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Sunday, April 13, 2025

हेमंत पाल जी : व्यक्तित्व, कृतित्व और फ्लैशबैक

केवल तिवारी

चूंकि यह कोई औपचारिक लेखन नहीं है, इसलिए इसे अपने अंदाज में ही लिखूंगा। इस अनौपचारिक ब्लॉग लेखन में बात वरिष्ठ पत्रकार, लेखक हेमंत पाल की। उनके साथ कुछ 'फ्लैशबैक नाता' है। एक तो यह कि वह मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित दैनिक नईदुनिया में लंबे समय तक रहे, मैं भी उसी अखबार के दिल्ली केंद्र में कुछ समय रहा। उनके लेखन को मैंने पहले भी पढ़ा है। अब वह हमारे अखबार दैनिक ट्रिब्यून के नियमित लेखक हैं। एक साल पहले उनसे इंदौर में मुलाकात हुई। वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार नरेंद्र निर्मल की बिटिया की शादी समारोह में। मुलाकात का जरिया बने हमारे अखबार के सहायक संपादक अरुण नैथानी जी।



अब बात हेमंत पाल जी के फ्लैशबैक की। थोड़ी देरी हुई उनकी इस रचना के बारे में लिखने में। फिल्मी दुनिया पर आधारित उनकी इस किताब को नयी दिल्ली स्थित भारत मंडपम से फरवरी में विश्व पुस्तक मेले के दौरान ही खरीद लिया था, लेकिन बीच में दो किताबें मुझे अपने कार्यालय से मिली थीं, समीक्षा के लिए। उनकी समीक्षा कर दी फिर कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं में रहा। इस बीच, समय मिलते ही पूरी किताब पढ़ डाली। किताब के बारे में लिखने से पहले बता दूं कि हेमंत जी अक्सर हमारे अखबार के मनोरंजन मैग्जीन के लिए लिखते हैं। अन्य कई जगह भी उनका लेखन चलता है। वह जितना अच्छा लिखते हैं, उतने ही बेहतर मिलनसार व्यक्ति हैं। पहली औपचारिक मुलाकात में ही छा जाने वाले। अब बात पुस्तक 'फ्लैशबैक' की। 

पुस्तक का पूरा नाम है फ़्लैश बैक (फिल्मी कथानकों के इतिहास का लेखा-जोखा) कवर पेज आकर्षक है। रील जैसी छवि में तीन पोस्टर हैं। कुल 24 अध्यायों वाली इस किताब में लीक से हटकर फिल्मी जानकारी है। कह सकते हैं कि गागर में सागर भर दिया है। फिल्में चल पड़ने कि कोई सेट फार्मूला नहीं है। खूब लंबी फिल्में बनीं, दो-दो इंटरवल वाली। छोटी भी बनीं। कथानकों को लेकर भी विविध प्रयोग हुए। गीतों से भरपूर फिल्में भी बनीं। सच्ची घटनाओं पर भी फिल्म बने, विषयों पर भी विविधता दिखी। बात चाहे होली के रंगों की हो, भूत-प्रेत की कहानियां हों, सस्पेंस की हो या कुछ और... हेमंत जी ने आम जानकारी से हटकर सामग्री पेश करने की सफल कोशिश की है। कुल 24 अध्यायों वाली यह किताब पठनीय और संग्रहणीय है। प्रकाशक का नाम है, न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नयी दिल्ली। मुद्रक, सूरज प्रिंटर्स और लेआउट नितिन पंजाबी (बीएस ग्राफिक्स, इंदौर) फिल्मी दुनिया पर इस बेहतरीन किताब के लिए हेमंत जी को हार्दिक बधाई।






