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Friday, December 27, 2024

संस्था जैसे व्यक्तित्व का प्रभावी ‘चित्रण’

डॉ. चंद्र त्रिखा जी किसी परिचय के मोहताज नहीं। पिछले दिनों उन पर आयी पुस्तक पढ़ने का मौका मिला। संपादित समीक्षा हमारे अखबार दैनिक ट्रिब्यून में छपी। उसी को यहां पोस्ट कर रहा हूं।

साभार : दैनिक ट्रिब्यून 



केवल तिवारी

पत्रकार, साहित्यकार, कवि, शायर और कहानीकार डॉ. चन्द्र त्रिखा एक ‘संस्था’ की तरह हैं। डॉ. त्रिखा सरीखे विविधि आयामों वाले संस्थागत व्यक्ति का फलक इतना विस्तृत होता है कि उसे चंद शब्दों में समेटना आसान नहीं होता। लेकिन प्रो. लालचंद गुप्त ‘मंगल’ के संपादकत्व में ऐसा हुआ। डॉ. त्रिखा पर हाल ही में पुस्तक प्रकाशित हुई। नाम है, ‘विलक्षण कलम-साधक चन्द्र त्रिखा।’ चूंकि जब ऐसे ख्यात लोगों की बात होती है तो जाहिर है उनका लेखकीय दायरा सीमित नहीं होता। आलोच्य पुस्तक में भी डॉ. त्रिखा के साथ-साथ अन्य महान विभूतियों के बारे में, प्रसंगवश ही सही, जानकारी मिल जाती है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. त्रिखा के जीवन के जितने पहलू हैं, उतनी ही विविधता पुस्तक की सामग्री में मिल जाती है। साहित्य और पत्रकारिता क्षेत्र के धुरंधरों ने रोचक शैली में डॉ. त्रिखा और उनकी लेखनी पर अपनी राय रखी है। अनेक किताबें लिख चुके डॉ. त्रिखा औरों को भी लिखने-पढ़ने के लिए प्रेरित करते साथ ही आसपास के इलाकों में ही जानकारी लेने के उद्देश्य से घूमने के लिए प्रेरित करते। उन्होंने साहित्य प्रेमियों को हरियाणा साहित्य अकादमी में ‘पुस्तकों के लंगर’ में आने का न्योता भी दिया। प्रस्तुत किताब में अपने अतीत का संक्षिप्त विवरण डॉ. त्रिखा ने ही दिया है। विभाजन के खौफनाक मंजर से लेकर वर्तमान समय तक के विवरण का चित्रांकन उन्होंने ‘गागर में सागर भरने’ की तरह कर दिया। पुस्तक के संपादकीय संयोजन और लिखने वालों का कमाल ही है कि कहीं भी चीजों का दोहराव नहीं है। जाने-माने साहित्यकार माधव कौशिक ने डॉ. त्रिखा के संपूर्ण जीवन पर अपने ही अंदाज में प्रकाश डाला है। वह लिखते हैं, ‘समर्पित पत्रकार व साहित्यकार के नाते उन्होंने अपनी समकालीन पीढ़ी के साथ अनवरत संघर्ष किया तथा आने वाली पीढ़ी के रचनाकारों व पत्रकारों के समक्ष नये क्षितिज व आयाम प्रस्तुत किये। पंद्रह वर्ष की अल्पायु से लेकर आज तक उनका व्यक्तित्व संघर्ष की आग में निरंतर तप रहा है।’ पत्रकार डॉ. किरण चोपड़ा ने तत्कालीन समाज की विभूतियों, अखबारों और संघर्षों का बेहतरीन चित्रण किया है। किताब के संपादक डॉ. लालचंद गुप्त ‘मंगल’ ने ‘विभाजन की विभीषिका के आख्याता’ शीर्षक से डॉ. त्रिखा की रचनाओं के हवाले से पृष्ठ संख्या के साथ बिंदुवार वर्णन किया है। पुस्तक में अपने दूसरे लेख ‘डॉ. चन्द्र त्रिखा का आध्यात्मिक चिन्तन’ में डॉ. मंगल लिखते हैं, ‘संतई प्रकृति और सूफियाना मस्ती के धनी, सादा जीवन : उच्च विचार के पोषक… डॉ. चन्द्र त्रिखा की लेखनी से सांस्कृतिक सरोकारों को संबोधित करते हुए, जब भी कोई नयी कृति प्रस्फुटित होती है तो एक नया सवेरा उदित होता है…।’ ‘कैसे उम्र गुजारी लिख…’ शीर्षक से ज्ञानप्रकाश विवेक ने डॉ. त्रिखा के शायराना और कवित्व अंदाज पर प्रकाश डाला है। डॉ. सुभाष रस्तोगी ने उनकी रचनाओं पर विशेषतौर से प्रकाश डाला है। डॉ. जगदीश प्रसाद ने इतिहासकार के तौर पर डॉ. त्रिखा की रचनाओं के हवाले से दिल्ली दर्शन कराया है। साथ में हरियाणा और आसपास की ऐतिहासिकता की भी संक्षिप्त एवं सारगर्भित जानकारी दी है। उपरोक्त के अलावा डॉ. त्रिखा पर डॉ. उषा लाल, चरणजीत ‘चरण’, डॉ. शमीम शर्मा, डॉ. रामफल चहल, डॉ. विजेंद्र कुमार ने भी अपने अनुभव साझा किए हैं। भाषा-शैली की विविधता के साथ विभिन्न लेखकों ने डॉ. चन्द्र त्रिखा पर जो जानकारी इस किताब में दी है उससे किताब सचमुच संग्रहणीय बन पड़ी है।
पुस्तक : विलक्षण कलम-साधक चन्द्र त्रिखा, संपादक : प्रो. लालचंद गुप्त ‘मंगल’, प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन, पटपड़गंज- दिल्ली, पृष्ठ : 144, मूल्य : 220 रुपये

