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Friday, October 10, 2025

यह भ्रम कोई संकेत या प्रकृति का सहज गुण...

 



केवल तिवारी
यह भ्रम कोई संकेत है या फिर प्रकृति का सहज गुण। कहा जाता है कि इंसान अपनी प्रकृति बदल सकता है। यानी उसमें सुधारात्मक जिसे सकारात्मक कह सकते हैं या फिर नकारात्मक अथवा नेगेटिव गुण-दुर्गुण आ सकते हैं। कुछ लोग समय के साथ अपने नेगेटिव थॉट में बदलाव ले आते हैं और जीवन दर्शन के हिसाब से चलने लगते हैं और कुछ लोगों में नकारात्मकता बढ़ती जाती है। कुछ अनुभव से सीखते हैं और कुछ खुद के अनुभव को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। यानी मैं सही हूं, या कोई भला माने या बुरा, मैं तो ऐसा ही हूं। लेकिन तमाम शोध, जानकारों की बातचीत और मोटिवेशनल लोगों की बातों का निचोड़ तो यही निकलता है कि समय के साथ कदमताल करने वाला ही श्रेष्ठ है। जीवन दर्शन को समझने वाला ही महान है। परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं। हर परिस्थिति से पार पा लेने की उम्मीदभर कर लेने वाला उन लोगों के बनिस्पत ज्यादा अच्छा है जो हार मान लेते हैं। खैर... भ्रम या संकेत का यह वाकया मेरे दिमाग में इसलिए कौंधा क्योंकि मेरे आंगन में लगे गुलबांस या गुल अब्बास अथवा four o'clock या फिर कृष्णकली जैसे कई नामों से जाने जाने वाले फूल के दो पौधे लगे हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ये फूल सामान्यत: दोपहर बाद यानी चार बजे के आसपास खिलते हैं। उसी तरह जिस तरह एक फूल सुबह आठ-नौ बजे के आसपास खिलता है जिसे हम office time भी कहते हैं। अब ये जो 4o'clock फूल है पिछले दिनों सुबह-सुबह ही खिल गए। मैं आश्चर्य में पड़ गया। करीब आठ बजे। इससे दो दिन पहले ही पूर्णमासी के व्रत के दौरान पत्नी ने इन्हें शाम पांच बजे के दौरान तोड़ा था, पूजा के लिए। अब मेरी नजर इस पर पड़ी। मैंने पत्नी को बुलाया, और सवालिया अंदाज में पूछा आज ये फूल सुबह-सुबह कैसे खिल गए? जवाब मिलने से पहले ही मुंह से निकल पड़ा जिस तरह मौसम कनफ्यूज है, उसी तरह ये फूल भी लगता है भ्रम की स्थिति में आए हैं। फिर मुझे ध्यान आया मौसम विभाग की ओर से जारी अलर्ट संबंधी खबर का। पहली रात ही अपने अखबार दैनिक ट्रिब्यून (The Tribune Group) में खबर लगाकर आया था कि दो दिन जोरदार बारिश हो सकती है। आज जब शाम के फूलों को सुबह खिला देखा तो नजर आसमान की ओर भी गयी। बेशक सुबह के करीब आठ बज रहे थे, लेकिन लग रहा था मानो शाम हो रही हो। घने बादल। चिड़ियों का ऐसा शोर जैसे शाम के वक्त वह घरों को लौटने के लिए करती हैं। फिर मन में सवाल आया कि यह प्रकृति का भ्रम है या फिर कोई संकेत। भ्रम तो कतई नहीं हो सकता। कम से कम प्रकृति तो भ्रम में हो ही नहीं सकती। प्रकृति हिसाब तो बराबर कर सकती है, जैसा कि पहाड़ों से इस बार खतरनाक खबरें आईं। सहायक नदियों के किनारे जिन्हें उत्तराखंड में गध्यार कहा जाता है, के किनारे बड़े-बड़े रिसॉर्ट बन गये। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई, विकास के नाम पर पहाड़ों को तोड़ा-फोड़ा गया और नतीजा। इसलिए प्रकृति भ्रम में तो नहीं, अलबत्ता संकेत है कि शाम जैसा नजारा है। कम से कम आज तो दिन नहीं निकलेगा, आज शाम ही है। तभी तो फूल कह रहे थे, लो मैंने भी मान लिया है कि आज दिनभर तो शाम जैसा नजारा रहना है। फूल कह रहा है, लो जी मैं तो खिल गया। बदलाव के साथ चल दिया। संकेत यह भी कि तेज बारिश हो सकती है, मेरी खूबसूरती लुभा रही तो मुझे बचाने का उपाय कर लो। नहीं भी करोगे तो मैं झेल लूंगा तेज बारिश। फिर उठ खड़ा होऊंगा। बदलाव से सामंजस्य बिठाना हमें आना चाहिए। फूल तो अच्छे ही लगते हैं, बेमौसमी भी, लेकिन यह तो बेवक्त खिले हैं, लेकिन अच्छे लग रहे हैं। भ्रम तो मैं न ही पालूं, संकेतभर ही हो सकता है, क्या कहते हैं आप....