यादों के खजाने में एक और आभूषण, अपनेपन का भव्य समारोह

केवल तिवारी

अपनों का आना, खुशियों को मनाना

कुछ बातें बनाना, कुछ सुनना-सुनाना।

नयी पीढ़ी को संस्कार भी हैं सिखाना

'भव्य' कार्यक्रम में जनेऊ धारण करना।


आगंतुक बने बदलते मौसम के गवाह

सबको भायी चंडीगढ़ की हरियाली राह।

दो-तीन दिन फुर्र हुए, और भी रहीं चाह

अब यादों को समेटे कह रहे हैं वाह-वाह।



उक्त पंक्तियां अभी अनायास निकल गयीं, जब एक पारिवारिक, सांस्कारिक समारोह के संबंध में अपने इस ब्लॉग की रूपरेखा बना रहा था। असल में गत नौ अप्रैल को बालक भव्य जोशी का जनेऊ संस्कार हुआ। भव्य जी के पिता भास्कर जोशी और मेरी पत्नी भावना जुड़वां भाई बहन हैं। इसलिए इस कार्यक्रम की कड़ी ऐसी ही हुड़ती हुई मिलेंगी। इसमें एक और रोचक है कि भव्य और मेरा बेटा धवल लगभग समान उम्र के हैं और अभी एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ते हैं। पहले कार्यक्रम जनवरी में तय था। लगभग तैयारी भी हो गयी थी, हरिद्वार जाने की योजना थी। फिर कहते हैं न कि होई हैं वही जो राम रचि राखा। साथ ही यह भी कि 'ईश्वरं यत करोति शोभनम करोति।' वही हुआ। सब ठीक हुआ, मेरा उपस्थित रहना इसलिए मुश्किल लग रहा था कि मेरा लखनऊ जाने का कार्यक्रम बन चुका था। फिर कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि लखनऊ जाना टला और इस कार्यक्रम का गवाह बना। हल्द्वानी से आए साढू भाई सुरेश पांडेजी उनकी माता जी, उनकी पत्नी, बड़ी भाभीजी, उनकी बेटी, शेखरा दा उनकी पत्नी उनके सुपुत्र। गुड़िया दीदी, उनका बेटा और बेटी। (स्पष्ट है कि सभी आगंतुक ससुराल पक्ष की कड़ियों से जुड़ी कड़ी हैं)। साथ में भास्कर और प्रीति के पड़ोसी।


हंसी-मजाक और कुछ सैर सपाटा

कार्यक्रम की शुरुआत से ही हंसी-मजाक चलती रही। पांडेजी और मैं 'सेंट्रल सब्जेक्ट' रहे। फूफा की श्रेणी के हम दोनों ने भी इसे खूब एंजॉय किया। अपने पास कोई खास काम नहीं था, इसलिए बातों में ही ज्यादा मशगूल रहा। हालांकि कभी-कबार मन में कुछ-कुछ चलता रहा, लेकिन इस कुछ-कुछ को हावी नहीं होने दिया। खूब बातें कीं। लोगों के विचार भी जानने को मिले। कुछ कहानियों और कविताओं के सब्जेक्ट भी मिल गये। भव्य चूंकि बहुत हंसमुख, चंचल है तो उसने भी सबका मन लगाकर रखा। धवल और भव्य भले नेचर में थोड़ा अलग हों, लेकिन दोनों में एक बात कॉमन है कि दोनों मेहमानों के आने पर खुश होते हैं और चाहते हैं कि सब एकसाथ कुछ समय रहें। कोशिश भी की गयी कि बच्चे ग्रुप में कुछ समय साथ रहें। ऐसे में नेहा के नेतृत्व में मृत्युंजय, ईशू, श्रद्धा के साथ इन दोनों बच्चों ने अच्छा समय व्यतीत किया। कुछ समय इसमें सिद्धांत जोशी उर्फ सिद्धू की भी भागीदारी रही। बच्चों के लिहाज से इसे 'Quality time expend' कहा जा सकता है। इसी दौरान घूमने का कार्यकम बना। लगभी सभी लोग रॉक गार्डन, रोज गार्डन, सुखना लेक और शाम को प्रेस क्लब गये। विस्तार से लिखने के बजाय इस ब्लॉग के अंत में उसकी कुछ फोटो साझा करूंगा। बातों-बातों में उनकी बातें भी हुईं जो समारोह में नहीं पहुंच पाए।