Saturday, December 14, 2024

अच्छी संगत से ही चलेगा नशे पर नश्तर



साभार: दैनिक ट्रिब्यून 

https://www.dainiktribuneonline.com/news/features/only-good-company-can-cure-addiction/

पिछले दिनों डॉ अरदास संधू से मुलाकात हुई। बात हुई। फिर बनी एक स्टोरी। दैनिक ट्रिब्यून के लिए। सावधान और सीख देने वाली। 

विरोध के स्वर ‘बुलंद’ होने के बावजूद नशे का ‘जाल’ देशभर में बुरी तरह से फैल रहा है। अब सबसे बड़ी चुनौती भावी पीढ़ी को बचाने की है। अच्छी संगत, दृढ़ इच्छाशक्ति और स्वस्थ जीवनशैली जैसे कुछ उपायों से नशे के जाल को कैसे काटा जा सकता है, पढ़िये पूरा विवरण…

केवल तिवारी
महापुरुषों के दिखाए रास्ते के मुताबिक संगत यानी दोस्ती-यारी की बात करें तो दो तरह की सीख सामने आती हैं। एक, जिसमें रहीम दास जी कहते हैं, ‘कह रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।’
और दूसरा, जिसमें कबीरदास जी कहते हैं, ‘संत ना छोड़े संतई, कोटिक मिले असंत। चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।’
पहले दोहे में रहीम दास जी के कहने का अर्थ है कि दो विपरीत प्रवृत्ति (सज्जन-दुर्जन) के लोग साथ नहीं रह सकते। उन्होंने बेर और केले के पेड़ का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर दोनों आसपास होंगे तो उनकी संगत कैसे निभ सकती है? दोनों का अलग-अलग स्वभाव है। बेर को अपने रसीले होने पर घमंड है, लेकिन कांटेदार है। केले के पेड़ को अपने पत्ते पर घमंड है, लेकिन बेर के कांटों से वह छिल जाते हैं।
दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि सज्जन पुरुषों को जितने मर्जी गलत लोग मिल जाएं, लेकिन उसकी सज्जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने उदाहरण दिया कि चंदन के पेड़ पर जहरीले सांप लिपटे रहते हैं, लेकिन वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता
इन दोनों उदाहरणों से इतर एक प्रसिद्ध उद्धरण है, ‘काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाए, एक लीक काजर की लागिहै पे लागिहै।’ इसमें कवि कहते हैं कि आप कितने ही अच्छे हों, संगत अगर बुरी है तो उसका असर तो पड़ ही जाता है।
संगत के संबंध में उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से बात कर रहे हैं नशे की गिरफ्त में आती हमारी नयी पीढ़ी की। पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड हो या फिर कोई अन्य राज्य। नशे के कारण नाश की ओर बढ़ते बच्चों की दर्दनाक कहानियां अक्सर सुनने, पढ़ने और देखने को मिल जाती हैं। अत्यंत दुखद स्थिति तो तब होती है जब यह पता चलता है कि जिनके कंधों पर नशे के सौदागरों को रोकने की जिम्मेदारी थी, वे ही नशे के कारोबारी बने मिले।
