादक हरेश जी ने इसकी जानकारी दी। मैंने भी चलने की इच्छा जताई। वहां पहुंचे तो देखा एक बुजुर्ग महिला को अंतिम यात्रा पर लाया गया है, पूरे सजधज के साथ। सिर पर मुकुट। फूलों से लकदक। लोगों से पता चला कि उनकी उम्र 99 वर्ष की थी। यह भी मालूम हुआ कि वह 15 दिन पहले ही परिवार के साथ माउंट आबू घूमकर आई थीं। एक बात और कि दो दिन पहले तक वह पूरी तरह स्वस्थ थी। बात सिर्फ इतनी नहीं कि एक महिला भरपूर उम्र जीकर इस दुनिया से रुखसत हो गयीं। बात यह भी नहीं थी कि उनकी अंतिम यात्रा को इस तरह से शुरू किया गया कि वह तो पूरी उम्र सही-सलामत रहकर गयी हैं। बात यह थी कि उस महिला के लिए तमाम आंखों में आंसू थे। उनके पड़पोते, उनकी बहू, बेटा हर कोई तो रो ही रहा था और भी लोगों की आंखें नम थीं। मेरा भी उनसे एक अनजाना सा रिश्ता था। कुछ दिन पहले ही मुझे पता चला था कि इन महिला की याददाश्त बहुत तेज है। वह ट्रिब्यून को लाहौर के जमाने से जानती हैं। मोहित के दादाजी लाहौर ट्रिब्यून में थे। मेरी दिली इच्छा थी कि कभी मोहित की दादी के साथ बैठूं। उनके संस्मरण सुनूं और कुछ लिखूं। यह हसरत दिल में ही रह गयी। बृहस्पतिवार सुबह जब सब लोगों को रोते देखा तो मेरी भी आंखें भर आईं। आंखें इस बात के लिए भी भर गयीं कि वाकई इस महिला का सबके प्रति गजब स्नेह होगा तभी तो बेटा-बहू, बेटियों के अलावा छोटा सा बच्चा भी खूब रो रहा था, मानो कह रहा था दादी तुम जल्दी चली गयी, हमें थोड़ा और बड़ा होता तो देख लेती। इन महिला को मेरा नमन। उनके परिवार को भी जिन्होंने उन्हें लंबी उम्र तक भरपूर स्नेह दिया, पूरा सम्मान दिया।