मनोज पंडित जी द्वारा मेरे घर भी पाठ

जनेऊ संस्कार समारोह को संपन्न कराने के लिए हल्द्वानी से मनोज पंडित जी पहुंचे थे। वह पांडेजी की माताजी, शेखरदा, लवली भाभी और सिद्धू के साथ मुख्य समारोह की पहली शाम पहुंच गए थे। जनेऊ के अगले दिन हम लोग पंचकूला स्थित माता मनसा देवी मंदिर गए। पंडित जी ने रास्ते में मुझसे कहा कि एक छोटा सा पाठ कर देते हैं। अपने बड़े बेटे कुक्कू के निमित्त में ऐसा चाहता भी था। अचानक बने इस कार्यक्रम को संक्षिप्त लेकिन दिल को खुश करने वाला कह सकते हैं। पूर्णमासी, शनिवार की सुबह घर में हुए इस कार्यक्रम से बहुत तसल्ली मिली। ईश्वर से प्रार्थना है कि सबको स्वस्थ रखें। शनिवार को मेरे घर में पूजा के बाद भास्कर के यहां सुंदरकांड पाठ का आयोजन हुआ। समवेत स्वर में सुंदरकांड पाठ से दिन बन गया। प्रीति की बहन गुड़िया दीदी और लवली भाभी द्वारा बजाये गए ढोल की थाप पर सभी ने एक साथ पाठ से जो भक्तिमय माहौल बनाया वह अविस्मरणीय है।


और फिर लग जाना अपने काम में

आखिरकार मनुष्य तो कर्म के अधीन है। कर्म करते रहेंगे तो अगले ऐसे ही किसी यादगार कार्यक्रम के तैयार होंगे। कर्म प्रधान होने के नाते शनिवार शाम होते-होते आगंतुकों के जाने की शुरुआत हो गयी। रविवार सुबह तक एक बड़ी अपने गंतव्य तक पहुंच गयी। हम सब लोग भी अपने-अपने काम में लग गए। लेकिन इस बीच फोटो, वीडियो का आदान-प्रदान जारी हैं। उन्हें देखते-देखते कुछ बातें भी साझा की जा रही हैं। बातें होती रहेंगी। कार्यक्रम सच में यादगार रहा। भव्य को हम सबकी ओर से ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद, शुभकामनाएं। भास्कर-प्रीति ऊर्फ राजू-पिंकी को बहुत-बहुत बधाई।






























Monday, April 7, 2025

पर्वों की परंपरा महान, जीवों का भी पूरा ध्यान

केवल तिवारी 



हाल ही में चैत्र नवरात्र संपन्न हो गये। इस अवसर पर अलग-अलग दृश्य देखने को मिले। व्रत के वैज्ञानिक पहलुओं पर तो अनेक बार चर्चा हो ही चुकी है। मौसम के संधिकाल में डीटॉक्स होने के लिए ऐसे मौकों पर व्रत का प्रावधान है। बात चाहे चैत्र नवरात्र या वासंतिक नवरात्र की हो अथवा शारदीय नवरात्र की। बेशक आज व्रत का स्वरूप बदल गया है, लेकिन उसका प्रतीक तो है। इस प्रतीक में ही बहुत कुछ तत्व अब भी छिपा है। इस पर ज्यादा चर्चा नहीं। व्रत के अलावा दूसरा दृश्य है पूजा-अर्चना की। लोग बहुत-बहुत देर तक मंदिर या घर में बैठकर पूजा अर्चना करते हैं। मंदिरों में कतारों में लगते हैं। कोशिश करते हैं कि क्रोध न करें। देर तक ध्यानमग्न होना, किसी को बुरा न कहना या न सोचना, ये सभी अध्यात्म के ही तो रूप हैं। इसके अलावा दूसरे दृश्य में कुछ लोगों को खेतड़ी (घर में उगाया गया पंच अनाजा या सतअनाजा) को विसर्जित करते हुए भी देखा। जानकार कहते हैं कि अंकुरण के कुछ दिन के बाद ऐसे पौधे या उन पौधों की जड़ों को जलीय जीव-जंतु बहुत चाव से खाते हैं। बात चाहे श्राद्ध पक्ष में पंछियों एवं गायों को दिए जाने वाले भोजन की हो या फिर विसर्जन सामग्री में शामिल खेतड़ी, जौ, तिल एवं अक्षत यानी चावल के दाने, ये सब पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम, उनके भोजन की व्यवस्था का भाव ही इसके पीछे छिपा है। कहीं-कहीं रंगोली बनाने के पीछे भी यही भाव है। दक्षिण में नियमति रूप से घर के बाहर गेहूं या चावल के आटे की रंगोली बनाई जाती है, इसे चींटियां या अन्य कीट-पतंगे खाते हैं। इसी तरह उत्तर में भी कई जगह चावल को पीसकर गेरू की लिपाई पर रंगोली बनाई जाती है। कुछ त्योहार विशेष तौर से कौओं के लिए होते हैं। उत्तरायणी पर्व पर अनेक जगह कौओं को खिलाने का रिवाज है। सनातनी धर्म व्यवस्था में पशु-पक्षियों के प्रति स्नेह के ऐसे अनेक उदाहरण हैं। कुछ खास व्रत-पर्वों पर कुत्तों को भोजन देने का रिवाज है। इस नवरात्र पर ऐसे ही अनेक दृश्य देखे, जिनपर मंथन किया। कई साल पहले कन्या पूजन और उनको भोजन देने पर एक जानकारी जुटाई थी, तब भी ऐसा ही ब्लॉग लिखा था, इसके अंत में उसका लिंक साझा कर रहा हूं।