असल में अच्छी या बुरी संगत की बात आज हम नशे की लत के साथ जोड़कर कर रहे हैं। क्योंकि पिछले दिनों अनेक जगहों से ऐसी खबरें आयीं जिनका लब्बोलुआब यह था कि खराब संगत से चिट्टे की लत लग गई। सिल्वर पन्नी पर रखकर इस सफेद जहर को पीना शुरू किया। लत ऐसी लगी कि घर के बर्तन तक बेच दिए। नशा सिर्फ चिट्टे का ही नहीं, और भी कई तरह का, जिसने नाश की ओर ही धकेला। जानकार कहते हैं कि अपनी इच्छाशक्ति दृढ़ रखने वाले विरले ही होते हैं, खासतौर पर किशोरावस्था-युवावस्था की दहलीत पर पहुंचे बच्चे। इसलिए ऐसे मौकों पर बच्चों पर नजर रखनी बहुत जरूरी है। संगत की बात इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि सफलता की कुंजी कहती है कि जीवन की सफलता अच्छी आदतों में ही निहित है। अच्छी आदतें और ज्यादा डेवलप हों और बरकरार रहें, इसके लिए अच्छी दोस्ती जरूरी है। अभिभावक इस बात को जितनी जल्दी समझ जाएं अच्छा है। क्योंकि समय निकल जाने के बाद किया गया प्रयास व्यर्थ ही होता है। जानकार कहते हैं कि किशोरावस्था और युवावस्था में बुरी आदतें अधिक प्रभावित करती हैं। इसलिए उम्र की इन अवस्थाओं में विशेष सतर्कता और सावधानी बरतने की जरूरत है। नशा व्यक्ति की बुद्धि का नाश करता है। सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की कार्य क्ष गई मेंमता प्रभावित होती है। इसलिए इससे दूर रहने से ही तरक्की के दरवाजे खुलते हैं। इसी तरह बुरी संगत से नकारात्मकता आती है। सफलता प्राप्त करने के लिए नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए। बुरी संगत से विचार भी बुरे आते हैं। इसलिए बुरी संगत से दूर रहना जरूरी है।
खेप पकड़ी गयी, कहां खप रहा नशा
आयेदिन खबरें आती हैं कि नशे की इतनी खेप पकड़ी गयी। जो नशा पकड़ा गया, हो सकता है उसे नष्ट कर दिया जाता हो, लेकिन जो पहुंच गया, वह कहां खप रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नशा कहां खप रहा है। जवान होते बच्चे उनकी गिरफ्त में आ रहे हैं, आखिर तंत्र कहां छिपा रहता है। हो-हल्ला मचाने के अलावा ठोस रणनीति बनायी जानी बहुत जरूरी है।

युवाओं को बर्बाद करने की अंतर्राष्ट्रीय साजिश

जानकार कहते हैं कि देश की भावी पीढ़ी को बर्बाद करने की यह अंतर्राष्ट्रीय साजिश है। ओवरडोज से मौत, नशे के लिए घर-बार की बिक्री जैसी खौफनाक खबरें आयेदिन आती रहती हैं। विभिन्न सीमाओं से अलग-अलग तरीके से अलग-अलग तरह के नशे की सामग्री पहुंच रही है। सीमाओं पर नशे की इस घुसपैठ के खिलाफ एनकाउंटर अभियान चलाया जाना बेहद जरूरी है। नहीं तो स्थिति और भयावह होने से कोई नहीं रोक पाएगा।

