केवल तिवारी
ना जाने इन पलों को क्या कहते हैं
मिलने की खुशी और बिछड़ने का गम है
हसरतों की दुनिया और उम्मीदों का जहां है
प्रसन्न होइए कि साथ हो गये, अरे हम बिछड़े कहां है।
भावना को जैकेट दिखाते भास्कर |
बृहस्पतिवार 29 फरवरी, 2024 की शाम उपरोक्त पंक्तियां अपने-आप ही निकल पड़ीं। दिमाग में सुबह का दृश्य चल रहा था। सुबह भास्कर जोशी यानी राजू अपनी बहन भावना को एक-दो जैकेट दे रहा था कि बाजार जाकर उसे रिपेयर करवा लाना। फिर कुछ पैकिंग वैकिंग की बात हुई। उसके बाद राजू आफिस चला गया। मैं और भावना गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए कुछ बातें करने लगे। भावना बोलते बोलते कुछ भावुक सी हो गई, बोली तीन चार दिनों से मन में यही चल रहा है कि राजू के साथ दो-तीन महीने कब निकल गये पता ही नहीं चला। बोलते बोलते उसकी आंखें नम हो गई। स्वभाव से मैं भी भावुक हूं इसलिए भावना को भावना में बहने दिया। असल में भाई-बहन का प्यार होता ही अनूठा है। फिर ये दोनों तो जुड़वां हैं। इसलिए मित्र जैसे भी हैं। भावना राजू की तमाम सकारात्मक बातों को बताने लगी। मैंने भी इस सकारात्मकता को महसूस किया है और बहुत कुछ सीखने की कोशिश की है। मेरा छोटा बेटा धवल यानी राजू का भानजा तो अक्सर यही कहता रहता है कि मामा कुछ ज्ञान की बात हो जाये। फिर गिनाने भी लगता है कि इतनी बातें सीख लीं। वैसे धवल और उसका हमउम्र फैमिली फ्रेंड भव्य जब बातें करते हैं तो भावना और भास्कर को गुस्सैल बताते हैं और मजाक में कहते हैं कि हिरोशिमा में जब बम गिराए गए थे तो उसके दो छर्रे उत्तराखंड के ताड़ीखेत में भी गिर गये थे। असल में इन दोनों का जन्मदिन 6 अगस्त का है। जन्मस्थान उत्तराखंड का ताड़ीखेत।
मामा से ज्ञान प्राप्त करते धवल |
राजू जबसे चंडीगढ़ आया तो नया विचार आया कि धवल ने तो राजू की छवि को ही धो दिया है। असल में अक्सर पारिवारिक चर्चा में राजू यानी भास्कर को धीर गंभीर और चुपचाप रहने वाला बताया जाता है। असल में ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह बहुत केयरिंग नेचर का है। कभी अपने बेटे भव्य और पत्नी पिंकी के लिए कैब बुक करता तो पूरे रूट पर नजर रखता। फरीदाबाद घर में कुछ मंगाना होता तो यहीं से व्यवस्था कर देता। भावना ने बताया कि रोज शाम घर आते वक्त यह जरूर पूछता कि क्या लाना है। मेरे साथ तो अच्छी मित्रता है और हमारे बीच अपनी सभी बातों की शेयरिंग चलती रहती हैं। मुझे तो अनेक बार राजू जैसा बनने की सलाह भी मिलती है क्योंकि मैं बहुत वाचाल हूं, बेचैन हूं। हालांकि बेचैनी पर काफी हद तक तबसे काबू पा लिया जबसे राजू ने मंत्र दिया था कि कभी भी किसी मुद्दे पर परेशान हो तो 24 घंटे इंतजार करो। भगवान सब ठीक करता है। परिस्थितियां बदलती हैं। ऐसा नहीं कि राजू कोई अलहदा बात बताता है, बस उसका अंदाज ए बयां जानदार होता है। वह पारिवारिक कलह को दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी बताता है। इस मामले में तो मैं और मेरी पत्नी भावना हमेशा राजू के ससुराल यानी पिंकी के मायके वालों की दाद देते हैं। उनकी रिश्तेदारी में जबरदस्त बांडिंग है। सगा परिवार तो एक है ही, दूर दूर तक के रिश्तों में भी गजब की गर्माहट है। मेरा विचार यही है कि परिवार प्रथम। सबसे पहले अपनों से बनाकर रखिए, इगो को आड़े मत आने दीजिए फिर देखिए सारी दुनिया आपकी होती है। खैर राजू ट्रांसफर होकर बड़े पद पर चंडीगढ़ आ गया है। भावुक भावना को यही समझाया कि मायके से दूरी कम हो गई। बड़े भाई साहब नंदाबल्लभ जी और शेखरदा बड़ी बहन गुड़िया दीदी के करीब काठगोदाम में हैं। भास्कर यहां आ गये। भव्य और धवल का भी साथ हो गया। भावुक क्यों होना। प्रसन्न होओ। इस भावुकता पर एक ब्लाग बन गया। अंत में दो शेर प्रस्तुत कर रहा हूं। महान लेखकों के। ईश्वर सबको स्वस्थ रखे।
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है,।
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता।
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