गगनचुंबी, बर्फीली पहाड़ियों पर सैनिक को मिलता है एक
खूबसूरत संदेश। हाथ से लिखा हुआ, हाथ से ही चित्रकारी। यह संदेश पढ़कर उनमें नया जोश
भर जाता है। संदेश के साथ ही मिलती है मिठाई। उसके बाद तो संदेश के जवाब में शुरू होती
है खत लिखने की कवायद। उस जांबाज सैनिक को तो पता भी नहीं कि खत आया कहां से? बस वह
पूरे जोश और जुनून में लिखता है, 'इस संदेश और मिठाई ने हमें एक नया जज्बा दिया है।
हम हैं प्रहरी, आप आराम से रहिये।' ऐसे अनेक भावुक खतों और किस्सों को सुनने का पिछले
दिनों मौका मिला। कार्यक्रम था चंडीगढ़ के सेक्टर 29 स्थित ट्रिब्यून मॉडल स्कूल के
प्रांगण में। किस्से सुनाने वाली थीं डॉ रंजना
मलिक।
सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वीपी मलिक की पत्नी और आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष।
स्कूल की प्रिंसिपल वंदना सक्सेना को धन्यवाद देना चाहता हूं कि स्कूली कार्यक्रमों
में वह नित नवीनता लाने की कोशिश करती हैं। पिछले पांच सालों से इस स्कूल से जुड़ा
हुआ हूं। एक अभिभावक की भूमिका में। एक रिपोर्टर की भूमिका में और कभी-कभी कुछ कार्यक्रमों
में शिरकत करने वाले एक व्यक्ति की भूमिका में। लंबे समय से अपने अनुभवों को ब्लॉग
पर साझा करना चाहता था, लेकिन हर बार वही व्यस्तता और कभी यह विचार कि इन्हें फिर सहेजा
जाएगा। इस बार लगा कि नहीं बात निकली है तो कह देनी चाहिए, इंतजार तो फिर दूर तलक हो
जाएगा। आर्मी बैकग्राउंड की रंजना ने ट्रिब्यून के बच्चों की तमाम मसलों पर तारीफ करते
हुए बात सेना के मसलों से ही शुरू की और कहा कि अगर अभी यह पूछें कि दो परमवीर चक्र
विजेताओं के नाम बताये जाएं तो शायद कुछ न बता पायें। सैनिकों को असली हीरो उन्होंने
बताया। उनकी बात से कुछ पंक्तियां याद आयीं-
हमको कब बाधायें रोक सकी है,
हम आज़ादी के परवानों को
तूफ़ान भी नहीं रोक सका, हम
लड़ कर जीने वालों को
बात जारी रखते हैं। सैनिकों को मिठाई और खत भेजने वाली
अपनी बात को शुरू करने से पहले उन्होंने बताया कि प्रिंसिपल वंदना सक्सेना ने कहा था
कि वह अपने अनुभवों को साझा करें। उन्होंने कहा कि आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की
अध्यक्ष रहते हुए उनके मन में यह खयाल आया। सैनिकों से जुड़े तमाम महिलाओं ने उनके
काम में हाथ बंटाया। फिर अलग-अलग माध्यमों से खत आये। एक खत तो दिल्ली के गोल मार्केट
स्थित मिठाई की दुकान पर ही पहुंच गया। बाद में जब कई सैनिकों ने जानना चाहा कि खत
आ कहां से रहे हैं तो उन्होंने संस्था (आवा) के लेटरहैड पर एक चिट्ठी अपने हाथों से
लिखी। इसके बाद भी हुआ रोचक वाकया। एक सैनिक ने खत लिखा, ‘आपकी भेजी हुई चिट्ठी हमारे
यहां नोटिस बोर्ड पर लगा दी गयी है। इसलिए आप अलग से एक चिट्ठी लिखिये ताकि इसे हम
अपने पास रख सकें।’ मैडम डॉक्टर मलिक ने ऐसे ही कई रोचक किस्से सुनाये और ताकीद की
कि सैनिकों के बारे में भी बच्चे जानें और समझें।
दो और पंक्तियां यहां पर पेश करने का मन हो रहा है-
हां मैं इस देश का वासी हूं,
इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा
जीने का दम रखता हूं, तो इस
के लिए मरकर भी दिखलाऊंगा।
इन पंक्तियों के साथ ही राष्ट्रकवि
रामधारी सिंह दिनकर जी की भी दो पंक्तियां पेश हैं-
जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
कार्यक्रम के बीच में हमेशा की तरह संगीतमय पस्तुति भी
हुई। बच्चे पुरस्कृत हुए। अलग-अलग मसलों पर बच्चों और टीचर्स ने अपनी बातों को रखा। कार्यक्रम के अंत में मैं डॉ मलिक से बात कर ही रहा था कि एक महिला आयीं और उन्होंने कहा, 'मैं एक सैनिक की मां आपको सैल्यूट करती हूं।' डॉ मलिक ने भी तुरंत जवाब दिया, 'मैं एक सैनिक की मां भी हूं। मेरा बेटा कश्मीर में ब्रिगेडियर है।' मैं भी कहां चुप रहने वाला था, मैंने भी कहा, 'मैं दोनों को सैल्यूट करता हूं।' तभी अन्य टीचर्स एवं प्रिंसिपल अन्य मेहमानों के साथ वहां आ गये। थोड़ी देर मुस्कुराहटों के आदान-प्रदान के साथ मैं वहां से रुखसत हुआ।