 क्या कहते हैं विशेषज्ञ
 ‘बेहतर कल के लिए आज जरूरी अच्छी संगत’
डॉ. अरदास संधु
न्यूरो साइकियेट्री


संगत यानी दोस्ती-यारी एवं स्कूल का माहौल अच्छा हो, बेहतरीन पैरेन्टिंग, महिलाओं के सम्मान की बचपन से ही शिक्षा, सरकारी इच्छाशक्ति। ये सारी चीजें सुदृढ़ हों तो कोई ताकत नहीं कि हमारी भावी पीढ़ी को नशे के गर्त में धकेल सके। यह कहना है न्यूरो साइकियेट्री डॉ. अरदास संधु का। नैतिक शिक्षा को जरूरी मानते हुए डॉ. अरदास कहते हैं कि नशा हो या कोई भी असामाजिक गतिविधि, बच्चों पर सीधा असर संगत का पड़ता है। बच्चे को जैसी संगत मिलेगी, उसका असर वैसा ही पड़ेगा। संगत दो-तीन तरह की हो सकती हैं। एक तो आपके सीनियर आपके अच्छे दोस्त हो सकते हैं। उनके साथ आपकी अच्छी बनती है। दूसरे, आपके जूनियर यानी आपसे कम उम्र के लोग आपके मित्र हो सकते हैं। या फिर आपके हमउम्र ही आपके दोस्त होते हैं। हमउम्र दोस्त तो आदर्श माने ही जाते हैं। अगर सीनियर यानी आपसे ज्यादा उम्र के आपके दोस्त हैं तो इस पर नजर रहनी चाहिए कि आपका वह दोस्त जो आपका ‘रोल मॉडल’ है, वह कैसा है? क्या आपका रोल मॉडल वह है जो बहुत ज्यादा खर्च करता है, उसकी लाइफस्टाइल एकदम अलग तरीके की है वह पिज़्ज़ा, बर्गर खाने वालों में से है। या आपका रोल मॉडल वह है जो बच्चा लाइब्रेरी जा रहा है, पढ़ाई के प्रति गंभीर है। अच्छी आदतों वाला है। बेवजह नहीं घूमता। इसी क्रम में यह बात भी आती है कि आपका साथी किस तरह के गाने सुन रहा है। किस तरह की जिंदगी जी रहा है। उसकी धार्मिक प्रवृत्ति कैसी है। धार्मिक होना बुरी बात नहीं, लेकिन कट्टरता खराब है। 
डॉ. अरदास कहते हैं कि स्कूल की जिम्मेदारी बहुत सशक्त है। बेशक बच्चों की संगत पर नजर रखने की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा माता-पिता की है, लेकिन स्कूल ने इनीशिएटिव लेना चाहिए। बच्चे का ज्यादातर समय स्कूल में व्यतीत होता है। वह किस तरह का व्यवहार करता है इस बात को लेकर बच्चे के माता-पिता से स्कूल का संपर्क रहना चाहिए और माता-पिता को भी चाहिए कि बच्चे के व्यवहार में तब्दीली पर वे स्कूल से संपर्क करें। घर से और स्कूल से शुरुआत से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं का सम्मान करें। इसके साथ ही परिवार के लोग आपस में बातें करें। कई बार हम परिवार में देखते हैं कि लोग साथ तो बैठे हैं, लेकिन हर कोई अपने-अपने फोन पर लगा रहता है। इसकी वजह से भी अनजाने में ही बच्चे के कोमल मन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वह वर्चुअल लाइफ को ही दुनिया समझने लगता है।
नशे की समस्या से निजात पाने के लिए डॉ. अरदास शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन को भी जरूरी मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस तरह से समय बदला है, उस हिसाब से शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है। बच्चों को नैतिकता सिखाई जाये। साथ ही वह ‘हेल्दी डाइट’ को भी आवश्यक तत्व मानते हैं। डॉ. संधु का मानना है कि स्वस्थ भोजन शैली का तन-मन पर बहुत असर पड़ता है। नशा रोकने में सरकार की भूमिका के सवाल पर वह कहते हैं कि इच्छाशक्ति हो तो सब हो सकता है। कई बार ऐसी खबरें आई हैं कि सरकारी अफसर ही नशा तस्करी में पकड़े गये। अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो, लोग अपने कर्तव्यों को समझें तो कोई ताकत नहीं है जो सीमा क्षेत्र से अंदर नशे को हमारे देश में पहुंचा सके। हमारी नयी पीढ़ी को बर्बाद करने वाली साजिशों को बेनकाब किया जाना जरूरी है। इसके साथ ही डॉ. संधु कहते हैं कि बच्चों को ना कहना जरूर सिखाएं। क्योंकि ना कह सकने की आदत या हिम्मत ही हमें नशाखोरी से दूर रख पाएगी। पहले शौकियां, फिर दोस्तों की जिद में हां, हां करते-करते जीवन की खुशियां हमसे ना कहने लगती हैं। इसलिए गैर जरूरी बातों पर ना कहना जरूरी है।

