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Sunday, November 25, 2018

अपनेपन के साझीदार, मकान मालिक और किरायेदार


मिस्टर भाटिया पूरे तीन साल बाद आज अपने फ्लैट पर आये हैं। उनका फ्लैट दिल्ली के द्वारका सेक्टर 15 में है। भाटिया साहब पहले दिल्ली में ही जॉब करते थे, लेकिन पांच साल से बेंगलुरू में हैं। उनका जब ट्रांसफर हुआ तो पहले एक साल अकेले बेंगलुरू में रहे, फिर बच्चों को भी ले गये। इधर, फ्लैट भुवनेश कुमार नामक व्यक्ति को किराये पर दे गये। शुरू में छह-छह माह के अंतराल में आते रहे, लेकिन फिर आना-जाना कम होता गया। भुवनेश ऑन लाइन किराया भाटियाजी के अकांउट में डाल देते हैं। समय पर बिजली का बिल भी भर देते है। उधर, भाटिया जी स्वयं किराये के मकान में रह रहे हैं। उनके मकान मालिक इन दिनों हैदराबाद में रहते है। आज भाटिया जी दिल्ली के अपने फ्लैट में इसलिए आये हैं कि भुवनेश जी अब उनका मकान खाली कर रहे हैं। भुवनेश को अब मेरठ शिफ्ट होना है। भाटिया जी बेहद भावुक हैं। भुवनेश से कभी कोई दिक्कत नहीं हुई, बल्कि उन्होंने एक नये रिश्ते के बारे में नयी सीख दी। यह रिश्ता है मकान मालिक और किरायेदार का। अक्सर इस रिश्ते को एक दूसरे की शिकायत के तौर पर ही देखा जाता है, लेकिन अगर कोशिश की जाये तो इस रिश्ते से उपजता है विश्वास, अपनापन। तभी तो आज भाटिया जी भुवनेश से कह रहे हैं, आपको कभी भी दिल्ली आना हो तो आप बता देना। यह घर पहले आप का है। जाहिर है दोनों परिवारों के बीच एक नया रिश्ता बन गया है जो मकान मालिक और किरायेदार से इतर हैं। यह अलग बात है है कि इस रिश्ते की पहचान मकान-मालिक और किरायेदार से ही है। जाहिर है भुवनेश जब भी इस संबंध में चर्चा करेंगे तो यही कहेंगे कि भाटिया जी हमारे मकान मालिक थे। या भाटिया जी कहेंगे भुवनेश जी हमारे किरायेदार थे। उधर, बेंगलुरू में जिस मकान में भाटिया साहब गये हैं, वह डुपलेक्स है। पूरा मकान भाटिया जी के हवाले ही है। कभी कबार उनके मकान मालिक आते हैं तो वहीं रहते हैं। उन्होंने एक कमरा अपने लिए अलग रखा है। वह आने से पहले बता देते हैं। भाटिया जी उसमें साफ-सफाई करा देते हैं। आज हमारे-आपके बीच में अनेक लोग ऐसे मिल जाते हैं जो एक ही घर में कई सालों से रह रहे होते हैं। कभी-कभी तो यह भ्रम होता है कि वह किराये में रह रहे हैं या फिर वही मकान मालिक हैं। जाहिर है उनके संबंध अच्छे हैं। एक-दूसरे का खयाल रख रहे हैं। कहा जाता है कि किरायेदार जब अपना घर समझकर रहने लगे तो समस्याएं नहीं बढ़तीं, इसी तरह जब मकान मालिक किरायेदार को अपने बराबर ही समझता है तो भी स्थिति नहीं बिगड़ती। विशेषज्ञ कहते हैं कि कई बार किरायेदारों से आसपास के लोगों की इंटीमेसी इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि वे देखते हैं कि कुछ दिन रहने के बाद तो इन्हें चले जाना है। इसलिए भावनात्मक रिश्ता नहीं जुड़ पाता, लेकिन अगर मामला दोनों तरफ से मिलने-जुलने और बातों के आदान-प्रदान का हो तो भावुकता बढ़ जाती है। जिस किरायेदार को कोई मकान मालिक आर्थिक रूप से कमजोर समझ रहा था, हो सकता है वह उससे ज्यादा धनाड्य हो, लेकिन नौकरी के कारण किराये पर रह रहा हो। या यह भी तो हो सकता है कि जिस किरायेदार से दूरी बनाये रखने की कोशिश हो रही हो, वह उन्हीं के मूल गांव के आसपास का ही रहने वाला हो। असल में बात इंसानियत की होती है। समझदारी दोनों पक्षों से आनी होती है। अपनापन हो तो वाकई यह रिश्ता भी खूबसूरत हो जाता है। मकान मालिक-किरायेदार भी सुख-दुख के साझीदार बन जाते हैं। इतने साझीदार कि मकान मालिक के घर कोई कार्यक्रम हो तो किरायेदार को दिये कमरे भी काम आने लगते हैं और किरायेदार को कोई फंक्शन कराना हो तो मकान मालिक का पूरा घर खुला होता है।
नोट : यह लेख दैनिक ट्रिब्यून के रिश्ते कॉलम में छप चुका है।
 

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