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Saturday, March 9, 2024

सैर-सपाटा, परिवार और यादगार लम्हे

 केवल तिवारी

समेट लो इन लम्हों को कि यादों का सजा रहे ताज
घर-परिवार का वक्त बीते बातों में, कल हो या आज
तभी तो कभी बनती है योजना, कभी होतीं बातें पुरानी
सैर-सपाटा, पूजन-अर्चन और सुनी-अनसुनी कहानी
जीवन के इस सफर में कुछ मोड़ यूं आएंगे
चलते, रुकते और थकते, हम गीत अपने गाएंगे।


इन दिनों कुछ लिखता हूं तो शुरुआत दो-चार काव्यात्मक पंक्तियों से हो जाती है। क्योंकि गाना यानी गुनगुनाना और रोना स्वाभाविक मानवीय गुण है और भावुक पलों के दौरान ये गुण सर्वोपरि स्थापित हो जाते हैं। ऐसा ही हुआ पिछले दिनों जब लखनऊ से भाई साहब, नोएडा से भाभीजी, भतीजा, भतीजी, बहू और पोता चंडीगढ़ पहुंचे। जिस दिन से कार्यक्रम बना, छोटे बेटे धवल के सवालों से रू-ब-रू होता रहा। कब आएंगे?, हेमांक क्या बोलने लगा है?, ताऊजी-ताईजी को कहां ले जाओगे? ऐसे ही अनेक बाल सुलभ सवाल। भाई साहब बीसी तिवारी को लखनऊ से सीधे चंडीगढ़ आना था और भतीजे दीपू, उसकी पत्नी जया और बेटे हेमांक को अमरोहा से पहले नोएडा भतीजी कन्नू यानी भावना और भाभीजी यानी राधा तिवारी के पास नोएडा आना था फिर यहां। कार्यक्रम बनने के बाद भी बीच-बीच में किसान आंदोलन के कारण किंतु-परंतु लगते रहे। मन कर रहा था कि ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी ले लूं, लेकिन यहां संभव नहीं था। हालांकि बहुत संकोचवश मैंने अपनी न्यूज एडिटर मीनाक्षी मैडम से शनिवार 2 मार्च की छुट्टी के लिए कहा तो उन्होंने तुरंत हां कही। मैं संकोच इसलिए कर रहा था कि दो दिन बाद ही मंगलवार को मैंने बड़े बेटे कार्तिक के साथ दिल्ली जाना था। शनिवार की छुट्टी मिली तो कार्यक्रम बना लिया। इधर, इंद्रदेव भी अपनी रवानगी में दिख रहे थे। शुक्रवार 2 मार्च की दोपहर बाद भाई साहब पहुंचे, देर रात नोएडा से बाकी सब परिजन। तय हुआ कि कल सुबह पहले रॉक गार्डन फिर सुखना लेक चला जाये। रॉक गार्डन का जिक्र होते ही सवाल उठा कि भाभी जी उतना चल नहीं पाएंगी। बीच-बीच में भावना द्वय (मेरी पत्नी का नाम भी भावना है और भतीजी का भी) इस बात की ताकीद करते कि ये मत बोलो कि भाभीजी चल नहीं पाएंगी, इससे वह घबरा जाएंगी। खैर हुआ भी यही। बारिश की बूंदाबांदी के बीच भाभीजी इस तरह रॉक गार्डन के सफर पर रहीं कि युवाओं को भी मात दे दें। मौसम बिगड़ता देख हम लोग वहीं से वापस आ गए। बाकी जगह जाने का कार्यक्रम मुल्तवी कर दिया। शाम को चंडीगढ़ प्रेस क्लब गए, कुछ बातचीत हुई और लौट आए। रविवार को भतीजी सुबह ही दिल्ली के लिए रवाना हो गयी। हम लोगों ने साईं मंदिर में दर्शन किए फिर जबदरस्त बारिश हो गयी। इस कारण कहीं जाने का कार्यक्रम बन नहीं पाया। सोमवर को भाई साहब लोगों को वाघा बॉर्डर के लिए भेज दिया। सुबह पांच बजे ही उनकी रवानगी हो गयी। बीच में एक बड़ा व्यवधान आया, लेकिन उसका जिक्र नहीं करूंगा। कहते हैं कि नकारात्मक बातों को ज्यादा कहना नहीं चाहिए। बस ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए और ईश्वर से हमेशा सकारात्मकता की प्रार्थना करनी चाहिए। यही किया। सब ठीक रहा। मंगलवार रात भाई साहब लोग आ गए। मैं दिल्ली से लौटा करीब 9 बजे। कुछ देर बातचीत हुई, फिर सो गए। बुधवार आराम करने के लिए रखा गया। धूप में बैठकर खूब बातें हुईं। कुछ बचपन की। कुछ ईजा द्वारा बतायी गयीं। कुछ कन्नू-दीपू के बचपन की। इसी दौरान कार्यक्रम बना कि बृहस्पतिवार सुबह मनसा देवी मंदिर, पंचकूला चला जाये। सुबह सभी लोग स्नान कर, बिना कुछ खाये मनसा देवी माता के दर्शन को गए। यहां भी मन में थोड़ी सी चिंता कि क्या भाभी जी चल पाएंगी, फिर हौसला बुलंद था। बहुत सुंदर तरीके से माता के दर्शन हुए, वहीं भंडारा में भोजन हुआ। दोपहर तक हम लोग फ्री हो गए। फिर सुखना लेक सभी को पहुंचाकर मैं एक जरूरी काम से आ गया। उस जरूरी काम का भी यहां जिक्र नहीं कर रहा हूं। शाम को सारा परिवार ताजा-ताजा चंडीगढ़ में शिफ्ट हुए मेरे बच्चों के छोटे मामा के परिवार के यहां गया। वहीं भोजन कर सब लोग रात 11 बजे तक आए। मैं भी ऑफिस से पहुंच गया। कुछ देर गपशप चली और सो गए। शुक्रवार को महाशिवरात्रि थी, इसी दिन भाई साहब को लौटना भी था। हालांकि धवल का आग्रह था कि बर्थ-डे यानी 10 मार्च तक रुक जाएं, लेकिन रिजर्वेशन हो चुका था। भतीजा उसे लेकर सुबह मार्केट गया और उसे ढेर सारे कपड़े दिला लाया। कुछ लोगों का व्रत था, कुछ लोगों ने भोजन किया और भाई साहब, भाभीजी, भतीजा, बहू और बच्चा रवाना हो गये, अमरोहा के लिए। पता ही नहीं चला कि एक हफ्ता कब निकल गया। कई सारे लोकेशन पर जाना अभी रह गया। तय हुआ कि अगली बार पहले से कार्यक्रम बनाकर आगे बढ़ेंगे, हालांकि हम सब कहां कुछ करते हैं, सब भगवान के आशीर्वाद से होता है। इसी माह एक और कार्यक्रम बना है, उसका खुलासा समय आने पर करूंगा। मन को समझाया कि बिछड़ना इसलिए जरूरी है कि फिर मिल सकें। यहां पर यह जिक्र करना जरूरी है कि इस पूरे सप्ताह हेमांक हम सबका हीरो बना रहा। उसकी हंसी, उसका रोना, उसकी अन्य हरकतें हम सबको मोहती रहीं। ईश्वर उसे स्वस्थ रखे। परिवार का यह संक्षिप्त मिलन बेहद यादगार रहा। सफर का यह दौर यूं ही चलता रहे। अंत में इंटरनेट से उठाया मशहूर शायर का एक शेर प्रस्तुत है-
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
साथ ही इस मिलन और सफर कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें और वीडियो आपके लिए-















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