Monday, December 2, 2024

ड्यूटी चार्ट, गिनती और राजीव जी की भावभीनी सेवानिवृत्ति

केवल तिवारी

दैनिक ट्रिब्यून की हमारी समाचार संपादक मीनाक्षी जी ने कुछ दिन पहले तीन-चार दिन के ड्यूटी चार्ट पर नजर डालने को कहा। मैंने 30 नवंबर तक के ड्यूटी चार्ट देखे। एक दिसंबर के चार्ट में एक साथी कम लगा। मैं बार-बार गिनूं, लेकिन समझ नहीं आया कि एक व्यक्ति कम कौन हो रहा है। फिर एक-एक नाम को देखा। अचानक ध्यान आया, ओह राजीव जी एक दिसंबर से दैनिक ट्रिब्यून के न्यूजरूम का हिस्सा नहीं रहेंगे। मन भावुक हुआ। फिर मन को ही समझाया कि यह तो कार्यालयी या यूं कहें नौकरीपेशा का एक सिस्टम है। अथवा जैसा कि, प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में संपादक नरेश कौशल जी ने कहा कि जब व्यक्ति परिपक्व होता है, अनुभवी होता है उसी समय एसे रिटायर होना पड़ता है, राजीव जी एनर्जेटिक हैं, हंसमुख हैं, काम को बहुत अच्छी तरह निष्पादित करते हैं। 


खैर जब ड्यूटी चार्ट वाली बात आ गयी और देखते-देखते 30 नवंबर भी आ गया तो प्रेस क्लब में राजीव जी को लेकर सब अनुभवों को साझा करने लगे। शायद ही कोई होगा जिसने राजीव जी के हंसमुख व्यक्तित्व और हाजिर जवाब व्यवहार की प्रशंसा न की हो। साथ आयीं भाभी जी ने भी राजीव जी को बेहतरीन पति बताया जो हर वक्त साथ खड़े होते हैं। यह बात तो जग जाहिर है कि जो व्यक्ति घर से अच्छा है वह हर जगह अच्छा होगा ही। प्रेस क्लब से लौटने के बाद भी हम राजीव जी की ही बातें करते रहे। शाम को राजीव जी ऑफिस पहुंचे। कुछ देर मीनाक्षी मैडम के साथ बातचीत के बाद वह सभी से मिलने गये और फिर हम सभी लोग उन्हें गेट तक छोड़ने गये। इससे पहले राजीव जी ने मैं पल दो पल का शायर हूं गीत की दो पंक्तियां सुनाईं जिसमें मशरूफ जमाना... शब्द हैं। इस गीत को मैंने अगले दिन फिर ध्यान से सुना और इस बार इसका कुछ और ही मतलब समझ आया। विदाई कार्यक्रम में मैं तो दो ही पंक्ति गुनगुना पाया जिसके बोल थे, हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यों है, अब तो हर वक्त यही बात सताती है हमें।' राजीव जी भले ही ऑफिस से सेवानिवृत्त हुए हैं, लेकिन संबंधों से नहीं। उनसे मिलना-जुलना बना रहेगा। बातें होती रहेंगी। छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते...। राजीव जी स्वस्थ रहें और प्रसन्न रहें। कुछ फोटो साझा कर रहा हूं।