स्कूल प्रिंसिपल वंदना सक्सेना को इसलिए भी साधुवाद कि कई मौकों पर उन्होंने अलग-अलग
विशेष बुलाये। उनसे रू-ब-रू करवाया। अनेक अवसरों पर स्कूल में और स्कूल के बाहर भी
स्कूल की चेयरपर्सन चांद नेहरू को भी सुनने का मौका मिला। कभी उनकी सीपी वाली कहानी
और कभी लाड़वंत और दंडवंत जैसे पैरेंटिक टिप्स को सुनता रहता हूं। इन सबके बीच अनुपमा
चोपड़ा मैडम की गहमागहमी और संबंधित तैयारियों का भी जिक्र होता है। ट्रिब्यून स्कूल
में अपने बच्चों के एडमिशन से पहले से भी आता रहा हूं। बाहर-बाहर। देखता था। सुनता
था। कुछ लोगों से जिक्र करता था। अलग-अलग राय मिलीं। फिलहाल मेरे दोनों बच्चे यहां
पढ़ते हैं। विस्तार से अन्य कार्यक्रमों की चर्चा जारी रहेगी।
(नोट : अवार्ड सेरेमनी की जो खबर मैंने लिखी उसे हू-ब-हू
नीचे दे रहा हूं। यहां कुछ फोटो भी साझा कर रहा हूं। उनमें से कुछ ट्रिब्यून स्कूल के फेसबुक पेज से लिये गये हैं)
संगीत, योग और पुरस्कार वितरण
के साथ ट्रिब्यून मॉडल स्कूल का इनवेस्टिचर एवं अवार्ड समारोह संपन्न
चंडीगढ़, 12 अप्रैल (ट्रिन्यू)
लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम
मिलाकर चल। मंजिल तेरे पग चूमेंगे, आज नहीं तो कल। इस प्रेरणादायक गीत के साथ बृहस्पतिवार
को ट्रिब्यून मॉडल स्कूल का इनवेस्टिचर एवं अवार्ड समारोह शुरू हुआ। सेक्टर 29 स्थित
स्कूल प्रांगण में आयोजित समारोह में मधुर संगीत, उत्साह, अनुशासन का अनूठा संगम दिखा।
इस मौके पर 2018-19 के लिए स्कूल काउंसिल का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। पिछले सत्र में
विभिन्न क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया गया। प्रिंसिपल
वंदना सक्सेना ने कहा कि बच्चों का उत्तरोत्तर विकास टीचर्स की कड़ी मेहनत, अभिभावकों
के सहयोग से संभव हो पा रहा है। अपने संक्षिप्त संबोधन में वंदना ने कहा, 'हमारे आसपास
क्या हो रहा है? इसके प्रति जागरूक रहें। हमेशा सीखते रहना ही हमारी ताकत है।' कार्यक्रम
की मुख्य अतिथि आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष डॉ रंजना मलिक ने बच्चों
का उत्साहवर्धन किया और अपने अनुभवों को साझा किया। पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक
की पत्नी रंजना ने कहा, 'बच्चों पर सबसे अधिक असर घर के वातावरण का पड़ता है।' ट्रिब्यून
के बच्चों की अनुशासनशीलता की तारीफ करते हुए उन्होंने समय पालन पर बल दिया। डॉ मलिक
ने अपने सैन्य बैकग्राउंड का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने तमाम महिलाओं की
सहायता से कारगिल युद्ध के समय जवानों के लिए मिठाई के डिब्बे और हाथ से लिखे प्रेरणा
संदेश भेजे और उसके बाद सैनिकों के भावुक और जोशीले खत भेजे। सैनिकों को वास्तविक हीरो
बताते हुए रंजना ने कहा कि हमें उनको भी याद रखना चाहिए। कार्यक्रम में संगीत टीचर
अतुल दुबे के नेतृत्व में रबीन्द्रनाथ टैगोर के शांति गीत पर बेहतरीन गीत-नृत्य पेश
किया गया। इस दौरान बच्चों ने योग की भी बेहतरीन प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में वर्ष
2018 के लिए अशोक एवं स्नेह शर्मा मेमोरियल ट्रॉफी गुलिस्तान को दी गयी। हरीश चंद्र
सक्सेना मेमोरियल बेस्ट ऑल राउंड ट्रॉफी पूजा एवं शिवांश को मिली। इससे पहले हेड बॉय
कार्तिक, हेड गर्ल तान्या, स्पोर्ट्स कैप्टन प्रेरणा के अलावा गुलिस्तान, आर्यन आदि
ने स्कूल की विभिन्न गतिविधियों की रिपोर्ट पेश की।
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