जबरन न खिलाइये गायों को

बेशक पशु-पक्षियों के लिए त्योहारों का महत्व हो, लेकिन ध्यान रहे कि जानकार कहते हैं कि पशुओं को जबरन न खिलाइये। कुछ लोग खास मौकों पर पूड़ी, हलवा, सब्जी बनाकर ले जाते हैं और गाय को खिलाने का जतन करते हैं। ऐसे अवसरों पर उन्हें इतना ज्यादा तला-भुना खिला दिया जाता है कि उनके स्वास्थ्य पर बन आती है। कई जगह गायों को चारा देने का भी रिवाज है। अच्छा हो अगर गौशाला प्रबंधकों को सामग्री दे दें या कुछ धन ताकि वे लोग वैज्ञानिक तरीके से गायों के लिए चारा या अन्न लाकर दे सकें।


पंछियों के घौसलों में मत रखिए दाना

पंछियों के लिए दाना आप पार्कों, खेतों में डाल सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि उनके घौंसले में इन्हें कदापि न डालें। उनकी दिनचर्या ही है कि वे खुद दानों की तलाश में निकलती हैं और खुद के लिए एवं अपने बच्चों के लिए इसे लेकर आती हैं। कई बार घौंसलों में उनके बच्चे या अंडे होते हैं। मान्यता है कि यदि मनुष्य उन्हें छू ले तो पंछियों को वह घर डर के मारे छोड़ना पड़ता है। इसलिए दाने कहीं बिखेर दीजिए, लेकिन बेहतर हो अगर घौंसले का दीदार दूर से ही कर लें।


पानी के लिए मिट्टी का बर्तन जरूरी

यदि पंछियों के लिए पानी रखना चाहते हों तो मिट्टी का बर्तन सर्वथा उचित माना जाता है। कुछ लोग प्लास्टिक के बर्तनों में पानी रखते हैं जो कतई उचित नहीं है। यूं तो धातु के बर्तनों में भी पानी नहीं रखना चाहिए क्योंकि उनमें रखा पानी बहुत गर्म हो जाता है, लेकिन अगर रखना ही पड़ जाए तो प्लास्टिक से बेहतर स्टील या अन्य धातु के बर्तन हैं, लेकिन सबसे उपयुक्त हैं मिट्टी के बर्तन।

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Sunday, April 6, 2025

यही है जीवन सार

केवल तिवारी



वैसे तो सूखी टहनी हूं, काम के नाम पर पेड़ हूं फलदार
जेहन से उखाड़कर पत्थर पर रोपा था, राहें थीं कांटेदार
संघर्ष ही जीवन है, इस शिक्षा को सुना नहीं, मैंने था देखा
चलते रहो अपने पथ पर, बनेगी जरूर कोई भाग्य रेखा
मां, भाई-बहनों से सीखा, चलते रहने का सबक
जीवन पथ पर चलते रहेंगे, सांसें हैं जब तक
पतझड़ और वसंत बहार, ये तो हैं जिंदगी के यार
सफलता की राह में, कभी इधर तो कभी उस पार।
जीवन का है सार यही, अपनों के साथ रहो सही
गलत-वलत सब भ्रम है, जीवन का मतलब श्रम है।
हम रुकेंगे, पर वक्त नहीं थमेगा
ये जीवन तो चलता रहेगा।
अपनेपन को रखो बरकरार
बातें यूं ही होती रहेंगी दो-चार।
मन में अचानक आए कुछ उदगार
लिखते-लिखते निचुड़ ही गया सार
स्वास्थ्य आपका पहला मित्र, दूजा परिवार
अकेलेपन को क्यों ओढ़ते हो, मिलकर चले संसार।