Thursday, October 2, 2025

चौधरी शिवराज सिंह जी की बात, अंकल जी की बात... उसूलों के साथ... सादर नमन

केवल तिवारी

अगर आप कुछ उसूलों वाले हों (वैसे उसूलों वाली पीढ़ी अब रही नहीं... फिर भी), आपके उसूलों पर आपकी संतानें भी अगर कोई किंतु-परंतु न करती हों, आपका ध्यान रखती हों। इन सबके साथ अगर आप में जिंदगी जीने की जिजीविषा हो तो निश्चित तौर पर आप ठीकठाक जिंदगी जीयेंगे। यह ठीकठाक जीने की एक तात्कालिक उदाहरण हैं हम मित्रों के आदरणीय अंकल चौधरी शिवराज सिंह जी। हमारे मित्र धीरज ढिल्लों के पिताजी। इस परिवार से ढाई दशक से पुराना नाता है।



 गत 20 सितंबर को अंकल जी के निधन की सूचना मिली। सांत्वना देते-देते धीरज को भी कह बैठा, 'मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं, पिताजी जी गये।' अंकल जी की कई बातें याद हैं। उनकी उन बातों का यदा-कदा जिक्र भी मैंने किया है। बेबाक बातें, कोई लाग लपेट नहीं। लगता है ऐसी पीढ़ी अब कहां। अब सुनने वाले भी और बोलने वाले भी, दोनों बहुत 'समझदार' हो गये हैं। अभी 30 सितंबर को अंकलजी के लिए अरदास कार्यक्रम में गया। वहां सभी भाई-भाभियों और बच्चों से मुलाकात हुई। अनेक वर्षों से नहीं मिले मित्रों से भी मिलना हुआ। बातों-बातों में अंकल जी का जिक्र आया। अरदास कार्यक्रम में एक सरदार जी ने चौधरी शिवराज सिंह जी के गन्ना समिति के चेयरमैन रहने के दौर के किस्से साझा किये। उन्होंने बताया कि शिवराजजी ने कभी भी उसूलों से समझौता नहीं किया। किसानों के गन्ना का भुगतान नहीं हुआ तो लखनऊ तक जाकर लड़ाई की और सफल रहे। स्कूल खुलवाने का काम किया। अन्य कई लोगों ने भी अपने-अपने विचार साझा किए। मेरा मानना है कि चौधरी शिवराज सिंह जी जैसे लोगों के विचारों, कृत्यों का डाक्यूमेंटेशन होना चाहिए। साथ ही परिवार के लोगों पर भी चर्चा हो, जिन्होंने उनका खयाल रखा। इन चर्चाओं का महत्व है, आलोचनात्मक ही सही। फिर उनकी जीवनशैली का आज के लोगों के साथ तुलनात्मक अध्ययन होना चाहिए। मैं मानता हूं कि ऐसी चीजें जरूर हम सब लोगों के काम आएंगी। साथ ही काम आएंगी वे बातें जो धीरजजी और परिवार ने पूरी शिद्दत, सम्मान के साथ किया। अंकल जी का ध्यान रखा। करीब डेढ़ दशक पहले आंटी इस दुनिया से विदा ले चुकी थीं। उनकी भी बहुत यादें हैं। उनसे जुड़ी कुछ बातों को कहानी के तौर पर लिखा है, खुद संतुष्ट होने पर आप लोगों को पढ़ाऊंगा। खैर... अंकल जी की बातें अब यदा-कदा होंगी। उनकी याद रहेगी ही। वह मुझे भी स्नेह करते थे और राजनीतिक बातें भी मेरे साथ करते थे। सियासी चर्चाओं में उनको रस आता था। उनको सादर नमन करते हुए एक पंक्ति अर्पित करता हूं। क्योंकि गुजरे व्यक्ति के साथ संवाद एकतरफा ही होता है और वह होता है उनके बारे में सोचना और उनके कृत्यों का जिक्र करना-

आप के बा'द हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है। सादर