Friday, April 4, 2025

याद हैं न मनोज कुमार यानी भारत कुमार की फिल्मों के वे सदाबहार गीत... हर कोई कह रहा है, मैं न भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी...

केवल तिवारी

मशहूर अभिनेता मनोज कुमार नहीं रहे। उन्हें भारत कुमार भी कहा जाता था। उनकी फिल्में तो लाजवाब थी हीं, फिल्मांकन गीत भी एक से बढ़कर एक। कौन नहीं जानता उन गीतों को।
फोटो साभार: सोशल मीडिया 

 आज एक बार फिर उन गीतों की याद आ गयी है। बताया गया कि यूट्यूब पर भी उनके गीतों को खूब सर्च किया गया। बात परेशानी के समय की हो या खुशी या फिर देशभक्ति की, मनोज कुमार की फिल्मों के गीतों ने सबको मोहा ही है। तब भी और आज भी। एक गीत के बोल थे, 'लग जा गले।' यह 1964 में आई फिल्म 'वो कौन थी?' इसी तरह उनकी एक फिल्म का गीत, 'चांद सी महबूबा होगी मेरी' भी खूब चर्चा में रहा। बाद में इस गाने की तो कई पैरोडी भी बनी। यह गीत वर्ष 1965 में तैयार फिल्म 'हिमालय की गोद में' का था। इसे हिमालय की लुभावनी पृष्ठभूमि में फिल्माया गया था। जोश भर देने वाला गीत 'ओ मेरा रंग दे बसंती चोला' तो आज भी खूब बजता है। वर्ष 1965 की फिल्म 'शहीद' के इस गीत को मुकेश ने गाया था। महेंद्र कपूर, लता मंगेशकर और राजेंद्र मेहता ने भी इस गीत को अपनी आवाज दी है। अब जिस गीत की हम चर्चा कर रहे हैं, वह तो जैसे मनोज कुमार नाम का पर्याय ही बन गया था। गीत के बोल हैं, 'मेरे देश की धरती सोना उगले।' वर्ष 1967 की फिल्म उपकार का यह गीत हर भारतीय की जुबां पर चढ़ गया। अब बात करें रोमांटिक मनोज कुमार की। उनकी फिल्म पत्थर के सनम का सदाबहार गीत, 'तौबा ये मतवाली चाल' लाजवाब था। एक अन्य गीत के बोल हैं, 'पत्थर के सनम।' भारत कुमार के तौर पर उनकी फिल्म का एक और मशहूर गीत है, 'है प्रीत जहां की रीत सदा' वर्ष 1970 में रिलीज फिल्म 'पूरब और पश्चिम' का यह गीत दिल को छू लेने वाला है, जिसके बोल प्रेम धवन ने लिखे हैं। महेंद्र कपूर ने इसे भावपूर्ण ढंग से गाया है। अब एक अन्य गीत को भी सदा और सदा बहार कहा जा सकता है। इसके बोल हैं, 'एक प्यार का नगमा है।' वर्ष 1972 में रिलीज फिल्म 'शोर' में मनोज समुद्र किनारे वायलिन बजाते हुए नजर आ रहे हैं। एक अन्य गीत के बोल तो आज भी मौजूं है, 'महंगाई मार गई।' वर्ष 1974 में रिलीज फिल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' के इस गीत को लता मंगेशकर और मुकेश ने गाया है, जो आम आदमी के सामने आने वाली कठिनाइयों पर प्रकाश डालने के लिए लोकप्रिय हुआ। कुल 10 लोकप्रिय गीतों की अंतिम कड़ी का मशहूर गीत है, 'मैं ना भूलूंगा।' सच में आज मनोज कुमार के लिए हर कोई यही कह रहा होगा। सादर नमन